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BJP का चुनावी राज्यों में संगठनात्मक नियुक्तियों और समन्वय पर जोर

भारतीय जनता पार्टी पांच राज्यों के चुनाव को देखते हुए सभी राज्यों के लिए अलग-अलग रणनीति तैयार कर रही है. पार्टी का जोर चुनाव वाले राज्य में संगठनात्मक मजबूती पर भी है. पार्टी संगठनात्मक नियुक्तियों पर जोर दे रही है. जिन राज्यों में भाजपा की सत्ता है वहां तो सरकार और संगठन दोनों स्तर पर ही पार्टी इस बात का खास ध्यान दे रही है कि ऐसी कोई नियुक्तियां नहीं की जाएं जिससे अधिकारियों समेत पार्टी के पदाधिकारियों में भी कोई नाराजगी पैदा हो. वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट.

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Published : Sep 22, 2021, 6:31 PM IST

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश. उत्तराखंड, मणिपुर, पंजाब और गोवा में 2022 के शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव होने हैं. भाजपा ने आखिरी चुनाव बंगाल विधानसभा का लड़ा था जहां पार्टी की रणनीति बहुत हद तक फेल हो गई थी. उस चुनाव में पार्टी का प्रचार बहुत ही ज्यादा आक्रामक था.

भाजपा सूत्रों की माने तो इस चुनाव के बाद हुए मंथन में यह बात निकल कर सामने आई है कि वार-पलटवार की इस लड़ाई में कहीं ना कहीं पार्टी को इस आक्रामकता ने काफी नुकसान पहुंचाया है इसलिए पार्टी इस बार चुनावी रणनीति बनाने में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है.

भाजपा अब किसी को खुश करने या नाराज करने की प्रक्रिया में नहीं पड़ना चाहती, बल्कि मौजूदा टीम के साथ ही अतिरिक्त बल संख्या बढ़ाना चाहती है. यही वजह है कि नए लोगों को बड़ी संख्या में चुनावी कार्यों से जोड़ा भी जा रहा है और इन बातों के बीच तालमेल बिठाते हुए ही चुनावी ताना-बाना भी बुना जा रहा है. अगर देखा जाए तो सबसे ज्यादा पार्टी जातीय समीकरण पर ध्यान देते हुए ही इन प्रदेशों में आगे बढ़ रही है. इसे लेकर कुछ जरूरी संगठनात्मक बदलाव भी किए गए हैं.

भाजपा खासतौर पर उत्तर प्रदेश के चुनाव में पार्टी स्तर पर नियुक्तियों के साथ-साथ बेहतर समन्वय पर भी जोर दे रही है. क्योंकि पार्टी को डर है कि यदि उत्तर प्रदेश में किसी भी पदाधिकारी को पद से हटाया गया तो उस गुट की नाराजगी बढ़ सकती है जिसका खतरा पार्टी अभी मोल नही लेना चाहती. वहीं, दूसरी तरफ अब नई नियुक्ति वाले लोग चुनाव तक बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाएंगे. नेताओं के संपर्क कार्यक्रमों की तैयारियों में ज्यादा से ज्यादा भीड़ कैसे जुटाई जाए, इस रणनीति पर भी पार्टी में गहरा मंथन चल रहा है.

सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान
अगले महीने नवरात्र की शुरुआत के साथ पार्टी खासतौर पर उत्तर प्रदेश के लिए कुछ नए चुनावी कार्यक्रम लेकर भी मैदान में उतरने जा रही है जिसमे संपर्क अभियान को केंद्रीय स्तर के नेताओं के साथ केंद्रित किया जाएगा. इसके अलावा यदि सूत्रों की माने तो उत्तर प्रदेश में खराब प्रदर्शन करने वाले भाजपा विधायकों के भी टिकट कटने तय हैं. उनकी जगह पर नए और कम उम्र के उम्मीदवारों को तरजीह दी जाएगी. पार्टी चुनाव प्रचार में माइक्रोमैनेजमेंट पर ध्यान देगी और इसके लिए सोशल इंजीनियरिंग पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है.

तमाम मोर्चा के अध्यक्षों को भी इस कार्य में लगा दिया गया है. भाजपा ने काफी पहले ही पन्ना प्रमुख बना दिए थे. और अब पन्ना पैनल के माध्यम से मतदाताओं को साधने की कोशिश की जाएगी. हर एक बूथ की वोटर लिस्ट के हर पन्ने पर पार्टी पैनी नजर रखते हुए चुनावी मैदान में उतर रही है. पांच सदस्यों का एक पैनल 6 परिवारों के 30 सदस्यों पर नजर रखेगा और उनसे चुनाव तक संपर्क स्थापित करता रहेगा. उन्हें पार्टी की योजनाएं और सरकार द्वारा किए गए कार्यों से अवगत कराता रहेगा.

पढ़ें- UP विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा OBC मोर्चा ने अभी से तैयार की रणनीति

इसके अलावा पार्टी के केंद्रीय नेताओं को कहा गया है कि वह लगातार उन राज्यों में जहां पर विपक्षी पार्टियों की सत्ता है या मुख्य तौर पर कांग्रेस की सरकार है, राजनीतिक उथल-पुथल को भी प्रचार माध्यमों से समय-समय पर उठाते रहें. उत्तर प्रदेश में भले ही राजनीतिक समीकरण स्थानीय पार्टियों के बीच ज्यादा है बावजूद इसके सूत्रों की माने तो भाजपा चुनावी मैदान में लगातार कांग्रेस पर भी हमलावर रहेगी. मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर वह कांग्रेस को ही संबोधित करेगी, इसके पीछे भी पार्टी की सोची समझी रणनीति है.

संगठन पर खत्म हो चुकी है कांग्रेस नेतृत्व की पकड़ : भाजपा
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने 'ईटीवी भारत' से बातचीत करते हुए कहा कि कांग्रेस नेतृत्व की संगठन पर पूरी तरह से पकड़ खत्म हो चुकी है. वह ना तो दशा और ना ही दिशा तय कर पा रहा है.
कुछ गिने-चुने प्रदेश ही कांग्रेस के पास है. उनमें भी कांग्रेस अपनी अंदरूनी कलह से बहुत ज्यादा ग्रस्त है. ऐसे में वह उस प्रदेश की क्या चिंता करेगी जहां वह सरकार के तौर पर काम कर रही है.

उन्हीने कहा कि यह बहुत ही असमंजस की स्थिति है, चाहे राजस्थान को देखें, पंजाब को देखें या छत्तीसगढ़ को, इन सभी प्रदेशों में कांग्रेस की क्या हालत है यह किसी से छुपा नहीं. वहां की जनता इसका खामियाजा भुगत रही है. यह बहुत चिंताजनक है कि कांग्रेस के नीचे से लेकर ऊपर तक लीडरशिप सिर्फ अपने पद को मजबूत बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है और प्रदेश या समाज के किसी काम की तरफ उनका ध्यान नहीं है.

पढ़ें- सपा का यूपी में कांग्रेस से गठबंधन पर विचार, पंजाब दलित कार्ड दे सकता है फायदा

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश. उत्तराखंड, मणिपुर, पंजाब और गोवा में 2022 के शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव होने हैं. भाजपा ने आखिरी चुनाव बंगाल विधानसभा का लड़ा था जहां पार्टी की रणनीति बहुत हद तक फेल हो गई थी. उस चुनाव में पार्टी का प्रचार बहुत ही ज्यादा आक्रामक था.

भाजपा सूत्रों की माने तो इस चुनाव के बाद हुए मंथन में यह बात निकल कर सामने आई है कि वार-पलटवार की इस लड़ाई में कहीं ना कहीं पार्टी को इस आक्रामकता ने काफी नुकसान पहुंचाया है इसलिए पार्टी इस बार चुनावी रणनीति बनाने में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है.

भाजपा अब किसी को खुश करने या नाराज करने की प्रक्रिया में नहीं पड़ना चाहती, बल्कि मौजूदा टीम के साथ ही अतिरिक्त बल संख्या बढ़ाना चाहती है. यही वजह है कि नए लोगों को बड़ी संख्या में चुनावी कार्यों से जोड़ा भी जा रहा है और इन बातों के बीच तालमेल बिठाते हुए ही चुनावी ताना-बाना भी बुना जा रहा है. अगर देखा जाए तो सबसे ज्यादा पार्टी जातीय समीकरण पर ध्यान देते हुए ही इन प्रदेशों में आगे बढ़ रही है. इसे लेकर कुछ जरूरी संगठनात्मक बदलाव भी किए गए हैं.

भाजपा खासतौर पर उत्तर प्रदेश के चुनाव में पार्टी स्तर पर नियुक्तियों के साथ-साथ बेहतर समन्वय पर भी जोर दे रही है. क्योंकि पार्टी को डर है कि यदि उत्तर प्रदेश में किसी भी पदाधिकारी को पद से हटाया गया तो उस गुट की नाराजगी बढ़ सकती है जिसका खतरा पार्टी अभी मोल नही लेना चाहती. वहीं, दूसरी तरफ अब नई नियुक्ति वाले लोग चुनाव तक बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाएंगे. नेताओं के संपर्क कार्यक्रमों की तैयारियों में ज्यादा से ज्यादा भीड़ कैसे जुटाई जाए, इस रणनीति पर भी पार्टी में गहरा मंथन चल रहा है.

सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान
अगले महीने नवरात्र की शुरुआत के साथ पार्टी खासतौर पर उत्तर प्रदेश के लिए कुछ नए चुनावी कार्यक्रम लेकर भी मैदान में उतरने जा रही है जिसमे संपर्क अभियान को केंद्रीय स्तर के नेताओं के साथ केंद्रित किया जाएगा. इसके अलावा यदि सूत्रों की माने तो उत्तर प्रदेश में खराब प्रदर्शन करने वाले भाजपा विधायकों के भी टिकट कटने तय हैं. उनकी जगह पर नए और कम उम्र के उम्मीदवारों को तरजीह दी जाएगी. पार्टी चुनाव प्रचार में माइक्रोमैनेजमेंट पर ध्यान देगी और इसके लिए सोशल इंजीनियरिंग पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है.

तमाम मोर्चा के अध्यक्षों को भी इस कार्य में लगा दिया गया है. भाजपा ने काफी पहले ही पन्ना प्रमुख बना दिए थे. और अब पन्ना पैनल के माध्यम से मतदाताओं को साधने की कोशिश की जाएगी. हर एक बूथ की वोटर लिस्ट के हर पन्ने पर पार्टी पैनी नजर रखते हुए चुनावी मैदान में उतर रही है. पांच सदस्यों का एक पैनल 6 परिवारों के 30 सदस्यों पर नजर रखेगा और उनसे चुनाव तक संपर्क स्थापित करता रहेगा. उन्हें पार्टी की योजनाएं और सरकार द्वारा किए गए कार्यों से अवगत कराता रहेगा.

पढ़ें- UP विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा OBC मोर्चा ने अभी से तैयार की रणनीति

इसके अलावा पार्टी के केंद्रीय नेताओं को कहा गया है कि वह लगातार उन राज्यों में जहां पर विपक्षी पार्टियों की सत्ता है या मुख्य तौर पर कांग्रेस की सरकार है, राजनीतिक उथल-पुथल को भी प्रचार माध्यमों से समय-समय पर उठाते रहें. उत्तर प्रदेश में भले ही राजनीतिक समीकरण स्थानीय पार्टियों के बीच ज्यादा है बावजूद इसके सूत्रों की माने तो भाजपा चुनावी मैदान में लगातार कांग्रेस पर भी हमलावर रहेगी. मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर वह कांग्रेस को ही संबोधित करेगी, इसके पीछे भी पार्टी की सोची समझी रणनीति है.

संगठन पर खत्म हो चुकी है कांग्रेस नेतृत्व की पकड़ : भाजपा
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने 'ईटीवी भारत' से बातचीत करते हुए कहा कि कांग्रेस नेतृत्व की संगठन पर पूरी तरह से पकड़ खत्म हो चुकी है. वह ना तो दशा और ना ही दिशा तय कर पा रहा है.
कुछ गिने-चुने प्रदेश ही कांग्रेस के पास है. उनमें भी कांग्रेस अपनी अंदरूनी कलह से बहुत ज्यादा ग्रस्त है. ऐसे में वह उस प्रदेश की क्या चिंता करेगी जहां वह सरकार के तौर पर काम कर रही है.

उन्हीने कहा कि यह बहुत ही असमंजस की स्थिति है, चाहे राजस्थान को देखें, पंजाब को देखें या छत्तीसगढ़ को, इन सभी प्रदेशों में कांग्रेस की क्या हालत है यह किसी से छुपा नहीं. वहां की जनता इसका खामियाजा भुगत रही है. यह बहुत चिंताजनक है कि कांग्रेस के नीचे से लेकर ऊपर तक लीडरशिप सिर्फ अपने पद को मजबूत बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है और प्रदेश या समाज के किसी काम की तरफ उनका ध्यान नहीं है.

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