भोपाल। पॉल्युशन के मामले में दिल्ली एनसीआर दुनिया भर में चर्चाओं में है. देश की राजधानी दिल्ली में एक्यूआई का स्तर 470 तक पहुंच गया है. दिल्ली एनसीआर में पॉल्युशन की बड़ी वजह पंजाब हरियाणा में किसानों की तरफ से पराली जलाने को बताया जा रहा है. इस मामले में मध्यप्रदेश की हालत चिंताजनक है. पराली जलाने के ताजा आंकड़े चौंकाने वाले हैं.
देश के पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में बीते 2 सालों में पराली जलाने के मामले में 50 फीसदी तक कमी आई है. वहीं, मध्यप्रदेश में पराली जलाने के मामले दोगुने बढ़ गए हैं. इस साल 15 सितंबर से 5 नवंबर के बीच पराली जलाने के 5563 मामले सामने आए हैं. कृषि विभाग के अधिकारी भी इन आंकड़ों को चिंताजनक मानते हैं.
एमपी में पराली जलाने के मामले में बढ़ोतरी: दरअसल धान, गेहूं, सरसों की फसल के काटने के बाद जो पौधे के निचला हिस्सा (यानी पराली या नरवाई ) बचा रह जाता है. उसमें कई किसान आग लगा देते हैं. ताकि खेत जल्दी साफ हो जाए और खेत में दूसरी फसल की तैयारी की जा सके. 15 सितंबर से 5 नवंबर के दौरान के आंकड़े देखें तो पंजाब हरियाणा पराली जलाने के मामले में देश में टॉप पर रहा है. हालांकि 2020 के बाद इन दोनों ही राज्यों में पराली जलाने के प्रकरणों में करीबन 50 फीसदी की कमी आई है. लेकिन इसी समय सीमा में मध्यप्रदेश में पिछले दो सालों में पराली जलाने के मामलों में दोगुना की बढोत्तरी हुई है.
पराली से जुड़े पिछले तीन साल के हालात: 2021 में मध्यप्रदेश में पराली जलाने के 2085 मामले सामने आए थे. इस साल सबसे ज्यादा मामले होशंगाबाद, सिवनी, श्योपुर में सामने आए थे. 2022 में मध्यप्रदेश में पराली जलाने के 2246 मामले सामने आए थे. इस साल भी सबसे ज्यादा मामले होशंगाबाद, सिवनी और श्योपुर में ही सामने आए. 2023 पिछले ढाई माह में मध्यप्रदेश में परानी जलाने के 5563 मामले सामने आ चुके हैं.
मध्यप्रदेश के 11 जिलों में आंकड़े 100 के पार: पिछले ढाई माह में मध्यप्रदेश में पराली जलाने के मामले दोगुनी रफ्तार से बढ़ रहे हैं. इस साल महज ढाई माह में पराली जलाने के मध्यप्रदेश में 5563 मामले सामने आए. प्रदेश के 11 जिलों में ऐसे मामले 100 से ज्यादा हैं. इसमें सबसे ज्यादा मामले श्योपुर में 1488 सामने आए हैं. इसके बाद अशोक नगर (229), भिंड (119) दतिया (486), गुना (402), ग्वालियर (175), होशंगाबाद (685), जबलपुर (241), रायसेन (138), सीहोर (100), सिवनी (592) और श्योपुर (1488) में मामले सामने आए हैं.
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इन राज्यों में सुधरे हालातछ मध्यप्रदेश में किसानों की तरफ से पराली जलाने के मामले में बढोत्तरी हुई, लेकिन पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में इन मामलों में तेजी से कमी आई है. पंजाब में इस साल 15 सितंबर से 5 नवंबर के दौरान 17 हजार 403 मामले सामने आए हैं. 2020 में इसी समयावधि में यह आंकड़ा 53 हजार 107 था. इसी तरह हरियाणा में 2020 में 2837 मामले पराली जलाने के सामने आए थे, जो अब घटकर 1514 रह गए हैं. उत्तर प्रदेश में भी 2020 में इस तरह के 1738 मामले आए थे, जो इस साल कम होकर 1183 हो गए हैं.
एमपी में कोर्ट के आदेशों का नहीं हुआ पालन: मध्यप्रदेश में पराली या नरवाई जलाने से रोकने को लेकर पर्यावरणविद डॉ. सुभाष पांडे ने एनजीटी में केस दर्ज किया था. डॉ. पांडे बताते हैं कि इस मामले में एनजीटी कोर्ट ने कहा था कि नरवाई जलाने वाले ऐसे लोगों पर इनवायरमेंट प्रोटक्शन एक्ट के तहत कार्रवाई किए जाने का प्रावधान किया जाए. इसके अलावा जो हारवेस्टर एक्स्ट्रा रीपर नहीं लगाते, उन्हें प्रदेश में बैन करने के लिए कोर्ट ने आदेश दिए थे, लेकिन इस मामले में जमीनी स्तर पर पालन नहीं हो रहा. मजबूरी बस और अज्ञानता के कारण प्रदेश में किसान पराली जला रहे हैं. वे कहते हैं कि इसके चलते भोपाल का पॉल्युशन लेवल खराब हुआ है.
अधिकारी बोले लगातार होती है निगरानी, लगातार दी जा रही समझाइश: उधर, मध्यप्रदेश कृषि अभियांत्रिकी विभाग के संचालक राजीव चौधरी बताते हैं कि प्रदेश में पराली जलाने के एक-एक मामलों की निगरानी की जा रही है. सैटेलाइट के जरिए इसकी सूचना मिलती है, इसकी संबंधित जिले के कलेक्टरों को सूचना भेजी जाती है. किसानों को समझाइश दी जा रही है.
उधर, कृषि विशेषज्ञ मनोहर पाटीदार कहते हैं कि किसान एक दूसरे को देखकर और जल्दबाजी में खेतों में आग लगा देते हैं. लेकिन इससे खेतों की मिट्टी को भारी नुकसान पहुंचता है. खेतों में आग लगाने से इसकी मिट्टी की उर्वरका शक्ति घट जाती है. आग लगाने से खेतों में केंचुए मर जाते हैं. साथ ही राइजोबिया बैक्टीरिया भी मर जाता है, जो पर्यावरण की नाइट्रोजन को जमीन में पहुंचाता है. इससे खेत की पैदावार की क्षमता कम होती है.