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क्या कोरोना वायरस के फैलने में है मौसम की भूमिका

इस समय पूरी दुनिया पर्यावरणीय संकट से जूझ रही है. ऐसे में दुनियाभर को लाचार कर देने वाले कोरोना वायरस से कहीं न कहीं बदलते मौसम को भी जोड़ा जा रहा है. भारत भी अन्य देशों की तरह ही कोरोना की मार से काफी हद तक प्रभावित है. ऐसे में वायरस के संक्रमण को लेकर तरह-तरह के सवाल मन में उठते हैं, जैसे गर्मी में वायरस का कम होना, बरसात और ठंड में वायरस का बढ़ जाना और भी न जाने कितने सवाल.. ऐसे में वायरस और मौसम के कनेक्शन को लेकर हैदराबाद में सनशाइन हॉस्पिटल के जनरल फिजिशियन ने जानकारी साझा की है...

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कोरोना और क्लाइमेट का कनेक्शन
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Published : Apr 9, 2020, 6:27 PM IST

हैदराबाद : अन्य देशों की तरह ही भारत भी विभिन्न मौसम स्थितियों का अनुभव करता है. तो क्या मौसम परिवर्तन किसी तरह से महामारी (pendemic) के प्रसार को प्रभावित करता है?

हैदराबाद में सनशाइन हॉस्पिटल के जनरल फिजिशियन डॉ ए यू शंकर प्रसाद कहते हैं, 'मैं यह बात मानता हूं कि किसी संक्रमण की तीव्रता में पर्यावरण अहम भूमिका निभाता है. मेरा मानना है कि भारत में केवल मौसम की स्थिति के कारण ही उच्च मृत्यु दर नहीं है. वह आगे कहते हैं कि मौसम में बदलाव के कारण या तो वायरस ताकतवर हो जाएगा या लोग अब की तुलना में ज्यादा कमजोर हो जाएंगे. इन दोनों चीजों में एक बात हो सकती है.'

इसलिए ऐसी स्थिति में भले ही लॉकडाउन खत्म क्यों न हो जाए, लेकिन लोगों को खास देखभाल और सावधानी बरतनी चाहिए.

डॉ प्रसाद यहां कुछ खास सुझाव दे रहे हैं, जिनका अभ्यास सख्ती के साथ किया जाना चाहिए..

  • सामाजिक जुड़ाव (सोशल कॉन्टेक्ट) से दूरी बनाने की कोशिश करें. इसके साथ अपने और दूसरे व्यक्ति के साथ भौतिक दूरी का खास ख्याल रखें.
  • अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने की ओर ध्यान दें. इस तरह से आप खट्टे फलों और अन्य प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों और अन्य चीजों का सेवन कर सकते हैं.
  • ऐसी चीजों को अनदेखा करें जो आपकी प्रतिरक्षा को प्रभावित करतीं हैं.
  • समय पर भोजन करना और सोना अति आवश्यक है. संयमित जीवनशैली के साथ किसी भी चीज में चरम सीमा तक न जाने की ओर ध्यान दें.
  • मौसम के अनुसार अपने खानपान पर ध्यान दें. बारिश के मौसम में केवल गर्म खाना और पेय पदार्थों का सेवन करें. ठंड बहुत खतरनाक हो सकती है. साथ ही संक्रमण को बढ़ावा भी दे सकती है.
  • सामुदायिक स्तर पर, लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संक्रमित लोग ऐसे वातावरण में न जाएं, जो बंद हो. ऐसी जगहों पर उचित उपाय किए जाने चाहिए. यहां थर्मल स्कैनर का इस्तेमाल किया जा सकता है.
  • जिन लोगों को जुकाम और खांसी (कोल्ड और कफ) जैसे लक्षण हों, उन्हें मॉल, थिएटर जैसी बंद जगहों में जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, ताकि सामुदायिक स्तर पर संक्रमण से बचने में मदद मिल सके.

इन सभी उपायों का सुझाव देने के साथ डॉ. प्रसाद कोएग्जिस्टिंग (Coexisting) के विचार पर जोर देते हैं. वह कहते हैं कि जब तक हम प्रकृति का सम्मान नहीं करते और भूमि, जंगल, पानी और जानवरों को नुकसान पहुंचाना बंद नहीं कर देते, तब तक ऐसी चीजें होती रहेंगी.

उन्होंने प्रकृति के रौद्र रूप का उदाहरण देते हुए कहा कि अमेजन और ऑस्ट्रेलियाई जंगल की आग के साथ कठोर जलवायु परिवर्तन एक संयोग नहीं हैं. यह प्रकृति की क्षति है, जिसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ हम हैं.

प्रकृति का दोहन करने वाले बड़े-बड़े उद्योग जैसे विमानन, विनिर्माण, ऑटोमोबाइल क्षेत्र और भी अन्य क्षेत्र के उद्योगों को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए.

इस तरह यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना जीना सीखें और जानवरों, पेड़-पौधों और अन्य मनुष्यों के साथ शांतिपूर्ण तरीके से रहें.

हैदराबाद : अन्य देशों की तरह ही भारत भी विभिन्न मौसम स्थितियों का अनुभव करता है. तो क्या मौसम परिवर्तन किसी तरह से महामारी (pendemic) के प्रसार को प्रभावित करता है?

हैदराबाद में सनशाइन हॉस्पिटल के जनरल फिजिशियन डॉ ए यू शंकर प्रसाद कहते हैं, 'मैं यह बात मानता हूं कि किसी संक्रमण की तीव्रता में पर्यावरण अहम भूमिका निभाता है. मेरा मानना है कि भारत में केवल मौसम की स्थिति के कारण ही उच्च मृत्यु दर नहीं है. वह आगे कहते हैं कि मौसम में बदलाव के कारण या तो वायरस ताकतवर हो जाएगा या लोग अब की तुलना में ज्यादा कमजोर हो जाएंगे. इन दोनों चीजों में एक बात हो सकती है.'

इसलिए ऐसी स्थिति में भले ही लॉकडाउन खत्म क्यों न हो जाए, लेकिन लोगों को खास देखभाल और सावधानी बरतनी चाहिए.

डॉ प्रसाद यहां कुछ खास सुझाव दे रहे हैं, जिनका अभ्यास सख्ती के साथ किया जाना चाहिए..

  • सामाजिक जुड़ाव (सोशल कॉन्टेक्ट) से दूरी बनाने की कोशिश करें. इसके साथ अपने और दूसरे व्यक्ति के साथ भौतिक दूरी का खास ख्याल रखें.
  • अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने की ओर ध्यान दें. इस तरह से आप खट्टे फलों और अन्य प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों और अन्य चीजों का सेवन कर सकते हैं.
  • ऐसी चीजों को अनदेखा करें जो आपकी प्रतिरक्षा को प्रभावित करतीं हैं.
  • समय पर भोजन करना और सोना अति आवश्यक है. संयमित जीवनशैली के साथ किसी भी चीज में चरम सीमा तक न जाने की ओर ध्यान दें.
  • मौसम के अनुसार अपने खानपान पर ध्यान दें. बारिश के मौसम में केवल गर्म खाना और पेय पदार्थों का सेवन करें. ठंड बहुत खतरनाक हो सकती है. साथ ही संक्रमण को बढ़ावा भी दे सकती है.
  • सामुदायिक स्तर पर, लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संक्रमित लोग ऐसे वातावरण में न जाएं, जो बंद हो. ऐसी जगहों पर उचित उपाय किए जाने चाहिए. यहां थर्मल स्कैनर का इस्तेमाल किया जा सकता है.
  • जिन लोगों को जुकाम और खांसी (कोल्ड और कफ) जैसे लक्षण हों, उन्हें मॉल, थिएटर जैसी बंद जगहों में जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, ताकि सामुदायिक स्तर पर संक्रमण से बचने में मदद मिल सके.

इन सभी उपायों का सुझाव देने के साथ डॉ. प्रसाद कोएग्जिस्टिंग (Coexisting) के विचार पर जोर देते हैं. वह कहते हैं कि जब तक हम प्रकृति का सम्मान नहीं करते और भूमि, जंगल, पानी और जानवरों को नुकसान पहुंचाना बंद नहीं कर देते, तब तक ऐसी चीजें होती रहेंगी.

उन्होंने प्रकृति के रौद्र रूप का उदाहरण देते हुए कहा कि अमेजन और ऑस्ट्रेलियाई जंगल की आग के साथ कठोर जलवायु परिवर्तन एक संयोग नहीं हैं. यह प्रकृति की क्षति है, जिसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ हम हैं.

प्रकृति का दोहन करने वाले बड़े-बड़े उद्योग जैसे विमानन, विनिर्माण, ऑटोमोबाइल क्षेत्र और भी अन्य क्षेत्र के उद्योगों को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए.

इस तरह यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना जीना सीखें और जानवरों, पेड़-पौधों और अन्य मनुष्यों के साथ शांतिपूर्ण तरीके से रहें.

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