ETV Bharat / bharat

भाजपा और RSS समाज के दुश्मन, मोदी की नीति देश का सत्यानाश कर देगी : तपन सेन

CPIM पोलित ब्यूरो के सदस्य और वेस्ट बंगाल से राज्यसभा सांसद रहे तपन सेन (Tapan Sen) ने कोरबा में 'ईटीवी भारत' से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि भाजपा को सत्ता से बेदखल करना ही उनका मुख्य एजेंडा है. और भी कई विषयों पर उन्होंने खुलकर बात की.

Tapan Sen Exclusive Conversation With ETV Bharat
CPIM पोलित ब्यूरो के सदस्य से खास बातचीत
author img

By

Published : Dec 25, 2021, 3:52 PM IST

कोरबा : कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सवादी (CPIM) की सर्वोच्च समिति पोलित ब्यूरो के सदस्य तपन सेन (CPM politburo member Tapan Sen) कोरबा प्रवास पर पहुंचे. यहां उन्होंने देश में वामपंथ की स्थिति और छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चे के सवालों पर जवाब दिया. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के नेताओं को अर्बन नक्सली भी कह दिया जाता था, तब भी वे इस तरह की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे. वे सिर्फ अपना काम करने में विश्वास करते हैं. जहां विरोध के स्वर बुलंद होंगे, वहीं वामपंथ पैदा होगा.

तपन सेन से ETV भारत की खास बातचीत के प्रमुख अंश

तपन सेन की ईटीवी भारत से खास बातचीत

सवाल- छत्तीसगढ़ में आप वामपंथ की क्या स्थिति देखते हैं?
जवाब- छत्तीसगढ़ देश का एक ऐसा प्रदेश है, जहां मजदूर आंदोलन संगठित है. यहां लगातार संघर्ष चल रहा, फिर चाहे वह कोयले के क्षेत्र में हो 'बालको' का मामला हो या अन्य क्षेत्र. यहां मजदूर आंदोलन काफी मुखरता से चल रहे हैं. वर्तमान में निजीकरण और पूंजीपति व्यवस्था के खिलाफ हम आंदोलन कर रहे हैं. वर्तमान सरकार आने वाली जनरेशन को भी बर्बाद कर देगी. जो 70 साल में बनाया गया है. वह सभी बर्बाद करने पर तुले हुए हैं और कहते हैं कि यह सब राष्ट्रवाद है. तो इस पूंजीपति व्यवस्था के खिलाफ हम, लोगों को जगाने का काम कर रहे हैं.

सवाल- आप वेस्ट बंगाल से आते हैं वहां की सीएम ममता बनर्जी ने दिल्ली जाकर नेताओं से मुलाकात की है, कांग्रेस के बिना तीसरे मोर्चे की तैयारी चल रही है, आप क्या सोचते हैं?
जवाब- यह तो उन्हीं से पूछना चाहिए कि वह क्या सोचती हैं? आज की परिस्थिति में ममता बनर्जी की पार्टी केवल एक राज्य तक ही सीमित है. दूसरे राज्यों के कुछ MP कुछ MLA को खरीदकर अगर वह सोच रही हैं कि वह ऑल इंडिया पावर बन जाएंगी तो ऐसा कुछ होने वाला नहीं है. हम वामपंथी लोग संघर्ष कर रहे हैं, नीति के खिलाफ संघर्ष चल रहा है और इसी संघर्ष से तय होगा कि कौन उसके पक्ष में और कौन विपक्ष में? इसी से तय होगा कि आने वाले समय में मोदी को कौन शिकस्त दे सकता है. कुछ नेताओं के साथ लंच और डिनर मीटिंग करके कुछ बदलने वाला नहीं है.

सवाल- निकट भविष्य में यूपी में चुनाव है, इसके बाद लोकसभा चुनाव होंगे. ऐसे में आप मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को कहां देखते हैं?
जवाब- मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी एक नीति के खिलाफ संघर्ष में है. हमारा एक नीतिगत संघर्ष चल रहा है. अभी जो मोदी की नीति चल रही है. वह देश का सत्यानाश कर देगी. हमें इस सच को जनता के पास लेकर जाना है. जिस राज्य में जो राजनीतिक पार्टी का वर्चस्व है. उसी हिसाब से संतुलन बनेगा. लेकिन 2024 में क्या होने वाला है यह अभी से तय करना है. हम इसे मुनासिब नहीं समझते हैं. जिसके पास कोई काम नहीं है वह यह करे, हमारे पास और भी काम है.

सवाल- आपने कहा ममता बनर्जी सिर्फ एक राज्य तक सीमित हैं, वामपंथ की स्थिति भी कुछ ऐसे ही है. केवल केरला में ही आप की सरकार है. लोग वामपंथी विचारधारा से क्यों नहीं जुड़ पा रहे हैं?
जवाब- देखिए यह आपका नजरिया है, एक पार्टी कहां-कहां है. किस किस राज्य में वह सरकार बना रहे हैं. अगर इससे यह तय होता है तो यह तो सही बात नहीं है. यह ठीक नहीं है हमारी पार्टी की स्थिति पूरे देश में है. देश के हर राज्य में है. जहां मजदूर है मजदूर लड़ता है, वहां हमारे पार्टी की उपस्थिति है. जहां किसान है किसान लड़ रहा है. वहां हमारी ताकत है. इस देश में जहां भी यह दोनों उत्पादनकारी ताकत है. वहां हमारी स्थिति है. जहां संघर्ष देखोगे आप देखोगे कि वहां लाल झंडा है. कहां कितना संघर्ष हो रहा है, हम मानते हैं कि हमारी स्थिति को उसी के अनुसार नापा जाए.

सवाल- यदि हम इतिहास में देखें तो भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी भी वामपंथी विचारधारा रखते थे, वर्तमान परिवेश में आप ऐसा समझते हैं कि वामपंथ हाशिए पर है?
जवाब- वामपंथ ही एकमात्र विकल्प है. इसके अलावा और कोई भी अल्टरनेटिव है ही नहीं. आज जो बड़े-बड़े दल कह रहे हैं कि वह निजीकरण के खिलाफ हैं, एक समय वह निजीकरण के समर्थन में थे. राजनीतिक दल जो कभी निजीकरण के पक्ष में थे अब वह सभी इसके खिलाफ हैं. ऐसा क्यों हुआ, क्योंकि जनता के भीतर से यह आवाज उठने लगी. बैंकों की 2 दिन की इतनी सफल हड़ताल लंबे समय बाद हुई.

कृषि कानून जब लोकसभा में लाया गया. जब पहला ऑर्डिनेंस आया. तब सबसे पहला विरोध लाल झंडे वालों ने किया. उसके बाद विरोध शुरू हुआ. मजदूर कानून का विरोध भी हमने किया, लेकिन उसमें सबने विरोध किया था. आज आप देखो जो भी अपने आप को विरोधी मानते हैं, वह कृषि कानून के पक्ष में बात नहीं कर सकते. जो पक्ष में भी थे. जो मोदी की टोली में थे जैसे कि अकाली दल उन्हें भी बोलना पड़ रहा है कि नहीं हम कृषि कानून के खिलाफ हैं. तो यह परिस्थिति जनता ने बनाया है.

हम जमीनी स्तर पर संघर्ष करते हैं और जनता के पास जो संघर्ष का हथियार है हम इसमें विश्वास करते हैं.अभी जो मोटा-मोटी बात है, वो ये है कि कृषि कानून वापस करो, मजदूरों का आंदोलन, बेरोजगारी की बात ये सारे स्लोगन किसी ने कभी नहीं दिया. यह वामपंथ ने दिया था. लेकिन अब अन्य लोग राजनैतिक दल इसे अपना रहे हैं. बाउंड्री तोड़ते हुए दूसरी पार्टियों को भी बोलना पड़ रहा है. मजबूरी में ही सही लेकिन अब लोग बोल रहे हैं. यही मजबूरी पैदा करते हुए संतुलन बदला जा सकता है. दूसरा कोई रास्ता नहीं है.

पढ़ें- Rajagopalachari death anniversary: आधुनिक भारत के 'चाणक्य' थे 'राजाजी'

सवाल- लोग आपकी विचारधारा से तो जुड़ रहे हैं लेकिन वह वोट में परिवर्तित नहीं होते हैं इसलिए आप सत्ता से बाहर हैं ?
जवाब- नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. सत्ता में कोई भी हो इससे फर्क नहीं पड़ता. अभी मोदी भी सत्ता में हैं लोगों ने कृषि कानून को वापस लेने पर मजबूर कर दिया, ठिकाने लगा दिया. तो जो सत्ता में हैं उन्हें भी इस तरह से ठिकाने लगाया जा सकता है. निजीकरण का यह दौर है. यह 1991 में ही शुरू हुआ था. लेकिन तब यह ज्यादा आगे नहीं बढ़ सका था. कभी नीचे से संघर्ष हुआ था. हम इसी संघर्ष में विश्वास रखते हैं और हम यही संघर्ष का विकल्प लोगों को देंगे.

सवाल- आप भी राज्यसभा के सांसद थे, अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व आपने किया था. तब की परिस्थितियों और आज की परिस्थितियों में आप क्या अंतर देखते हैं?
जवाब- भयंकर अंतर है, पहले कम से कम जो संवैधानिक संस्थाएं थीं. जो नियम थे, उसके अनुसार काम होते थे. हालांकि मैं यह भी नहीं कहूंगा कि तब शत-प्रतिशत नियमानुसार काम हो रहे थे. खामियां तब भी थीं, लेकिन वर्तमान परिस्थितियां तो बेहद भयंकर हैं. अब तो संसदीय लोकतंत्र की जो प्रक्रिया है जो प्रोसीजर होता है, उसे पूरी तरह से दरकिनार करते हुए, ताकत का दुरुपयोग कर रहे हैं.

जैसे कि सरकार अभी इलेक्टोरल बिल लाई जो कि एक खतरनाक बिल है. इस बिल को सदन में सुबह रखा गया और शाम को इसे पारित कर दिया गया जबकि ऐसा कभी नहीं होता है. सबको बुलाया जाता है, सेलेक्ट कमेटी में भेजा जाता है. रायमशविरा होता है, चर्चा की जाती है. सिलेक्ट कमेटी में उसे भेजा जाता है लेकिन अब इन सभी प्रक्रियाओं को दरकिनार करके इस बिल को सीधे पास कर दिया गया और तो और ध्वनिमत से भी बिल पारित किए जा रहे हैं.

यह लोकतंत्र नहीं है. सभी संसदीय और संवैधानिक प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए यह जो किया जा रहा है. यह लोकतंत्र नहीं है.लोकतंत्र के मंदिर को इस बीजेपी सरकार ने बर्बाद कर दिया है. आज की जो स्थिति है वह बेहद भयंकर स्थिति है.

सवाल- आने वाले चुनाव में आप लोग किस पार्टी के साथ जाएंगे, गठबंधन करेंगे या भाजपा को सत्ता से बेदखल करना ही आपका एक मात्र लक्ष्य है ?
जवाब- यह भी एक तरह का जुआ खेलने जैसा ही है. आने वाले चुनाव में हम किसके साथ जाएंगे यह उसी वक्त देखा जाएगा. हम लोग भाजपा को सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं. आज देश में भाजपा और RSS समाज के दुश्मन हैं, देश के दुश्मन हैं. हमें इस दिशा में अब काम करना है. अभी से हम यह नहीं कर सकते कि हम किसके साथ जाएंगे.

पढ़ें- परीक्षा में पूछा सैफ अली खान और करीना कपूर खान के बच्चों का नाम, मचा बवाल

सवाल- छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद एक बड़ी समस्या है, आपकी पार्टी के कार्यकर्ता आदिवासियों के बीच काम भी करते रहे हैं, आप क्या समझते हैं इसका समाधान क्या है?
जवाब- नक्सलवाद भी आप बोल सकते हो की पूंजीवाद का एक प्रोडक्ट है. जब दमन, उत्पीड़न, शोषण एक सीमा के बाहर चला जाता है तब इस तरह की परिस्थितियां निर्मित होती है. लेकिन नक्सली भी जब हावी होने लगते हैं तब वह लोग भी दमन उत्पीड़न को ही पुष्ट करते हैं. नक्सलियों के कारण अब यहां पुलिस का राज शुरू हो जाता है और फिर से भोले-भाले आदिवासियों का दमन चक्र शुरू हो जाता है. तो यह कोई रास्ता नहीं है कि दमन और उत्पीड़न करने वाली जो व्यवस्था है. इस व्यवस्था पर चोट पहुंचाई जानी चाहिए. इस व्यवस्था को अगर हम हटा सकते हैं कमजोर कर सकते हैं तो उस परिस्थितियों से भी हम निजात पा सकते हैं.

सवाल- अर्बन नक्सलिज्म जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है, खासतौर पर आपकी पार्टी से जुड़े कार्यकर्ता जो संघर्ष करते हैं उन्हें ऐसा कहा जाता है कैसा महसूस करते हैं?
जवाब- अर्बन नक्सलिज्म शब्द की शुरुआत RSS के मुख्यालय नागपुर से शुरू हुई थी. यह सवाल तो उनसे पूछा जाना चाहिए. कोई अगर हमें इस तरह के संबोधन से संबोधित करता है तो करने दो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. हम अपना काम करते हैं. व्यवस्था पूंजीपतियों के द्वारा संचालित की जा रही है, जो उनके साथ उठते-बैठते हैं, वह उसी के एजेंडा को ही आगे बढ़ाएंगे. तो हमें इसमें ज्यादा कुछ सोचने का नहीं है.

पढ़ें- ममता विपक्ष को न बांटें, संसद में साझा रुख रखें भाजपा विरोधी दल : टीआर बालू

सवाल- छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चे के सवाल पर आप क्या कहेंगे. यहां बात तो होती है, लेकिन तीसरा मोर्चा है नहीं?
जवाब- तीसरा मोर्चा, चौथा मोर्चा इन सब बातों के बारे में बात करने के लिए अभी सही समय नहीं है. कौन कहता है कि सिर्फ दो ही मोर्चा हो सकता है. आने वाले समय में कुछ नया हो जाए. तीसरा मोर्चा, चौथा मोर्चा की बात करके सब अपनी राजनीतिक रोटी सेक रहे हैं. अभी इस नीति के खिलाफ जो लड़ाई चल रही है. आप इसमें हाथ बढ़ाइये, इस लड़ाई की गर्माहट को आप और बढ़ाइये. उसके बाद तय हो जाएगा कि कौन साथ है और कौन खिलाफ. इसी से सब तय हो जाएगा.

कोरबा : कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सवादी (CPIM) की सर्वोच्च समिति पोलित ब्यूरो के सदस्य तपन सेन (CPM politburo member Tapan Sen) कोरबा प्रवास पर पहुंचे. यहां उन्होंने देश में वामपंथ की स्थिति और छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चे के सवालों पर जवाब दिया. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के नेताओं को अर्बन नक्सली भी कह दिया जाता था, तब भी वे इस तरह की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे. वे सिर्फ अपना काम करने में विश्वास करते हैं. जहां विरोध के स्वर बुलंद होंगे, वहीं वामपंथ पैदा होगा.

तपन सेन से ETV भारत की खास बातचीत के प्रमुख अंश

तपन सेन की ईटीवी भारत से खास बातचीत

सवाल- छत्तीसगढ़ में आप वामपंथ की क्या स्थिति देखते हैं?
जवाब- छत्तीसगढ़ देश का एक ऐसा प्रदेश है, जहां मजदूर आंदोलन संगठित है. यहां लगातार संघर्ष चल रहा, फिर चाहे वह कोयले के क्षेत्र में हो 'बालको' का मामला हो या अन्य क्षेत्र. यहां मजदूर आंदोलन काफी मुखरता से चल रहे हैं. वर्तमान में निजीकरण और पूंजीपति व्यवस्था के खिलाफ हम आंदोलन कर रहे हैं. वर्तमान सरकार आने वाली जनरेशन को भी बर्बाद कर देगी. जो 70 साल में बनाया गया है. वह सभी बर्बाद करने पर तुले हुए हैं और कहते हैं कि यह सब राष्ट्रवाद है. तो इस पूंजीपति व्यवस्था के खिलाफ हम, लोगों को जगाने का काम कर रहे हैं.

सवाल- आप वेस्ट बंगाल से आते हैं वहां की सीएम ममता बनर्जी ने दिल्ली जाकर नेताओं से मुलाकात की है, कांग्रेस के बिना तीसरे मोर्चे की तैयारी चल रही है, आप क्या सोचते हैं?
जवाब- यह तो उन्हीं से पूछना चाहिए कि वह क्या सोचती हैं? आज की परिस्थिति में ममता बनर्जी की पार्टी केवल एक राज्य तक ही सीमित है. दूसरे राज्यों के कुछ MP कुछ MLA को खरीदकर अगर वह सोच रही हैं कि वह ऑल इंडिया पावर बन जाएंगी तो ऐसा कुछ होने वाला नहीं है. हम वामपंथी लोग संघर्ष कर रहे हैं, नीति के खिलाफ संघर्ष चल रहा है और इसी संघर्ष से तय होगा कि कौन उसके पक्ष में और कौन विपक्ष में? इसी से तय होगा कि आने वाले समय में मोदी को कौन शिकस्त दे सकता है. कुछ नेताओं के साथ लंच और डिनर मीटिंग करके कुछ बदलने वाला नहीं है.

सवाल- निकट भविष्य में यूपी में चुनाव है, इसके बाद लोकसभा चुनाव होंगे. ऐसे में आप मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को कहां देखते हैं?
जवाब- मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी एक नीति के खिलाफ संघर्ष में है. हमारा एक नीतिगत संघर्ष चल रहा है. अभी जो मोदी की नीति चल रही है. वह देश का सत्यानाश कर देगी. हमें इस सच को जनता के पास लेकर जाना है. जिस राज्य में जो राजनीतिक पार्टी का वर्चस्व है. उसी हिसाब से संतुलन बनेगा. लेकिन 2024 में क्या होने वाला है यह अभी से तय करना है. हम इसे मुनासिब नहीं समझते हैं. जिसके पास कोई काम नहीं है वह यह करे, हमारे पास और भी काम है.

सवाल- आपने कहा ममता बनर्जी सिर्फ एक राज्य तक सीमित हैं, वामपंथ की स्थिति भी कुछ ऐसे ही है. केवल केरला में ही आप की सरकार है. लोग वामपंथी विचारधारा से क्यों नहीं जुड़ पा रहे हैं?
जवाब- देखिए यह आपका नजरिया है, एक पार्टी कहां-कहां है. किस किस राज्य में वह सरकार बना रहे हैं. अगर इससे यह तय होता है तो यह तो सही बात नहीं है. यह ठीक नहीं है हमारी पार्टी की स्थिति पूरे देश में है. देश के हर राज्य में है. जहां मजदूर है मजदूर लड़ता है, वहां हमारे पार्टी की उपस्थिति है. जहां किसान है किसान लड़ रहा है. वहां हमारी ताकत है. इस देश में जहां भी यह दोनों उत्पादनकारी ताकत है. वहां हमारी स्थिति है. जहां संघर्ष देखोगे आप देखोगे कि वहां लाल झंडा है. कहां कितना संघर्ष हो रहा है, हम मानते हैं कि हमारी स्थिति को उसी के अनुसार नापा जाए.

सवाल- यदि हम इतिहास में देखें तो भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी भी वामपंथी विचारधारा रखते थे, वर्तमान परिवेश में आप ऐसा समझते हैं कि वामपंथ हाशिए पर है?
जवाब- वामपंथ ही एकमात्र विकल्प है. इसके अलावा और कोई भी अल्टरनेटिव है ही नहीं. आज जो बड़े-बड़े दल कह रहे हैं कि वह निजीकरण के खिलाफ हैं, एक समय वह निजीकरण के समर्थन में थे. राजनीतिक दल जो कभी निजीकरण के पक्ष में थे अब वह सभी इसके खिलाफ हैं. ऐसा क्यों हुआ, क्योंकि जनता के भीतर से यह आवाज उठने लगी. बैंकों की 2 दिन की इतनी सफल हड़ताल लंबे समय बाद हुई.

कृषि कानून जब लोकसभा में लाया गया. जब पहला ऑर्डिनेंस आया. तब सबसे पहला विरोध लाल झंडे वालों ने किया. उसके बाद विरोध शुरू हुआ. मजदूर कानून का विरोध भी हमने किया, लेकिन उसमें सबने विरोध किया था. आज आप देखो जो भी अपने आप को विरोधी मानते हैं, वह कृषि कानून के पक्ष में बात नहीं कर सकते. जो पक्ष में भी थे. जो मोदी की टोली में थे जैसे कि अकाली दल उन्हें भी बोलना पड़ रहा है कि नहीं हम कृषि कानून के खिलाफ हैं. तो यह परिस्थिति जनता ने बनाया है.

हम जमीनी स्तर पर संघर्ष करते हैं और जनता के पास जो संघर्ष का हथियार है हम इसमें विश्वास करते हैं.अभी जो मोटा-मोटी बात है, वो ये है कि कृषि कानून वापस करो, मजदूरों का आंदोलन, बेरोजगारी की बात ये सारे स्लोगन किसी ने कभी नहीं दिया. यह वामपंथ ने दिया था. लेकिन अब अन्य लोग राजनैतिक दल इसे अपना रहे हैं. बाउंड्री तोड़ते हुए दूसरी पार्टियों को भी बोलना पड़ रहा है. मजबूरी में ही सही लेकिन अब लोग बोल रहे हैं. यही मजबूरी पैदा करते हुए संतुलन बदला जा सकता है. दूसरा कोई रास्ता नहीं है.

पढ़ें- Rajagopalachari death anniversary: आधुनिक भारत के 'चाणक्य' थे 'राजाजी'

सवाल- लोग आपकी विचारधारा से तो जुड़ रहे हैं लेकिन वह वोट में परिवर्तित नहीं होते हैं इसलिए आप सत्ता से बाहर हैं ?
जवाब- नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. सत्ता में कोई भी हो इससे फर्क नहीं पड़ता. अभी मोदी भी सत्ता में हैं लोगों ने कृषि कानून को वापस लेने पर मजबूर कर दिया, ठिकाने लगा दिया. तो जो सत्ता में हैं उन्हें भी इस तरह से ठिकाने लगाया जा सकता है. निजीकरण का यह दौर है. यह 1991 में ही शुरू हुआ था. लेकिन तब यह ज्यादा आगे नहीं बढ़ सका था. कभी नीचे से संघर्ष हुआ था. हम इसी संघर्ष में विश्वास रखते हैं और हम यही संघर्ष का विकल्प लोगों को देंगे.

सवाल- आप भी राज्यसभा के सांसद थे, अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व आपने किया था. तब की परिस्थितियों और आज की परिस्थितियों में आप क्या अंतर देखते हैं?
जवाब- भयंकर अंतर है, पहले कम से कम जो संवैधानिक संस्थाएं थीं. जो नियम थे, उसके अनुसार काम होते थे. हालांकि मैं यह भी नहीं कहूंगा कि तब शत-प्रतिशत नियमानुसार काम हो रहे थे. खामियां तब भी थीं, लेकिन वर्तमान परिस्थितियां तो बेहद भयंकर हैं. अब तो संसदीय लोकतंत्र की जो प्रक्रिया है जो प्रोसीजर होता है, उसे पूरी तरह से दरकिनार करते हुए, ताकत का दुरुपयोग कर रहे हैं.

जैसे कि सरकार अभी इलेक्टोरल बिल लाई जो कि एक खतरनाक बिल है. इस बिल को सदन में सुबह रखा गया और शाम को इसे पारित कर दिया गया जबकि ऐसा कभी नहीं होता है. सबको बुलाया जाता है, सेलेक्ट कमेटी में भेजा जाता है. रायमशविरा होता है, चर्चा की जाती है. सिलेक्ट कमेटी में उसे भेजा जाता है लेकिन अब इन सभी प्रक्रियाओं को दरकिनार करके इस बिल को सीधे पास कर दिया गया और तो और ध्वनिमत से भी बिल पारित किए जा रहे हैं.

यह लोकतंत्र नहीं है. सभी संसदीय और संवैधानिक प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए यह जो किया जा रहा है. यह लोकतंत्र नहीं है.लोकतंत्र के मंदिर को इस बीजेपी सरकार ने बर्बाद कर दिया है. आज की जो स्थिति है वह बेहद भयंकर स्थिति है.

सवाल- आने वाले चुनाव में आप लोग किस पार्टी के साथ जाएंगे, गठबंधन करेंगे या भाजपा को सत्ता से बेदखल करना ही आपका एक मात्र लक्ष्य है ?
जवाब- यह भी एक तरह का जुआ खेलने जैसा ही है. आने वाले चुनाव में हम किसके साथ जाएंगे यह उसी वक्त देखा जाएगा. हम लोग भाजपा को सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं. आज देश में भाजपा और RSS समाज के दुश्मन हैं, देश के दुश्मन हैं. हमें इस दिशा में अब काम करना है. अभी से हम यह नहीं कर सकते कि हम किसके साथ जाएंगे.

पढ़ें- परीक्षा में पूछा सैफ अली खान और करीना कपूर खान के बच्चों का नाम, मचा बवाल

सवाल- छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद एक बड़ी समस्या है, आपकी पार्टी के कार्यकर्ता आदिवासियों के बीच काम भी करते रहे हैं, आप क्या समझते हैं इसका समाधान क्या है?
जवाब- नक्सलवाद भी आप बोल सकते हो की पूंजीवाद का एक प्रोडक्ट है. जब दमन, उत्पीड़न, शोषण एक सीमा के बाहर चला जाता है तब इस तरह की परिस्थितियां निर्मित होती है. लेकिन नक्सली भी जब हावी होने लगते हैं तब वह लोग भी दमन उत्पीड़न को ही पुष्ट करते हैं. नक्सलियों के कारण अब यहां पुलिस का राज शुरू हो जाता है और फिर से भोले-भाले आदिवासियों का दमन चक्र शुरू हो जाता है. तो यह कोई रास्ता नहीं है कि दमन और उत्पीड़न करने वाली जो व्यवस्था है. इस व्यवस्था पर चोट पहुंचाई जानी चाहिए. इस व्यवस्था को अगर हम हटा सकते हैं कमजोर कर सकते हैं तो उस परिस्थितियों से भी हम निजात पा सकते हैं.

सवाल- अर्बन नक्सलिज्म जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है, खासतौर पर आपकी पार्टी से जुड़े कार्यकर्ता जो संघर्ष करते हैं उन्हें ऐसा कहा जाता है कैसा महसूस करते हैं?
जवाब- अर्बन नक्सलिज्म शब्द की शुरुआत RSS के मुख्यालय नागपुर से शुरू हुई थी. यह सवाल तो उनसे पूछा जाना चाहिए. कोई अगर हमें इस तरह के संबोधन से संबोधित करता है तो करने दो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. हम अपना काम करते हैं. व्यवस्था पूंजीपतियों के द्वारा संचालित की जा रही है, जो उनके साथ उठते-बैठते हैं, वह उसी के एजेंडा को ही आगे बढ़ाएंगे. तो हमें इसमें ज्यादा कुछ सोचने का नहीं है.

पढ़ें- ममता विपक्ष को न बांटें, संसद में साझा रुख रखें भाजपा विरोधी दल : टीआर बालू

सवाल- छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चे के सवाल पर आप क्या कहेंगे. यहां बात तो होती है, लेकिन तीसरा मोर्चा है नहीं?
जवाब- तीसरा मोर्चा, चौथा मोर्चा इन सब बातों के बारे में बात करने के लिए अभी सही समय नहीं है. कौन कहता है कि सिर्फ दो ही मोर्चा हो सकता है. आने वाले समय में कुछ नया हो जाए. तीसरा मोर्चा, चौथा मोर्चा की बात करके सब अपनी राजनीतिक रोटी सेक रहे हैं. अभी इस नीति के खिलाफ जो लड़ाई चल रही है. आप इसमें हाथ बढ़ाइये, इस लड़ाई की गर्माहट को आप और बढ़ाइये. उसके बाद तय हो जाएगा कि कौन साथ है और कौन खिलाफ. इसी से सब तय हो जाएगा.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.