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साल 2020 : कृषि कानून, विरोध और चुनौतियां - Swaminathan Committee

2020 में कोरोना के बाद मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ा संकट किसानों का विरोध प्रदर्शन है. किसान कृषि कानूनों को रद्द कराने पर अड़े हुए हैं. सरकार ने भरोसा दिया है कि वह कानून में संशोधन करने के लिए तैयार है, लेकिन इसे वापस लेना समाधान नहीं है. आइए एक नजर डालते हैं कृषि कानून, उसके विरोध और सरकार के सामने चुनौतियों पर.

farm laws opposition and challenges
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Published : Dec 30, 2020, 12:00 AM IST

Updated : Jan 1, 2021, 11:04 AM IST

हैदराबाद : साल का आखिरी महीना मोदी सरकार के लिए और अधिक चिंता बढ़ा गया. पंजाब, हरियाणा और प. उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा शुरु किया गया विरोध प्रदर्शन बढ़ता ही जा रहा है. वे अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं. किसानों का कहना है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को समाप्त करे, तभी वे अपना आंदोलन खत्म करेंगे. सरकार का पक्ष है कि वह बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन कानून को सिरे से खारिज करना अन्य किसानों के साथ अन्याय होगा. क्या है कृषि कानून, क्या हैं किसानों की आपत्तियां और सरकार के सामने क्या हैं चुनौतियां

कृषि कानून के प्रमुख तथ्य

(1) कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून

प्रावधान-किसानों और व्यापारियों को एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी) की रजिस्टर्ड मंडियों से बाहर फसल बेचने की आजादी. बिना किसी रोक-टोक के देश में कहीं भी बेच सकते हैं फसल. अच्छी कीमत मिले, इसके लिए परिवहन और विपणन खर्च कम करने पर जोर. इलेक्ट्रॉनिक व्यापार के लिए सुविधाजनक ढांचा का निर्माण.

किसानों के सवाल
एपीएमसी से बाहर मार्केट तैयार होगा, तो मंडी टैक्स का क्या होगा. आढ़ितए बेरोजगार हो जाएंगे. बाहर बाजार खुल जाने से मंडी के बंद होने की आशंका. एमएसपी खत्म हो जाएगी. मंडियों को मजबूत करने के लिए इसी सरकार द्वारा बनाई गई ई-नाम व्यवस्था का क्या होगा.

(2) कृषक (सशक्‍तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार कानून

कृषि करार (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) को इजाजत. इसके लिए राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का प्रावधान.

इसके तहत क्या होगा-किसान सीधे ही कृषि व्यापार करने वाली कंपनियों, फर्मों, थोक व्यापारियों, निर्यातकों या बड़े खुदरा बिक्रेताओं के साथ करार करेंगे. उसी समय कीमत तय हो जाएगी. करार सिर्फ फसलों का होगा. जमीन को लेकर कोई करार नहीं किया जाएगा. फसल की कीमत बढ़ी, तो किसानों को उसका एक हिस्सा देना होगा, लेकिन कीमत कम हुई, तो उसे करार वाली कीमत ही अदा करनी होगी. किसान किसी भी समय करार से बाहर आ सकते हैं. विवाद होने पर एसडीएम के पास जाकर समाधान पा सकते हैं. पांच हेक्टेयर के कम जमीन वाले किसान इसका लाभ उठा सकेंगे.

करार करने वाली कंपनियों को उच्च गुणवत्ता के बीज, तकनीकी सहायता और फसल बीमा की सुविधा उपलब्ध करवानी होगी.

किसानों के सवाल
कंपनियों के साथ करार करने के दौरान किसान कमजोर स्थिति में होगा. छोटे किसान कंपनियों पर दबाव नहीं बना सकेंगे. कंपनियां उन मनमानी कर सकती हैं. विवाद की स्थिति में कंपनियों को फायदा होगा, क्योंकि उनके पास पूंजी होगी. करार के दौरान खेतों में ढांचा विकसित करने के दौरान जमीन को नुकसान पहुंच सकता है.

(3)आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून

दलहन, तिलहन, प्याज, आलू, खाद्य तेल समेत अन्य फसलों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर किया गया है. इमरजेंसी को छोड़कर इन फसलों का किसी भी मात्रा में भंडारण किया जा सकता है. अब तक यह वैध नहीं था. इस प्रावधान के होने की वजह से कृषि में निजी निवेश बढ़ेगा. कोल्ड स्टोरेज और सप्लाई चेन में निवेश बढ़ेगा. सामान की कीमतें स्थिर रहेंगी.

अभी तक इनमें ये आइटम शामिल थे. - खाद, फूडस्टफ, खाद्य तेल, कॉटन से बना हैंक यार्न, पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पाद, कच्चा जूट, जूट टेक्सटाइल्स, बीज, फेस मास्क, हैंड सैनिटाइजर.

किसानों के सवाल
होर्डिंग की वजह से सामान की कीमतें बढ़ेंगी. कृत्रिम कमी पैदा कर कीमतें बढ़ाई जा सकेंगी. निर्यात के लालच में खाद्य फसलों को बाहर भेजा जाएगा और देश में इन सामानों की कमी हो जाएगी. कंपनियां किसानों को दाम तय करने पर मजबूर करेंगी.

एमएसपी पर विवाद
अभी 23 फसलों पर एमएसपी मिलता है. किसानों का कहना है कि बाकी फसलों की कीमतों पर किसानों का कोई नियंत्रण नहीं रहेगा. कम दाम पर उसे बेचने को मजबूर होंगे.

एमएसपी को अभी तक किसी भी कानून में शामिल नहीं किया गया है. एक आदेश के तहत सरकार इसे जारी रखे हुए है. लिहाजा, किसानों को आशंका है कि इसे कभी भी खत्म किया जा सकता है.

क्या है एमएसपी
जिस दर पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है, उसे एमएसपी कहते हैं. अभी 23 फसलों पर एमएसपी दिया जाता है. बाजार में खाद्य पदार्थों की कीमतों में स्थायित्व बरकरार रहे, इसके लिए एमएसपी व्यवस्था बनाई गई है. सरकार अपने गोदामों में इन फसल उत्पादों को एकत्रित रखती है. सरकार पीडीएस के तहत बीपीएल परिवारों को इन्हीं अनाजों को कम कीमत पर उपबल्ध करवाती है.

एमएसपी का आकलन
एमएसपी को कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की अनुशंसा के आधार पर तय किया जाता है. इसमें उत्पादन की लागत (ए2 + एफएल फॉर्मूला), बाजार में कीमत के रुझान, अंतर फसल समानता समेत कई अन्य फैक्टर को ध्यान में रखा जाता है. अंतिम निर्णय आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति तय करती है.

ए2 क्या है
खेती के लिए जो लागत लगती है, उसे ए2 कहा जाता है. यानी बीज, खाद, पेस्टिसाइड, लेबर, सिंचाई, मशीन और लीज की जमीन है तो उसका रेंट, उसे जोड़ा जाता है.

एफएल क्या है
यदि किसान स्वंय खेत में मेहनत करता है या उसके परिवार के सदस्य अपना श्रम योगदान करता है, तो उसकी कीमत जोड़ी जाती है.

किसानों की प्रमुख मांगें
तीनों कृषि कानून रद्द हो. बिजली कानून रद्द हो. एमएसपी के लिए कानून बनाया जाए. पराली जलाने पर सजा न मिले. जेल से किसानों को रिहा किया जाए.डीजल पर 50 फीसदी सब्सिडी दी जाए. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू की जाए. इसके तहत एमएसपी को सी2 प्लस 50 फीसदी के फार्मूले पर एमएसपी के तहत कीमत मिलनी चाहिए. मंडी हटने से 3900 करोड़ रु का नुकसान सरकार को होगा.

सरकार का पक्ष
हम मामले का समाधान चाहते हैं. कानून रद्द करना कोई समाधान नहीं है. किसान संगठनों की 15 मुख्य मांगों में से 12 मांगें सरकार मानने को तैयार हैं. एमएसपी की व्यवस्था जारी रहेगी. सरकार लिखित में आश्वासन देने के लिए तैयार है. किसी भी हाल में किसानों की जमीन नहीं हड़पी जाएगी. किसान अपनी जमीन पर फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है. छोटे किसानों को बाजार का एक विकल्प उपलब्ध करवाया जा रहा है. उन्हें भी फसलों की कीमत मिले, अधिक कीमत पर अपना उत्पाद बेच सकें, इसका उन्हें अधिकार है. किसानों को चावल और गेहूं के अलावा अन्य कैश क्रॉप पर भी विचार करना चाहिए. कृषि में निवेश बढ़ेगा.

कानून से फायदे
भारत के पास सरप्लस अनाज है. इसलिए जब तक कृषि को मांग-बाजार (डिमांड ड्रिवन) से नहीं जोड़ेंगे, तब तक उन्हें अच्छी कीमत नहीं मिलेगी. लंबे समय मे देखें, तो एमएसपी की व्यवस्था फायदेमंद नहीं होगी.

सरकार पूरी तरह से बाजार पर नहीं छोड़ रही है. जरूरत के हिसाब से अभी भी अनाज खरीदती रहेगी. एमएसपी की वर्तमान व्यवस्था जारी रहेगी.

स्वामीनाथन कमेटी की अनुशंसा
स्वामीनाथन कमेटी का कहना है कि एमसएपी की घोषणा में देरी न हो. किसानों को जागरूक बनाया जाए. उन तक तुरंत सूचना पहुंचे. स्पॉट पेमेंट की व्यवस्था हो. एमएसपी की घोषणा से पहले राज्यों से विचार विमर्श जरूर हो. एमएसपी सी2 प्लस 50 फीसदी की व्यवस्था पर आधारित हो. सरकार ए2 प्लस 50 फीसदी की व्यवस्था अपनाए हुए है.

क्या है समस्या
एमएसपी में मुख्य रूप से गेंहू और चावल पर ही जोर रहता है. कई जिलों में खरीद सेंटर नहीं है. जहां हैं, वहां तक किसानों के लिए जाना संभव नहीं है, क्योंकि परिवहन लागत बढ़ जाती है. बिचौलिए अधिक कीमत वसूलते हैं. देरी से किसानों को पैसे मिलते हैं. एफसीआई की लागत बढ़ती जा रही है. गोदाम में पर्याप्त अनाज होने के बावजूद विश्व व्यापार संगठन की शर्तों के कारण निर्यात नहीं कर सकते हैं.

चुनौतियां
भारत के पास सबसे अधिक जोत की जमीन है. 169.9 मिलि. हेक्टेयर. इनमें से 60 फीसदी जमीन की उत्पादकता खतरे में है, क्योंकि खाद का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है और उस मिट्टी को कैसे उपजाऊ बनाया जाए, इस पर कोई काम नहीं हो रहा है.

दुनिया भर में जितना पानी जमीन से खींचा जाता है, उसमें भारत की भागीदारी13 फीसदी है. इनमें से 87 फीसदी सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है. सिंचाई का ढांचा भारत में सब जगह उपलब्ध नहीं है. देश की 55 फीसदी आबादी कृषि से जुड़ी है. औसतन प्रति व्यक्ति कृषि होल्डिंग 1.16 हेक्टेयर से लेकर 2.87 हे. तक है.

हैदराबाद : साल का आखिरी महीना मोदी सरकार के लिए और अधिक चिंता बढ़ा गया. पंजाब, हरियाणा और प. उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा शुरु किया गया विरोध प्रदर्शन बढ़ता ही जा रहा है. वे अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं. किसानों का कहना है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को समाप्त करे, तभी वे अपना आंदोलन खत्म करेंगे. सरकार का पक्ष है कि वह बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन कानून को सिरे से खारिज करना अन्य किसानों के साथ अन्याय होगा. क्या है कृषि कानून, क्या हैं किसानों की आपत्तियां और सरकार के सामने क्या हैं चुनौतियां

कृषि कानून के प्रमुख तथ्य

(1) कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून

प्रावधान-किसानों और व्यापारियों को एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी) की रजिस्टर्ड मंडियों से बाहर फसल बेचने की आजादी. बिना किसी रोक-टोक के देश में कहीं भी बेच सकते हैं फसल. अच्छी कीमत मिले, इसके लिए परिवहन और विपणन खर्च कम करने पर जोर. इलेक्ट्रॉनिक व्यापार के लिए सुविधाजनक ढांचा का निर्माण.

किसानों के सवाल
एपीएमसी से बाहर मार्केट तैयार होगा, तो मंडी टैक्स का क्या होगा. आढ़ितए बेरोजगार हो जाएंगे. बाहर बाजार खुल जाने से मंडी के बंद होने की आशंका. एमएसपी खत्म हो जाएगी. मंडियों को मजबूत करने के लिए इसी सरकार द्वारा बनाई गई ई-नाम व्यवस्था का क्या होगा.

(2) कृषक (सशक्‍तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार कानून

कृषि करार (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) को इजाजत. इसके लिए राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का प्रावधान.

इसके तहत क्या होगा-किसान सीधे ही कृषि व्यापार करने वाली कंपनियों, फर्मों, थोक व्यापारियों, निर्यातकों या बड़े खुदरा बिक्रेताओं के साथ करार करेंगे. उसी समय कीमत तय हो जाएगी. करार सिर्फ फसलों का होगा. जमीन को लेकर कोई करार नहीं किया जाएगा. फसल की कीमत बढ़ी, तो किसानों को उसका एक हिस्सा देना होगा, लेकिन कीमत कम हुई, तो उसे करार वाली कीमत ही अदा करनी होगी. किसान किसी भी समय करार से बाहर आ सकते हैं. विवाद होने पर एसडीएम के पास जाकर समाधान पा सकते हैं. पांच हेक्टेयर के कम जमीन वाले किसान इसका लाभ उठा सकेंगे.

करार करने वाली कंपनियों को उच्च गुणवत्ता के बीज, तकनीकी सहायता और फसल बीमा की सुविधा उपलब्ध करवानी होगी.

किसानों के सवाल
कंपनियों के साथ करार करने के दौरान किसान कमजोर स्थिति में होगा. छोटे किसान कंपनियों पर दबाव नहीं बना सकेंगे. कंपनियां उन मनमानी कर सकती हैं. विवाद की स्थिति में कंपनियों को फायदा होगा, क्योंकि उनके पास पूंजी होगी. करार के दौरान खेतों में ढांचा विकसित करने के दौरान जमीन को नुकसान पहुंच सकता है.

(3)आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून

दलहन, तिलहन, प्याज, आलू, खाद्य तेल समेत अन्य फसलों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर किया गया है. इमरजेंसी को छोड़कर इन फसलों का किसी भी मात्रा में भंडारण किया जा सकता है. अब तक यह वैध नहीं था. इस प्रावधान के होने की वजह से कृषि में निजी निवेश बढ़ेगा. कोल्ड स्टोरेज और सप्लाई चेन में निवेश बढ़ेगा. सामान की कीमतें स्थिर रहेंगी.

अभी तक इनमें ये आइटम शामिल थे. - खाद, फूडस्टफ, खाद्य तेल, कॉटन से बना हैंक यार्न, पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पाद, कच्चा जूट, जूट टेक्सटाइल्स, बीज, फेस मास्क, हैंड सैनिटाइजर.

किसानों के सवाल
होर्डिंग की वजह से सामान की कीमतें बढ़ेंगी. कृत्रिम कमी पैदा कर कीमतें बढ़ाई जा सकेंगी. निर्यात के लालच में खाद्य फसलों को बाहर भेजा जाएगा और देश में इन सामानों की कमी हो जाएगी. कंपनियां किसानों को दाम तय करने पर मजबूर करेंगी.

एमएसपी पर विवाद
अभी 23 फसलों पर एमएसपी मिलता है. किसानों का कहना है कि बाकी फसलों की कीमतों पर किसानों का कोई नियंत्रण नहीं रहेगा. कम दाम पर उसे बेचने को मजबूर होंगे.

एमएसपी को अभी तक किसी भी कानून में शामिल नहीं किया गया है. एक आदेश के तहत सरकार इसे जारी रखे हुए है. लिहाजा, किसानों को आशंका है कि इसे कभी भी खत्म किया जा सकता है.

क्या है एमएसपी
जिस दर पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है, उसे एमएसपी कहते हैं. अभी 23 फसलों पर एमएसपी दिया जाता है. बाजार में खाद्य पदार्थों की कीमतों में स्थायित्व बरकरार रहे, इसके लिए एमएसपी व्यवस्था बनाई गई है. सरकार अपने गोदामों में इन फसल उत्पादों को एकत्रित रखती है. सरकार पीडीएस के तहत बीपीएल परिवारों को इन्हीं अनाजों को कम कीमत पर उपबल्ध करवाती है.

एमएसपी का आकलन
एमएसपी को कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की अनुशंसा के आधार पर तय किया जाता है. इसमें उत्पादन की लागत (ए2 + एफएल फॉर्मूला), बाजार में कीमत के रुझान, अंतर फसल समानता समेत कई अन्य फैक्टर को ध्यान में रखा जाता है. अंतिम निर्णय आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति तय करती है.

ए2 क्या है
खेती के लिए जो लागत लगती है, उसे ए2 कहा जाता है. यानी बीज, खाद, पेस्टिसाइड, लेबर, सिंचाई, मशीन और लीज की जमीन है तो उसका रेंट, उसे जोड़ा जाता है.

एफएल क्या है
यदि किसान स्वंय खेत में मेहनत करता है या उसके परिवार के सदस्य अपना श्रम योगदान करता है, तो उसकी कीमत जोड़ी जाती है.

किसानों की प्रमुख मांगें
तीनों कृषि कानून रद्द हो. बिजली कानून रद्द हो. एमएसपी के लिए कानून बनाया जाए. पराली जलाने पर सजा न मिले. जेल से किसानों को रिहा किया जाए.डीजल पर 50 फीसदी सब्सिडी दी जाए. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू की जाए. इसके तहत एमएसपी को सी2 प्लस 50 फीसदी के फार्मूले पर एमएसपी के तहत कीमत मिलनी चाहिए. मंडी हटने से 3900 करोड़ रु का नुकसान सरकार को होगा.

सरकार का पक्ष
हम मामले का समाधान चाहते हैं. कानून रद्द करना कोई समाधान नहीं है. किसान संगठनों की 15 मुख्य मांगों में से 12 मांगें सरकार मानने को तैयार हैं. एमएसपी की व्यवस्था जारी रहेगी. सरकार लिखित में आश्वासन देने के लिए तैयार है. किसी भी हाल में किसानों की जमीन नहीं हड़पी जाएगी. किसान अपनी जमीन पर फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है. छोटे किसानों को बाजार का एक विकल्प उपलब्ध करवाया जा रहा है. उन्हें भी फसलों की कीमत मिले, अधिक कीमत पर अपना उत्पाद बेच सकें, इसका उन्हें अधिकार है. किसानों को चावल और गेहूं के अलावा अन्य कैश क्रॉप पर भी विचार करना चाहिए. कृषि में निवेश बढ़ेगा.

कानून से फायदे
भारत के पास सरप्लस अनाज है. इसलिए जब तक कृषि को मांग-बाजार (डिमांड ड्रिवन) से नहीं जोड़ेंगे, तब तक उन्हें अच्छी कीमत नहीं मिलेगी. लंबे समय मे देखें, तो एमएसपी की व्यवस्था फायदेमंद नहीं होगी.

सरकार पूरी तरह से बाजार पर नहीं छोड़ रही है. जरूरत के हिसाब से अभी भी अनाज खरीदती रहेगी. एमएसपी की वर्तमान व्यवस्था जारी रहेगी.

स्वामीनाथन कमेटी की अनुशंसा
स्वामीनाथन कमेटी का कहना है कि एमसएपी की घोषणा में देरी न हो. किसानों को जागरूक बनाया जाए. उन तक तुरंत सूचना पहुंचे. स्पॉट पेमेंट की व्यवस्था हो. एमएसपी की घोषणा से पहले राज्यों से विचार विमर्श जरूर हो. एमएसपी सी2 प्लस 50 फीसदी की व्यवस्था पर आधारित हो. सरकार ए2 प्लस 50 फीसदी की व्यवस्था अपनाए हुए है.

क्या है समस्या
एमएसपी में मुख्य रूप से गेंहू और चावल पर ही जोर रहता है. कई जिलों में खरीद सेंटर नहीं है. जहां हैं, वहां तक किसानों के लिए जाना संभव नहीं है, क्योंकि परिवहन लागत बढ़ जाती है. बिचौलिए अधिक कीमत वसूलते हैं. देरी से किसानों को पैसे मिलते हैं. एफसीआई की लागत बढ़ती जा रही है. गोदाम में पर्याप्त अनाज होने के बावजूद विश्व व्यापार संगठन की शर्तों के कारण निर्यात नहीं कर सकते हैं.

चुनौतियां
भारत के पास सबसे अधिक जोत की जमीन है. 169.9 मिलि. हेक्टेयर. इनमें से 60 फीसदी जमीन की उत्पादकता खतरे में है, क्योंकि खाद का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है और उस मिट्टी को कैसे उपजाऊ बनाया जाए, इस पर कोई काम नहीं हो रहा है.

दुनिया भर में जितना पानी जमीन से खींचा जाता है, उसमें भारत की भागीदारी13 फीसदी है. इनमें से 87 फीसदी सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है. सिंचाई का ढांचा भारत में सब जगह उपलब्ध नहीं है. देश की 55 फीसदी आबादी कृषि से जुड़ी है. औसतन प्रति व्यक्ति कृषि होल्डिंग 1.16 हेक्टेयर से लेकर 2.87 हे. तक है.

Last Updated : Jan 1, 2021, 11:04 AM IST
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