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क्या ट्रांस महिला घरेलू हिंसा अधिनियम का उपयोग कर सकती है? इस पर SC विचार करेगा

सुप्रीम कोर्ट इस बात विचार करेगा कि एक ट्रांसजेंडर महिला सर्जरी कराने के बाद घरेलू हिंसा के तहत पीड़ित व्यक्ति हो सकती है. कोर्ट ने इसकी सुनवाई के लिए इसे 2025 के सूचीबद्ध किया है. (Trans Woman, Domestic Violence Act, Supreme Court)

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 2, 2023, 8:31 PM IST

मुंबई : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) इस बात पर विचार करेगा कि क्या एक ट्रांसजेंडर महिला जिसने सेक्स री-असाइनमेंट सर्जरी करवाई है वह घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के अंर्तगत पीड़ित व्यक्ति हो सकती है. इसके अलावा उसे घरेलू हिंसा के मामले में अंतरिम भरत पोषण मांगने का अधिकार है. इस मामले को सुनवाई के लिए 2025 में सूचीबद्ध किया गया है.

इस सिलसिले में न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ दायर एक अपील में अनुमति दे दी. इसमें कहा गया था कि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति जो सर्जरी कराकर महिला में बदल गया. क्या वह घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत शिकायत दर्ज कर सकता है. बता दें कि मार्च 2023 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति की अपनी पत्नी, एक ट्रांस-महिला को दिए गए गुजारा भत्ते को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था. इस मामले में कोर्ट ने कहा था कि जिस ट्रांसजेंडर ने सर्जरी करके लिंग को महिला में बदल दिया है, उसे घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 2 (ए) के अर्थ के तहत एक पीड़ित व्यक्ति कहा जाना चाहिए.

इसी क्रम में हाई कोर्ट ने कहा था कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 की धारा 2 (ए) के तहत पीड़ित व्यक्ति शब्द की विस्तृत व्याख्या की जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि अधिनियम का मकसद महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाना है. इस निर्णय के खिलाफ व्यक्ति ने उच्चतम न्यायालय में अपील की है. इस संबंध में अपीलकर्ता ने 2016 में प्रतिवादी एक ट्रांसजेंडर महिला से शादी की थी, जिसने लिंग परिवर्तन सर्जरी करवाई थी.

वहीं प्रतिवादी ने डीवी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया और अंतरिम भरण-पोषण की मांग की थी. इस पर न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने उसे गुजारा भत्ता दिया और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने अपील में इसे बरकरार रखा. इसके बाद अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. हालांकि अपीलकर्ता ने तर्क दिया था कि प्रतिवादी पीड़ित व्यक्ति की परिभाषा में नहीं आता है क्योंकि इसमें केवल घरेलू संबंधों में महिलाएं शामिल हैं. साथ ही कहा गया कि प्रतिवादी के पास ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 7 के तहत कोई प्रमाण पत्र नहीं है और इसलिए उसे डीवी एक्ट के तहत एक महिला के रूप में नहीं माना जा सकता है.

ये भी पढ़ें राज्यपाल से खींचतान के बीच केरल सरकार ने बिलों के कानूनी समाधान के लिए किया सुप्रीम कोर्ट का रुख

मुंबई : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) इस बात पर विचार करेगा कि क्या एक ट्रांसजेंडर महिला जिसने सेक्स री-असाइनमेंट सर्जरी करवाई है वह घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के अंर्तगत पीड़ित व्यक्ति हो सकती है. इसके अलावा उसे घरेलू हिंसा के मामले में अंतरिम भरत पोषण मांगने का अधिकार है. इस मामले को सुनवाई के लिए 2025 में सूचीबद्ध किया गया है.

इस सिलसिले में न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ दायर एक अपील में अनुमति दे दी. इसमें कहा गया था कि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति जो सर्जरी कराकर महिला में बदल गया. क्या वह घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत शिकायत दर्ज कर सकता है. बता दें कि मार्च 2023 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति की अपनी पत्नी, एक ट्रांस-महिला को दिए गए गुजारा भत्ते को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था. इस मामले में कोर्ट ने कहा था कि जिस ट्रांसजेंडर ने सर्जरी करके लिंग को महिला में बदल दिया है, उसे घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 2 (ए) के अर्थ के तहत एक पीड़ित व्यक्ति कहा जाना चाहिए.

इसी क्रम में हाई कोर्ट ने कहा था कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 की धारा 2 (ए) के तहत पीड़ित व्यक्ति शब्द की विस्तृत व्याख्या की जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि अधिनियम का मकसद महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाना है. इस निर्णय के खिलाफ व्यक्ति ने उच्चतम न्यायालय में अपील की है. इस संबंध में अपीलकर्ता ने 2016 में प्रतिवादी एक ट्रांसजेंडर महिला से शादी की थी, जिसने लिंग परिवर्तन सर्जरी करवाई थी.

वहीं प्रतिवादी ने डीवी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया और अंतरिम भरण-पोषण की मांग की थी. इस पर न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने उसे गुजारा भत्ता दिया और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने अपील में इसे बरकरार रखा. इसके बाद अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. हालांकि अपीलकर्ता ने तर्क दिया था कि प्रतिवादी पीड़ित व्यक्ति की परिभाषा में नहीं आता है क्योंकि इसमें केवल घरेलू संबंधों में महिलाएं शामिल हैं. साथ ही कहा गया कि प्रतिवादी के पास ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 7 के तहत कोई प्रमाण पत्र नहीं है और इसलिए उसे डीवी एक्ट के तहत एक महिला के रूप में नहीं माना जा सकता है.

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