कोलकाता : पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने लोगों से आगामी विधानसभा चुनाव में 'अलोकतांत्रिक' तृणमूल कांग्रेस और 'सांप्रदायिक' भाजपा को हराने की अपील करते हुए कहा कि राज्य इन दोनों दलों से बहुत गंभीर खतरे का सामना कर रहा है.
एक ऑडियो संदेश में वरिष्ठ माकपा नेता ने दावा किया कि तृणमूल कांग्रेस के दस साल के शासनकाल से राज्य के औद्योगिक एवं कृषि क्षेत्रों में अप्रत्याशित संकट आ गया है. उन्होंने कहा, 'अलोकतांत्रिक तृणमूल कांग्रेस के शासन काल में अराजकता एवं सांप्रदायिक भाजपा की आक्रामक राजनीति ने मिलकर राज्य को एक नयी संकटपूर्ण स्थिति में पहुंचा दिया है और बस वामदलों, कांग्रेस और आईएसएफ का संयुक्त मोर्चा ही उसे बचा सकता है.'
उन्होंने कहा, 'सिंगूर और नंदीग्राम को लेकर मरघट सा- सन्नाटा बना हुआ है.' पूर्व मुख्यममंत्री ने दावा किया कि 2011 से एक भी उद्योग के राज्य में नहीं आने से युवक अनिश्चित भविष्य के भंवर में है और वे अन्य राज्यों में पलायन करने को बाध्य हैं.
'बुद्धदेव भट्टाचार्य बदल सकते हैं चुनाव की बाजी'
पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने 2019 के लोकसभा चुनावों से लगभग दो साल पहले सार्वजनिक उपस्थिति रूप से उपस्थिति दर्ज कराई थी. कोलकाता में ब्रिगेड परेड ग्राउंड में आयोजित वाम मोर्चा की रैली में उन्होंने अपने पार्टी समर्थकों में जोश भरने की कोशिश की थी लेकिन वह प्रयास सार्थक नहीं साबित हुआ.
2019 के चुनावों में पार्टी का वोट शेयर घटकर केवल सात प्रतिशत रह गया. लेकिन अब जिस तरह से उन्होंने जनता से अपील की है सीपीआई (एम) के एक वर्ग को अभी भी लगता है कि खराब स्वास्थ्य के साथ भी भट्टाचार्य चुनाव की बाजी पलट सकते हैं.
संयोग से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 14 मार्च 2007 को पुलिस की फायरिंग की घटना का उल्लेख करते हुए विवादास्पद बयान दिया. किसी का नाम लिए बगैर उन्होंने नंदीग्राम से उनके खिलाफ लड़ रहे शुभेंदु अधिकारी और उनके पिता का जिक्र किया. इस पर वाम को मौका मिल गया. फायरिंग को लेकर उनकी सरकार पर उठ रहे सवालों पर ममता ने ही एक तरह से क्लीनचिट देते हुए, शुभेंदु और उनके पिता को एक तरीके से घटना के लिए 'जिम्मेदार' ठहरा दिया.
इसके तुरंत बाद वाम मोर्चा समर्थकों ने मुख्यमंत्री की टिप्पणी का हवाला देते अभियान शुरू कर दिया कि नंदीग्राम में पुलिस फायरिंग के पीछे तत्कालीन भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा सरकार की कोई भूमिका नहीं थी.
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इस संबंध में भट्टाचार्य का लिखित बयान भी जारी किया गया है. अब सवाल यह है कि क्या जनता का विश्वास हासिल करने का यह प्रयास सफल होगा या नहीं. वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि 2 मार्च की रैली में वाम मोर्चा के नेता भारतीय धर्मनिरपेक्ष मोर्चा (ISF) के अब्बास सिद्दीकी की उपस्थिति से इतना अभिभूत थे कि वे एक बार भी भट्टाचार्जी के नाम का जिक्र करना भूल गए.