नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी कि बकरा-ईद के अवसर पर पूर्व अनुमति प्राप्त किए बिना राष्ट्रीय राजधानी में कोई मवेशी बाजार आयोजित नहीं किया जाएगा.
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने याचिका पर विचार करने में अनिच्छा व्यक्त करते हुए याचिकाकर्ता अजय गौतम से कहा, 'यह अदालत देश के हर हिस्से में होने वाली हर चीज की निगरानी नहीं कर सकती है.'
गौतम ने कहा कि उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि उन्होंने कोई विशिष्ट मामला नहीं बनाया है या किसी विशेष उदाहरण का हवाला नहीं दिया है जहां नियमों का उल्लंघन किया गया हो.
पीठ ने कहा कि उनके द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष पेश की गई तस्वीरों में किसी पशु की बलि देते हुए नहीं दिखाया गया है. पीठ ने कहा कि ये स्थानीय मुद्दे हैं और सवाल किया 'क्या अब यह देखना सर्वोच्च न्यायालय का काम है कि दिल्ली में, किसी विशेष क्षेत्र में क्या हो रहा है...'
गौतम ने तर्क दिया कि वह किसी धार्मिक मुद्दे को नहीं छू रहे हैं बल्कि मौजूदा नियमों को लागू करने की बात कर रहे हैं. हालांकि, शीर्ष अदालत उनकी इस दलील से सहमत नहीं हुई. गौतम ने अदालत से याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी और कहा कि वह उच्च न्यायालय के समक्ष समीक्षा याचिका दायर करना चाहते हैं. पीठ ने याचिका को वापस लिया हुआ मानते हुए खारिज कर दिया.
गौतम ने उच्च न्यायालय के 3 जुलाई के आदेश को चुनौती दी थी जिसने उनकी याचिका खारिज कर दी थी. शीर्ष अदालत में दायर उनकी याचिका में कहा गया है, अवैध मवेशी बाजार विभिन्न स्थानों पर आयोजित किए जाते हैं. जाफराबाद, ओखला, जामिया, जामा मस्जिद, सीलमपुर, इंद्रलोक, जामिया सहित अन्य स्थानों पर प्रशासन या उसके सक्षम अधिकारियों की पूर्व अनुमति के बिना और सरकार द्वारा बनाए गए सभी नियमों का खुले तौर पर और निडर होकर उल्लंघन किया जाता है.
याचिका में कहा गया कि उच्च न्यायालय ने इस बात को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया कि याचिकाकर्ता ने विशेष रूप से अवैध बाजारों की तस्वीरें संलग्न की थीं और दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में आयोजित होने वाले अवैध पशु बाजारों के स्थानों और घटनाओं के बारे में भी बताया था.
याचिका में कहा गया था कि 'पिछले साल की बकरा-ईद-ईद उल अज़हा की तस्वीरें सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के बड़े पैमाने पर उल्लंघन का पर्याप्त सबूत थीं और विशेष रूप से निर्दोष जानवरों के साथ अमानवीय व्यवहार दिखाया गया था. इन चंद तस्वीरों से साफ है कि राज्य अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहा है.'
याचिका में कहा गया था 'किसी जानवर को बाजार में बिक्री के लिए रखने से पहले पशु चिकित्सा विभाग के डॉक्टर से प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य है. लेकिन इन अवैध बाजारों के विक्रेताओं द्वारा कभी भी ऐसा कोई प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं किया गया है.'