भोपाल। प्रदेश के कई इलाकों में बादल जमकर बरस रहे हैं, लेकिन बुंदेलखंड इलाके में बादल मुंह मोड़े हुए हैं. बुंदेलखंड में बारिश का अभी आधा कोटा भी नहीं हुआ है. बारिश के मामले में कमोवेश यह हालात कुछ-कुछ सालों में बनते रहते हैं. आमतौर पर इसकी वजह बुंदेलखंड की भौगोलिक स्थिति को माना जाता है, लेकिन जानकर आश्चर्य होगा कि बुंदेलखंड में अच्छी बारिश उत्तर प्रदेश पर निर्भर करती है. बुंदेलखंड इलाके में तभी अच्छी बारिश होती है, जब मानसून रीवा और इलाहाबाद पर मेहरबान होता है.
बुंदेलखंड यह है बारिश का आंकड़ा: मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, पन्ना, दमोह और दतिया जिले आते हैं. बारिश के आंकड़ों को देखा जाए तो प्रदेश के दूसरे जिलों की अपेक्षा इन जिलों में औसत बारिश का आंकडा कम हैं. साफ है, इन जिलों में प्रदेश के दूसरे इलाकों की अपेक्षा कम बारिश होती है. 1 जून से अभी तक के आंकड़ों पर गौर करें तो-
- नर्मदापुरम इलाके में औसतन बारिश अभी तक 363 मिली मीटर, विदिशा में 292, भोपाल में 276 मिलीमीटर बारिश होती है.
- वहीं बुंदेलखंड के दतिया में अभी तक का बारिश का आंकड़ा 110 मिलीमीटर है. जबकि टीकमगढ़ में 139, छतरपुर में 161 मिलीमीटर औसतन बारिश हुई है. बारिश के मामले में बुंदेलखंड में
- आमतौर पर यही स्थिति रहती है. बुंदेलखंड के लोग 2004 से 2010 तक लगातार भारी बारिश के लिए तरसते रहे.
पिछले 13 सालों में टीकमगढ़ इलाके में 5 साल सूखे में निकले. साल 2009, 2010, 2014, 2015 और 2017 में औसत बारिश से कम बारिश रिकार्ड की गई.
बुंदेलखंड में बारिश उत्तर प्रदेश पर निर्भर: मौसम विभाग के रिटायर्ड डायरेक्टर डीपी दुबे के मुताबिक, 'मध्यबारिश के बुंदेलखंड इलाके और इसमें भी खासतौर से टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दतिया इलाके में बारिश तभी अच्छी होती है, जब बंगाल की खाड़ी में लो प्रेशर एरिया बने और यह बिलासपुर, रीवा होते हुए इलाहाबाद और लखनऊ की तरफ मूव करे. ऐसी स्थिति में बुंदेलखंड के इलाकों में अच्छी बारिश होती है, लेकिन ऐसा आमतौर पर नहीं होता. मौसम वैज्ञानिक ममता यादव बताती हैं कि अधिकांश वेदर सिस्टम उड़ीसा कोस्ट पर बनते हैं. यह सिस्टम उड़ीसा से होकर छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश से होते हुए राजस्थान की तरफ जाते हैं. यह मानसून ट्रफ से मूव करते हैं, इसे द्रोणिका भी बोला जाता है.
मानसून ट्रफ लाइन से ऊपर है बुंदेलखंड का इलाका: मौसम वैज्ञानिक एसएच पांडे के मुताबिक मानसून ट्रफ यानी द्रोणिक बीकानेर से शुरू होकर जयपुर, ग्वालियर, जबलपुर, रायपुर होते हुए पुरी से बंगाल की खाड़ी में जाती है. जो भी लो प्रेशर एरिया बनते हैं, वह आमतौर पर इसी द्रोणिका पर मूव करते हैं. वैसे इस बार जो वेदर सिस्टम बने हैं, वह द्रोणिका से नीचे से मूव कर रहे हैं. इससे दक्षिणी मध्य प्रदेश के बालाघाट, होशंगाबाद, भोपाल होते हुए गुजरात जाते हैं. इसलिए इस इलाके में अच्छी बारिश हो रही है. हालांकि 18 तारीख से जो सिस्टम बन रहे हैं, उससे बुंदेलखंड इलाके में अच्छी बारिश होगी.
इसीलिए बनीं थी बुंदेलखंड में जलसंरचनाएं: सामाजिक कार्यकर्ता पवन घुआरा कहते हैं कि, 'बुंदेलखंड का पूरा इलाका पथरीला है. यहां पानी जमीन के अंदर धीरे-धीरे पहुंचता है. औसत बारिश का आंकड़ा भी कम है, यही वजह है कि कभी बुंदेलखंड इलाके में 10 हजार से ज्यादा तालाब थे, ताकि बारिश के पानी को सहेजा जा सके'. इन तालाबों की खासियत यह थी कि यह आपस में जुड़े होते थे. एक तालाब भरता तो, उसका पानी दूसरे तालाब में पहुंच जाता था, लेकिन धीरे-धीरे यह खत्म हो गए. जलपुरूष के नाम से पहचाने जाने वाले राजेन्द्र सिंह भी बुंदेलखंड में पानी के संकट को लेकर कई बार चिंता जाहिर कर चुके हैं.