हैदराबाद : तेलंगाना में सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भाजपा उभरी है. इस दौरान कांग्रेस का जनाधार लगातार खिसकता गया. भीषण बाढ़ के रूप में प्रकृति के प्रकोप के कारण पैदा हुई अप्रत्याशित परिस्थितियों और कोविड-19 के प्रकोप के चलते राज्य के लोगों की स्मृतियों में 2020 कभी न भुलाये जाने वाले एक वर्ष के रूप में दर्ज हो गया है.
इस दौरान दुनिया भर की नजरें भी तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद पर टिकी रहीं. कोरोना वायरस से निजात देने वाले रक्षक के रूप में इस शहर के उभरने के आसार बने हैं, क्योंकि इस शहर में स्थित पांच कंपनियां जानलेवा वायरस के खात्मे के लिए टीका बनाने के काम में लगी हुई हैं.
भारत बायोटेक, बायोजिकल ई लिमिटिड और अरबिंदो फार्मा द्वारा विकसित किए जा रहे टीके फिलहाल अलग-अलग चरणों में हैं, जबकि डॉ. रेड्डी और हेटेरो ने टीका विनिर्माण के लिए हाथ मिलाया है.
हाल में भारत बायोटेक और बायोजिकल ई के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और 60 राजनयिकों के दौरे से इस बात को बल मिला है कि शहर कोविड-19 के टीके के निर्माण और आपूर्ति में सबसे आगे रहने वाला है.
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 28 नवंबर को जीनोम वैली में भारत बायोटेक के एक संयंत्र का दौरा किया था. कोरोना वायरस के संभावित टीके 'कोवैक्सीन' की प्रगति की समीक्षा की थी.
इस टीके को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान के सहयोग से उक्त निजी कंपनी विकसित कर रही है. इस टीके के तीसरे चरण का परीक्षण चल रहा है.
चुनावों में दिखे चौकाने वाले परिणाम
राजनीतिक मोर्चो में इस साल सबसे अधिक फायदा भाजपा को मिला. दुब्बका विधानसभा के उपचुनाव में चौंकाने वाले परिणाम सामने आए. भाजपा ने कांटे के मुकाबले में टीआरएस के प्रतिद्वंद्वी को पराजित कर यह सीट हासिल की. इस सिलसिले को जारी रखते हुए भाजपा ने वृहद हैराबाद नगर निगम के चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया.
हैदराबाद में अपनी पैठ बनाने के लिए भाजपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी. पार्टी के लक्ष्य 2023 में होने वाले राज्य विधानसभा के चुनावों में इस क्षेत्र से अधिक से अधिक सीटें जीतने का है.
हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं अमित शाह से लेकर पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक ने जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया और उसका परिणाम नतीजों में भी झलका.
भाजपा ने कुल 150 निगमों में से 48 पर जीत दर्ज की, जबकि इससे पहले 2016 के चुनाव में पार्टी को सिर्फ चार सीटें ही मिली थी. सत्ताधारी टीआरएस को 56 सीटें मिलीं, जबकि पिछले चुनावों में उसे 99 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. टीआरएस हालांकि सबसे बड़े दल के रूप में उभरी उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा.
दूसरे स्थान पर रही एआईएमआईएम
हैदराबाद को एआईएमआईएम का गढ़ माना जाता रहा है. जीएचएमसी चुनाव में वह दूसरे स्थान पर रही. असदुद्दीन ओवैसी यहीं से सांसद हैं. इस जीत से उत्साहित भाजपा की नजर अब राज्य के अगले विधानसभा चुनाव पर है. कर्नाटक के बाद इस राज्य के जरिए वह दक्षिण भारत में अपनी पैठ मजबूत करना चाहती है. वर्तमान में तेलंगाना में भाजपा का सिर्फ एक विधायक है.
टीआरएस के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री ने इस दौरान केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार की सरकारी क्षेत्र के उद्यमों में विनिवेश को लेकर आलोचना की तथा आरोप लगाया कि उसकी नीतियां किसान विरोधी हैं. इस मुद्दे पर आगे की लड़ाई के लिए उन्होंने सभी विपक्षी दलों का एक सम्मेलन आयोजन करने की योजना की घोषणा भी की है.
पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनावों में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद बिखरती नजर आई. उसके कई विधायक सत्ताधारी टीआरएस में शामिल हो गए. साल 2020 में उसके लिए उत्साहजनक कुछ नहीं रहा.
जीएचएमसी चुनावों में उसे सिर्फ दो ही सीटें मिल सकीं. इस निराशजनक प्रदर्शन ने पार्टी की उम्मीदों को तगड़ा झटका दिया. अब उसे दोहरी चुनौती का सामना करना है. एक तरफ उसे टीआरएस का मुकाबला करना है तो दूसरी ओर उसे भाजपा को अपने पैर पसारने से रोकना भी है.
कोरोना और आपदा का दिखा प्रभाव
सूचना और प्रौद्योगिकी का केंद्र बन चुके हैदराबाद को इस साल प्रकृति के प्रकोप का भी सामना करना पड़ा. अक्टूबर महीने में भारी बारिश और बाढ़ से पूरा हैदराबाद परेशान रहा. राजधानी की सड़कों पर तैरती गाड़ियां और जलमग्न गलियां राष्ट्रीय सुर्खियां बनीं. इससे राज्य के कई हिस्सों में फसलों को भी भरी नुकसान हुआ.
राज्य सरकार का आकलन है कि इससे राज्य को 5000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. बारिश से जुड़ी घटनाओं में राज्य में 70 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
कोरोना महामारी का राज्य में कुछ खास प्रभाव नहीं देखा गया. देश के अन्य राज्यों के मुकाबले राज्य की स्थिति बेहतर रही. 29 दिसंबर तक के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में संक्रमण के कुल 2.85 लाख मामले सामने आए थे और 1535 लोगों की जान गई.