हैदराबाद: देशभर में और खासतौर पर राजस्थान में पानी की विकराल समस्या पर काम करने वाले और वहां की बंजर जमीन पर हरियाली बिखरने वाले राजेंद्र सिंह ने ETV भारत से जल संकट पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि साल 2019 में 17 राज्यों के 365 जिले अकालग्रस्त हैं.
ETV भारत से 'जल पुरुष' राजेंद्र सिंह ने देश में पानी की विकराल समस्या पर चर्चा की. उनसे बातचीत के अंश-
सवाल: क्या हम बड़े जलसंकट के मुहाने पर खड़े हैं ?
जवाब: 2019 में 17 राज्यों के 365 जिले अकालग्रस्त हैं. अकाल मतलब जब पीने को पानी न हो, खाने को खाना न हो, पशुओं के लिए चारा न हो और लोग अपने गांव छोड़कर शहर जाने लगें. ये प्रकृतिप्रदत्त अकाल नहीं बल्कि मानव निर्मित अकाल है. इस वक्त देश में भयानक जल संकट है. हमें इसका हल निकालना चाहिए. राज और समाज को मिलकर इस संकट का समाधान निकालना चाहिए.
जहां लोगों ने मिलकर पानी को बचाने का काम किया वहां तस्वीर बदल गई. पिछले 40 साल में जो राज्य बेपानी थे वो पानीदार हो गए, जो पानी दार थे वो बेपानी हो गए. तमिलनाडु, कर्नाटका, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना बेपानी की स्थिति में आ रहे हैं. सबसे ज्यादा लार्ज डैम महाराष्ट्र में बने लेकिन पानी की कमी के कारण सबसे ज्यादा आत्महत्या महाराष्ट्र में हुई हैं. ये मानव निर्मित आपदा है. युद्ध स्तर पर काम करना होगा.
सवाल: क्या पलायन की एक बड़ी वजह जलसंकट है ?
जवाब: देश में पलायन का इतिहास पानी के संकट से जुड़ा है. कई राज्यों के लोग पानी के संकट के चलते लोग दूसरी जगह पर जाते थे और जैसे ही बारिश होती थी वे अपनी जगह लौट आते थे. पलायन का इतिहास भारत में बहुत पुराना है. बुंदलेखंड के लाखों लोग, मराठवाड़ा के लोग अपनी-अपनी जगह पानी की वजह से छोड़ रहे हैं.
तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर हो रहे पलायन की वजह से होगा. इस पूरी दुनिया में लोग बेपानी होकर उजड़ रहे हैं. भारत में भाग्य से अभी लोग गांव से उजड़ कर शहर आए हैं लेकिन अपना देश नहीं छोड़ रहे हैं. भारत अगर पानीदार हो गया तो पलायन रुक जाएगा.
सवाल: किन इलाकों में जलसंकट की स्थिति सबसे ज्यादा भयावह है ?
जवाब: सबसे ज्यादा जलसंकट से राजस्थान जूझा है, वहां बादल आते थे लेकिन बिना बरसे चले जाते थे. लेकिन यहां के लोगों ने अपनी मेहनत से पानी रोका और आज प्रदेश हरा-भरा है. आज वहां बारिश होने लगी है. जो लोग उजड़ गए थे, वे लौटकर खेती करने लगे. वर्तमान में तमिलनाडु, आंध्रा, तेलंगाना, कर्नाटक में सबसे ज्यादा जलसंकट है. पानी का संकट कल का नहीं बल्कि आज का संकट है.
सवाल: जो काम राजस्थान में आम लोगों ने आपके नेतृत्व में किया क्या ये काम बाकी राज्यों में भी संभव है ?
जवाब: लोगों के अंदर की प्रेरक शक्ति को जगाना और उनको पानी के काम में लगाना आसान काम तो है, लेकिन ये काम सरकारें नहीं कर सकतीं. सरकारें तो कॉन्ट्रेक्टर के दम पर काम कराती हैं. देश को कॉन्ट्रेक्टर फ्री, कम्युनिटी ड्रिवन डिसेन्ट्रलाइज सिस्टम चाहिए.
सवाल: शहरों में बारिश का पानी बह कर नाले में चला जाता है, ग्राउंड वाटर को बचाने के लिए क्या किया जाना चाहिए ?
जवाब: हिंदुस्तान के शहरों ने नदियों की जमीन पर कब्जा कर लिया है.
शहरों में नदियों को मैला ढोने वाली मालगाड़ी जैसा व्यवहार किया जाता है. सारा गंदा नदियों में डाल दिया गया है. सारी नदियां नाले में बदल गई हैं. गंगा हो, यमुना हो या फिर मूसी नदी सबका हाल एक जैसा है और इसकी बड़ी वजह है विकास.
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कौन हैं राजेंद्र सिंह-
- उत्तर प्रदेश के बागपत में जन्मे और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त राजेंद्र सिंह को जल पुरुष के नाम से जाना जाता है.
- राजेंद्र सिंह ने 1980 के दशक में राजस्थान में पानी की समस्या पर काम करना शुरू किया.
- राजस्थान में छोटे-छोटे पोखर फिर जोहड़ से सैकड़ों गांवों में पानी उपलब्ध हो गया.
- 1975 में राजस्थान के अलवर से तरुण भारत संघ की स्थापना की.
- राजस्थान के 12 सौ गांव में करीब 12000 तालाब का आम लोगों की भागीदारी से निर्माण करवाया.
- 2015 में उन्होंने स्टॉक होम वाटर प्राइज जीता, ये पुरस्कार 'पानी के लिए नोबेल पुरस्कार' के रूप में जाना जाता है.