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हिमाचल में चरम पर सियासी शोर, कल कांगड़ा में नड्डा और केजरीवाल दिखाएंगे जोर

हिमाचल में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव (Himachal Assembly Election 2022) होने हैं लेकिन हिमाचल में सियासी शोर अभी से सुनाई दे रहा है. शनिवार 23 अप्रैल को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हिमाचल के एक ही (Nadda and Kejriwal in Kangra) जिले में होंगे. इस सियासी शोर में दोनों अपना-अपना जोर दिखाएंगे. प्रदेश के सबसे बड़े जिले कांगड़ा पर दोनों की नज़र है और दोनों की कांगड़ा के रास्ते सूबे की सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं लेकिन इस राह में दोनों की अपनी-अपनी चुनौतियां हैं.

हिमाचल
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Published : Apr 22, 2022, 9:32 PM IST

कांगड़ा : हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव साल (Himachal Assembly Election 2022) के आखिर में होने वाला हैं, लेकिन सियासत अभी से उबाल मार रही है. 23 अप्रैल (शनिवार) को प्रदेश में सियासी पारे को और चढ़ा देगा क्योंकि प्रदेश के सबसे बड़े जिले कांगड़ा में दो पार्टियों के मुखिया आमने-सामने होंगे. एक पार्टी हिमाचल में सरकार रिपीट करने का दावा कर रही है, तो दूसरी नया विकल्प देकर पंजाब की जीत दोहराना चाहती है. दोनों ही दल जानते हैं कि ये कांगड़ा का किला जीते बगैर कतई मुमकिन नहीं है. इस लिहाज से शनिवार को कांगड़ा में नड्डा बनाम केजरीवाल का मुकाबला दिलचस्प होगा.

कांगड़ा में नड्डा और केजरीवाल : बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कांगड़ा के दो दिन के दौरे पर हैं. शुक्रवार को रोड शो (JP Nadda Kangra Roadshow) और जनसभा के बाद नड्डा (JP Nadda rally kangra) शनिवार को धर्मशाला में पार्टी पदाधिकारियों (JP Nadda in Kangra) के साथ आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाएंगे और कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देंगे. दूसरी तरफ, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शाहपुर के चंबी मैदान (Arvind Kejriwal kangra rally) में जनसभा को संबोधित करेंगे. इसमें पार्टी के कई आला नेता भी शामिल होंगे.

हिमाचल में जेपी नड्डा की प्रतिष्ठा भी दांव पर
हिमाचल में जेपी नड्डा की प्रतिष्ठा भी दांव पर

कांगड़ा क्यों है अहम : हिमाचल प्रदेश में कुल 68 विधानसभा सीटें हैं. 12 जिलों वाले प्रदेश में कांगड़ा सबसे बड़ा (why kangra district is important) जिला है. अकेले कांगड़ा में ही 15 विधानसभा सीटें (kangra assembly seats) हैं, जिनमें से पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 11 सीटें जीती थी. इसलिये कहते हैं कि हिमाचल की जीत का रास्ता कांगड़ा से होकर गुजरता है. सभी दल जानते हैं कि सत्ता तक पहुंचने के लिए कांगड़ा का किला भेदना होगा. बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 44 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी और उसमें 25 फीसदी सीटें कांगड़ा जिले से ही मिली थी. ऐसे में बीजेपी इस जिले में अपने प्रदर्शन को दोहराना चाहेगी.

'आप' की भी कांगड़ा पर नजर : सबसे बड़ा जिला होने के साथ-साथ कांगड़ा की सीमा उस पंजाब से लगती है, जहां आम आदमी पार्टी ने बंपर जीत हासिल कर सरकार बनाई है. ऐसे में 15 सीटों वाले जिले में आम आदमी पार्टी अपनी भी हिस्सेदारी देख रही है. जानकार मानते हैं कि आम आदमी पार्टी पंजाब जैसा कमाल हिमाचल में कर पाएगी ये भले दूर की कौड़ी लगता हो, लेकिन अगर वो यहां अपनी मौजूदगी दर्ज करा पाती है तो इसके लिए कांगड़ा जिला सबसे मुफीद हो सकता है.

अप्रैल महीने में दोनों का दूसरा दौरा : दोनों दलों के लिए हिमाचल की अहमियत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अप्रैल महीने में ही बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और अरविंद केजरीवाल दूसरी बार हिमाचल का दौरा कर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल ने छह अप्रैल को सीएम जयराम ठाकुर के गृह जिले में रोड शो (Kejriwal in Himachal) कर ताकत दिखाई थी. वहीं, जेपी नड्डा 9 से 12 अप्रैल तक के चार दिवसीय हिमाचल दौरे (JP Nadda in Himachal) में शिमला और बिलासपुर में संगठन के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के साथ चुनाव की रणनीति बनाई थी.

दोनों की अपनी-अपनी चुनौती : हिमाचल जेपी नड्डा का घर है जहां पहले से उनकी पार्टी की सरकार है और हिमाचल में फिर से कमल खिलाने की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा उनके कंधों पर ही है. पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते उनकी साख भी दांव पर है. उधर केजरीवाल दिल्ली और पंजाब के बाद हिमाचल का सिरमौर बनने के लिए निकल पड़े हैं. देखना होगा कि पंजाब की तरह उनका जादू हिमाचल में भी चलता है या फिर यूपी, उत्तराखंड की तरह खाली झोली लेकर वापस लौटते हैं. दरअसल सियासत में सब अपनी-अपनी ढफली पर अपना-अपना राग गाते हैं, हिमाचल में भी दोनों दल अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं लेकिन दोनों की अपनी-अपनी ताकतें और अपनी-अपनी चुनौतियां हैं. जिनसे पार पाकर ही कोई हिमाचल के रण का विजेता बन पाएगा.

'आप' के लिए 'पहाड़' सी चुनौती
'आप' के लिए 'पहाड़' सी चुनौती

'आप' से अपनों को बचाना नड्डा की चुनौती : हर चुनाव में मौजूदा विधायकों के टिकट काटना बीजेपी का स्टाइल रहा है, कई सीटों पर एक अनार और सौ बीमार वाली स्थिति होगी. ऐसे में नेताओं की नाराजगी या बागी होना भी लाजमी है. इस बीच आम आदमी पार्टी ने प्रदेश की जनता ही नहीं नेताओं को भी विकल्प दिया है और बीजेपी के लिए यही सबसे बड़ी चुनौती हो सकती है. कांगड़ा जिले में भी हालात ऐसे ही हैं जहां टिकट के चाहवानों की फेहरिस्त बहुत लंबी है और सभी को टिकट देना मुमकिन नहीं ऐसे में 'आप' कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं को अपने पाले में ले सकती है और जेपी नड्डा के लिए 'आप' से अपनों को बचाना ही बड़ी चुनौती होगी.

बीजेपी की चुनौती 'आप' : आम आदमी पार्टी ऐलान कर चुकी है कि हिमाचल की सभी 68 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी और उसका कांग्रेस से नहीं बल्कि सीधा मुकाबला बीजेपी से होगा. देशभर में कांग्रेस का प्रदर्शन इसकी सबसे बड़ी वजह है. बीजेपी ने 5 राज्यों में से 4 राज्यों में सरकार बनाकर अपना दम तो दिखाया है लेकिन पड़ोसी राज्य पंजाब में आम आदमी पार्टी के बंपर बहुमत को नकारा नहीं जा सकता. भले पंजाब में बीजेपी आज तक अकाली दल के सहारे लड़ती रही हो और ये दलील देकर भाजपाई बचने की कोशिश भी करें लेकिन दिल्ली के बाद अकेले दम पर पंजाब जीत के बाद आम आदमी पार्टी को कमजोर नहीं आंकना होगा.

बीजेपी नेता बयानबाजी में भले आम आदमी पार्टी के भविष्य को नकारते रहें लेकिन पार्टी का थिंक टैंक भी जानता है कि आम आदमी पार्टी को हल्के में नहीं ले सकते. क्योंकि कुछ सीटों पर भी अगर 'आप' ने गणित बिगाड़ दिया तो बीजेपी का मिशन रिपीट का सपना टूट जाएगा.

क्या है मिशन रिपीट ? दरअसल हिमाचल में बीते करीब 4 दशक से कोई भी सियासी दल सरकार रिपीट नहीं कर पाया है और बीजेपी का दावा है कि इस बार मिशन रिपीट होकर रहेगा. 2017 की तरह 2022 में भी हिमाचल में कमल खिलाने का दावा हो रहा है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है 5 राज्यों के चुनावी नतीजे, खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड, जहां यूपी में भी करीब 4 दशक और उत्तराखंड में राज्य बनने के बाद से पहली बार सरकार रिपीट हो पाई है. दोनों राज्यों में ये कारनामा बीजेपी ने किया है और इसीलिये बीजेपी की बांछे खिली हुई हैं.

पंजाब के बाद 'पहाड़' जैसी 'आप' की चुनौती : बीजेपी 5 में से 4 राज्यों में जीत से गदगद है तो आम आदमी पार्टी पंजाब के बाद हिमाचल में सरकार (AAP in Himachal) बनाने का दावा कर रही है. लेकिन जैसे बीजेपी को आप की पंजाब जीत को अनदेखा नहीं करना चाहिए वैसे ही आम आदमी पार्टी के लिए 5 राज्यों के चुनावी नतीजों में बहुत सीख छिपी है. पार्टी को ये भूलना नहीं चाहिए कि जिस पंजाब में उसने सरकार बनाई है वहां वो पिछले करीब एक दशक से एक्टिव थे.

2014 में पार्टी के चारों सांसद पंजाब से ही थे, 2019 लोकसभा चुनाव में आप को एक ही सीट मिली लेकिन वो पंजाब से ही थी. वहीं जब 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में वो मुख्य विपक्षी दल बनकर उभरे. 2022 तक पंजाब में पार्टी का संगठन भी मजबूत हुआ और भगवंत मान के रूप में चेहरा भी उभरा. ये दोनों ही फिलहाल पार्टी के पास हिमाचल में नहीं हैं. दिल्ली के बाद से ही पार्टी के प्रमुख व रणनीतिकारों ने पंजाब पर फोकस किया हुआ था. पंजाब में जातीय समीकरणों के साथ-साथ कांग्रेस की अंतर्कलह से पार्टी को और मजबूती मिली. किसान आंदोलन के दम पर तैयार पिच पर आम आदमी पार्टी ने जमकर बैटिंग की और वह जीत गई. वहीं यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में 'आप' का प्रदर्शन किसी से छिपा नहीं है, पार्टी चारों राज्यों में एक सीट भी नहीं जीत पाई. उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का चेहरा भी बुरी तरह से चुनाव हार गया.

'आप' के पास वक्त कम और चुनौती ज्यादा : ऐसे में हिमाचल के सियासी रण की तैयारी के लिए बहुत कम वक्त है और चुनौतियां बहुत ज्यादा. पार्टी के पास फिलहाल कोई भी बड़ा चेहरा नहीं है, कार्यकर्ता और संगठन ने नाम पर गिने चुने लोग हैं. जबकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों का हिमाचल में अच्छा खासा संगठन भी हैं और नेता भी. ऐसे में हिमाचल में सरकार बनाने के दावा तो छोड़िये मौजूदा परिस्थिति में आम आदमी पार्टी के लिए हिमाचल में उपस्थिति दर्ज कर पाना भी चुनौती है.

कांग्रेस-बीजेपी में 'आप' की सेंधमारी : जब से 5 राज्यों के नतीजे आए हैं तब से हिमाचल के सियासी दलों में भगदड़ मच गई है. खासकर आम आदमी पार्टी ज्वाइ करने के लिए भी होड़ लगी है. हालांकि अब तक कोई बड़ा चेहरा पार्टी के साथ नहीं जुड़ा है. ये भगदड़ आम आदमी पार्टी में देखने को मिली जब उनके हिमाचल के प्रदेश अध्यक्ष ने ही बीजेपी का दामन थाम लिया. ऐसे में जानकार मानते हैं कि आप' हिमाचल के सियासी रण में पहली बार उतर रही है और उसके पास यहां खोने के लिए कुछ नहीं है. बीजेपी-कांग्रेस के नाराज नेताओं पर उसकी नजर होगी लेकिन वो भी जीत की गारंटी नहीं माने जा सकते. ऐसे में अगर इस सियासी उधेड़बुन, शक्ति प्रदर्शन, दिल्ली मॉडल और पंजाब की सरकार का हवाला देकर 'आप' हिमाचल विधानसभा चुनाव में अपनी हिस्सेदारी ले पाती है तो पहली बार में इसे हार नहीं कहा जाएगा.

'आप' की राह पर है बीजेपी ? दरअसल 15 अप्रैल को हिमाचल दिवस के मौके पर सीएम जयराम ठाकुर ने प्रदेश के हर परिवार को 125 यूनिट मुफ्त बिजली, गांवों में पानी के बिल माफ और बस किराए में महिलाओं को 50 फीसदी छूट का ऐलान कर दिया. जिसके बाद सियासी विरोधियों से लेकर सियासी पंडित तक ने इसे आम आदमी पार्टी मॉडल से जोड़ दिया. जानकार मानते हैं कि केजरीवाल देर-सवेर इस तरह की घोषणाएं हिमाचल में कर ही देते, लेकिन जयराम ठाकुर ने पहले ही ये चाल चल दी और मौके पर चौका लगा दिया. दिल्ली से लेकर पंजाब तक सरकार बनाने और राज्यों में चुनाव प्रचार के दौरान वो मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य का ऐलान करते हैं. इसे आम आदमी पार्टी दिल्ली मॉडल के नाम से प्रचारित करती रही है.

सियासी समर से कांग्रेस गायब : हिमाचल विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी में बड़े नेताओं का दौर तो जारी है लेकिन कांग्रेस में ऐसी कोई हलचल नजर नहीं आ रही. खेमों में बंटी कांग्रेस के सामने भी कई चुनौतियां हैं, आलाकमान एकजुटता की नसीहत देता रहता है लेकिन कांग्रेसी उस नसीहत की फजीहत करने में देर नहीं लगाते हैं. चुनाव से 6 महीने पहले ही सूबे में सियासी शोर चरम पर पहुंच चुका है, केजरीवाल से लेकर जेपी नड्डा तक दो हफ्ते में दूसरी बार हिमाचल के दौरे पर हैं लेकिन कांग्रेस मानो लापता है. हालांकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर का दावा है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस भी जमीन पर दिखेगी और वो खुद कांगड़ा, मंडी समेत कई जिलों का दौरा करेंगे. लेकिन सियासी पंडित बताते हैं कि कांग्रेस का यही रवैया आम आदमी पार्टी को ये कहने पर मजबूर करता है कि उसका मुकाबला बीजेपी से है. इसलिये ऐसा ना हो कि कांग्रेस को तैयारी करते करते ही बहुत देर हो जाए.

कांगड़ा : हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव साल (Himachal Assembly Election 2022) के आखिर में होने वाला हैं, लेकिन सियासत अभी से उबाल मार रही है. 23 अप्रैल (शनिवार) को प्रदेश में सियासी पारे को और चढ़ा देगा क्योंकि प्रदेश के सबसे बड़े जिले कांगड़ा में दो पार्टियों के मुखिया आमने-सामने होंगे. एक पार्टी हिमाचल में सरकार रिपीट करने का दावा कर रही है, तो दूसरी नया विकल्प देकर पंजाब की जीत दोहराना चाहती है. दोनों ही दल जानते हैं कि ये कांगड़ा का किला जीते बगैर कतई मुमकिन नहीं है. इस लिहाज से शनिवार को कांगड़ा में नड्डा बनाम केजरीवाल का मुकाबला दिलचस्प होगा.

कांगड़ा में नड्डा और केजरीवाल : बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कांगड़ा के दो दिन के दौरे पर हैं. शुक्रवार को रोड शो (JP Nadda Kangra Roadshow) और जनसभा के बाद नड्डा (JP Nadda rally kangra) शनिवार को धर्मशाला में पार्टी पदाधिकारियों (JP Nadda in Kangra) के साथ आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाएंगे और कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देंगे. दूसरी तरफ, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शाहपुर के चंबी मैदान (Arvind Kejriwal kangra rally) में जनसभा को संबोधित करेंगे. इसमें पार्टी के कई आला नेता भी शामिल होंगे.

हिमाचल में जेपी नड्डा की प्रतिष्ठा भी दांव पर
हिमाचल में जेपी नड्डा की प्रतिष्ठा भी दांव पर

कांगड़ा क्यों है अहम : हिमाचल प्रदेश में कुल 68 विधानसभा सीटें हैं. 12 जिलों वाले प्रदेश में कांगड़ा सबसे बड़ा (why kangra district is important) जिला है. अकेले कांगड़ा में ही 15 विधानसभा सीटें (kangra assembly seats) हैं, जिनमें से पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 11 सीटें जीती थी. इसलिये कहते हैं कि हिमाचल की जीत का रास्ता कांगड़ा से होकर गुजरता है. सभी दल जानते हैं कि सत्ता तक पहुंचने के लिए कांगड़ा का किला भेदना होगा. बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 44 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी और उसमें 25 फीसदी सीटें कांगड़ा जिले से ही मिली थी. ऐसे में बीजेपी इस जिले में अपने प्रदर्शन को दोहराना चाहेगी.

'आप' की भी कांगड़ा पर नजर : सबसे बड़ा जिला होने के साथ-साथ कांगड़ा की सीमा उस पंजाब से लगती है, जहां आम आदमी पार्टी ने बंपर जीत हासिल कर सरकार बनाई है. ऐसे में 15 सीटों वाले जिले में आम आदमी पार्टी अपनी भी हिस्सेदारी देख रही है. जानकार मानते हैं कि आम आदमी पार्टी पंजाब जैसा कमाल हिमाचल में कर पाएगी ये भले दूर की कौड़ी लगता हो, लेकिन अगर वो यहां अपनी मौजूदगी दर्ज करा पाती है तो इसके लिए कांगड़ा जिला सबसे मुफीद हो सकता है.

अप्रैल महीने में दोनों का दूसरा दौरा : दोनों दलों के लिए हिमाचल की अहमियत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अप्रैल महीने में ही बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और अरविंद केजरीवाल दूसरी बार हिमाचल का दौरा कर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल ने छह अप्रैल को सीएम जयराम ठाकुर के गृह जिले में रोड शो (Kejriwal in Himachal) कर ताकत दिखाई थी. वहीं, जेपी नड्डा 9 से 12 अप्रैल तक के चार दिवसीय हिमाचल दौरे (JP Nadda in Himachal) में शिमला और बिलासपुर में संगठन के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के साथ चुनाव की रणनीति बनाई थी.

दोनों की अपनी-अपनी चुनौती : हिमाचल जेपी नड्डा का घर है जहां पहले से उनकी पार्टी की सरकार है और हिमाचल में फिर से कमल खिलाने की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा उनके कंधों पर ही है. पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते उनकी साख भी दांव पर है. उधर केजरीवाल दिल्ली और पंजाब के बाद हिमाचल का सिरमौर बनने के लिए निकल पड़े हैं. देखना होगा कि पंजाब की तरह उनका जादू हिमाचल में भी चलता है या फिर यूपी, उत्तराखंड की तरह खाली झोली लेकर वापस लौटते हैं. दरअसल सियासत में सब अपनी-अपनी ढफली पर अपना-अपना राग गाते हैं, हिमाचल में भी दोनों दल अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं लेकिन दोनों की अपनी-अपनी ताकतें और अपनी-अपनी चुनौतियां हैं. जिनसे पार पाकर ही कोई हिमाचल के रण का विजेता बन पाएगा.

'आप' के लिए 'पहाड़' सी चुनौती
'आप' के लिए 'पहाड़' सी चुनौती

'आप' से अपनों को बचाना नड्डा की चुनौती : हर चुनाव में मौजूदा विधायकों के टिकट काटना बीजेपी का स्टाइल रहा है, कई सीटों पर एक अनार और सौ बीमार वाली स्थिति होगी. ऐसे में नेताओं की नाराजगी या बागी होना भी लाजमी है. इस बीच आम आदमी पार्टी ने प्रदेश की जनता ही नहीं नेताओं को भी विकल्प दिया है और बीजेपी के लिए यही सबसे बड़ी चुनौती हो सकती है. कांगड़ा जिले में भी हालात ऐसे ही हैं जहां टिकट के चाहवानों की फेहरिस्त बहुत लंबी है और सभी को टिकट देना मुमकिन नहीं ऐसे में 'आप' कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं को अपने पाले में ले सकती है और जेपी नड्डा के लिए 'आप' से अपनों को बचाना ही बड़ी चुनौती होगी.

बीजेपी की चुनौती 'आप' : आम आदमी पार्टी ऐलान कर चुकी है कि हिमाचल की सभी 68 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी और उसका कांग्रेस से नहीं बल्कि सीधा मुकाबला बीजेपी से होगा. देशभर में कांग्रेस का प्रदर्शन इसकी सबसे बड़ी वजह है. बीजेपी ने 5 राज्यों में से 4 राज्यों में सरकार बनाकर अपना दम तो दिखाया है लेकिन पड़ोसी राज्य पंजाब में आम आदमी पार्टी के बंपर बहुमत को नकारा नहीं जा सकता. भले पंजाब में बीजेपी आज तक अकाली दल के सहारे लड़ती रही हो और ये दलील देकर भाजपाई बचने की कोशिश भी करें लेकिन दिल्ली के बाद अकेले दम पर पंजाब जीत के बाद आम आदमी पार्टी को कमजोर नहीं आंकना होगा.

बीजेपी नेता बयानबाजी में भले आम आदमी पार्टी के भविष्य को नकारते रहें लेकिन पार्टी का थिंक टैंक भी जानता है कि आम आदमी पार्टी को हल्के में नहीं ले सकते. क्योंकि कुछ सीटों पर भी अगर 'आप' ने गणित बिगाड़ दिया तो बीजेपी का मिशन रिपीट का सपना टूट जाएगा.

क्या है मिशन रिपीट ? दरअसल हिमाचल में बीते करीब 4 दशक से कोई भी सियासी दल सरकार रिपीट नहीं कर पाया है और बीजेपी का दावा है कि इस बार मिशन रिपीट होकर रहेगा. 2017 की तरह 2022 में भी हिमाचल में कमल खिलाने का दावा हो रहा है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है 5 राज्यों के चुनावी नतीजे, खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड, जहां यूपी में भी करीब 4 दशक और उत्तराखंड में राज्य बनने के बाद से पहली बार सरकार रिपीट हो पाई है. दोनों राज्यों में ये कारनामा बीजेपी ने किया है और इसीलिये बीजेपी की बांछे खिली हुई हैं.

पंजाब के बाद 'पहाड़' जैसी 'आप' की चुनौती : बीजेपी 5 में से 4 राज्यों में जीत से गदगद है तो आम आदमी पार्टी पंजाब के बाद हिमाचल में सरकार (AAP in Himachal) बनाने का दावा कर रही है. लेकिन जैसे बीजेपी को आप की पंजाब जीत को अनदेखा नहीं करना चाहिए वैसे ही आम आदमी पार्टी के लिए 5 राज्यों के चुनावी नतीजों में बहुत सीख छिपी है. पार्टी को ये भूलना नहीं चाहिए कि जिस पंजाब में उसने सरकार बनाई है वहां वो पिछले करीब एक दशक से एक्टिव थे.

2014 में पार्टी के चारों सांसद पंजाब से ही थे, 2019 लोकसभा चुनाव में आप को एक ही सीट मिली लेकिन वो पंजाब से ही थी. वहीं जब 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में वो मुख्य विपक्षी दल बनकर उभरे. 2022 तक पंजाब में पार्टी का संगठन भी मजबूत हुआ और भगवंत मान के रूप में चेहरा भी उभरा. ये दोनों ही फिलहाल पार्टी के पास हिमाचल में नहीं हैं. दिल्ली के बाद से ही पार्टी के प्रमुख व रणनीतिकारों ने पंजाब पर फोकस किया हुआ था. पंजाब में जातीय समीकरणों के साथ-साथ कांग्रेस की अंतर्कलह से पार्टी को और मजबूती मिली. किसान आंदोलन के दम पर तैयार पिच पर आम आदमी पार्टी ने जमकर बैटिंग की और वह जीत गई. वहीं यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में 'आप' का प्रदर्शन किसी से छिपा नहीं है, पार्टी चारों राज्यों में एक सीट भी नहीं जीत पाई. उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का चेहरा भी बुरी तरह से चुनाव हार गया.

'आप' के पास वक्त कम और चुनौती ज्यादा : ऐसे में हिमाचल के सियासी रण की तैयारी के लिए बहुत कम वक्त है और चुनौतियां बहुत ज्यादा. पार्टी के पास फिलहाल कोई भी बड़ा चेहरा नहीं है, कार्यकर्ता और संगठन ने नाम पर गिने चुने लोग हैं. जबकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों का हिमाचल में अच्छा खासा संगठन भी हैं और नेता भी. ऐसे में हिमाचल में सरकार बनाने के दावा तो छोड़िये मौजूदा परिस्थिति में आम आदमी पार्टी के लिए हिमाचल में उपस्थिति दर्ज कर पाना भी चुनौती है.

कांग्रेस-बीजेपी में 'आप' की सेंधमारी : जब से 5 राज्यों के नतीजे आए हैं तब से हिमाचल के सियासी दलों में भगदड़ मच गई है. खासकर आम आदमी पार्टी ज्वाइ करने के लिए भी होड़ लगी है. हालांकि अब तक कोई बड़ा चेहरा पार्टी के साथ नहीं जुड़ा है. ये भगदड़ आम आदमी पार्टी में देखने को मिली जब उनके हिमाचल के प्रदेश अध्यक्ष ने ही बीजेपी का दामन थाम लिया. ऐसे में जानकार मानते हैं कि आप' हिमाचल के सियासी रण में पहली बार उतर रही है और उसके पास यहां खोने के लिए कुछ नहीं है. बीजेपी-कांग्रेस के नाराज नेताओं पर उसकी नजर होगी लेकिन वो भी जीत की गारंटी नहीं माने जा सकते. ऐसे में अगर इस सियासी उधेड़बुन, शक्ति प्रदर्शन, दिल्ली मॉडल और पंजाब की सरकार का हवाला देकर 'आप' हिमाचल विधानसभा चुनाव में अपनी हिस्सेदारी ले पाती है तो पहली बार में इसे हार नहीं कहा जाएगा.

'आप' की राह पर है बीजेपी ? दरअसल 15 अप्रैल को हिमाचल दिवस के मौके पर सीएम जयराम ठाकुर ने प्रदेश के हर परिवार को 125 यूनिट मुफ्त बिजली, गांवों में पानी के बिल माफ और बस किराए में महिलाओं को 50 फीसदी छूट का ऐलान कर दिया. जिसके बाद सियासी विरोधियों से लेकर सियासी पंडित तक ने इसे आम आदमी पार्टी मॉडल से जोड़ दिया. जानकार मानते हैं कि केजरीवाल देर-सवेर इस तरह की घोषणाएं हिमाचल में कर ही देते, लेकिन जयराम ठाकुर ने पहले ही ये चाल चल दी और मौके पर चौका लगा दिया. दिल्ली से लेकर पंजाब तक सरकार बनाने और राज्यों में चुनाव प्रचार के दौरान वो मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य का ऐलान करते हैं. इसे आम आदमी पार्टी दिल्ली मॉडल के नाम से प्रचारित करती रही है.

सियासी समर से कांग्रेस गायब : हिमाचल विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी में बड़े नेताओं का दौर तो जारी है लेकिन कांग्रेस में ऐसी कोई हलचल नजर नहीं आ रही. खेमों में बंटी कांग्रेस के सामने भी कई चुनौतियां हैं, आलाकमान एकजुटता की नसीहत देता रहता है लेकिन कांग्रेसी उस नसीहत की फजीहत करने में देर नहीं लगाते हैं. चुनाव से 6 महीने पहले ही सूबे में सियासी शोर चरम पर पहुंच चुका है, केजरीवाल से लेकर जेपी नड्डा तक दो हफ्ते में दूसरी बार हिमाचल के दौरे पर हैं लेकिन कांग्रेस मानो लापता है. हालांकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर का दावा है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस भी जमीन पर दिखेगी और वो खुद कांगड़ा, मंडी समेत कई जिलों का दौरा करेंगे. लेकिन सियासी पंडित बताते हैं कि कांग्रेस का यही रवैया आम आदमी पार्टी को ये कहने पर मजबूर करता है कि उसका मुकाबला बीजेपी से है. इसलिये ऐसा ना हो कि कांग्रेस को तैयारी करते करते ही बहुत देर हो जाए.

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