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जानिए, असम के मरिगांव के लिए क्यों अभिशाप बन गई है ब्रह्मपुत्र नदी

असम के लोगों की जीवन रेखा कही जाने वाली ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ और कटान से मरिगांव के आसपास के इलाके तबाह हो रहे हैं. 40 साल में हजारों घर इसकी बाढ़ और कटान में समा गए. कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन लोगों के जख्म नहीं भर सकीं.

ब्रह्मपुत्र नदी
ब्रह्मपुत्र नदी
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Published : Jan 4, 2021, 11:13 PM IST

मरिगांव (असम) : तिब्बत से निकली विशाल ब्रह्मपुत्र नदी को असम के लोगों के लिए जीवन रेखा माना जाता है, क्योंकि यह अपने दोनों किनारों पर रहने वाले लाखों लोगों की आजीविका का साधन है.

यह इनकी जमीन उपजाऊ बनाती है. इसके पानी से सिंचाई कर फसल लहलहाती है. वहीं नदी के पास रहने वाले हजारों मछुआरों को आजीविका देती है. लेकिन जब इसमें बाढ़ आती है तो ये कहर बरपाती है. हजारों एकड़ फसल बरबाद हो जाती है. लोग बेघर हो जाते हैं. बेरोजगार हो जाते हैं. आंकड़ों के मुताबिक, सरकार ने पिछले डेढ़ दशक में 900 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, लेकिन लोगों की जिंदगी अब भी बद्तर है.

बाढ़ मचा रही तबाही

ब्रह्मपुत्र नदी मध्य असम के मरिगांव जिले के लोगों के लिए एक अभिशाप बन गई है, जहां पिछले चार दशकों में 153 से ज्यादा गांव तबाह हो गए. इसका असर तीन लाख से अधिक लोगों पर पड़ा. यहां तक कि प्रभावित लोग पड़ोसी राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मणिपुर में पलायन कर चुके हैं, इनमें से हजारों प्रभावित मोरीगैन जिले के विभिन्न हिस्सों में तटबंधों और सड़क किनारे बने शिविरों में रह रहे हैं.

1988 में चार हजार लोग हो गए थे बेघर

स्थानीय लोगों का कहना है कि 1950 में बड़े भूकंप के बाद मरिगांव जिले में बाढ़ और कटाव हुआ था. जिले के कुछ क्षेत्रों में 1979 के बाद मरिगांव में भयंकर कटाव देखा गया. वहीं, 1988 में बाढ़ तबाही मचाई जिसमें 96 गांव नदी से कट गए. इस बाढ़ ने 4000 से ज्यादा परिवारों को बेघर कर दिया. सीतामढ़ी, सोलमरी, गोरोइमारी और कई गांवों में लोग अभी भी सड़क के किनारे टेंट में रहते हैं.

साल 1989, 1993, 1996 में भी तबाही

आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि 1989 में बाढ़ ने जिले को बुरी तरह प्रभावित किया था. 20 से ज्यादा लोगों ने अपने घरों और धान के खेतों को खो दिया. उसी वर्ष जिले में लाहोरीघाट निर्वाचन क्षेत्र में 60,000 से अधिक परिवार बेघर हो गए.

1993 में बाढ़ से मरिगांव के 228 से अधिक गांव प्रभावित हुए और 2.5 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए.

1996 में आई बाढ़ ने जिले के 11000 लोगों को प्रभावित किया. जिला प्रशासन के अधिकारियों ने कहा कि 1996 में भूरागांव राजस्व क्षेत्र में 1616 से ज्यादा लोगों के घर तबाह हो गए.

2006 में बाढ़ और कटाव के कारण जिले के मोइराबारी में 14,000 लोग प्रभावित हुए. हालांकि सरकार ने बाढ़ और कटाव को रोकने के लिए कई कदम उठाने का दावा किया है, फिर भी जिले के लोग हर साल बाढ़ से घिरे रहते हैं.

प्रभावित लोगों ने बयां किया दर्द

एक प्रभावित व्यक्ति ने बताया कि 'पिछले 40 वर्षों से ब्रह्मपुत्र नदी ने हमें बुरी तरह प्रभावित किया है. हमने 32 राजस्व गांवों को खो दिया है. हजारों बीघा कृषि भूमि कटाव के कारण नदी में समा गई है.

एक अन्य स्थानीय निवासी ने बताया कि 'हम पिछले कई वर्षों से कटाव के कारण परेशान हैं. नदी ने कई परिवारों को विस्थापित कर दिया है. ग्रामीणों को नुकसान हुआ है, यहां तक कि लोगों को आजीविका के लिए नागालैंड जैसे राज्यों में पलायन करना पड़ा.'

एक अन्य स्थानीय निवासी ने बताया कि 'मैंने कटाव में अपना घर और धान के खेत खो दिए'

पढ़ें- असम : राजनीति का शिकार बने बाढ़ प्रभावित लोग

पढ़ें- असम में बाढ़ से और बिगड़े हालात, 26 लाख से ज्यादा प्रभावित, 89 की मौत

मरिगांव (असम) : तिब्बत से निकली विशाल ब्रह्मपुत्र नदी को असम के लोगों के लिए जीवन रेखा माना जाता है, क्योंकि यह अपने दोनों किनारों पर रहने वाले लाखों लोगों की आजीविका का साधन है.

यह इनकी जमीन उपजाऊ बनाती है. इसके पानी से सिंचाई कर फसल लहलहाती है. वहीं नदी के पास रहने वाले हजारों मछुआरों को आजीविका देती है. लेकिन जब इसमें बाढ़ आती है तो ये कहर बरपाती है. हजारों एकड़ फसल बरबाद हो जाती है. लोग बेघर हो जाते हैं. बेरोजगार हो जाते हैं. आंकड़ों के मुताबिक, सरकार ने पिछले डेढ़ दशक में 900 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, लेकिन लोगों की जिंदगी अब भी बद्तर है.

बाढ़ मचा रही तबाही

ब्रह्मपुत्र नदी मध्य असम के मरिगांव जिले के लोगों के लिए एक अभिशाप बन गई है, जहां पिछले चार दशकों में 153 से ज्यादा गांव तबाह हो गए. इसका असर तीन लाख से अधिक लोगों पर पड़ा. यहां तक कि प्रभावित लोग पड़ोसी राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मणिपुर में पलायन कर चुके हैं, इनमें से हजारों प्रभावित मोरीगैन जिले के विभिन्न हिस्सों में तटबंधों और सड़क किनारे बने शिविरों में रह रहे हैं.

1988 में चार हजार लोग हो गए थे बेघर

स्थानीय लोगों का कहना है कि 1950 में बड़े भूकंप के बाद मरिगांव जिले में बाढ़ और कटाव हुआ था. जिले के कुछ क्षेत्रों में 1979 के बाद मरिगांव में भयंकर कटाव देखा गया. वहीं, 1988 में बाढ़ तबाही मचाई जिसमें 96 गांव नदी से कट गए. इस बाढ़ ने 4000 से ज्यादा परिवारों को बेघर कर दिया. सीतामढ़ी, सोलमरी, गोरोइमारी और कई गांवों में लोग अभी भी सड़क के किनारे टेंट में रहते हैं.

साल 1989, 1993, 1996 में भी तबाही

आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि 1989 में बाढ़ ने जिले को बुरी तरह प्रभावित किया था. 20 से ज्यादा लोगों ने अपने घरों और धान के खेतों को खो दिया. उसी वर्ष जिले में लाहोरीघाट निर्वाचन क्षेत्र में 60,000 से अधिक परिवार बेघर हो गए.

1993 में बाढ़ से मरिगांव के 228 से अधिक गांव प्रभावित हुए और 2.5 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए.

1996 में आई बाढ़ ने जिले के 11000 लोगों को प्रभावित किया. जिला प्रशासन के अधिकारियों ने कहा कि 1996 में भूरागांव राजस्व क्षेत्र में 1616 से ज्यादा लोगों के घर तबाह हो गए.

2006 में बाढ़ और कटाव के कारण जिले के मोइराबारी में 14,000 लोग प्रभावित हुए. हालांकि सरकार ने बाढ़ और कटाव को रोकने के लिए कई कदम उठाने का दावा किया है, फिर भी जिले के लोग हर साल बाढ़ से घिरे रहते हैं.

प्रभावित लोगों ने बयां किया दर्द

एक प्रभावित व्यक्ति ने बताया कि 'पिछले 40 वर्षों से ब्रह्मपुत्र नदी ने हमें बुरी तरह प्रभावित किया है. हमने 32 राजस्व गांवों को खो दिया है. हजारों बीघा कृषि भूमि कटाव के कारण नदी में समा गई है.

एक अन्य स्थानीय निवासी ने बताया कि 'हम पिछले कई वर्षों से कटाव के कारण परेशान हैं. नदी ने कई परिवारों को विस्थापित कर दिया है. ग्रामीणों को नुकसान हुआ है, यहां तक कि लोगों को आजीविका के लिए नागालैंड जैसे राज्यों में पलायन करना पड़ा.'

एक अन्य स्थानीय निवासी ने बताया कि 'मैंने कटाव में अपना घर और धान के खेत खो दिए'

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