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जानें क्या है बोडोलैंड विवाद...ले चुका है 4000 से अधिक लोगों की जान

पांच दशकों से चले आ रहे आंदोलन को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार, असम सरकार और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. बता दें कि एबीएसयू 1972 से ही अलग बोडोलैंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन चला रहा है. इन आंदोलनों में 4000 से अधिक लोग अपनी जान गवां चुके हैं. इस समझौते से लोगों को खासी उम्मीदें हैं. आइए, जानते हैं इस लंबे आंदोलन की शुरुआत कैसे हुई.

what is bodoland dispute
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Published : Jan 28, 2020, 10:25 PM IST

Updated : Feb 28, 2020, 8:12 AM IST

हैदराबाद : नई दिल्ली में 27 जनवरी, 2020 को केंद्र सरकार, असम सरकार और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसे बोडोलैंड समझौता कहा गया है. इस समझौते से बोडो लोगों को अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलेगा.

कौन हैं बोडो लोग?
बोडो एक जातीय-भाषीय समूह है, जिसे असम का सबसे प्रारंभिक निवासी माना जाता है. बोडो लोग चीन-तिब्बती लोगों की तिब्बती-बर्मन शाखा से संबंधित भारतीय-मंगोलियाआई समुदायों से हैं. सभ्यता के शीर्ष काल में बोडो लोगों ने उत्तर-पूर्व भारत, नेपाल के कुछ हिस्सों, भूटान, उत्तरी बंगाल और बांग्लादेश के लगभग पूरे क्षेत्र पर शासन किया था. बोडो लोगों को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में एक मैदानी जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है.

जानें क्या है बोडोलैंड विवाद.

क्या है उनकी मांग?
बोडो लोगों की मांग है कि उनके लिए असम के आठ जिलों के कुछ क्षेत्र को लेकर एक अलग (बोडोलैंड) राज्य (भारतीय संघ के भीतर) बनाया जाए. वह आठ जिले हैं, कोकराझार, धुबरी, बोंगाईगांव, बारपेटा, नलबाड़ी, कामरूप, दरंग और सोनितपुर जिला.

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बोडोलैंड संघर्ष का इतिहास

अब तक हुए हैं तीन समझौते
बोडो लोग अलग बोडो राज्य की मांग पिछले पांच दशकों से कर रहे हैं. इस मांग को लेकर हिंसक आंदोलनों में हजारों लोगों की जान जा चुकी है. इसको रोकने के लिए तीन समझौते किए गए हैं.

  1. पहले बोडो समझौते पर ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के साथ 1993 में हस्ताक्षर किया गया था. इस समझौते बाद सीमित राजनीतिक शक्तियों के साथ बोडोलैंड स्वायत्त परिषद (बोडोलैंड ऑटोनॉमस काउंसिल) का गठन किया गया था.
  2. दूसरा बोडो समझौता 2003 में आतंकवादी समूह बोडो लिबरेशन टाइगर्स के साथ किया गया था. इसके तहत बोडोलैंज टेरिटोरियल काउंसिल का गठन किया गया था.
  3. तीसरा बोडो समझौता 2020 में हुआ. इस त्रिपक्षिय समझौते पर केंद्र सरकार, असम सरकार, नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के सभी गुटों और एबीएसयू ने हस्ताक्षर किए.

पढ़ें-बोडोलैंड समझौता : अलग राज्य की मांग खारिज, 50 सालों के आंदोलन में हो चुकी हैं 4000 मौतें

बोडो संघर्ष का कालक्रम
बोडो लोग असम के सबसे पुराने निवासी हैं. उनके संघर्ष का इतिहास आजादी के पहले का है, लेकिन 80 के दशक के अंत में असम के बंटवारे को लकेर आंदोलन तेज हो गए थे. इसी दौरान प्रमुख अगाववादी समूहों की स्थापना हुई.

बोडो लोगों ने अलग राज्य की मांग करने के लिए कई कारण दिए हैं. उनका कहना है कि जिस क्षेत्र में वह सदियों से रह रहे हैं वह उनका घर है. इसके साथ ही वह अपनी जातीय पहचान, जीवन के तरीके और भाषा की रक्षा करने के लिए अलग राज्य की मांग कर रहे हैं. वह बेहतर प्रशासन और विकास चाहते हैं.

1929- बोडो नेता गुरुदेव कालीचरण ब्रह्मा ने साइमन कमीशन को एक ज्ञापन सौंपते हुए विधानसभा में आरक्षण और बोडो लोगों के लिए अलग राजनीतिक इकाई की स्थापना की मांग की.

1960 से 1970- इन 10 वर्षों के बीच प्रवासियों द्वारा बोडो लोगों की भूमी पर कब्जा किए जाने की वजह से कई बार बोडो और अन्य जनजातियों एक अलग राज्य 'उदयचल' की मांग की.

1980- बोडो लोगों के लिए अलग राज्य, बोडोलैंड की मांग उठी. इसके साथ ही असम के विभाजन की भी मांग उठी. 80 के दशक के अंत में ही बोडोलैंड लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड जैसे अलगाववादी समूहों का गठन हुआ. इसी दौरान ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के आध्यक्ष उपेंद्रनाथ ब्रह्मा ने लोकतांत्रिक मार्ग अपनाया.

फरवरी 1993- बोडोलैंड स्वायत्त परिषद का गठन हुआ. यह केंद्र, असम सरकार और ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद मुमकिन हो पाया.

फरवरी 2003- केंद्र, असम सरकार और बीएलटी ने त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया. इसके बाद बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल का गठन हुआ और अलगाववादी संगठन बोडोलैंड लिबरेशन टाइगर्स को भंग कर दिया गया.

2005- नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनएसएफबी) असम सरकार और केंद्र के साथ युद्ध विराम के लिए सहमत हो जाता है. संधि पर हस्ताक्षर होने के बाद, समूह तीन गुटों में विभाजित हो जाता है. उन गुटों में से एक, एनडीएफबी (एस), राज्य में हिंसक हमलों को जारी रखता है.

2012-बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट में बंगाली भाषी मुस्लिम और बोडो के बीच जातीय दंगों में 100 लोग मारे जाते हैं और चार लाख लोग बेघर हो जाते हैं. बोडो और गैर बोडो लोगों, खासकर के बंगाली भाषी मुस्लिमों के बीच खूनी संघर्ष अकसर होते रहते थे.

मई 2014-बोडो आतंकवादियों ने कोकराझार और बक्सा जिलों में 30 से अधिक लोगों इसलिए हत्या कर दी क्योकि उनका कथित रूप से मानना था कि उन लोगों ने लोकसभा चुनावों में उनके (बोडो आतंकवादियों) के उम्मीवार को वोट नहीं दिया था.

दिसंबर 2014- बोडो आतंकियों ने 81 लोगों की हत्या कर दी, मरने वालों में 76 आदिवासी थे. आतंकियों के हमलों के कारण दो लाख लोग विस्थापित हो गए.
दोनों ही घटनाओं के लिए एनएसएफबी (एस) को जिम्मेदार ठहराया गया. इसके बाद केंद्र इस संगठन को खत्म करने के लिए सैन्य अभियान चलाया.

अगस्त 2016- कोकराझार जिले के एक बाजार में आतंकवादियों ने 14 नागरिकों की हत्या कर दी. हमले के पीछे एनएसएफबी (एस) का हाथ होने का संदेह है.

हैदराबाद : नई दिल्ली में 27 जनवरी, 2020 को केंद्र सरकार, असम सरकार और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसे बोडोलैंड समझौता कहा गया है. इस समझौते से बोडो लोगों को अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलेगा.

कौन हैं बोडो लोग?
बोडो एक जातीय-भाषीय समूह है, जिसे असम का सबसे प्रारंभिक निवासी माना जाता है. बोडो लोग चीन-तिब्बती लोगों की तिब्बती-बर्मन शाखा से संबंधित भारतीय-मंगोलियाआई समुदायों से हैं. सभ्यता के शीर्ष काल में बोडो लोगों ने उत्तर-पूर्व भारत, नेपाल के कुछ हिस्सों, भूटान, उत्तरी बंगाल और बांग्लादेश के लगभग पूरे क्षेत्र पर शासन किया था. बोडो लोगों को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में एक मैदानी जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है.

जानें क्या है बोडोलैंड विवाद.

क्या है उनकी मांग?
बोडो लोगों की मांग है कि उनके लिए असम के आठ जिलों के कुछ क्षेत्र को लेकर एक अलग (बोडोलैंड) राज्य (भारतीय संघ के भीतर) बनाया जाए. वह आठ जिले हैं, कोकराझार, धुबरी, बोंगाईगांव, बारपेटा, नलबाड़ी, कामरूप, दरंग और सोनितपुर जिला.

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बोडोलैंड संघर्ष का इतिहास

अब तक हुए हैं तीन समझौते
बोडो लोग अलग बोडो राज्य की मांग पिछले पांच दशकों से कर रहे हैं. इस मांग को लेकर हिंसक आंदोलनों में हजारों लोगों की जान जा चुकी है. इसको रोकने के लिए तीन समझौते किए गए हैं.

  1. पहले बोडो समझौते पर ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के साथ 1993 में हस्ताक्षर किया गया था. इस समझौते बाद सीमित राजनीतिक शक्तियों के साथ बोडोलैंड स्वायत्त परिषद (बोडोलैंड ऑटोनॉमस काउंसिल) का गठन किया गया था.
  2. दूसरा बोडो समझौता 2003 में आतंकवादी समूह बोडो लिबरेशन टाइगर्स के साथ किया गया था. इसके तहत बोडोलैंज टेरिटोरियल काउंसिल का गठन किया गया था.
  3. तीसरा बोडो समझौता 2020 में हुआ. इस त्रिपक्षिय समझौते पर केंद्र सरकार, असम सरकार, नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के सभी गुटों और एबीएसयू ने हस्ताक्षर किए.

पढ़ें-बोडोलैंड समझौता : अलग राज्य की मांग खारिज, 50 सालों के आंदोलन में हो चुकी हैं 4000 मौतें

बोडो संघर्ष का कालक्रम
बोडो लोग असम के सबसे पुराने निवासी हैं. उनके संघर्ष का इतिहास आजादी के पहले का है, लेकिन 80 के दशक के अंत में असम के बंटवारे को लकेर आंदोलन तेज हो गए थे. इसी दौरान प्रमुख अगाववादी समूहों की स्थापना हुई.

बोडो लोगों ने अलग राज्य की मांग करने के लिए कई कारण दिए हैं. उनका कहना है कि जिस क्षेत्र में वह सदियों से रह रहे हैं वह उनका घर है. इसके साथ ही वह अपनी जातीय पहचान, जीवन के तरीके और भाषा की रक्षा करने के लिए अलग राज्य की मांग कर रहे हैं. वह बेहतर प्रशासन और विकास चाहते हैं.

1929- बोडो नेता गुरुदेव कालीचरण ब्रह्मा ने साइमन कमीशन को एक ज्ञापन सौंपते हुए विधानसभा में आरक्षण और बोडो लोगों के लिए अलग राजनीतिक इकाई की स्थापना की मांग की.

1960 से 1970- इन 10 वर्षों के बीच प्रवासियों द्वारा बोडो लोगों की भूमी पर कब्जा किए जाने की वजह से कई बार बोडो और अन्य जनजातियों एक अलग राज्य 'उदयचल' की मांग की.

1980- बोडो लोगों के लिए अलग राज्य, बोडोलैंड की मांग उठी. इसके साथ ही असम के विभाजन की भी मांग उठी. 80 के दशक के अंत में ही बोडोलैंड लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड जैसे अलगाववादी समूहों का गठन हुआ. इसी दौरान ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के आध्यक्ष उपेंद्रनाथ ब्रह्मा ने लोकतांत्रिक मार्ग अपनाया.

फरवरी 1993- बोडोलैंड स्वायत्त परिषद का गठन हुआ. यह केंद्र, असम सरकार और ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद मुमकिन हो पाया.

फरवरी 2003- केंद्र, असम सरकार और बीएलटी ने त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया. इसके बाद बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल का गठन हुआ और अलगाववादी संगठन बोडोलैंड लिबरेशन टाइगर्स को भंग कर दिया गया.

2005- नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनएसएफबी) असम सरकार और केंद्र के साथ युद्ध विराम के लिए सहमत हो जाता है. संधि पर हस्ताक्षर होने के बाद, समूह तीन गुटों में विभाजित हो जाता है. उन गुटों में से एक, एनडीएफबी (एस), राज्य में हिंसक हमलों को जारी रखता है.

2012-बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट में बंगाली भाषी मुस्लिम और बोडो के बीच जातीय दंगों में 100 लोग मारे जाते हैं और चार लाख लोग बेघर हो जाते हैं. बोडो और गैर बोडो लोगों, खासकर के बंगाली भाषी मुस्लिमों के बीच खूनी संघर्ष अकसर होते रहते थे.

मई 2014-बोडो आतंकवादियों ने कोकराझार और बक्सा जिलों में 30 से अधिक लोगों इसलिए हत्या कर दी क्योकि उनका कथित रूप से मानना था कि उन लोगों ने लोकसभा चुनावों में उनके (बोडो आतंकवादियों) के उम्मीवार को वोट नहीं दिया था.

दिसंबर 2014- बोडो आतंकियों ने 81 लोगों की हत्या कर दी, मरने वालों में 76 आदिवासी थे. आतंकियों के हमलों के कारण दो लाख लोग विस्थापित हो गए.
दोनों ही घटनाओं के लिए एनएसएफबी (एस) को जिम्मेदार ठहराया गया. इसके बाद केंद्र इस संगठन को खत्म करने के लिए सैन्य अभियान चलाया.

अगस्त 2016- कोकराझार जिले के एक बाजार में आतंकवादियों ने 14 नागरिकों की हत्या कर दी. हमले के पीछे एनएसएफबी (एस) का हाथ होने का संदेह है.

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Last Updated : Feb 28, 2020, 8:12 AM IST
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