नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के चुनाव की तैयारी भारतीय जनता पार्टी ने जोर-शोर से शुरू कर दी है. अगले महीने से ही भारतीय जनता पार्टी वरिष्ठ नेताओं के कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के लिए शुरू होने वाले हैं. सूत्रों के मुताबिक पार्टी ने यह निर्णय लिया है कि हर महीने गृह मंत्री अमित शाह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा का एक एक कार्यक्रम उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले रखा जाएगा.
पार्टी के विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक 2022 के चुनावी रण में उतरने से पहले पार्टी सरकार और संगठन के बीच चल रही तनातनी को हर हाल में खत्म करना चाहती है, ताकि चुनाव में संगठन और सरकार एक मत नजर आए.
जातीय समीकरण रहा प्रभावी
उत्तर प्रदेश की राजनीति में हमेशा से जातीय समीकरण हावी होता है और इस वजह से भारतीय जनता पार्टी सोशल इंजीनियरिंग को दुरुस्त करने में भी जुट गई है, ताकि जिस जाति और समुदाय के भी वोटर पार्टी से नाराज चल रहे हैं. उस वोट बैंक से संबंधित जाति के नेताओं को पार्टी में आगे लाया जाए, उदाहरण के तौर पर यदि बात करें ब्राह्मण वोट बैंक की तो ,भारतीय जनता पार्टी को ऐसा महसूस हो रहा है कि ब्राह्मण वोट बैंक विरोधी पार्टियों के प्रचार-प्रसार की वजह से भारतीय जनता पार्टी से दूर हो चुका है और यदि आंकड़े देखें तो उत्तर प्रदेश में 10 से 12 फ़ीसदी ब्राह्मण वोटर हैं और यूपी की सियासत में ब्राह्मणों की भूमिका शुरू से अहम रही है, लेकिन बीजेपी ने अभी तक किसी भी बड़े ब्राह्मण नेता को उत्तर प्रदेश में तरजीह नहीं दी थी .
यही वजह है कि स्थिति को भांपते हुए पार्टी एक के बाद एक ब्राह्मण चेहरे को आगे कर रही है और इसी क्रम में भाजपा ने कांग्रेस से आए जितिन प्रसाद को आगे किया है और वही यूपी के एमएलसी और पूर्व अधिकारी एके शर्मा को भी भारतीय जनता पार्टी का उपाध्यक्ष प्रदेश में बनाया गया है. यही नहीं यूपी के अन्य क्षेत्रों जैसे शाहजहांपुर ,बरेली, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, हरदोई इन ब्राह्मण बहुल इलाकों पर पार्टी जितिन प्रसाद रीता बहुगुणा जोशी और बृजेश पाठक सरीखे नेताओं के माध्यम से ब्राह्मण समुदाय के वोट बैंक को साधने की कोशिश करेगी.
ब्राह्मण वोट पर नजर
हालांकि देखा जाए, तो बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में अटल बिहारी वाजपेई के बाद कोई भी बड़ा चेहरा ब्राह्मण नेता को आगे नहीं किया है. ऐसे में बीजेपी चुनावी रण में उतरने से पहले हर हाल में ब्राह्मण समुदाय के वोट बैंक को साधने की कोशिश में जुटी है, अटल बिहारी वाजपेई के बाद भारतीय जनता पार्टी मुरली मनोहर जोशी और कलराज मिश्रा जैसे ब्राह्मण चेहरे को लेकर हर चुनाव में ब्राह्मण वोट बैंक को रिझाने की कोशिश करती थी मगर इन नेताओं का प्रभाव धीरे-धीरे कम हो गया है.हालांकि 2017 के चुनाव में ब्राह्मणों ने बीजेपी का समर्थन किया था, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासन में भारतीय जनता पार्टी का ब्राह्मण वोट पूरी तरह से अपने आप को उपेक्षित महसूस करता रहा है और यह पार्टी के लिए चिंता का विषय है.
ब्राह्मणों में असंतोष
हालांकि देखा जाए, तो 2017 के चुनाव में बीजेपी के कुल 312 विधायकों में से 58 ब्राह्मण समुदाय से चुनकर आए थे और मंत्रिमंडल में भी 9 ब्राह्मण नेताओं को जगह दी गई थी, लेकिन उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा के अलावा बाकी किसी भी ब्राह्मण चेहरे को बहुत अहम विभाग नहीं दिए गए थे और सत्ता में बहुत ज्यादा भागीदारी नहीं होने की वजह से कहीं ना कहीं ब्राह्मणों में इस बार के चुनाव से पहले कुछ असंतोष नजर आ रहा है, जिसे लेकर पार्टी ने ब्राह्मणों को अपने हक में करने के लिए नए नए दांव खेलने शुरू कर दिए हैं.
बीजेपी को पता है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में ब्राह्मण वोट बैंक सिर्फ 10 से 12% है. इसके बावजूद उनका प्रभाव काफी अधिक है और यही वजह है कि 1990 से पहले ज्यादातर उत्तर प्रदेश की सत्ता की कमान किसी न किसी ब्राह्मण के हाथों में रही और कांग्रेस भी नेतृत्व की कमान ब्राह्मणों के हाथ में ही सौंपा करती थी, मगर बीजेपी के आने के बाद यह परंपरा कम हुई है और इसे लेकर ब्राह्मणों में असंतोष बढ़ा है.
उत्तर प्रदेश में मजबूत है भाजपा
यूपी की सोशल इंजीनियरिंग पर ईटीवी भारत से बात करते हुए वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम का कहना है, 'बीजेपी के पास उत्तर प्रदेश में काफी संतुलित नेतृत्व उपलब्ध है जब जतिन प्रसाद की एंट्री हुई तब भी मीडिया ने यही कहा कि ब्राह्मण चेहरा को आगे बढ़ाया जा रहा है और अब ए के शर्मा को उपाध्यक्ष बनाए जाने पर भी यही कयास लगाए जा रहे हैं, लेकिन मेरा मानना है कि जो ब्राह्मण समुदाय के लोग हैं उनके पास दो ही विकल्प हैं या तो वह मायावती की पार्टी में जाते हैं या फिर भारतीय जनता पार्टी के पास आते हैं, क्योंकि अब कांग्रेस वजूद उत्तर प्रदेश में नहीं रह गया है और जहां तक मैं समझता हूं कि अब मायावती भी ब्राह्मणों के लिए विकल्प के तौर पर बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं है ऐसे में ब्राह्मणों के पास विकल्प कम हुआ.'
गठबंधन की संभावना नहीं
निगम का कहना है कि 2017 के चुनाव में बहुत ज्यादा सीटें भारतीय जनता पार्टी को यूपी में मिली थी और यह कहीं भी जातिगत आधार पर नहीं मिली थी. जात-पात से ऊपर उठकर लोगों ने वोट किया था. ऐसे में देखा जाए तो इस बार बहुत ज्यादा गठबंधन उत्तर प्रदेश में नजर नहीं आ रहा है, ऐसे में जनता के पास बहुत ज्यादा विकल्प भी नहीं है.
देश रतन निगम का कहना है कि जो राष्ट्र मंच बन रहा है इसका प्रभाव उत्तर प्रदेश में पड़ने की संभावना नहीं है, क्योंकि इनमें वह पार्टियां ज्यादा सक्रिय हैं, जो उत्तर प्रदेश में है ही नहीं, उनका कहना है कि यदि गठबंधन की संभावना दिख भी रही है, तो वह मात्र सपा और कांग्रेस के बीच.
उनके विचार से बसपा इस बार गठबंधन में शामिल नहीं होगी क्योंकि पिछली बार सबसे ज्यादा गठबंधन का नुकसान बहुजन समाज पार्टी को ही हुआ था. उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के चुनाव में फर्क होगा, क्योंकि पश्चिम बंगाल में संगठन का ढांचा पहले से बिल्कुल नहीं था और उसे बनाने की कोशिश की गई थी और वहां भाजपा ने यह गलती की थी कि वहां दूसरी पार्टी से आए हुए लोगों को ज्यादा महत्व दिया गया था, लेकिन उत्तर प्रदेश में यह स्थिति नहीं है.
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यहां संगठन का ढांचा काफी मजबूत है. भारतीय जनता पार्टी का और यहां का कैडर काफी मोटिवेटेड है, इसीलिए इसे बंगाल चुनाव से साथ मिलाकर देखना गलत होगा. क्योंकि नरेंद्र मोदी का प्रभाव उत्तर प्रदेश में बहुत ज्यादा है. यही नहीं यदि पश्चिम बंगाल में 25 फ़ीसदी से ज्यादा वोट ट्रांसफर नहीं होते, तो वहां की स्थिति कुछ अलग होती.
राम मंदिर मुद्दा होगा अहम फैक्टर
निगम का कहना है कि यूपी चुनाव में राम मंदिर का फैक्टर भी काफी हद तक काम करेगा और इसका फायदा भी भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा साथ ही इस सवाल पर कि जतिन प्रसाद और ए के शर्मा सरीखे नाम क्या ब्राह्मण वोट को रिझाने में काम आएंगे, तो निगम ने कहा कि यह अपने आप में एक बोनस है और यह पार्टी के लिए बोनस के रूप में काम आएंगे, लेकिन वहां यह कहना गलत नहीं होगा की वर्तमान में उत्तर प्रदेश में पार्टी का पैर काफी मजबूत है और विपक्ष बीजेपी के सामने बहुत ज्यादा सुदृढ़ नजर नहीं आ रहा है.
उनका कहना है कि विपक्षी भले ही कोविड-19 को लेकर यूपी सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन जिस तरह से देश का सबसे बड़ा प्रदेश ने कोविड-19 मैनेजमेंट किया है. वह काबिले तारीफ है और यह बातें कहीं ना कहीं चुनाव को प्रभावित करेंगे.
उन्होंने कहा कि सबसे बड़े आश्चर्य की बात है कि इस महामारी के दौरान 66 हजार करोड़ का निवेश सैमसंग और अलग-अलग बड़ी कंपनियों ने निवेश के रूप में उत्तर प्रदेश में किया है. यह अपने आप में उत्तर प्रदेश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जो जमीनी तौर पर हर हाल में चुनाव में प्रभाव डालेंगे. लेकिन यहां यह कहना जरूरी होगा कि काम करने के बावजूद भी बीजेपी को जरूरी होगी कि अपने लिए परसेप्शन मैं सुधार करें और अपने इस परसेप्शन को लेकर जनता के सामने जाएं,स उन्होने ये भी कहा कि तमाम बातों के बावजूद उन्हें ऐसा लगता है कि ब्राह्मण वोट उत्तर प्रदेश में बीजेपी और बसपा के बीच बंटेगा.
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पार्टी में सब ठीक
वह इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल का कहना है कि अभी उत्तर प्रदेश को लेकर कुछ समय से मीडिया ने काफी हलचल मचा रखी थी, खासतौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर, जबकि वास्तविकता यह है कि यह एक साधारण सी प्रक्रिया जो भारतीय जनता पार्टी में नियमित रूप से होती है ,परफॉर्मेंस की प्रक्रिया, समन्वय की बात, सरकर और केंद्र और पार्टी के बीच समन्वय, पार्टी के पदाधिकारियों और सरकार का संबंध या समन्वय यही नही,इतना बड़ा संघ परिवार है उसके साथ जो संबंध है ,इन तमाम बातों पर हमेशा समय समय पर बैठक होती है और यह एक रेगुलर प्रक्रिया है जिसे लेकर मीडिया ने इतना हाइप बनाया.
यही नहीं उत्तर प्रदेश के संगठन में जो महत्वपूर्ण रिक्तियां थी उसे भरने के लिए पार्टी ने कुछ कदम उठाए उसमें भी लोग जातिगत समीकरण ढूंढने लगे जबकी कोई पार्टी में निर्णय होता है या सरकार में किसी के प्रतिनिधित्व की बात होती है तो पार्टी जातिगत समीकरण हो या कार्यकर्ता की उपलब्धियों को और उसकी आईडियोलॉजिकल कमिटमेंट को और उसके जमीन से जुड़ाव को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेती है और जो व्यक्ति उन आवश्यकताओं को पूरा करता है उसी का चयन किया जाता है. बहुत सारी रिक्तियां थी उत्तर प्रदेश में, जिन्हें तेजी से भरा गया और अभी भी यह प्रक्रिया चल रही है.
रास्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि 2022 में उत्तर प्रदेश का चुनाव हो रहा है उसके मद्देनजर भी ध्यान में रखते हुए ये किया जा रहा है कि कैसे दोबारा भारतीय जनता पार्टी योगी जी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में सत्ता में आए. इस प्रक्रिया को ग्राउंड लेवल पर करने के लिए उत्तर प्रदेश की सरकार और पार्टी ने कई निर्णय लिए हैं और हमें यह भरोसा है कि आने वाले समय में यूपी में हम दोबारा सरकार बनाएंगे.