हैदराबाद : वित्त मंत्री सीतारमण ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के लिए 40 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी. आइए जानें क्या है मनरेगा और इससे जुड़ी समस्याएं...
क्या है मनरेगा योजना
यह केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई अहम योजना है. इसका मुख्य उद्देश्य गांव का विकास और ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार प्रदान करना है. मनरेगा योजना के तहत गांव को शहर के अनुसार सुख-सुविधाएं प्रदान करना है, जिससे कि ग्रामीणों का पलायन रुक सके.
मनरेगा की शुरुआत
इस योजना की शुरुआत दो अक्टूबर 2005 को की गई. इसे राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी योजना अधिनियम के अंतर्गत रखा गया था. इस योजना को मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की शक्ति बढ़ाने के लिए शुरू किया गया.
ताजा हाल
वित्त मंत्री ने वर्ष 2020-21 के मद्देनजर मनरेगा के लिए 61,500 करोड़ रुपये के बजट का एलान किया. 2019-20 के लिए कुल अनुमानित व्यय में 13 फीसदी से अधिक की गिरावट आई, जोकि 71,001.81 करोड़ रुपये थी. निधियों का समावेश 1,01,500 करोड़ रुपये का था.
2011 की जनगणना के अनुसार, आंतरिक प्रवासियों की कुल संख्या 450 मिलियन थी, जो 2001 की तुलना में 30 फीसदी अधिक थी. वर्किंग ग्रुप ऑन माइग्रेशन 2017 (Working Group on Migration, 2017) के अनुसार, कुल कर्मचारियों का लगभग 28.3 प्रतिशत प्रवासियों द्वारा गठित किया जाता था, जिनमें से कई कमजोर ग्रामीण इलाकों से थे.
अप्रैल के शुरूआती 50 दिनों में पूरे भारत से मनरेगा के लिए 35 लाख नए श्रमिकों ने आवेदन दिया, जबकि वित्तीय वर्ष 2019-20 से अगर इसकी तुलना की जाए तो कुल 365 दिनों में भी इसके लिए केवल 15 लाख आवेदन ही प्राप्त हुए थे.
राजस्थान में इस समय मनरेगा श्रमिकों की संख्या सबसे अधिक है. 26 मई तक यहां 40.3 लाख मजदूर हैं. मार्च के पहले सप्ताह में यह संख्या केवल 10 लाख थी, फिर अप्रैल के मध्य में 62 हजार तक गिर गई. ऐसा इसलिए था क्योंकि पहले लॉकडाउन (25 मार्च-14 अप्रैल) के दौरान मनरेगा पर दिशानिर्देश स्पष्ट नहीं थे, जिसके परिणामस्वरूप कम श्रम की भागीदारी थी.
मनरेगा से जुड़ी समस्याएं :-
- बड़े परिवारों के लिए कम मजदूरी पर्याप्त नहीं.
- अन्य राज्यों में उच्च भुगतान वाली नौकरियां.
- कौशल की पहचान और काम/मजदूरी आज भी समस्या बनी हुई है.
- योजना के माध्यम से आजीविका पाने वाले श्रमिकों के लिए भुगतान में देरी होना चिंता का विषय है.
- निर्णय में स्थानीय सरकारी अधिकारियों के हस्तक्षेप से अकसर लोगों के लिए पक्षपाती अवसर पैदा होते हैं.
- इस योजना के लिए अतीत में धन की कमी की आलोचना की गई और 2020-21 के बजट में इस योजना के लिए आवंटन में और गिरावट देखी गई.
- श्रमिकों को उनकी मजदूरी पाने के लिए निर्धारित समय अवधि (उदाहरण के लिए, पिछले वित्तीय वर्ष के ऑडिट किए गए फंड स्टेटमेंट, उपयोग प्रमाणपत्र, बैंक सुलह प्रमाण पत्र आदि) प्रस्तुत करने के साथ प्रशासनिक आवश्यकताओं को पूरा करना होता है.
- कृषि पर निर्भरता ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर बना दिया है और सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 38.7% है.
- कोरोना की वजह से गांवों में काम शुरू करने के इच्छुक मजदूर अधिकारियों की कमी के कारण पंचायत कार्यालयों से वापस भेजे जा रहे हैं.
- कई मजदूरों के पास जॉब कार्ड नहीं है, वह पाने के लिए इंतजार कर रहे हैं.
- कुछ राज्यों में श्रमिकों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है और इसलिए राज्यों को नौकरी और जॉब कार्ड प्रदान करने में समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
- आंध्र प्रदेश में एक मई तक 14.6 लाख मजदूरों ने मनरेगा के लिए पंजीकरण कराया. वहीं 23 मई तक 37.80 लाख लोगों ने पंजीकरण कराया.
- राजस्थान में मनरेगा के तहत कार्यरत श्रमिकों की संख्या प्रतिदिन 50 लाख से अधिक हो गई है.
- मार्च में 2.25 लाख से अधिक मजदूरों ने बिहार में मनरेगा के तहत काम करने के लिए पंजीकरण कराया.
- इस वर्ष 16 अप्रैल को मनरेगा के तहत काम का पहला दिन शुरू हुआ, तब लगभग 2.77 लाख नए पंजीकरण हुए.
- इनमें 1.25 लाख प्रवासी कामगार शामिल थे. हालांकि 15 मई तक मनरेगा के तहत पंजीकृत लोगों की संख्या बढ़कर 11.14 लाख हो गई, इसमें लगभग चार लाख प्रवासी श्रमिक शामिल थे.