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बीजेपी को लगातार हैरान कर रहे हैं नीतीश, जातीय जनगणना पर अड़े, आखिर वह चाहते क्या हैं ?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जातीय जनगणना पर अड़े हैं. इसके लिए उन्होंने पीएम मोदी को पत्र भी लिखा है. साथ ही कहा है कि अगर केंद्र सरकार जाति आधारित जनगणना नहीं कराएगी, तो राज्य सरकार खुद करा लेगी. नीतीश जनसंख्या कानून की भी आलोचना कर चुके हैं . पेगासस मामले की जांच की बात कहकर उन्होंने बीजेपी को भी हैरान कर दिया है. दूसरी ओर, लालू यादव उनकी तारीफ कर रहे हैं. नीतीश के बदले बोल और तेवर से क्या संभावना बनती हैं, पढे़ें यह रिपोर्ट

nitish lalu etv bharat
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Published : Aug 6, 2021, 8:08 PM IST

हैदराबाद : दिल्ली में शरद यादव के आवास पर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने मीटिंग के बाद बिहार के मुख्यमंत्री के लिए एक बयान जारी किया था. नीतीश कुमार हमारे दिल में हैं. रिश्ते तो बनते-बिगड़ते हैं और हम लोग साथ में रहे हैं. लालू यादव का यह बयान सिर्फ नीतीश के लिए एक इशारा था या इसमें आने वाले वक्त के लिए कोई रहस्य भी छिपा है. लालू प्रसाद यादव के जेल से बाहर आने के बाद राजनीति गरमानी ही थी, तो अब वैसा ही हो रहा है. इस बीच में राष्ट्रीय जनता दल के एमएलए मुकेश कुमार रौशन ने इशारों में आगे रणनीति खोलने की कोशिश की है. मुकेश रौशन ने कहा है कि अब जब लालू प्रसाद पटना आएंगे तो बिहार में एनडीए की सरकार की विदाई हो जाएगी.

अब इस राजनीति को समझने के लिए पिछले दिनों हुई राष्ट्रीय राजनीति में हुए मेल-मिलाप और नीतीश कुमार के बदले सुर को समझने की कोशिश करें तो तस्वीर कुछ हद तक साफ हो सकती है. जेडी यू के नेता भी बीजेपी को याद दिला रहे हैं कि केंद्र में एनडीए का कोई कॉमन मिनिमम प्रोग्राम नहीं हैं. उपेंद्र कुशवाहा पहले ही नीतीश को पीएम मैटरियल बता चुके हैं. हालांकि जेडी यू के नेता लगातार बता रहे हैं कि उनकी पार्टी बीजेपी का हिस्सा नहीं है, इसलिए मुद्दों पर उन्हें अलग राय रखने का हक है.

बीजेपी से क्यों नाराज हैं सुशासन बाबू : बिहार की सरकार में भले ही सीएम नीतीश हों, मगर वह गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में नहीं हैं. बिहार राज्य में वित्त, स्वास्थ्य, पीडब्ल्यूडी जैसे महत्वपूर्ण विभाग बीजेपी के खाते में है.

  • मंत्रिमंडल में बीजेपी ने जिस तरह जातीय समीकरण बैठाया है, उससे नीतीश की मुश्किलें बढ़ गई हैं. दो उप मुख्यमंत्री के साथ नीतीश सहज नहीं हैं.
  • विधानसभा में जब विपक्ष नीतीश का घेराव करता है तो बीजेपी के डिप्टी सीएम बचाव भी नहीं करते हैं. सुशील कुमार मोदी विधानसभा और मीडिया में नीतीश का पक्ष रखते थे.
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल में सिर्फ एक पद से संतुष्ट नहीं हैं. पार्टी के लिए दो कैबिनेट की मंशा पहले जाहिर कर चुके हैं. जेडी यू के कोटे से आरसीपी सिंह कैबिनेट मंत्री बने.
  • कोरोना के दौर में बिहार सरकार और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे की काफी फजीहत हुई . इससे नीतीश कुमार नाराज हुए.

7 जुलाई के बाद नीतीश के तेवर बदले तो क्या कहा : केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल 7 जुलाई को हुआ था. इसके बाद से ही नीतीश कुमार के तेवर बदल गए.

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7 जुलाई को नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल विस्तार में जेडी यू कोटे से सिर्फ आरसीपी सिंह मंत्री बनाए गए

12 जुलाई को यूपी में जनसंख्या क़ानून पर उन्होंने बयान दिया. नीतीश कुमार ने कहा, कुछ लोग सोचते हैं कि सिर्फ कानून बनाने से कुछ हो जाएगा. सबकी अपनी अपनी सोच है. लेकिन हम तो महिलाओं को शिक्षित करने पर काम कर रहे हैं.

30 जुलाई को जातिगत जनगणना पर भी बयान दिया. इस बारे में वह केंद्र को पत्र भी लिख चुके हैं. इस मसले पर उनका पार्टी भी अड़ी है. जेडीयू सांसद सुनील कुमार पिंटू ने कहा कि अगर केंद्र जाति आधारित जनगणना करवाने को तैयार नहीं होती तो बिहार में जेडीयू अपने स्तर से जातिगत जनगणना करवाएगा.

2 अगस्त को पेगासस पर जांच की मांग कर नीतीश कुमार ने केंद्र को सकते में डाल दिया. वह एनडीए के पहले घटक हैं, जिन्होंने यह मांग की है. नीतीश ने कहा कि मुझे लगता है कि वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर पेगासस जासूसी मामले की जांच करा लेनी चाहिए, जिससे देश को पता चल पाये कि सच क्या है.

नीतीश कुमार के बयान हैं बीजेपी के लिए मैसेज

वह बीजेपी और केंद्र को मैसेज देना चाह रहे हैं कि उनकी पार्टी बीजेपी से अलग है. जरूरत पड़ने पर वह किसी तरह का पत्ता खोल सकते हैं. बीजेपी भले ही उसे बड़े भाई का दर्जा नहीं दे मगर जेडी यू उसकी पिछलग्गू नहीं है.

बिहार विधानसभा में आरजेडी के 75 विधायक हैं. उसके साथ महागठबंधन की साझीदार पार्टी कांग्रेस के 19 और भाकपा (माले) के 12 विधायक भी हैं. लोजपा, बीएसपी और निर्दलीय विधायकों को जेडी यू में शामिल होने के बाद नीतीश कुमार के पास 46 विधायक हैं. बीजेपी के 74 विधायक 2020 के विधानसभा चुनाव में जीतकर आए थे. इस तरह नीतीश के पास नई सरकार का विकल्प भी है.

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पशुपति पारस भले ही लोजपा के नेता हैं मगर उन्हें जेडी यू कोटे का मंत्री माना जाता है

माना जाता है कि विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान बीजेपी की शह पर लोजपा के चिराग पासवान ने जेडी यू को नुकसान पहुंचाया. लोजपा को तोड़कर और चिराग को केंद्र सरकार से अलग-थलग कर नीतीश ने उन्हें सबक सिखा दिया, अब बीजेपी की बारी है. माना जा रहा है कि अगर नीतीश कुमार एनडीए में बने भी रहे तो बीजेपी के कई मुद्दों पर असहज कर सकते हैं.

नीतीश से प्यार में छिपा है 2024 में बीजेपी को हराने का फॉर्मूला : बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी को हराने के लिए विपक्ष ने जो रणनीति बनाई है, उसके दो हिस्से हैं. पहला, बीजेपी का विरोध करने वाले दल एकजुट हो. पेगासस और किसान आंदोलन के मुद्दे पर विपक्ष एकजुट दिख भी रहा है. दूसरा, लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए के घटक दलों को बीजेपी से दूर करने की तैयारी की जा रही है. चूंकि अभी नीतीश ही एनडीए के सबसे बड़े साथी हैं, इसलिए उन पर डोरे डाले जा रहे हैं. अकाली दल और शिवसेना एनडीए से पहले ही विदा हो चुके हैं.

दोबारा आरजेडी से दोस्ती से नीतीश को क्या होगी मुश्किल

  • आरजेडी के साथ गठबंधन में भी नीतीश की भूमिका वैसी ही रहेगी, जैसी अभी है. मगर सरकार में लालू प्रसाद यादव का हस्तक्षेप बढ़ जाएगा.
  • मंत्रिमंडल में महागठबंधन के अन्य घटक दलों जैसे कांग्रेस को भी जगह देनी होगी. इस तरह जेडीयू के मंत्रियों का कोटा कम हो जाएगा.
  • अवसरवादी राजनीति के कारण पहले ही नीतीश कुमार की आलोचना हो चुकी है. अब गठबंधन बदलने पर उनकी पार्टी की राजनीति चौपट हो सकती है.
  • केंद्र में मिला मंत्री पद भी छोड़ना पड़ेगा. साथ ही केंद्रीय मंत्री बने लोजपा के पशुपति पारस भी बगावत कर सकते हैं.
  • केंद्र में बीजेपी की सरकार है. कई मोर्चों पर बीजेपी उनका घेराव कर सकती है. उनके सुशासन बाबू की छवि को धक्का लगेगा.
  • गठबंधन में शामिल मंत्री मदन साहनी नीतीश पर तानाशाही का आरोप लगा चुके हैं. पाला बदलने पर वे भी बगावत कर सकते हैं.

लालू और नीतीश की दोस्ती में कई गांठ हैं

आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद और जेडी यू के मुखिया नीतीश कुमार राजनीतिक तौर पर पुराने दोस्त हैं. छात्र आंदोलन ( 1974-1977) के दौरान दोनों छात्र नेता जयप्रकाश की सरपरस्ती में रहे. 1977 में नीतीश विधानसभा चुनाव हार गए मगर लालू प्रसाद लोकसभा चुनाव जीत गए. जनता पार्टी, लोकदल और जनता दल में दोनों नेता साथ रहे.

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1994 में अलग होने के बाद 2015 में लालू यादव और नीतीश एक साथ आए थे

985 जब नीतीश पहली बार हरनौत से विधायक बने, तब लालू प्रसाद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने. 1989 में दोनों जनता दल के टिकट पर सांसद बने. जब बिहार में मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो नीतीश ने लालू प्रसाद का साथ दिया था. 1991-93 में जब लालू प्रसाद बिहार में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे थे, नीतीश केंद्र में अपना कद बढ़ा रहे थे .

1994 में उनका मतभेद सामने आया और नीतीश कुमार ने जार्ज फर्नांडिस के साथ समता पार्टी बना ली. लालू यादव और नीतीश पहली बार अलग हुए. नीतीश ने एनडीए का दामन थाम लिया. इसके बाद 2015 में दोनों राजनीतिक मंच पर विधानसभा चुनाव में साथ आए. 26 जुलाई 2017 को नीतीश ने महागठबंधन को छोड़ दिया और एक बार फिर लालू प्रसाद से दूर हुए. बदले सियासी माहौल में लालू प्रसाद अपने पुराने साथी की तारीफ कर रहे हैं. नीतीश उनके साथ जाएंगे या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा.

यह भी पढे़ें : जातिगत जनगणना क्यों नहीं चाहती सरकार, जबकि कई दल इसकी मांग कर रहे हैं

हैदराबाद : दिल्ली में शरद यादव के आवास पर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने मीटिंग के बाद बिहार के मुख्यमंत्री के लिए एक बयान जारी किया था. नीतीश कुमार हमारे दिल में हैं. रिश्ते तो बनते-बिगड़ते हैं और हम लोग साथ में रहे हैं. लालू यादव का यह बयान सिर्फ नीतीश के लिए एक इशारा था या इसमें आने वाले वक्त के लिए कोई रहस्य भी छिपा है. लालू प्रसाद यादव के जेल से बाहर आने के बाद राजनीति गरमानी ही थी, तो अब वैसा ही हो रहा है. इस बीच में राष्ट्रीय जनता दल के एमएलए मुकेश कुमार रौशन ने इशारों में आगे रणनीति खोलने की कोशिश की है. मुकेश रौशन ने कहा है कि अब जब लालू प्रसाद पटना आएंगे तो बिहार में एनडीए की सरकार की विदाई हो जाएगी.

अब इस राजनीति को समझने के लिए पिछले दिनों हुई राष्ट्रीय राजनीति में हुए मेल-मिलाप और नीतीश कुमार के बदले सुर को समझने की कोशिश करें तो तस्वीर कुछ हद तक साफ हो सकती है. जेडी यू के नेता भी बीजेपी को याद दिला रहे हैं कि केंद्र में एनडीए का कोई कॉमन मिनिमम प्रोग्राम नहीं हैं. उपेंद्र कुशवाहा पहले ही नीतीश को पीएम मैटरियल बता चुके हैं. हालांकि जेडी यू के नेता लगातार बता रहे हैं कि उनकी पार्टी बीजेपी का हिस्सा नहीं है, इसलिए मुद्दों पर उन्हें अलग राय रखने का हक है.

बीजेपी से क्यों नाराज हैं सुशासन बाबू : बिहार की सरकार में भले ही सीएम नीतीश हों, मगर वह गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में नहीं हैं. बिहार राज्य में वित्त, स्वास्थ्य, पीडब्ल्यूडी जैसे महत्वपूर्ण विभाग बीजेपी के खाते में है.

  • मंत्रिमंडल में बीजेपी ने जिस तरह जातीय समीकरण बैठाया है, उससे नीतीश की मुश्किलें बढ़ गई हैं. दो उप मुख्यमंत्री के साथ नीतीश सहज नहीं हैं.
  • विधानसभा में जब विपक्ष नीतीश का घेराव करता है तो बीजेपी के डिप्टी सीएम बचाव भी नहीं करते हैं. सुशील कुमार मोदी विधानसभा और मीडिया में नीतीश का पक्ष रखते थे.
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल में सिर्फ एक पद से संतुष्ट नहीं हैं. पार्टी के लिए दो कैबिनेट की मंशा पहले जाहिर कर चुके हैं. जेडी यू के कोटे से आरसीपी सिंह कैबिनेट मंत्री बने.
  • कोरोना के दौर में बिहार सरकार और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे की काफी फजीहत हुई . इससे नीतीश कुमार नाराज हुए.

7 जुलाई के बाद नीतीश के तेवर बदले तो क्या कहा : केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल 7 जुलाई को हुआ था. इसके बाद से ही नीतीश कुमार के तेवर बदल गए.

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7 जुलाई को नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल विस्तार में जेडी यू कोटे से सिर्फ आरसीपी सिंह मंत्री बनाए गए

12 जुलाई को यूपी में जनसंख्या क़ानून पर उन्होंने बयान दिया. नीतीश कुमार ने कहा, कुछ लोग सोचते हैं कि सिर्फ कानून बनाने से कुछ हो जाएगा. सबकी अपनी अपनी सोच है. लेकिन हम तो महिलाओं को शिक्षित करने पर काम कर रहे हैं.

30 जुलाई को जातिगत जनगणना पर भी बयान दिया. इस बारे में वह केंद्र को पत्र भी लिख चुके हैं. इस मसले पर उनका पार्टी भी अड़ी है. जेडीयू सांसद सुनील कुमार पिंटू ने कहा कि अगर केंद्र जाति आधारित जनगणना करवाने को तैयार नहीं होती तो बिहार में जेडीयू अपने स्तर से जातिगत जनगणना करवाएगा.

2 अगस्त को पेगासस पर जांच की मांग कर नीतीश कुमार ने केंद्र को सकते में डाल दिया. वह एनडीए के पहले घटक हैं, जिन्होंने यह मांग की है. नीतीश ने कहा कि मुझे लगता है कि वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर पेगासस जासूसी मामले की जांच करा लेनी चाहिए, जिससे देश को पता चल पाये कि सच क्या है.

नीतीश कुमार के बयान हैं बीजेपी के लिए मैसेज

वह बीजेपी और केंद्र को मैसेज देना चाह रहे हैं कि उनकी पार्टी बीजेपी से अलग है. जरूरत पड़ने पर वह किसी तरह का पत्ता खोल सकते हैं. बीजेपी भले ही उसे बड़े भाई का दर्जा नहीं दे मगर जेडी यू उसकी पिछलग्गू नहीं है.

बिहार विधानसभा में आरजेडी के 75 विधायक हैं. उसके साथ महागठबंधन की साझीदार पार्टी कांग्रेस के 19 और भाकपा (माले) के 12 विधायक भी हैं. लोजपा, बीएसपी और निर्दलीय विधायकों को जेडी यू में शामिल होने के बाद नीतीश कुमार के पास 46 विधायक हैं. बीजेपी के 74 विधायक 2020 के विधानसभा चुनाव में जीतकर आए थे. इस तरह नीतीश के पास नई सरकार का विकल्प भी है.

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पशुपति पारस भले ही लोजपा के नेता हैं मगर उन्हें जेडी यू कोटे का मंत्री माना जाता है

माना जाता है कि विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान बीजेपी की शह पर लोजपा के चिराग पासवान ने जेडी यू को नुकसान पहुंचाया. लोजपा को तोड़कर और चिराग को केंद्र सरकार से अलग-थलग कर नीतीश ने उन्हें सबक सिखा दिया, अब बीजेपी की बारी है. माना जा रहा है कि अगर नीतीश कुमार एनडीए में बने भी रहे तो बीजेपी के कई मुद्दों पर असहज कर सकते हैं.

नीतीश से प्यार में छिपा है 2024 में बीजेपी को हराने का फॉर्मूला : बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी को हराने के लिए विपक्ष ने जो रणनीति बनाई है, उसके दो हिस्से हैं. पहला, बीजेपी का विरोध करने वाले दल एकजुट हो. पेगासस और किसान आंदोलन के मुद्दे पर विपक्ष एकजुट दिख भी रहा है. दूसरा, लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए के घटक दलों को बीजेपी से दूर करने की तैयारी की जा रही है. चूंकि अभी नीतीश ही एनडीए के सबसे बड़े साथी हैं, इसलिए उन पर डोरे डाले जा रहे हैं. अकाली दल और शिवसेना एनडीए से पहले ही विदा हो चुके हैं.

दोबारा आरजेडी से दोस्ती से नीतीश को क्या होगी मुश्किल

  • आरजेडी के साथ गठबंधन में भी नीतीश की भूमिका वैसी ही रहेगी, जैसी अभी है. मगर सरकार में लालू प्रसाद यादव का हस्तक्षेप बढ़ जाएगा.
  • मंत्रिमंडल में महागठबंधन के अन्य घटक दलों जैसे कांग्रेस को भी जगह देनी होगी. इस तरह जेडीयू के मंत्रियों का कोटा कम हो जाएगा.
  • अवसरवादी राजनीति के कारण पहले ही नीतीश कुमार की आलोचना हो चुकी है. अब गठबंधन बदलने पर उनकी पार्टी की राजनीति चौपट हो सकती है.
  • केंद्र में मिला मंत्री पद भी छोड़ना पड़ेगा. साथ ही केंद्रीय मंत्री बने लोजपा के पशुपति पारस भी बगावत कर सकते हैं.
  • केंद्र में बीजेपी की सरकार है. कई मोर्चों पर बीजेपी उनका घेराव कर सकती है. उनके सुशासन बाबू की छवि को धक्का लगेगा.
  • गठबंधन में शामिल मंत्री मदन साहनी नीतीश पर तानाशाही का आरोप लगा चुके हैं. पाला बदलने पर वे भी बगावत कर सकते हैं.

लालू और नीतीश की दोस्ती में कई गांठ हैं

आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद और जेडी यू के मुखिया नीतीश कुमार राजनीतिक तौर पर पुराने दोस्त हैं. छात्र आंदोलन ( 1974-1977) के दौरान दोनों छात्र नेता जयप्रकाश की सरपरस्ती में रहे. 1977 में नीतीश विधानसभा चुनाव हार गए मगर लालू प्रसाद लोकसभा चुनाव जीत गए. जनता पार्टी, लोकदल और जनता दल में दोनों नेता साथ रहे.

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1994 में अलग होने के बाद 2015 में लालू यादव और नीतीश एक साथ आए थे

985 जब नीतीश पहली बार हरनौत से विधायक बने, तब लालू प्रसाद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने. 1989 में दोनों जनता दल के टिकट पर सांसद बने. जब बिहार में मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो नीतीश ने लालू प्रसाद का साथ दिया था. 1991-93 में जब लालू प्रसाद बिहार में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे थे, नीतीश केंद्र में अपना कद बढ़ा रहे थे .

1994 में उनका मतभेद सामने आया और नीतीश कुमार ने जार्ज फर्नांडिस के साथ समता पार्टी बना ली. लालू यादव और नीतीश पहली बार अलग हुए. नीतीश ने एनडीए का दामन थाम लिया. इसके बाद 2015 में दोनों राजनीतिक मंच पर विधानसभा चुनाव में साथ आए. 26 जुलाई 2017 को नीतीश ने महागठबंधन को छोड़ दिया और एक बार फिर लालू प्रसाद से दूर हुए. बदले सियासी माहौल में लालू प्रसाद अपने पुराने साथी की तारीफ कर रहे हैं. नीतीश उनके साथ जाएंगे या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा.

यह भी पढे़ें : जातिगत जनगणना क्यों नहीं चाहती सरकार, जबकि कई दल इसकी मांग कर रहे हैं

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