नई दिल्ली: विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह से चीन, थिम्पू से अपनी नजदीकी बढ़ा रहा है और भारत तथा हिमालयी राज्य के बीच तनाव बढ़ रहा है, इससे यह साफ है कि अब चीन की विस्तारवादी नीति का साया पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे पूर्वी भूटान में सकतेंग वन्यजीव पशुविहार पर पड़ने लगा है.
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि चीन ने छोटे दक्षिण एशियाई राष्ट्र के साथ अपने सीमा विवादों को सुलझाने के लिए कई समझौतों की पेशकश की है.
वांग के हवाले से कहा गया कि,'चीन की स्थिति सुसंगत और स्पष्ट रही है. चीन और भूटान के बीच सीमा का सीमांकन किया जाना बाकी है और सीमा के मध्य, पूर्वी और पश्चिमी हिस्से विवादित हैं.'
उन्होंने कहा, 'चीन ने इन विवादों के समाधान का प्रस्ताव दिया है. पहले भी चीन बहुपक्षीय मंचों पर इस तरह के विवादों को मुद्दा बनाने का विरोध करता रहा है और चीन का इस मुद्दे को लेकर संबंधित पक्षों के साथ लगातार संवाद करता रहा है.'
वांग ने यह प्रतिक्रिया उन सवालों के जवाब में दी जब उनसे सकतेंग वन्यजीव पशुविहार को विकसित करने चीन द्वारा जताई गयी आपत्ति पर सवाल पूछे गए, जिसमें वैश्विक पर्यावरण सुविधा (जीईएफ) से सहायता प्राप्त हुई है.
बता दें कि वैश्विक पर्यावरण सुविधा (जीईएफ) एक ऐसा फंड है, जो अंतरराष्ट्रीय संस्थानों, नागरिक समाजिक संगठनों और निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में 183 देशों को एकजुट करते हुए वैश्विक मुद्दों का समर्थन करता है. साथ ही राष्ट्रीय सतत विकास की पहल को भी आगे बढ़ाने का काम करता है.
जिस बात ने पर्यवेक्षकों को अचंभित कर दिया है, वह यह है कि चीन एक ऐसे क्षेत्र के लिए दावा कर रहा है, जो उसकी अंतरराष्ट्रीय सीमा के लिए भी प्रासंगिक तक नहीं है और भारत-भूटान सीमा पर स्थित है.
यह घटनाक्रम ठीक उस समय पर घट रहा है, जब भारत और चीन पिछले महीने लद्दाख क्षेत्र में सीमा पर हुए खूनी टकराव, जिसके कारण दोनों पक्षों के सैनिकों को घातक हानि पहुंची थी, के बाद अब तनाव को कम करने पर चर्चा कर रहे हैं. पिछले 45 सालों में पहली बार इन दो एशियाई दिग्गजों के बीच 3,488 किलोमीटर लंबा वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इस तरह की आक्रामकता देखी गई है.
पूर्वी भूटान में सकतेंग वन्यजीव पशुविहार भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है, चीन इसे उस क्षेत्र का हिस्सा होने का दावा करता है, जिसे उसने 'दक्षिण तिब्बत' का नाम दिया है.
भूटान और चीन के बीच कोई आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं है. 1951 में बीजिंग द्वारा तिब्बत पर कब्जा होने के बाद चीन और भूटान पड़ोसी बन गए, दोनों देशों ने सीमा विवादों को हल करने के लिए 1984 से अबतक 24 दौर की बातचीत की है.
हालांकि, भारत और भूटान के बीच ठोस राजनयिक संबंध हैं, जिसमें नई दिल्ली थिंपू के विकास के क्षेत्र में प्रमुख सहयोगी है. भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार भी है.
भूटान के क्षेत्र में चीन द्वारा नया दावा भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच 2017 में भारत-भूटान-चीन अंतरराष्ट्रीय त्रिसंगम पर 73 दिन तक चले तनाव के बाद किया गया है. चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) द्वारा वहां सड़क बनाने की कोशिश करने के बाद ऐसा हुआ था. डोकलाम की घटना के बाद, भूटान ने चीन के साथ सीमा मुद्दों पर कोई बातचीत नहीं की है और भारत के समर्थन में खड़ा रहा है.
विशेषज्ञों के अनुसार, चीन द्वारा भूटान को दी जा रही समझौतों की सौगात में बीजिंग और थिम्पू के बीच राजनयिक संबंधों को स्थापित करने और फिर डोकलाम क्षेत्र पर दावा करने के की बीजिंग की मंशा साफ़ तौर पर ज़ाहिर है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए डॉ एस.डी. मुनि, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्राध्यापक, ने कहा कि इस सौदे के तहत, इस बात की संभावना है कि चीन केंद्रीय और पूर्वी भूटान में अपने दावों को खारिज कर देगा और फिर डोकलाम पर अपना अधिकार स्थापित करने की कोशिश करेगा.
मुनि ने कहा, 'चीन भूटान के पश्चिम में डोकलाम पर दावा करना चाहता है क्योंकि यह सामरिक चुम्बी घाटी से सटा हुआ है.'
नई दिल्ली के लिए यह चिंता का विषय है क्योंकि चुम्बी घाटी भारत के सिक्किम और चीन में उच्च हिमालय के दक्षिण में भूटान के बीच में स्थित है, जो भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर की ओर मुड़ती है - जिसे 'चिकन की गर्दन' कहा जाता है, जो पूर्वोत्तर भारत को बाकी देश से जोड़ती है. - सिर्फ पांच किमी दूरी से एक खंजर की तरह.
मुनि ने कहा, 'उनका (चीन का) विचार भूटान पर राजनयिक संबंध स्थापित करने और थिंपू के साथ नई दिल्ली के संबंधों को बिगाड़ने का दबाव बनाने का है. भूटान एकमात्र दक्षिण एशियाई देश है जिसका चीन के साथ राजनयिक संबंध नहीं है.'
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इसके साथ ही, मुनि कहते हैं कि भूटानी चीन के साथ अपने सीमा विवादों को हल करने की कोशिश करेंगे, लेकिन भारत-चीन के संघर्ष के बीच आना पसंद नहीं करेंगे.
मुनि के विचार को पुनःस्थापित करते हुए, डिप्लोमैट रिस्क इंटेलिजेंस के अनुसंधान निदेशक, अंकित पांडा कहते हैं कि 10 फीसदी से अधिक संप्रभु भूटानी क्षेत्र पर चीन द्वारा दावा करने का उद्देश्य मुख्य रूप से थिम्फू पर दबाव बनाकर अन्य क्षेत्रों में खासतौर पर डोकलाम में अधिक रियायतें हासिल कर बीजिंग की शर्तों के अनुकूल जोर-जबरदस्ती करना हो सकता है.
भूटान के अंश पर चीन का दावा इस क्षेत्र में उसकी विस्तारवादी नीतियों का नवीनतम दांव है, जिसमें भारत के साथ सीमा, दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में जापान में सेनकाकू द्वीप शामिल हैं.
हालांकि, विश्व शक्तियां, विशेष रूप से अमरीका, बीजिंग के इरादों पर अपनी नाराज़गी दिखाता रहा है, मुनि के अनुसार, भारत चाहेगा कि भूटान बिना किसी और देश के हस्तक्षेप के चीन के साथ अपने नवीनतम मुद्दे को खुद हल करे.
अरुणिम भुयान द्वारा लिखित