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बिहार : कभी अंतरराष्ट्रीय शिक्षा केंद्र के रूप में मिली ख्याति, अब भविष्य संवारने का संघर्ष

अविभाजित बिहार का इतिहास गौरवशाली रहा है. तीन बंटवारे का दंश झेल चुका बिहार एक बार फिर उस रास्ते पर चल पड़ा है, जिस पर चलकर गौरवशाली अतीत को हासिल किया जा सकता है. बिहारी अस्मिता को जगाने के लिए बिहार दिवस मनाने की परिपाटी शुरू हुई जो अनवरत जारी है. देखिए ये रिपोर्ट.

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Published : Mar 22, 2021, 9:33 AM IST

पटना : बिहार अपने सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक इतिहास के लिए जाना जाता है. बिहार की धरती कई आंदोलनों का गवाह बन चुकी है. 1912 में बंगाल विभाजन के साथ बिहार नाम का राज्य अस्तित्व में आया और 1935 में उड़ीसा (अब ओडिशा) बिहार से अलग हो गया. विभाजन का सिलसिला यहीं नहीं थमा और 2000 में झारखंड राज्य को भी इससे अलग कर दिया गया.

अंतरराष्ट्रीय शिक्षा का केंद्र था बिहार
हम अगर इतिहास की बात करें तो बिहार का नाम बौद्ध विहार के बिहार शब्द से हुआ. कालांतर में जो बिहार के नाम से जाना जाने लगा. बिहार को मगध के नाम से भी जाना जाता था. बिहार की राजधानी पटना का पहले पाटलिपुत्र नाम था.

बिहार अंतरराष्ट्रीय शिक्षा का केंद्र हुआ करता था. नालंदा में जहां अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की पहचान पूरे विश्व में थी. वहीं, भागलपुर स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए लोग देश विदेश से आते थे.

नालंदा यूनिवर्सिटी
नालंदा यूनिवर्सिटी

बिहार की भूमि पर जन्मे महारथी
महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर का रिश्ता भी बिहार से रहा है. दोनों ने धार्मिक आंदोलनों के लिए बिहार को कर्मभूमि बनाया. इस पावन भूमि पर सम्राट जरासंध, सम्राट अशोक, अजातशत्रु और बिंबिसार जैसे शासकों ने जन्म लिया.

कोरोना के चलते समारोह रद्द
बिहारी अस्मिता को जगाए रखने के लिए बिहार में नीतीश कुमार के कार्यकाल में बिहार दिवस मनाने की परिपाटी की शुरुआत की गई और 22 मार्च को नीतीश सरकार ने बिहार दिवस मनाने का फैसला लिया. 3 दिनों तक समारोह का आयोजन होता था. लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते दूसरी बार समारोह का आयोजन नहीं किया जा सका है.

देखिए रिपोर्ट

ये भी पढ़ें : महिला पुलिसकर्मियों की भर्ती में बिहार अव्वल, महाराष्ट्र न्याय देने में आगे

गौरवशाली अतीत के पथ पर बिहार
बिहार को एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की कवायद जारी है. नालंदा में जहां करोड़ों की लागत से अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है. वहीं, विक्रमशिला विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की कोशिशें शुरू हो गई है.

बोधगया
बोधगया

बिहार सरकार शिक्षा के क्षेत्र में बिहार के गौरवशाली अतीत को हासिल करना चाहती है. लेकिन अब भी सरकार के सामने कई चुनौतियां हैं. खस्ताहाल उच्च शिक्षा को दुरुस्त करना सरकार के लिए बड़ी जिम्मेदारी है.

''राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के शासनकाल में बिहार में विकास के नए आयाम छुए हैं. हमने गांव-गांव तक पानी पहुंचा दिया है. 24 घंटे लोगों को बिजली मिल रही है. बिहार दिवस मनाना हमारे लिए गर्व की बात है''- रेणु देवी, उपमुख्यमंत्री, बिहार

''बिहार दिवस मनाना हमारे लिए आन बान शान है. बिहार तरक्की की राह पर चल पड़ा है. लेकिन बिहार का गौरवशाली अतीत हासिल हो, इसके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में बहुत कुछ करने की जरूरत है''- श्याम रजक, राजद नेता

''बिहार सरकार ने विकास का नया पैमाना तय किया है. नीतीश सरकार ने पानी, बिजली, सड़क और बिजली के क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव किए हैं. अब भी सरकार के सामने चुनौतियां दस्तक दे रही है. उच्च शिक्षा को दुरुस्त करने के अलावा रोजगार और पलायन सरकार के सामने बड़ी चुनौती है''- डॉ.संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

ये भी पढ़ें : जानिए, अर्श से फर्श पर पहुंचे लालू के बारे में रोचक तथ्य

फिर चल पड़ा विकास का कारवां
इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में श्रीकृष्ण सिंह के काल में जो विकास का कारवां चल पड़ा था, उसे आगे ले जाने की कोशिश शुरू हो चुकी है. राज्य में गांव-गांव तक जहां सड़क पहुंच चुकी है. वहीं, निर्बाध बिजली की आपूर्ति भी गांव के स्तर तक की जा रही है.

पटना स्थित गोलघर
पटना स्थित गोलघर

ये भी पढ़ें : पटना विश्वविद्यालय के कायाकल्प के लिए 583.98 करोड़ का बजट पारित

औद्योगिकीकरण में बिहार जरूर पिछड़ गया है. जो उद्योग श्री कृष्ण सिंह के काल में शुरू हुए थे, वह कालांतर में बंद हो गए.

पटना : बिहार अपने सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक इतिहास के लिए जाना जाता है. बिहार की धरती कई आंदोलनों का गवाह बन चुकी है. 1912 में बंगाल विभाजन के साथ बिहार नाम का राज्य अस्तित्व में आया और 1935 में उड़ीसा (अब ओडिशा) बिहार से अलग हो गया. विभाजन का सिलसिला यहीं नहीं थमा और 2000 में झारखंड राज्य को भी इससे अलग कर दिया गया.

अंतरराष्ट्रीय शिक्षा का केंद्र था बिहार
हम अगर इतिहास की बात करें तो बिहार का नाम बौद्ध विहार के बिहार शब्द से हुआ. कालांतर में जो बिहार के नाम से जाना जाने लगा. बिहार को मगध के नाम से भी जाना जाता था. बिहार की राजधानी पटना का पहले पाटलिपुत्र नाम था.

बिहार अंतरराष्ट्रीय शिक्षा का केंद्र हुआ करता था. नालंदा में जहां अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की पहचान पूरे विश्व में थी. वहीं, भागलपुर स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए लोग देश विदेश से आते थे.

नालंदा यूनिवर्सिटी
नालंदा यूनिवर्सिटी

बिहार की भूमि पर जन्मे महारथी
महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर का रिश्ता भी बिहार से रहा है. दोनों ने धार्मिक आंदोलनों के लिए बिहार को कर्मभूमि बनाया. इस पावन भूमि पर सम्राट जरासंध, सम्राट अशोक, अजातशत्रु और बिंबिसार जैसे शासकों ने जन्म लिया.

कोरोना के चलते समारोह रद्द
बिहारी अस्मिता को जगाए रखने के लिए बिहार में नीतीश कुमार के कार्यकाल में बिहार दिवस मनाने की परिपाटी की शुरुआत की गई और 22 मार्च को नीतीश सरकार ने बिहार दिवस मनाने का फैसला लिया. 3 दिनों तक समारोह का आयोजन होता था. लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते दूसरी बार समारोह का आयोजन नहीं किया जा सका है.

देखिए रिपोर्ट

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गौरवशाली अतीत के पथ पर बिहार
बिहार को एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की कवायद जारी है. नालंदा में जहां करोड़ों की लागत से अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है. वहीं, विक्रमशिला विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की कोशिशें शुरू हो गई है.

बोधगया
बोधगया

बिहार सरकार शिक्षा के क्षेत्र में बिहार के गौरवशाली अतीत को हासिल करना चाहती है. लेकिन अब भी सरकार के सामने कई चुनौतियां हैं. खस्ताहाल उच्च शिक्षा को दुरुस्त करना सरकार के लिए बड़ी जिम्मेदारी है.

''राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के शासनकाल में बिहार में विकास के नए आयाम छुए हैं. हमने गांव-गांव तक पानी पहुंचा दिया है. 24 घंटे लोगों को बिजली मिल रही है. बिहार दिवस मनाना हमारे लिए गर्व की बात है''- रेणु देवी, उपमुख्यमंत्री, बिहार

''बिहार दिवस मनाना हमारे लिए आन बान शान है. बिहार तरक्की की राह पर चल पड़ा है. लेकिन बिहार का गौरवशाली अतीत हासिल हो, इसके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में बहुत कुछ करने की जरूरत है''- श्याम रजक, राजद नेता

''बिहार सरकार ने विकास का नया पैमाना तय किया है. नीतीश सरकार ने पानी, बिजली, सड़क और बिजली के क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव किए हैं. अब भी सरकार के सामने चुनौतियां दस्तक दे रही है. उच्च शिक्षा को दुरुस्त करने के अलावा रोजगार और पलायन सरकार के सामने बड़ी चुनौती है''- डॉ.संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

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फिर चल पड़ा विकास का कारवां
इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में श्रीकृष्ण सिंह के काल में जो विकास का कारवां चल पड़ा था, उसे आगे ले जाने की कोशिश शुरू हो चुकी है. राज्य में गांव-गांव तक जहां सड़क पहुंच चुकी है. वहीं, निर्बाध बिजली की आपूर्ति भी गांव के स्तर तक की जा रही है.

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पटना स्थित गोलघर

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औद्योगिकीकरण में बिहार जरूर पिछड़ गया है. जो उद्योग श्री कृष्ण सिंह के काल में शुरू हुए थे, वह कालांतर में बंद हो गए.

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