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जानिए क्या है रोवर 'प्रज्ञान' और कैसे करता है यह काम

चंद्रयान-2 मिशन अपने अंतिम पड़ाव पर है. लैंडर विक्रम के चांद पर उतरने के बाद रोवर प्रज्ञान चांद पर 14 दिनों तक अपना काम करेगा. जानें क्या है रोवर प्रज्ञान और कैसे काम करेगा.

रोवर प्रज्ञान
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Published : Sep 7, 2019, 12:04 AM IST

Updated : Sep 29, 2019, 5:37 PM IST

हैदराबाद: चंद्रयान-2 का रोवर एआई-संचालित 6-पहिया वाहन है, इसका नाम 'प्रज्ञान' है, जो संस्कृत के ज्ञान शब्द से लिया गया है. इसका वजन 27 किग्रा है और इसमें 50 वॉट बिजली पैदा करने की क्षमता है. यह 500 मीटर (आधा किमी) तक यात्रा कर सकता है और काम करने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करता है. यह लैंडर के साथ संवाद कर सकता है. यह लैंडर को जानकारी भेजेगा और लैंडर बेंगलुरु के पास ब्याललु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क को जानकारी प्रसारित करेगा.

लैंडर के चांद पर उतरने के बाद इसके भीतर से रोवर 'प्रज्ञान' बाहर निकलेगा और एक चंद्र दिवस यानी के पृथ्वी के 14 दिनों की अवधि तक अपने वैज्ञानिक कार्यों को अंजाम देगा.

देखें वीडियो. सौ. isro

चंद्रयान 2 को भारत की सबसे उन्नत इंजीनियरिंग कार्यों द्वारा अपने मिशन को पूरा करने में सहायता मिलेगी. इसके एकीकृत मॉड्यूल में, जिसमें कि देश भर में विकसित तकनीक और सॉफ्टवेयर शामिल हैं, इसरो का अब तक का सबसे शक्तिशाली लॉन्च वाहन और पूर्ण रूप से स्वदेशी रोवर शामिल है.

चंद्रयान 2 मिशन की खासियत

  • भारत का मिशन चंद्रयान -2 चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र पर उतरने वाला पहला अंतरिक्ष यान है. यह सॉफ्ट लैंडिंग है.
  • इसमें पूरी तरह से भारतीय तकनीक का प्रयोग किया गया है.
  • दुनिया में भारत चौथा देश है, जिसने चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग की है.
  • चंद्रयान -2, चंद्रयान -1 के मिशन की अगली कड़ी है.
  • चंद्रयान 2 भारत का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन है, जिसे दो महिलाएं - परियोजना निदेशक एम वनिता और मिशन निदेशक रितु कारिधल ने संचालित किया है.
  • चंद्रयान 2 की टीम में 30 फीसदी महिलाएं तैनात हैं.
  • एक रोवर-व्हील में अशोक चक्र होगा और लैंडर पर तिरंगा होगा.
  • रोवर चन्द्रमा की सतह पर घूमेगा और चांद के एक दिन की अवधी यानी पृथ्वी के 14 दिन की अवधी तक परिक्षण जारी रखेगा. ऑर्बिटर मिशन एक वर्ष तक जारी रहेगा.
  • लैंडर और रोवर पे-लोड लैंडिंग साइट के नज़दीक इन - सिटु आंकड़े एकत्र करेगा.
  • ISRO चंद्रयान -1 के लिए शुरू की गई समान प्रक्षेपण रणनीति का अनुसरण कर रहा है. चंद्रयान 1 सिर्फ एक कक्षीय था, जबकि चंद्रयान -2 में मिशन में जटिलता को जोड़ने वाले लैंडर और रोवर घटक हैं.
  • मिशन ने प्रयोगों के लिए 13 भारतीय वैज्ञानिक उपकरणों का वहन किया. मैग्नीशियम, कैल्शियम और लोहे जैसे तत्वों को खोजने के लिए और पानी के संकेतों के लिए रॉक का इमेजिंग किया जाएगा. मिशन चंद्रमा के एक्सोस्फियर का भी अध्ययन करेगा.

पढ़ें-ISRO ने बताया किस तरह होगी चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग

चंद्रयान 2 का लक्ष्य

  • चंद्रयान – 2 मिशन अब तक के मिशनों से भिन्न है. इस मिशन से चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र के अब तक के अछूते भाग की जानकारी मिलेगी.
  • मिशन से व्यापक भौगौलिक, मौसम सम्बन्धी अध्ययन और चंद्रयान एक द्वारा खोजे गए खनिजों का विश्लेषण करके चंद्रमा के अस्तित्त्व में आने और उसके क्रमिक विकास की ज़्यादा जानकारी मिल पाएगी.
  • चंद्रमा पर रहने के दौरान हम चांद की सतह पर अनेक और परिक्षण भी करेंगे, जिनमें चांद पर पानी होने की पुष्टि और वहां अनूठी रासायनिक संरचना वाली नई किस्म की चट्टानों का विश्लेषण शामिल है.

चंद्रयान 2 मिशन में कितना लगेगा पैसा

  • इस मिशन में सैटेलाइट के लिए 603 करोड़ लगेंगे, जबकि जीएसएलवी एमके तीन में 375 करोड़ का खर्च लगा है.

पढ़ें-'विक्रम' और 'प्रज्ञान' को ISRO की शुभकामनाएं...

चन्द्रयान -1 का इतिहास

  • 1999 में भारतीय विज्ञान अकादमी की बैठक में चांद पर एक वैज्ञानिक मिशन भेजने का निर्णय लिया गया.
  • 15 अगस्त 2003: तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा चंद्रयान एक कार्यक्रम की घोषणा.
  • 22 अक्टूबर, 2008: श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-1 का प्रक्षेपण.
  • 8 नवंबर, 2008: चंद्रयान-एक ने चन्द्रमा की ट्रांसफर ट्रेजेक्टरी में प्रवेश किया.
  • 14 नवंबर, 2008: चंद्रयान एक से सतह की जांच करने वाला उपकरण बाहर निकालता है और चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जांच से चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की उपस्थिति की पुष्टि हुई.
  • 28 अगस्त, 2009: चंद्रयान-1 कार्यक्रम की समाप्ति.

हैदराबाद: चंद्रयान-2 का रोवर एआई-संचालित 6-पहिया वाहन है, इसका नाम 'प्रज्ञान' है, जो संस्कृत के ज्ञान शब्द से लिया गया है. इसका वजन 27 किग्रा है और इसमें 50 वॉट बिजली पैदा करने की क्षमता है. यह 500 मीटर (आधा किमी) तक यात्रा कर सकता है और काम करने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करता है. यह लैंडर के साथ संवाद कर सकता है. यह लैंडर को जानकारी भेजेगा और लैंडर बेंगलुरु के पास ब्याललु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क को जानकारी प्रसारित करेगा.

लैंडर के चांद पर उतरने के बाद इसके भीतर से रोवर 'प्रज्ञान' बाहर निकलेगा और एक चंद्र दिवस यानी के पृथ्वी के 14 दिनों की अवधि तक अपने वैज्ञानिक कार्यों को अंजाम देगा.

देखें वीडियो. सौ. isro

चंद्रयान 2 को भारत की सबसे उन्नत इंजीनियरिंग कार्यों द्वारा अपने मिशन को पूरा करने में सहायता मिलेगी. इसके एकीकृत मॉड्यूल में, जिसमें कि देश भर में विकसित तकनीक और सॉफ्टवेयर शामिल हैं, इसरो का अब तक का सबसे शक्तिशाली लॉन्च वाहन और पूर्ण रूप से स्वदेशी रोवर शामिल है.

चंद्रयान 2 मिशन की खासियत

  • भारत का मिशन चंद्रयान -2 चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र पर उतरने वाला पहला अंतरिक्ष यान है. यह सॉफ्ट लैंडिंग है.
  • इसमें पूरी तरह से भारतीय तकनीक का प्रयोग किया गया है.
  • दुनिया में भारत चौथा देश है, जिसने चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग की है.
  • चंद्रयान -2, चंद्रयान -1 के मिशन की अगली कड़ी है.
  • चंद्रयान 2 भारत का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन है, जिसे दो महिलाएं - परियोजना निदेशक एम वनिता और मिशन निदेशक रितु कारिधल ने संचालित किया है.
  • चंद्रयान 2 की टीम में 30 फीसदी महिलाएं तैनात हैं.
  • एक रोवर-व्हील में अशोक चक्र होगा और लैंडर पर तिरंगा होगा.
  • रोवर चन्द्रमा की सतह पर घूमेगा और चांद के एक दिन की अवधी यानी पृथ्वी के 14 दिन की अवधी तक परिक्षण जारी रखेगा. ऑर्बिटर मिशन एक वर्ष तक जारी रहेगा.
  • लैंडर और रोवर पे-लोड लैंडिंग साइट के नज़दीक इन - सिटु आंकड़े एकत्र करेगा.
  • ISRO चंद्रयान -1 के लिए शुरू की गई समान प्रक्षेपण रणनीति का अनुसरण कर रहा है. चंद्रयान 1 सिर्फ एक कक्षीय था, जबकि चंद्रयान -2 में मिशन में जटिलता को जोड़ने वाले लैंडर और रोवर घटक हैं.
  • मिशन ने प्रयोगों के लिए 13 भारतीय वैज्ञानिक उपकरणों का वहन किया. मैग्नीशियम, कैल्शियम और लोहे जैसे तत्वों को खोजने के लिए और पानी के संकेतों के लिए रॉक का इमेजिंग किया जाएगा. मिशन चंद्रमा के एक्सोस्फियर का भी अध्ययन करेगा.

पढ़ें-ISRO ने बताया किस तरह होगी चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग

चंद्रयान 2 का लक्ष्य

  • चंद्रयान – 2 मिशन अब तक के मिशनों से भिन्न है. इस मिशन से चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र के अब तक के अछूते भाग की जानकारी मिलेगी.
  • मिशन से व्यापक भौगौलिक, मौसम सम्बन्धी अध्ययन और चंद्रयान एक द्वारा खोजे गए खनिजों का विश्लेषण करके चंद्रमा के अस्तित्त्व में आने और उसके क्रमिक विकास की ज़्यादा जानकारी मिल पाएगी.
  • चंद्रमा पर रहने के दौरान हम चांद की सतह पर अनेक और परिक्षण भी करेंगे, जिनमें चांद पर पानी होने की पुष्टि और वहां अनूठी रासायनिक संरचना वाली नई किस्म की चट्टानों का विश्लेषण शामिल है.

चंद्रयान 2 मिशन में कितना लगेगा पैसा

  • इस मिशन में सैटेलाइट के लिए 603 करोड़ लगेंगे, जबकि जीएसएलवी एमके तीन में 375 करोड़ का खर्च लगा है.

पढ़ें-'विक्रम' और 'प्रज्ञान' को ISRO की शुभकामनाएं...

चन्द्रयान -1 का इतिहास

  • 1999 में भारतीय विज्ञान अकादमी की बैठक में चांद पर एक वैज्ञानिक मिशन भेजने का निर्णय लिया गया.
  • 15 अगस्त 2003: तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा चंद्रयान एक कार्यक्रम की घोषणा.
  • 22 अक्टूबर, 2008: श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-1 का प्रक्षेपण.
  • 8 नवंबर, 2008: चंद्रयान-एक ने चन्द्रमा की ट्रांसफर ट्रेजेक्टरी में प्रवेश किया.
  • 14 नवंबर, 2008: चंद्रयान एक से सतह की जांच करने वाला उपकरण बाहर निकालता है और चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जांच से चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की उपस्थिति की पुष्टि हुई.
  • 28 अगस्त, 2009: चंद्रयान-1 कार्यक्रम की समाप्ति.
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Last Updated : Sep 29, 2019, 5:37 PM IST
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