हैदराबाद : तेजी से बदलती दुनिया में इंसान की रोजमर्रा का जिंदगी भी बड़ी तेजी से बदल रही है. इस तेज रफ्तार जिंदगी में जो चीज सबसे अहम बनती जा रही है वो है अच्छी सेहत. भागदौड़ से भरी इस जीवन शैली में कई ऐसी बीमारियां हैं जो आज आम हो गई हैं.
विश्व मधुमेह दिवस (WDD) 1991 में आईडीएफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बनाया गया था, जो मधुमेह द्वारा उत्पन्न स्वास्थ्य संबंधी खतरे के बारे में बढ़ती चिंताओं के जवाब में था. विश्व मधुमेह दिवस 2006 में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 61/225 के पारित होने के साथ एक आधिकारिक संयुक्त राष्ट्र दिवस बन गया. यह हर साल 14 नवंबर को सर फ्रेडरिक बैंटिंग के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जिन्होंने 1922 में चार्ल्स बेस्ट के साथ इंसुलिन की सह-खोज की थी.
इतिहास
माना जाता है कि मधुमेह 1550 ईसा पूर्व के आसपास हुआ था. मनुष्यों में इंसुलिन का सफल निष्कर्षण और इंजेक्शन 1922 में खोजा गया था. इसलिए मधुमेह की हमारी समझ इतिहास के माध्यम से अपने लंबे, कठिन मार्च की तुलना में काफी नई है. टाइप टू और टाइप वन के बीच का अंतर 1850 के आसपास शुरू हुआ. दुनिया भर में अनुमानित $ 425 मिलियन लोग मधुमेह से प्रभावित हैं. वैश्विक स्तर पर मधुमेह की आर्थिक लागत लगभग $ 727 बिलियन (USD) है और अकेले अमेरिका में इसकी लागत लगभग एक तिहाई है, जो 245 बिलियन डॉलर है.
क्यों होता है डायबिटीज ?
डायबिटीज होने के दो कारण होते हैं, पहला शरीर में इन्सुलिन का बनना बंद हो जाए या फिर शरीर में इन्सुलिन का प्रभाव कम हो जाए. दोनों ही कारण से शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है. डायबिटीज के मरीजों को अपने आहार का ध्यान रखना चाहिए. यह रोग उम्र के आखिरी पड़ाव तक बना रहता है, इसलिए इसके खतरों से बचे रहने के लिए सावधानी बरतने की जरूरत है
मधुमेह के प्रकार
- टाइप 1 डायबिटीज: टाइप 1 डायबिटीज किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन बच्चों में ज्यादा मिलता है. इसमें इन्सुलिन हॉर्मोन बनना पूरी तरह बंद हो जाता है. ऐसा किसी एंटीबॉडीज की वजह से बीटा सेल्स के पूरी तरह काम करना बंद करने से होता है. ऐसे में शरीर में ग्लूकोज की बढ़ी हुई मात्रा को कंट्रोल करने के लिए इन्सुलिन के इंजेक्शन की जरूरत होती है. इसके मरीज काफी कम होते हैं.
- टाइप 2 डायबिटीज:
टाइप 2 डायबिटीज आमतौर पर 30 साल की उम्र के बाद धीरे-धीरे बढ़ने बाली बीमारी है. इससे प्रभावित ज्यादातर लोगों का वजन सामान्य से ज्यादा होता है या उन्हें पेट के मोटापे की समस्या होती है. इसमें इन्सुलिन कम मात्रा में बनता है. डायबिटीज के 90 फीसदी मरीज इसी कैटेगिरी में आते हैं. एक्सरसाइज, बैलेंस्ड डाइट और दवाईयों से इसे कंट्रोल में रखा जा सकता है.
- गेस्टेशनल डायबिटीज (जीडीएम)
ये एक प्रकार का मधुमेह है, जिसमें उच्च रक्त में ग्लूकोज की मात्रा और अधिक हो जाती है. गर्भावस्था के दौरान मां और बच्चे दोनों के लिए ये खतरों से जुड़ा होता है. आमतौर पर गर्भावस्था के बाद गायब हो जाता है, लेकिन प्रभावित महिलाएं और उनके बच्चे में और ज्यादा होने का खतरा बढ़ जाता है. बाद में इसके टाइप 2 मधुमेह में विकसित होने का जोखिम रहता है.
डायबिटीज में परहेज
मधुमेह एक 'पारिवारिक बीमारी' बन सकती है, जो संभावित रूप से हर घर को प्रभावित कर सकती है. ग्लूकोज, चीनी, जैम, गुड़, मिठाईयां, आइसक्रीम, केक, पेस्ट्रीज और चॉकलेट जैसी चीजों से डायबिटीज के मरीजों को दूर रहना चाहिए. तला हुआ भोजन या प्रोसेस्ड फूड भी इसमें नुकसान देते हैं. अल्कोहल का सेवन या कोल्ड ड्रिंक भी डायबिटीज के मरीजों के लिए हानिकारक है. मधुमेह रोगियों को धूम्रपान से दूर रहने के साथ ही सूखे मेवे, बादाम, मूंगफली, आलू और शकरकंद जैसी सब्जियां बहुत कम या बिल्कुल नहीं खानी चाहिए. ऐसे व्यक्ति को फलों में केला, शरीफा, चीकू, अन्जीर और खजूर से परहेज करना चाहिए.
विश्व मधुमेह दिवस का समय
14 नवंबर 1891 फ्रेडरिक बैंटिंग का जन्म ओंटारियो में हुआ, बैंटिंग उन दो वैज्ञानिकों में से एक थे जिन्होंने इस शोध का नेतृत्व इंसुलिन की खोज में किया. 1922 इंसुलिन की खोज उनके सहायकचार्ल्स बेस्ट की सहायता से बैंटिंग के रूप में की गई.
डायबिटीज के शुरुआती लक्षण
- बहुत ज्यादा प्यास लगना
- आंखों से धुंधला दिखाई पड़ना
- बार-बार पेशाब लगना
- बहुत ज्यादा भूख और थकावट लगना
विश्व मधुमेह दिवस 2020 का विषय:
नर्स और मधुमेह : 2020 की दूसरी तिमाही के दौरान मैसेजिंग और सामग्री उपलब्ध कराना
भारतीयों की जीवनशैली में बदलाव और डायबिटीज के खतरे बढ़े
शहरी क्षेत्र में हर 10 में से एक व्यक्ति डायबिटीज या मधुमेह से पीड़ित है, जबकि गांवों में इसका आंकड़ा 20 में से एक व्यक्ति है. इससे साफ जाहिर है कि शहर की अनियमित दिनचर्या इसके लिए जिम्मेदार है. डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जो खराब दिनचर्या की वजह से लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रही है. हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि अब बच्चे भी डायबिटीज के शिकार होने लगे हैं, जो काफी खतरनाक है. विशेषज्ञों की मानें तो डायबिटीज से लड़ने का एकमात्र कारगर उपाय संतुलित आहार के साथ ही नियमित तौर पर व्यायाम और योगा को अपने जीवन में शामिल करना है.
जीवनशैली में बदलाव करके डायबिटीज के बोझ को काफी हद तक रोका जा सकता है. जब शरीर प्रभावी ढंग से इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर सकता है यह रक्त में ग्लूकोज की एक बढ़ी हुई सांद्रता की ओर जाता है, जिसे हाइपरग्लाइकेमिया के रूप में जाना जाता है. टाइप I डायबिटीज मेलिटस जिसे पहले इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज मेलिटस के नाम से जाना जाता था, बचपन की शुरुआत या किशोर मधुमेह मेलेटस, इंसुलिन उत्पादन की कमी की विशेषता है.
टाइप II डायबिटीज मेलिटस जिसे पहले नॉन-इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज मेलिटस या एडल्ट ऑनसेट डायबिटीज के रूप में जाना जाता है, शरीर द्वारा इंसुलिन के अप्रभावी उपयोग के कारण होता है. गर्भावती मधुमेह मेलेटस हाइपरग्लाइकेमिया है जो गर्भावस्था के दौरान पहचाना जाता है, यह माता और बच्चे दोनों के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है. भारत में 20 से 70 वर्ष की आयु में 8.7 प्रतिशत मधुमेह पीड़ितों के साथ मधुमेह एक बढ़ती चुनौती है. मोटापा मधुमेह के लिए जिम्मेदार सबसे महत्वपूर्ण जोखिम कारक है. एक स्वस्थ आहार और नियमित शारीरिक गतिविधि के पक्ष में जीवनशैली में बदलाव करके मधुमेह के बोझ को रोका या देरी किया जा सकता है। इंडियन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार, भारत में 2035 तक मधुमेह वाले 109 मिलियन लोगों के घर होने का अनुमान है.
भारत में मधुमेह के आंकड़े
दुनिया में मधुमेह के छह में से एक व्यक्ति भारत से है. यह संख्या मधुमेह के शिकार लोगों के लिए शीर्ष 10 देशों में शामिल है,
राष्ट्रीय मधुमेह और मधुमेह रेटिनोपैथी सर्वेक्षण रिपोर्ट
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय मधुमेह और मधुमेह रेटिनोपैथी सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार भारत में मधुमेह का प्रसार पिछले चार वर्षों में 11.8% पर बना हुआ है.