पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर केन्द्र सरकार से अनुरोध करने का प्रस्ताव पारित किया गया. पहली बार बिहार सरकार की तरफ से इस तरह का प्रस्ताव पारित किया गया है. इससे पहले नीतीश कुमार प्रधानमंत्री को पत्र जरूर लिखे हैं कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाए. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले केंद्र से जिस प्रकार से विशेष राज्य के दर्जे के लिए अनुशंसा की गई है इस पर सियासत शुरू हो गयी है.
नीतीश ने केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ा दीः बीजेपी के लोग कह रहे हैं कि चुनाव को देखकर इस तरह के फैसले लिए जा रहे हैं. वहीं महागठबंधन के नेता बिहार के लिए इसे जरूरी बता रहे हैं. जातीय गणना की रिपोर्ट का भी हवाला दे रहे हैं. जो जानकारी मिल रही है नीतीश कुमार एक प्रतिनिधिमंडल भी केंद्र को भेज सकते हैं और अपनी यात्रा में मुद्दा भी बनाएंगे. राजनीतिक विशेषज्ञ भी कहते हैं कि यह केवल चुनावी एजेंडा है, क्योंकि जो मानक है उसमें फिलहाल किसी को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता है. लेकिन, इस मुद्दे को उठाकर नीतीश ने केंद्र सरकार की मुश्किलें जरूर बढ़ा दी हैं.
मरे हुए घोड़े पर कितना भी चाबुक चलायें, दौड़ने वाला नहीं: नीतीश सरकार की ओर से केंद्र को विशेष राज्य के दर्जे से संबंधित अनुशंसा भेजने पर सियासत शुरू है. पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जब 14 वें वित्त आयोग ने विशेष राज्य की अवधारणा को ही अमान्य कर दिया है. अब किसी भी राज्य को विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता, तब इस मुद्दे पर बिहार सरकार का कैबिनेट से पारित प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजना सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट है. इस मरे हुए घोड़े पर नीतीश कुमार कितना भी चाबुक चलायें, घोड़ा दौड़ने वाला नहीं. सुशील मोदी ने सवाल उठाये कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद केंद्र सरकार में ताकतवर मंत्री रहे, तब इन लोगों ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं दिलवाया.
बिहार के विकास के लिए कुछ नहीं कियाः भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर कैबिनेट से पारित कराये गये प्रस्ताव पर कहा कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव का शासन 30 साल तक रहा. अपने शासनकाल में उन्होंने क्या किया यह भी बताने की जरूरत है. नीतीश कुमार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं, विशेष इलाज की जरूरत है. कैबिनेट के प्रस्ताव का क्या मतलब होता है यह सबको मालूम है. सम्राट चौधरी ने कहा कि नीतीश बाबू बिहार के 2,61,000 हजार करोड़ के बजट में आपकी हिस्सेदारी केवल 32,000 करोड़ की है. बाकी 2,29,000 हजार करोड़ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार देती है. उन्होने कहा कि 'नीतीश बाबू आपके गद्दी पर रहते हुए तो बिहार का विकास संभव नहीं है.'
केंद्र को स्पेशल स्टेटस पर अपनी राय रखनी चाहिएः इधर महागठबंधन के नेता भी इस मुद्दे पर नीतीश का जोर शोर से समर्थन कर रहे हैं. उपमुख्यमंत्री ने कहा कि अगर केंद्र सरकार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देती है तो यहां काम जल्दी होगा. जातीय गणना की रिपोर्ट के आधार पर गरीबों के लिए जो काम करना है उसमें ढाई लाख करोड़ की जरूरत पड़ेगी. यदि केंद्र सरकार विशेष मदद और विशेष दर्जा दे दे तो यह काम आसानी से हो जाएगा. केंद्र सरकार को साफ करना चाहिए कि विशेष राज्य का दर्जा दिया जाएगा या नहीं. अगर हमें विशेष राज्य का दर्जा दे दिया जाता है तो कई फायदे होंगे. भूमिहीन और किसानों को भूमि देने में और बेरोजगारों को रोजगार देने समेत कई दूसरे काम आसान हो जाएंगे.
केंद्र सरकार बिहार की लगातार उपेक्षा कर रहीः मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि यह तो शुरुआत है. आगे-आगे देखिए क्या-क्या होता है. कहां-कहां हम लोग जाते हैं. वहीं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का भी कहना है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए. भाजपा नेताओं के बयान पर निशाना भी साध रहे हैं. ललन सिंह का कहना है कि जब आप भारत को विश्व गुरु बनाने की बात कह रहे हैं तो कोई राज्य पिछड़ा रह जाएगा तो कैसे यह संभव है. केंद्र सरकार बिहार की लगातार उपेक्षा कर रही है. बिहार गरीब राज्य है इसलिए इसको विशेष राज्य के दर्जे की जरूरत है. आगे इसके लिए हम लोग लगातार आंदोलन चलाएंगे.
हर चुनाव से पहले इसे मुद्दा बनाने की कोशिश करते हैं नीतीशः पटना हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट आलोक कुमार सिन्हा का कहना है यह कानूनी मामला नहीं है और ना ही इसमें संविधान में संशोधन करने की कोई जरूरत पड़ेगी. यह तो केंद्र सरकार की पॉलिसी का मामला है. लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ रवि उपाध्याय कह रहे हैं कि यह पूरी तरह से नीतीश कुमार का चुनावी मुद्दा है. क्योंकि हर चुनाव से पहले नीतीश कुमार इसे मुद्दा बनाने की कोशिश करते हैं. चुनाव के बाद इसे भूला दिया जाता है. विशेष राज्य के दर्जे के लिए कुछ मापदंड बनाया गया है और जो पूरा करेगा उसी को यह मिलेगा. यह सबको पता है उसके बावजूद विशेष राज्य के दर्जे की मांग की जा रही है.
2013 से बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांगः नीतीश कुमार की ओर से 2013 से बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग की जा रही है. पटना और दिल्ली में बड़ी रैली भी की गई. सवा करोड़ हस्ताक्षर कराकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजा गया. बिहार के अलावे आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उड़ीसा और गोवा की तरफ से भी विशेष राज्य के दर्जे की मांग की जा रही है. लेकिन अब नीतीश सरकार जातीय गणना के आधार पर बिहार के 94 लाख गरीब परिवारों के लिए योजना चलाने पर जो राशि खर्च हो रही है, उसके लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रही है.
अब तक किन राज्यों को मिला है विशेष का दर्जा: 14वें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया था कि टैक्स के केंद्रीय पूल में सभी राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ा दी गई है, ऐसे में किसी भी राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा देने की कोई जरूरत और औचित्य नहीं है. विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने का मुद्दा सबसे पहले राष्ट्रीय विकास परिषद की अप्रैल, 1969 में आयोजित बैठक के दौरान गाडगिल फॉर्मूला के अनुमोदन के वक्त उठा था. सबसे पहले वर्ष 1969 में ही असम, जम्मू एवं कश्मीर और नागालैंड को यह दर्जा दिया गया था. इसके बाद अगली पंचवर्षीय योजना के दौरान यह दर्जा पांच और राज्यों हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम और त्रिपुरा को दिया गया. फिर 1990 में अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम को यह दर्जा दिया गया. वर्ष 2001 में उत्तराखंड के गठन के साथ ही उसे भी विशेष राज्य का दर्जा दे दिया गया.
विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर क्या होगा फायदाः एक्साइज और कस्टम ड्यूटीज, इनकम टैक्स एवं कॉरपोरेट टैक्स में बड़ी राहत मिलेगी. केंद्रीय बजट के प्रायोजित व्यय का 30 फीसदी विशेष दर्जा वाले राज्यों के विकास पर खर्च होता है. विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र सरकार से जो फंड मिलता है, उसमें से 90 फीसदी अनुदान होता है. सिर्फ 10 फीसदी कर्ज होता है, उस पर भी ब्याज नहीं लगता है. सामान्य राज्य को जो फंड मिलता है उसमें से सिर्फ 70 फीसदी अनुदान होता है और बाकी 30 फीसदी कर्ज. वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी का कहना है विशेष राज्य का दर्जा मिलने से केंद्रीय योजनाओं में बिहार की जो हिस्सेदारी है उसकी बचत होगी. यह 40000 करोड़ के आसपास होगा जिससे बिहार में गरीबों के लिए योजना चलाई जा सकेगी.
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