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सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक की लगातार तीसरी बार सत्ता में होगी वापसी?

लगभग पांच दशकों तक बड़े द्रविड़- डीएमके और अन्नाद्रमुक एक-दूसरे को पछाड़ने के बाद सत्ता में बने रहे. चुनावों में मुख्य लड़ाई हमेशा इन्ही दो द्रविड़ दलों के बीच होती रही. सत्तारूढ़ पार्टी के लगातार दूसरी बार सत्ता में आने के बाद राजनीतिक पंडित अब इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या अन्नाद्रमुक लगातार तीसरी बार सत्ता में आएगी और इतिहास बनाएगी.

डिजाइन फोटो
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Published : Feb 7, 2021, 11:13 AM IST

Updated : Feb 7, 2021, 11:37 AM IST

चेन्नई : 2016 में जब सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक की सत्ता में वापसी हुई, तो द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच केवल 1.1 प्रतिशत वोट का फासला थी. अन्नाद्रमुक एमजीआर युग के बाद पहली बार सत्ता में वापसी करने में सफल हुई, लेकिन सत्ता विरोधी लहर होने के कारण द्रमुक इस बार आगामी विधान सभा चुनावों में सरकार को सत्ता से बाहर कर सकती है.

2016 में तत्कालीन डीएमके प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत एम करुणानिधि ने चुनाव के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि था कि डीएमके 232 सीटों वाली विधानसभा में 1,71,75,374 वोट पाने में सक्षम रहा, जबकि अन्नाद्रमुक को 1,76,17,060 मत मिले. साथ ही दो विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों - तंजावुर और अरावकुरिची में चुनाव अधिसूचनाएं रद्द कर दी गईं.

ऐसे में सवाल उठता है कि सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक क्या लगातार तीसरी बाद सत्ता में आकर इतिहास रच पाएगी.

लगभग पांच दशकों तक बड़े द्रविड़- डीएमके और अन्नाद्रमुक एक-दूसरे को पछाड़ने के बाद सत्ता में बने रहे. चुनावों में मुख्य लड़ाई हमेशा इन्ही दो द्रविड़ दलों के बीच होती रही.

सत्तारूढ़ पार्टी के लगातार दूसरी बार सत्ता में आने के बाद राजनीतिक पंडित अब इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या अन्नाद्रमुक लगातार तीसरी बार सत्ता में आएगी और इतिहास बनाएगी. यदि पिछले चुनाव परिणामों पर गहराई से ध्यान दिया जाए तो उत्तर मिल सकता है.

हालांकि, अन्नाद्रमुक को 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ा झटका लगा, डीएमके और उसके सहयोगियों ने 39 लोकसभा सीटों में से 38 पर कब्जा कर लिया और अन्नाद्रमुक ने एक भी सीट नहीं जीती.

परिणाम ने राज्य में एक झटका दिया क्योंकि राज्य में जब भी लोकसभा चुनाव होते, तो अधिकांश सीटों पर सत्तारूढ़ पार्टी ही जीत हासिल करती थी.

सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक ने इस तथ्य को बहुत देर से महसूस किया था और जल्द ही अपनी शक्ति को खोना शुरू कर दिया.

इसके बाद अन्नाद्रमुक के नेताओं ने अक्टूबर 2019 में विकीकांवी और नंगुनेरी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उपचुनाव जीतने का संकल्प लिया और पार्टी के उम्मीदवारों ने उपचुनाव जीते.

करुणानिधि
करुणानिधि

जहां तक डीएमके का संबंध है, 1969 में पार्टी के संस्थापक नेता अन्नादुराई की मृत्यु के बाद, डीएमके नेता एम करुणानिधि 1976 तक सात साल तक सीएम रहे.

1977 में डीएमके से बाहर आने के बाद, मैटिनी की मूर्ति और उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी एमजी रामचंद्रन ने AIADMK का गठन किया और एमजीआर सीएम बने. वह 1987 तक दस वर्षों तक इस पद पर बने रहे. AIADMK राज्य में दो बार शासन करने के लिए चुना गया.

एमजेआर
एमजेआर

1984 और 2011 के बीच द्रविड़ प्रमुखों में से प्रत्येक ने कुछ दलों के साथ गठबंधन किया और एक के बाद एक सत्ता में आए, लेकिन 2011 के बाद राजनीतिक परिदृश्य बदल गए हैं.

एआईएडीएमके ने 2011 और 2016 के चुनाव जीते और दो बार सरकार बनाई. पार्टी ने अपने संस्थापक नेता एमजीआर द्वारा निर्धारित रिकॉर्ड की बराबरी की.

राजनीतिक पंडितों ने इसे एक महत्वपूर्ण मोड़ माना है. DMK 2011 के चुनाव के बाद विपक्षी पार्टी का दर्जा पाने में विफल रही थी. हालांकि, उसने 2016 में गठबंधन किया और काफी कम अंतर से जीत हासिल करने से चूक गया.

पढ़ें - बंगाल : उम्मीदों के रथ पर नेता हुए सवार, रथयात्रा लगा पाएगी भाजपा की नैया पार !

2016 में AIADMK सुप्रीमो जे जयललिता की मौत के बाद पार्टी में दरारें पैदा हुईं.

जयललिता
जयललिता

जब जया के सहयोगी वीके शशिकला को सर्वसम्मति से पार्टी का महासचिव चुना गया, तो उन्हें आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी ठहराया गया और जेल में बंद कर दिया गया.

इसके बाद टीटीवी धिनकरण, ओ पन्नीरसेल्वम और एदापदी के पलानीसामी अलग-अलग नावों में सवार हुए.

पलानीसामी
पलानीसामी

पलानीसामी और पन्नीरसेल्वम के हाथ मिलाने के बाद पार्टी 2021 तक के लिए सत्ता पर काबिज हो गई और अपना कार्याल पूरा करने जा रही है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए एक राजनीतिक कमेंटेटर पी रामाज्याम ने कहा किसत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक लगातार तीसरी बार सत्ता में नहीं लौटेगी. वर्तमान राजनीतिक स्थिति लगभग तीन दशक पहले मौजूद स्थिति से बिलकुल अलग है.

डीएमके ने 1969 से 1977 तक कई कल्याणकारी और विकासात्मक योजनाओं की शुरुआत की थी.

नकारात्मक अभियान के परिणामस्वरूप DMK ने सत्ता खो दी. उसके बाद AIADMK 1977 से 1987 तक सत्ता में रही. अब एआईएडीएमके बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुकी है.

चेन्नई : 2016 में जब सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक की सत्ता में वापसी हुई, तो द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच केवल 1.1 प्रतिशत वोट का फासला थी. अन्नाद्रमुक एमजीआर युग के बाद पहली बार सत्ता में वापसी करने में सफल हुई, लेकिन सत्ता विरोधी लहर होने के कारण द्रमुक इस बार आगामी विधान सभा चुनावों में सरकार को सत्ता से बाहर कर सकती है.

2016 में तत्कालीन डीएमके प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत एम करुणानिधि ने चुनाव के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि था कि डीएमके 232 सीटों वाली विधानसभा में 1,71,75,374 वोट पाने में सक्षम रहा, जबकि अन्नाद्रमुक को 1,76,17,060 मत मिले. साथ ही दो विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों - तंजावुर और अरावकुरिची में चुनाव अधिसूचनाएं रद्द कर दी गईं.

ऐसे में सवाल उठता है कि सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक क्या लगातार तीसरी बाद सत्ता में आकर इतिहास रच पाएगी.

लगभग पांच दशकों तक बड़े द्रविड़- डीएमके और अन्नाद्रमुक एक-दूसरे को पछाड़ने के बाद सत्ता में बने रहे. चुनावों में मुख्य लड़ाई हमेशा इन्ही दो द्रविड़ दलों के बीच होती रही.

सत्तारूढ़ पार्टी के लगातार दूसरी बार सत्ता में आने के बाद राजनीतिक पंडित अब इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या अन्नाद्रमुक लगातार तीसरी बार सत्ता में आएगी और इतिहास बनाएगी. यदि पिछले चुनाव परिणामों पर गहराई से ध्यान दिया जाए तो उत्तर मिल सकता है.

हालांकि, अन्नाद्रमुक को 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ा झटका लगा, डीएमके और उसके सहयोगियों ने 39 लोकसभा सीटों में से 38 पर कब्जा कर लिया और अन्नाद्रमुक ने एक भी सीट नहीं जीती.

परिणाम ने राज्य में एक झटका दिया क्योंकि राज्य में जब भी लोकसभा चुनाव होते, तो अधिकांश सीटों पर सत्तारूढ़ पार्टी ही जीत हासिल करती थी.

सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक ने इस तथ्य को बहुत देर से महसूस किया था और जल्द ही अपनी शक्ति को खोना शुरू कर दिया.

इसके बाद अन्नाद्रमुक के नेताओं ने अक्टूबर 2019 में विकीकांवी और नंगुनेरी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उपचुनाव जीतने का संकल्प लिया और पार्टी के उम्मीदवारों ने उपचुनाव जीते.

करुणानिधि
करुणानिधि

जहां तक डीएमके का संबंध है, 1969 में पार्टी के संस्थापक नेता अन्नादुराई की मृत्यु के बाद, डीएमके नेता एम करुणानिधि 1976 तक सात साल तक सीएम रहे.

1977 में डीएमके से बाहर आने के बाद, मैटिनी की मूर्ति और उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी एमजी रामचंद्रन ने AIADMK का गठन किया और एमजीआर सीएम बने. वह 1987 तक दस वर्षों तक इस पद पर बने रहे. AIADMK राज्य में दो बार शासन करने के लिए चुना गया.

एमजेआर
एमजेआर

1984 और 2011 के बीच द्रविड़ प्रमुखों में से प्रत्येक ने कुछ दलों के साथ गठबंधन किया और एक के बाद एक सत्ता में आए, लेकिन 2011 के बाद राजनीतिक परिदृश्य बदल गए हैं.

एआईएडीएमके ने 2011 और 2016 के चुनाव जीते और दो बार सरकार बनाई. पार्टी ने अपने संस्थापक नेता एमजीआर द्वारा निर्धारित रिकॉर्ड की बराबरी की.

राजनीतिक पंडितों ने इसे एक महत्वपूर्ण मोड़ माना है. DMK 2011 के चुनाव के बाद विपक्षी पार्टी का दर्जा पाने में विफल रही थी. हालांकि, उसने 2016 में गठबंधन किया और काफी कम अंतर से जीत हासिल करने से चूक गया.

पढ़ें - बंगाल : उम्मीदों के रथ पर नेता हुए सवार, रथयात्रा लगा पाएगी भाजपा की नैया पार !

2016 में AIADMK सुप्रीमो जे जयललिता की मौत के बाद पार्टी में दरारें पैदा हुईं.

जयललिता
जयललिता

जब जया के सहयोगी वीके शशिकला को सर्वसम्मति से पार्टी का महासचिव चुना गया, तो उन्हें आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी ठहराया गया और जेल में बंद कर दिया गया.

इसके बाद टीटीवी धिनकरण, ओ पन्नीरसेल्वम और एदापदी के पलानीसामी अलग-अलग नावों में सवार हुए.

पलानीसामी
पलानीसामी

पलानीसामी और पन्नीरसेल्वम के हाथ मिलाने के बाद पार्टी 2021 तक के लिए सत्ता पर काबिज हो गई और अपना कार्याल पूरा करने जा रही है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए एक राजनीतिक कमेंटेटर पी रामाज्याम ने कहा किसत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक लगातार तीसरी बार सत्ता में नहीं लौटेगी. वर्तमान राजनीतिक स्थिति लगभग तीन दशक पहले मौजूद स्थिति से बिलकुल अलग है.

डीएमके ने 1969 से 1977 तक कई कल्याणकारी और विकासात्मक योजनाओं की शुरुआत की थी.

नकारात्मक अभियान के परिणामस्वरूप DMK ने सत्ता खो दी. उसके बाद AIADMK 1977 से 1987 तक सत्ता में रही. अब एआईएडीएमके बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुकी है.

Last Updated : Feb 7, 2021, 11:37 AM IST
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