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बस राजनीति के बीच खुद किराया देकर पश्चिम बंगाल रवाना हुए श्रमिक

कोटा से हजारों की संख्या में श्रमिक पैसा देकर अपने गृह राज्यों को रवाना हो रहे हैं. इन श्रमिकों में किसी ने किराया दूसरे से उधार लिया है, तो किसी ने अपनी पत्नी के जेवर को गिरवी रख कर पैसा लिया है. कुछ ने अपने गांव से किराया मंगवाया है.

पश्चिम बंगाल जाते मजदूर
पश्चिम बंगाल जाते मजदूर
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Published : May 22, 2020, 6:35 PM IST

जयपुर : बसों के मुद्दे को लेकर कांग्रेस और भाजपा जमकर राजनीति कर रही है. कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी यूपी में पैदल चलते श्रमिकों के लिए बस उपलब्ध करवाने की बात कर रही हैं, लेकिन कोटा से हजारों की संख्या में श्रमिक पैसा देकर अपने गृह राज्यों की ओर रवाना हो रहे हैं.

बता दें, कि गुरुवार ऐसे ही कुछ श्रमिक कोटा से पश्चिम बंगाल के लिए रवाना हुए. इन श्रमिकों में किसी ने किराया दूसरे से उधार लिया तो किसी ने अपनी पत्नी के जेवर को गिरवी रख कर पैसा लिया है. कुछ ने अपने गांव से किराया मंगवाया है. यहां काम बंद होने से भूखे मरने की नौबत थी. बताया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल गई सभी बसों को कोटा जिला कलेक्ट्रेट से परमिशन मिली है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

सरकारों से लेकर जिला प्रशासन तक से मांगी मदद
बंगाल जा रहे मजदूरों का कहना है कि उन्होंने सरकार से भी काफी मदद मांगी. जिला कलेक्टर और थाने में जाकर पुलिस से भी संपर्क किया. सराफा व्यवसायियों से भी बात की थी कि उनके लिए बस या ट्रेन का इंतजाम किया जाए, लेकिन कोई व्यवस्था उनके लिए नहीं की गई. उन्होंने पश्चिम बंगाल सरकार से भी आग्रह किया था, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी किसी तरह की कोई मदद उन लोगों की नहीं की. इसके बाद जो भी लोग जाना चाहते थे, उन सब ने पैसा इकट्ठा कर बसों का इंतजाम किया है. इसमें 7 बसों के जरिए 210 आदमी पश्चिम बंगाल रवाना हुए.

पढ़ें - थम नहीं रही 'बस' की राजनीति, बिल को लेकर यूपी-राजस्थान में किचकिच

एक व्यक्ति को 5500 रुपए देना पड़ा किराया
कोटा से पश्चिम बंगाल जा रहे ज्वेलरी का काम करने वाले शेख अरसद अली का कहना है कि उनके परिवारों का रहन-सहन और खान-पान भी अलग है. उन्होंने कहा, 'कोटा में परदेसी लोग होने के चलते हम डर के कारण बाहर भी नहीं निकल रहे थे. ऐसे में यहां लॉकडाउन में फंस गए थे. बीते एक साल से हमारी मजदूरी एक्साइज ड्यूटी लगने और सोना महंगा होने के चलते नहीं चल पा रही है. हमारे पास पैसा भी नहीं था, ऐसे में कुछ लोगों ने अपनी पत्नी के जेवरात गिरवी रखकर पैसा लिया है और पश्चिम बंगाल जा रहे हैं.'

पढ़ेंः लखनऊः बसों से जम्मू-कश्मीर रवाना हुए 16 कश्मीरी

किसी ने उधार लिया तो किसी ने गांव से मंगाए पैसे
बस में सवार सुजीता का कहना था, 'लॉकडाउन में हम सब परेशान हो रहे थे. खाने-पीने की कोई सुविधा नहीं थी. हम बस का किराया देकर जा रहे हैं क्योंकि बच्चे काफी परेशान हो रहे थे. उन्हें खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं मिल रहा था.'

इसी तरह मजदूर सुनोत का कहना है, '3 महीने से हम भूख सहन कर रहे हैं, मजबूरी में एक टाइम खाना खा पा रहे थे. खाने के पैसे भी सेठ लोग नहीं दे रहे थे, इसीलिए किराया उधार करके जा रहे हैं.'

जयपुर : बसों के मुद्दे को लेकर कांग्रेस और भाजपा जमकर राजनीति कर रही है. कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी यूपी में पैदल चलते श्रमिकों के लिए बस उपलब्ध करवाने की बात कर रही हैं, लेकिन कोटा से हजारों की संख्या में श्रमिक पैसा देकर अपने गृह राज्यों की ओर रवाना हो रहे हैं.

बता दें, कि गुरुवार ऐसे ही कुछ श्रमिक कोटा से पश्चिम बंगाल के लिए रवाना हुए. इन श्रमिकों में किसी ने किराया दूसरे से उधार लिया तो किसी ने अपनी पत्नी के जेवर को गिरवी रख कर पैसा लिया है. कुछ ने अपने गांव से किराया मंगवाया है. यहां काम बंद होने से भूखे मरने की नौबत थी. बताया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल गई सभी बसों को कोटा जिला कलेक्ट्रेट से परमिशन मिली है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

सरकारों से लेकर जिला प्रशासन तक से मांगी मदद
बंगाल जा रहे मजदूरों का कहना है कि उन्होंने सरकार से भी काफी मदद मांगी. जिला कलेक्टर और थाने में जाकर पुलिस से भी संपर्क किया. सराफा व्यवसायियों से भी बात की थी कि उनके लिए बस या ट्रेन का इंतजाम किया जाए, लेकिन कोई व्यवस्था उनके लिए नहीं की गई. उन्होंने पश्चिम बंगाल सरकार से भी आग्रह किया था, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी किसी तरह की कोई मदद उन लोगों की नहीं की. इसके बाद जो भी लोग जाना चाहते थे, उन सब ने पैसा इकट्ठा कर बसों का इंतजाम किया है. इसमें 7 बसों के जरिए 210 आदमी पश्चिम बंगाल रवाना हुए.

पढ़ें - थम नहीं रही 'बस' की राजनीति, बिल को लेकर यूपी-राजस्थान में किचकिच

एक व्यक्ति को 5500 रुपए देना पड़ा किराया
कोटा से पश्चिम बंगाल जा रहे ज्वेलरी का काम करने वाले शेख अरसद अली का कहना है कि उनके परिवारों का रहन-सहन और खान-पान भी अलग है. उन्होंने कहा, 'कोटा में परदेसी लोग होने के चलते हम डर के कारण बाहर भी नहीं निकल रहे थे. ऐसे में यहां लॉकडाउन में फंस गए थे. बीते एक साल से हमारी मजदूरी एक्साइज ड्यूटी लगने और सोना महंगा होने के चलते नहीं चल पा रही है. हमारे पास पैसा भी नहीं था, ऐसे में कुछ लोगों ने अपनी पत्नी के जेवरात गिरवी रखकर पैसा लिया है और पश्चिम बंगाल जा रहे हैं.'

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किसी ने उधार लिया तो किसी ने गांव से मंगाए पैसे
बस में सवार सुजीता का कहना था, 'लॉकडाउन में हम सब परेशान हो रहे थे. खाने-पीने की कोई सुविधा नहीं थी. हम बस का किराया देकर जा रहे हैं क्योंकि बच्चे काफी परेशान हो रहे थे. उन्हें खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं मिल रहा था.'

इसी तरह मजदूर सुनोत का कहना है, '3 महीने से हम भूख सहन कर रहे हैं, मजबूरी में एक टाइम खाना खा पा रहे थे. खाने के पैसे भी सेठ लोग नहीं दे रहे थे, इसीलिए किराया उधार करके जा रहे हैं.'

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