नई दिल्ली : गुजरात में 2002 के साम्प्रदायिक दंगों के दौरान बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार एवं उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषी अपनी सजा में छूट देने के अनुरोध के साथ महाराष्ट्र सरकार से संपर्क कर सकते हैं.
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि दोषियों को दो हफ्ते के अंदर जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करना होगा और उम्र कैद की सजा काटनी होगी. न्यायालय ने कहा कि दोषियों को सजा में छूट देने का गुजरात सरकार का आदेश बिना सोचे समझे पारित किया गया.
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#WATCH | Firecrackers being burst outside the residence of Bilkis Bano in Devgadh Baria, Gujarat.
— ANI (@ANI) January 8, 2024 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
Supreme Court today quashed the Gujarat government's decision to grant remission to 11 convicts in the case of gangrape of Bilkis Bano. SC directed 11 convicts in Bilkis Bano case… pic.twitter.com/T7oxElwgcY
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— ANI (@ANI) January 8, 2024
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न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने 251 पन्नों के फैसले में कहा, 'गुजरात सरकार ने महाराष्ट्र राज्य की शक्तियां हड़प ली थी, जो सजा में छूट मांगने की अर्जियों पर ही केवल विचार कर सकती थी.' शीर्ष न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि गुजरात सरकार के पास, इन दोषियों को सुनाई गई सजा में छूट देने की अर्जियों पर विचार करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था और जिस राज्य में अपराधकर्ताओं पर मुकदमा चला था और सजा सुनाई गई थी, केवल वही इस तरह की अर्जियों पर विचार करने के लिए सक्षम है.
साक्ष्य से छेड़छाड़ किए जाने और गवाहों को खतरा होने की बानो द्वारा आशंका जताए जाने के बाद, गुजरात उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई अहमदाबाद से मुंबई स्थानांतरित कर दी थी.
शीर्ष न्यायालय ने मामले में 11 दोषियों को सजा में दी गई छूट रद्द कर दी. न्यायालय ने जिन याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया, उनमें एक याचिका बिलकीस की भी है, जिसमें उन्होंने दोषियों को सजा में दी गई छूट को चुनौती दी थी.
दोषियों के पक्ष में अनुच्छेद 142 को लागू नहीं किया जा सकता: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को बिलकीस बानो मामले में दोषियों की स्वतंत्रता की सुरक्षा और उन्हें जेल से बाहर रहने देने की याचिका को स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा कि जहां कानून का शासन लागू करने की आवश्यकता होती है, वहां करुणा और सहानुभूति की कोई भूमिका नहीं होती है. शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून के प्रभाव में लोगों का विश्वास कानून के शासन को बनाए रखने के लिए रक्षक और सहायक है.
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्ल भुइयां की पीठ ने कहा कि न्याय सर्वोपरि है और समाज के लिए लाभकारी होना चाहिए. उसने कहा कि अदालतें समाज के लिए होती हैं और मामले में जरूरी कार्रवाई के लिए उन्हें इस अवसर पर सक्रियता दिखानी होगी. पीठ ने कहा, 'हम प्रतिवादी संख्या 3 से 13 (दोषियों) के पक्ष में उन्हें जेल से बाहर रहने की अनुमति देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग नहीं कर सकते क्योंकि यह कानून के शासन की अनदेखी करने के लिए इस न्यायालय के अधिकार का एक उदाहरण होगा और इसके बजाय उन लोगों की सहायता करेगा जो उन आदेशों के लाभार्थी हैं जो हमारे विचार में, अमान्य हैं और इसलिए कानून की नजर में गैर-स्थायी (अस्तित्व में नहीं) हैं.'
पिछला फैसला 'धोखाधड़ी' से प्राप्त किया गया: एससी ने सोमवार को शीर्ष अदालत की एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के फैसले को अमान्य करार दिया, जिसने गुजरात सरकार को बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार मामले और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के 11 दोषियों की सजा माफी के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस फैसले को 'अदालत के साथ धोखाधड़ी करके' प्राप्त किया गया था.
ये रिहा किए गए थे : समय से पहले रिहा किए गए 11 दोषियों में बकाभाई वोहानिया, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, गोविंद नाई, जसवन्त नाई, मितेश भट्ट, प्रदीप मोरधिया, राधेश्याम शाह, राजूभाई सोनी, रमेश चंदना और शैलेश भट्ट शामिल हैं. उन्हें संबंधित जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का आदेश देते हुए न्यायालय ने कहा कि यथास्थिति बहाल की जानी चाहिए.
ये है मामला : घटना के वक्त बिलकीस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं. बानो से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद 2002 में भड़के दंगों के दौरान दुष्कर्म किया गया था। दंगों में मारे गए उनके परिवार के सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी. गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को सजा में छूट दे दी थी और उन्हें रिहा कर दिया था.