ETV Bharat / bharat

Bilkis Bano Case: दोषियों को सजा में छूट के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 31 को करेगा सुनवाई

author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 30, 2023, 10:51 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और परिजनों की हत्या के दोषियों की सजा में छूट दिए जाने को लेकर दायर याचिका की सुनवाई गुरुवार को फिर से करने को कहा है.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा से छूट दिये जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई फिर शुरू करेगा.

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ दोषियों की सजा में छूट देने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम दलीलें सुन रही है. पीठ अपनी रिहाई का बचाव कर रहे आरोपियों की दलीलें सातवें दिन सुनेगी. शीर्ष अदालत ने 24 अगस्त को दलीलों पर सुनवाई करते हुए कहा था कि विधि और कानून को उत्तम पेशा माना जाता है.

पीठ ने इस बात पर हैरानी जताई कि मामले का एक दोषी सजा में छूट के बावजूद वकालत कैसे कर सकता है. यह मुद्दा अदालत के संज्ञान में उस समय आया जब राधेश्याम शाह को प्रदत्त छूट का बचाव करते हुए वकील रिषी मल्होत्रा ने पीठ से कहा कि उनके मुवक्किल ने 15 साल कारावास की सजा काट ली है और राज्य सरकार ने उनके आचरण पर गौर कर राहत दी थी.

गुजरात सरकार ने 1992 की सजा में छूट की नीति के आधार पर इस मामले के सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था. उन्हें 2014 में अपनाई नीति के आधार पर नहीं छोड़ा गया, जो अब प्रभाव में है. राज्य सरकार 2014 की नीति के तहत ऐसे अपराध के लिए सजा में छूट नहीं दे सकती, जिसमें जांच सीबीआई ने की हो, या जिसमें लोगों को दुष्कर्म व हत्या अथवा सामूहिक दुष्कर्म का दोषी ठहराया गया हो.

इस मामले में बिलकिस की याचिका के साथ ही माकपा नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा समेत अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर कर सजा में छूट को चुनौती दी है. तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने भी जनहित याचिका दायर की थी.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा से छूट दिये जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई फिर शुरू करेगा.

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ दोषियों की सजा में छूट देने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम दलीलें सुन रही है. पीठ अपनी रिहाई का बचाव कर रहे आरोपियों की दलीलें सातवें दिन सुनेगी. शीर्ष अदालत ने 24 अगस्त को दलीलों पर सुनवाई करते हुए कहा था कि विधि और कानून को उत्तम पेशा माना जाता है.

पीठ ने इस बात पर हैरानी जताई कि मामले का एक दोषी सजा में छूट के बावजूद वकालत कैसे कर सकता है. यह मुद्दा अदालत के संज्ञान में उस समय आया जब राधेश्याम शाह को प्रदत्त छूट का बचाव करते हुए वकील रिषी मल्होत्रा ने पीठ से कहा कि उनके मुवक्किल ने 15 साल कारावास की सजा काट ली है और राज्य सरकार ने उनके आचरण पर गौर कर राहत दी थी.

गुजरात सरकार ने 1992 की सजा में छूट की नीति के आधार पर इस मामले के सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था. उन्हें 2014 में अपनाई नीति के आधार पर नहीं छोड़ा गया, जो अब प्रभाव में है. राज्य सरकार 2014 की नीति के तहत ऐसे अपराध के लिए सजा में छूट नहीं दे सकती, जिसमें जांच सीबीआई ने की हो, या जिसमें लोगों को दुष्कर्म व हत्या अथवा सामूहिक दुष्कर्म का दोषी ठहराया गया हो.

इस मामले में बिलकिस की याचिका के साथ ही माकपा नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा समेत अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर कर सजा में छूट को चुनौती दी है. तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने भी जनहित याचिका दायर की थी.

(पीटीआई-भाषा)

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.