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बिकरू कांड : SIT की रिपोर्ट पर कार्रवाई का आग्रह करने वाली याचिका खारिज

10 जुलाई 2020 को कानपुर के बिकरू गांव में घात लगाकर आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई थी. मामले में एसआईटी की रिपोर्ट पर कार्रवाई के निर्देश देने के आग्रह वाली याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने खारिज कर दी. याचिकाकर्ता पर समय बर्बाद करने के लिए 25 हजार रुपये जुर्माना लगाया.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ
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Published : Jun 22, 2021, 7:07 AM IST

लखनऊ : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने पिछले साल जुलाई में कानपुर के बिकरू गांव में घात लगाकर आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले में राज्य सरकार को विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के निर्देश देने के आग्रह वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी.

फिजूल याचिका दाखिल करके न्यायालय का वक्त बर्बाद करने के लिए याचिकाकर्ता पर 25000 रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है.

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय यादव और न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी की पीठ ने यह आदेश कानपुर के अधिवक्ता सौरभ भदौरिया की याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई करते हुए दिया.

याचिकाकर्ता की वकील नूतन ठाकुर ने अदालत से कहा कि एसआईटी (SIT) की रिपोर्ट में पिछले साल 10 जुलाई को स्पेशल टास्क फोर्स से हुई कथित मुठभेड़ में मारे गए बिकरू कांड के मुख्य अभियुक्त विकास दुबे के साथ कुछ पुलिसकर्मियों तथा राज्य के गृह विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच साठगांठ की तरफ इशारा किया गया था.

विकास दुबे को पकड़ने गई टीम पर हुआ था हमला

गौरतलब है कि पिछले साल दो/तीन जुलाई की दरमियानी रात को शातिर अपराधी विकास दुबे को पकड़ने के लिए गई पुलिस टीम पर उसके गुर्गों ने घात लगाकर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई थीं, जिसमें पुलिस उपाधीक्षक देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे.

एसआईटी ने की थी जांच

मामले की जांच के लिए सरकार ने 11 जुलाई को वरिष्ठ आईएएस अधिकारी संजय भूसरेड्डी की अगुवाई में तीन सदस्यीय एसआईटी गठित की थी. अपर महाधिवक्ता पी. के. शाही ने कानपुर के वकील सौरभ भदौरिया द्वारा दाखिल याचिका का विरोध करते हुए कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता इस मामले में पूरी तरह से एक अजनबी व्यक्ति है इसलिए यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है.

इसलिए सुनवाई योग्य नहीं याचिका

शाही की इस दलील को मंजूर करते हुए पीठ ने कहा कि यह याचिका व्यक्तिगत हित के लिए दाखिल की गई है लिहाजा यह सुनवाई योग्य नहीं है.

पढ़ें- कानपुर बिकरू कांड: सामने आया खाकी और विकास दुबे का नेटवर्क

अदालत ने यह अनावश्यक याचिका दाखिल करने के लिए याचिकाकर्ता पर 25000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है.

(पीटीआई-भाषा)

लखनऊ : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने पिछले साल जुलाई में कानपुर के बिकरू गांव में घात लगाकर आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले में राज्य सरकार को विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के निर्देश देने के आग्रह वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी.

फिजूल याचिका दाखिल करके न्यायालय का वक्त बर्बाद करने के लिए याचिकाकर्ता पर 25000 रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है.

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय यादव और न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी की पीठ ने यह आदेश कानपुर के अधिवक्ता सौरभ भदौरिया की याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई करते हुए दिया.

याचिकाकर्ता की वकील नूतन ठाकुर ने अदालत से कहा कि एसआईटी (SIT) की रिपोर्ट में पिछले साल 10 जुलाई को स्पेशल टास्क फोर्स से हुई कथित मुठभेड़ में मारे गए बिकरू कांड के मुख्य अभियुक्त विकास दुबे के साथ कुछ पुलिसकर्मियों तथा राज्य के गृह विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच साठगांठ की तरफ इशारा किया गया था.

विकास दुबे को पकड़ने गई टीम पर हुआ था हमला

गौरतलब है कि पिछले साल दो/तीन जुलाई की दरमियानी रात को शातिर अपराधी विकास दुबे को पकड़ने के लिए गई पुलिस टीम पर उसके गुर्गों ने घात लगाकर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई थीं, जिसमें पुलिस उपाधीक्षक देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे.

एसआईटी ने की थी जांच

मामले की जांच के लिए सरकार ने 11 जुलाई को वरिष्ठ आईएएस अधिकारी संजय भूसरेड्डी की अगुवाई में तीन सदस्यीय एसआईटी गठित की थी. अपर महाधिवक्ता पी. के. शाही ने कानपुर के वकील सौरभ भदौरिया द्वारा दाखिल याचिका का विरोध करते हुए कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता इस मामले में पूरी तरह से एक अजनबी व्यक्ति है इसलिए यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है.

इसलिए सुनवाई योग्य नहीं याचिका

शाही की इस दलील को मंजूर करते हुए पीठ ने कहा कि यह याचिका व्यक्तिगत हित के लिए दाखिल की गई है लिहाजा यह सुनवाई योग्य नहीं है.

पढ़ें- कानपुर बिकरू कांड: सामने आया खाकी और विकास दुबे का नेटवर्क

अदालत ने यह अनावश्यक याचिका दाखिल करने के लिए याचिकाकर्ता पर 25000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है.

(पीटीआई-भाषा)

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