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रेजांग ला की ठंडी चोटियों में गोलियों की आवाज से दम तोड़ती सच्चाई

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Published : Sep 8, 2020, 10:51 PM IST

भारत-चीन के बीच सोमवार को पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट पर रेजांग ला के पास हुई झड़प को लेकर दोनों सेनाएं एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं. हालांकि इस घटना ने दोनों पक्षों के बीच पारस्परिक रूप से सहमती से बनी शर्तों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया और इसमें कहीं न कही सच्चाई ने अपना रास्ता खो दिया है. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की यह रिपोर्ट...

भारत-चीन सेना
भारत-चीन सेना

नई दिल्ली : कहा जाता है कि युद्धों और संघर्षों के कोहरे में सबसे पहला नुकसान सच्चाई का होता है. ऐसा ही कुछ भारत-चीन के बीच सोमवार को पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट पर रेजांग ला के पास मुखपरी पर्वत के आसपास गोलाबारी के दौरान देखने को मिला. हालांकि अब तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि ट्रिगर किसने दबाया. हालांकि भारतीय सेना और पीएलए दोनों ही इस बात पर सहमत हैं कि गोलीबारी हुई. उनका कहना है कि उन्होंने पहले फायर नहीं किया और इसके लिए दोनों एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं.

पीएलए के सैनिकों ने बंदूकों और 'गुंडाओ', जिसे 'यानायडो' भी कहा जाता है (लकड़ी की लाठी से बना हथियार), जो शाओलिन कुंगफू खिलाड़ियों द्वारा इस्तेमाल किया गया. इसका रेजांग ला के पास मुठभेड़ में इस्तेमाल किया गया, जिससे सोशल मीडिया पर आने के बाद चारों तरफ हाहाकार मच गया और आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हुआ.

1975 के बाद से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हुई इस गोलीबारी ने दोनों पक्षों के बीच पारस्परिक रूप से सहमती से बनी शर्तों को नष्ट कर दिया.

इसमें न केवल आग्नेय शस्त्र के इस्तेमाल का सहारा न लेने का फैसला शामिल था, बल्कि इलाके में गश्त के दौरान हथियार चलाना भी नहीं था.

यह पहला मौका था कि चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने पीएलए के पश्चिमी थियेटर कमांड के प्रवक्ता के बयान को ट्वीट करते हुए कहा कि भारतीय सेना ने सोमवार को पैंगोंग त्सो झील के दक्षिण तट के पास शेनपाओ पर्वत में अवैध रूप से LAC को पार किया और जब उन्हे पीएलए सैनिकों ने रोका तो उन्होंने फायरिंग कर दी, जिसके बाद स्थिति को नियन्त्रित करने के लिए पीएलए को कार्रवाई करनी पड़ी.

इस पर भारतीय रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार को एक रिलीज के साथ जवाब देते हुए कहा कि पश्चिमी थिएटर कमान का बयान उनके राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय समर्थकों को गुमराह करने का एक प्रयास है.

सात सितंबर 2020 को तात्कालिक मामले में यह पीएलए सैनिक ही थे, जो LAC के साथ हमारे एक फॉरवर्ड पोजिशन पर आए और जब हमारे सैनिकों ने इसका विरोध किया, तो पीएलए के सैनिकों ने हवा में फायरिंग की और हमारे सैनिकों को डराने की कोशिश की.

पढ़ें - गलवान की घटना दोहराने बरछे-भाले लेकर आए थे चीनी सैनिक

ईटीवी भारत से बात करते हुए सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि लद्दाख में भारत और चीनी सैनिकों के बीच सात सितंबर की झड़प के बाद लगभग 40 से 50 चीनी सैनिक भाले, बंदूक और तेज धार वाले हथियारों से लैस होकर पूर्वी लद्दाख में रेजांग ला के उत्तर में ऊंचाई वाले स्थानों पर भारतीय सेना की पोजिशन से कुछ मीटर की दूरी पर आ गए.

इस दौरान चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के जवानों की ओर से भारतीय सेना को उसकी स्थिति (पोजिशन) से हटाने के प्रयास किए, लेकिन जब हमने पीएलए को चेतावनी दी, तो उन्होंने फायरिंग कर दी. फिलहाल वह भारतीय सैनिकों की पॉजिशन से 200- 300 मीटर पीछे हट गए हैं.

बता दें कि यह एक-दूसरे पर हावी होने और उच्च आधार पर कब्जा करने का संघर्ष है, जिसमें कहीं न कहीं, सच्चाई अपना रास्ता खो देती है.

नई दिल्ली : कहा जाता है कि युद्धों और संघर्षों के कोहरे में सबसे पहला नुकसान सच्चाई का होता है. ऐसा ही कुछ भारत-चीन के बीच सोमवार को पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट पर रेजांग ला के पास मुखपरी पर्वत के आसपास गोलाबारी के दौरान देखने को मिला. हालांकि अब तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि ट्रिगर किसने दबाया. हालांकि भारतीय सेना और पीएलए दोनों ही इस बात पर सहमत हैं कि गोलीबारी हुई. उनका कहना है कि उन्होंने पहले फायर नहीं किया और इसके लिए दोनों एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं.

पीएलए के सैनिकों ने बंदूकों और 'गुंडाओ', जिसे 'यानायडो' भी कहा जाता है (लकड़ी की लाठी से बना हथियार), जो शाओलिन कुंगफू खिलाड़ियों द्वारा इस्तेमाल किया गया. इसका रेजांग ला के पास मुठभेड़ में इस्तेमाल किया गया, जिससे सोशल मीडिया पर आने के बाद चारों तरफ हाहाकार मच गया और आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हुआ.

1975 के बाद से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हुई इस गोलीबारी ने दोनों पक्षों के बीच पारस्परिक रूप से सहमती से बनी शर्तों को नष्ट कर दिया.

इसमें न केवल आग्नेय शस्त्र के इस्तेमाल का सहारा न लेने का फैसला शामिल था, बल्कि इलाके में गश्त के दौरान हथियार चलाना भी नहीं था.

यह पहला मौका था कि चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने पीएलए के पश्चिमी थियेटर कमांड के प्रवक्ता के बयान को ट्वीट करते हुए कहा कि भारतीय सेना ने सोमवार को पैंगोंग त्सो झील के दक्षिण तट के पास शेनपाओ पर्वत में अवैध रूप से LAC को पार किया और जब उन्हे पीएलए सैनिकों ने रोका तो उन्होंने फायरिंग कर दी, जिसके बाद स्थिति को नियन्त्रित करने के लिए पीएलए को कार्रवाई करनी पड़ी.

इस पर भारतीय रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार को एक रिलीज के साथ जवाब देते हुए कहा कि पश्चिमी थिएटर कमान का बयान उनके राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय समर्थकों को गुमराह करने का एक प्रयास है.

सात सितंबर 2020 को तात्कालिक मामले में यह पीएलए सैनिक ही थे, जो LAC के साथ हमारे एक फॉरवर्ड पोजिशन पर आए और जब हमारे सैनिकों ने इसका विरोध किया, तो पीएलए के सैनिकों ने हवा में फायरिंग की और हमारे सैनिकों को डराने की कोशिश की.

पढ़ें - गलवान की घटना दोहराने बरछे-भाले लेकर आए थे चीनी सैनिक

ईटीवी भारत से बात करते हुए सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि लद्दाख में भारत और चीनी सैनिकों के बीच सात सितंबर की झड़प के बाद लगभग 40 से 50 चीनी सैनिक भाले, बंदूक और तेज धार वाले हथियारों से लैस होकर पूर्वी लद्दाख में रेजांग ला के उत्तर में ऊंचाई वाले स्थानों पर भारतीय सेना की पोजिशन से कुछ मीटर की दूरी पर आ गए.

इस दौरान चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के जवानों की ओर से भारतीय सेना को उसकी स्थिति (पोजिशन) से हटाने के प्रयास किए, लेकिन जब हमने पीएलए को चेतावनी दी, तो उन्होंने फायरिंग कर दी. फिलहाल वह भारतीय सैनिकों की पॉजिशन से 200- 300 मीटर पीछे हट गए हैं.

बता दें कि यह एक-दूसरे पर हावी होने और उच्च आधार पर कब्जा करने का संघर्ष है, जिसमें कहीं न कहीं, सच्चाई अपना रास्ता खो देती है.

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