पटना : बिहार राज्य निर्वाचन आयोग (Bihar State Election Commission) ने अगले आदेश तक के लिए नगर पालिका चुनाव 2022 को स्थगित कर दिया (Bihar Municipal Election Postponed) है. पटना हाई कोर्ट के निर्देश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने यह फैसला लिया है. नगर पालिका आम निर्वाचन 2022 के पहले और दूसरे चरण के लिए 10 अक्टूबर और 20 अक्टूबर को होने वाले मतदान की तिथि को तत्काल स्थगित कर दिया है. जानकारी दी गयी है कि स्थगित निर्वाचन की अगली तिथि जल्द ही सूचित की जाएगी.
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दरअसल, बिहार में इस महीने होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर पटना हाईकोर्ट (Patna high court decision Over EBC Reservation) ने बड़ा फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव कराने से फिलहाल रोक लगा दी. पटना हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद आनन-फानन में बिहार राज्य निर्वाचन आयोग की बैठक हुई. जिसमें अधिकारियों ने पूरे मामले पर हाईकोर्ट के निर्णय की जानकारी ली. जिसमें राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकारी और नगर विकास विभाग के सचिव भी मौजूद रहे. इस बैठक में चुनाव को फिलहाल स्थगित करने का निर्णय लिया गया.
क्या लिया गया निर्णय : बैठक समाप्त होने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने मंगलवार रात प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया, ''हाईकोर्ट के न्यायादेश के आलोक में राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा नगर पालिका आम निर्वाचन 2022 की प्रक्रिया में आवश्यक संशोधन की आवश्यकता होने के फलस्वरूप प्रथम और द्वितीय चरण के लिए 10 अक्टूबर और 20 अक्टूबर को होने वाली निर्धारित मतदान की तिथि को तत्काल के लिए स्थगित किया जाता है. स्थगित निर्वाचन की अगली तिथि जल्द ही सूचित की जाएगी.''
BJP-JDU आमने-सामने : हालांकि, इससे पहले मंगलवार को दिनभर बिहार में जमकर राजनीति हुई. बीजेपी और जेडीयू के नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे. यही नहीं वीआईपी चीफ मुकेश सहनी ने भी हाई कोर्ट के फसले पर प्रश्न चिह्न लगा दिया था.
तीन जांच की अर्हता पूरी होने के बाद फैसला : बता दें कि दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि स्थानीय निकायों में ईबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती. तीन जांच के प्रावधानों के तहत ईबीसी के पिछड़ापन पर आंकड़ें जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग के सिफरिशों के मद्देनजर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत है. साथ ही ये भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि एससी/एसटी/ईबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल उपलब्ध सीटों का पचास प्रतिशत की सीमा को नहीं पार करे.
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