चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 को श्रीलंकाई हिंदू तमिलों पर लागू किया जा सकता है. न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन ने मामले में पाया कि श्रीलंका के हिंदू तमिल नस्लवाद के प्रमुख शिकार हैं. न्यायाधीश ने तिरुचि के एक श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी एस. अभिरामी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. याचिकाकर्ता अभिरामी भारतीय नागरिकता की मांग कर रही है.
न्यायाधीश ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, वह कभी भी श्रीलंकाई नागरिक नहीं रही हैं और इसलिए इसे त्यागने का सवाल ही नहीं उठता. न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने यह भी कहा कि अगर अभिरामी के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया गया, तो उनके राज्य विहीन होने की संभावना अधिक है और इससे बचा जाना चाहिए. नागरिकता अधिनियम में हाल ही में किए गए संशोधन का जिक्र करते हुए न्यायाधीश ने कहा, श्रीलंका उक्त संशोधन के दायरे में नहीं आता है, वही सिद्धांत समान रूप से लागू होता है.
उन्होंने कहा, इस तथ्य का न्यायिक नोटिस लिया जा सकता है कि श्रीलंका के हिंदू तमिल नस्लीय संघर्ष के प्रमुख शिकार थे. अपनी याचिका में, अबिरामी ने कहा कि उनका जन्म दिसंबर 1993 में तिरुचि में हुआ था और उनके माता-पिता अवैध अप्रवासी नहीं थे. उनके माता-पिता जातीय संघर्ष के दौरान भारत आए थे और उनके पिता ने उसका वीजा जून 2022 तक बढ़ा दिया था.
महिला ने कहा कि उसने और उसकी मां ने स्थानीय पुलिस में गैर-शिविर श्रीलंकाई शरणार्थियों के रूप में पंजीकरण कराया था और बताया था कि उनके पास पैन और आधार होने के बावजूद उन्हें भारतीय नागरिकता और भारतीय पासपोर्ट नहीं मिल पा रहा है. गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने स्पष्ट किया था कि केंद्र द्वारा जारी मानक संचालन प्रक्रिया के दिशानिर्देश श्रीलंका और म्यांमार के प्रवासियों का ख्याल रखेंगे.
नागरिकता संशोधन अधिनियम ने पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता सुरक्षित करने का मौका दिया.
ये भी पढ़ें : मदुरै हाईकोर्ट ने पीड़िता के मुकरने पर भी पॉक्सो मामले में उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा