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10 फीट घटा भारत का भू-जल, संरक्षण के लिए राष्ट्रीय रणनीति जरूरी

भारत में जल संकट गहराता जा रहा है. देश में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में वर्ष 2025 तक 25 प्रतिशत कमी आने का अनुमान है. खतरनाक स्थिति पैदा होने से पहले केंद्र सरकार को हर हाल में जल संरक्षण के प्रयासों को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा. पढ़ें विशेष रिपोर्ट...

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खतरनाक जल संकट
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Published : Sep 6, 2020, 12:55 PM IST

Updated : Sep 6, 2020, 1:09 PM IST

हैदराबाद : स्वतंत्र भारत ने सात दशकों में पानी के बांधों, जलाशयों और बैराजों का निर्माण देखा है. लेकिन आज भी देश की 85 प्रतिशत आबादी पीने के पानी के लिए भू-जल पर निर्भर है. किसान भी सिंचाई के लिए भू-जल का ही इस्तेमाल करते हैं. एक महत्वपूर्ण स्रोत होने के बावजूद भू-जल हमारे देश का सर्वाधिक दूषित एवं शोषित संसाधन है. भारत वर्षा जल की खराब संचयन व्यवस्था के कारण हर साल देश में होने वाली बारिश का केवल आठ प्रतिशत ही रख पाता है. इसके परिणामस्वरूप भू-जल स्तर की भरपाई नहीं हो पा रही है. जिसकी वजह से देश के कई हिस्सों में घोर जलसंकट का सामना करना पड़ रहा है. भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में वर्ष 2025 तक 25 प्रतिशत कमी आने का अनुमान है और यह वर्ष 2035 तक खतरनाक स्तर तक कम हो जाएगा. जल शक्ति मंत्रालय ने स्थिति का सही आकलन किया है और जल का बेहतरीन ढंग से इस्तेमाल करने का एक तंत्र तैयार किया है. मंत्रालय ने शहरी व ग्रामीण निकायों, निगमों व जल बोर्डों से जल संरक्षण अभियान में भाग लेने और जल की बर्बादी करने वालों पर जुर्माना लगाने को कहा है.

केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने वर्ष 2017 के अक्टूबर में भू-जल ससाधनों को दुरुस्त करने के लिए नियमों का एक नया मसौदा तैयार किया था. वर्ष 2019 के अगस्त में जल शक्ति अभियान के तहत देश के 256 जिलों में जल संरक्षण की शुरुआत की गई. स्थिति बहुत चिंताजनक हो जाए उसके पहले केंद्र को हर हाल में जल संरक्षण के इन प्रयासों को प्रभावी ढंग से लागू करना सुनिश्चित करना होगा.

पर्यावरणविद और 'वाटर मैन ऑफ इंडिया' राजेंद्र सिंह ने कहा कि देश के 72 प्रतिशत भू-जल संसाधन उस स्थिति में पहुंच गए हैं जिनकी मरम्मत नहीं हो सकती. नासा के एक अध्ययन से खुलासा हुआ है कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में 10 फीट तक भू-जल गंवा दिया है जो अमेरिका के मानव निर्मित सबसे बड़े जलाशय 'लेक मिड' को भरने के लिए जितने पानी की जरूरत है, उसके बराबर है.

यह भी पढ़ें- विशेष : इस 'गांधी' ने झाबुआ के 700 गांवों का दूर किया जल संकट

मिहिर शाह कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मनमाने ढंग से गहराई तक बोरवेल की खोदाई की वजह से देश के कई हिस्सों में सूखे जैसी स्थिति पैदा हो गई है. मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य के अधिकारियों को पीने का पानी तैयार करने वाली निजी इकाइयों पर पर्याप्त शुल्क लगाने का सुझाव दिया है. ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और दक्षिण अफ्रीका जहां पानी की हर बूंद को बचा रहे हैं, हम लोग अभी अदालतों का इंतजार कर रहे हैं कि वह हमें जल संसाधनों के महत्व के बारे में समझाएं. यहां 90 प्रतिशत वर्षा जल समुद्र में बेकार चला जाता है जबकि लाखों लोगों को कुछ महीनों तक सुरक्षित पेयजल या तो कम मिलता है या बिल्कुल नहीं मिलता.

मिशन भगीरथ सुरक्षित पेयजल परियोजना का हो अनुकरण
लेकिन अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ. उदाहरण के लिए तेलंगाना को लीजिए जिसने गांवों और शहरों के घरों के लिए मिशन भगीरथ सुरक्षित पेयजल परियोजना शुरू की है. राज्य सरकार सभी प्रमुख जल निकायों एवं जलाशयों को फिर से भर देती है जिसकी बदौलत पूरे साल पर्याप्त जलापूर्ति होती रहती है. अन्य राज्यों को भी अनिवार्य रूप से इस प्रयास का अनुकरण करना चाहिए.

जल संसाधनों को बहाल करने से फसल की बेहतर पैदावार भी सुनिश्चित होगी. धान और गन्ने जैसी परंपरागत फसलें बहुत अधिक पानी सोखती हैं. कृषि वैज्ञानिक एवं विश्वविद्यालय ऐसी फसलों का सुझाव दे सकते हैं जो कम पानी से तैयार होती हों. नागरिकों को भी हर हाल में अपने स्तर से जल संरक्षण करना होगा. छात्रों के पाठ्यक्रम में सरकारों को जल का पाठ भी शामिल करना चाहिए. निकट के संकट को टालने के लिए केंद्र को हर हाल में जल संरक्षण को एक राष्ट्रीय रणनीति बनानी होगी.

हैदराबाद : स्वतंत्र भारत ने सात दशकों में पानी के बांधों, जलाशयों और बैराजों का निर्माण देखा है. लेकिन आज भी देश की 85 प्रतिशत आबादी पीने के पानी के लिए भू-जल पर निर्भर है. किसान भी सिंचाई के लिए भू-जल का ही इस्तेमाल करते हैं. एक महत्वपूर्ण स्रोत होने के बावजूद भू-जल हमारे देश का सर्वाधिक दूषित एवं शोषित संसाधन है. भारत वर्षा जल की खराब संचयन व्यवस्था के कारण हर साल देश में होने वाली बारिश का केवल आठ प्रतिशत ही रख पाता है. इसके परिणामस्वरूप भू-जल स्तर की भरपाई नहीं हो पा रही है. जिसकी वजह से देश के कई हिस्सों में घोर जलसंकट का सामना करना पड़ रहा है. भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में वर्ष 2025 तक 25 प्रतिशत कमी आने का अनुमान है और यह वर्ष 2035 तक खतरनाक स्तर तक कम हो जाएगा. जल शक्ति मंत्रालय ने स्थिति का सही आकलन किया है और जल का बेहतरीन ढंग से इस्तेमाल करने का एक तंत्र तैयार किया है. मंत्रालय ने शहरी व ग्रामीण निकायों, निगमों व जल बोर्डों से जल संरक्षण अभियान में भाग लेने और जल की बर्बादी करने वालों पर जुर्माना लगाने को कहा है.

केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने वर्ष 2017 के अक्टूबर में भू-जल ससाधनों को दुरुस्त करने के लिए नियमों का एक नया मसौदा तैयार किया था. वर्ष 2019 के अगस्त में जल शक्ति अभियान के तहत देश के 256 जिलों में जल संरक्षण की शुरुआत की गई. स्थिति बहुत चिंताजनक हो जाए उसके पहले केंद्र को हर हाल में जल संरक्षण के इन प्रयासों को प्रभावी ढंग से लागू करना सुनिश्चित करना होगा.

पर्यावरणविद और 'वाटर मैन ऑफ इंडिया' राजेंद्र सिंह ने कहा कि देश के 72 प्रतिशत भू-जल संसाधन उस स्थिति में पहुंच गए हैं जिनकी मरम्मत नहीं हो सकती. नासा के एक अध्ययन से खुलासा हुआ है कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में 10 फीट तक भू-जल गंवा दिया है जो अमेरिका के मानव निर्मित सबसे बड़े जलाशय 'लेक मिड' को भरने के लिए जितने पानी की जरूरत है, उसके बराबर है.

यह भी पढ़ें- विशेष : इस 'गांधी' ने झाबुआ के 700 गांवों का दूर किया जल संकट

मिहिर शाह कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मनमाने ढंग से गहराई तक बोरवेल की खोदाई की वजह से देश के कई हिस्सों में सूखे जैसी स्थिति पैदा हो गई है. मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य के अधिकारियों को पीने का पानी तैयार करने वाली निजी इकाइयों पर पर्याप्त शुल्क लगाने का सुझाव दिया है. ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और दक्षिण अफ्रीका जहां पानी की हर बूंद को बचा रहे हैं, हम लोग अभी अदालतों का इंतजार कर रहे हैं कि वह हमें जल संसाधनों के महत्व के बारे में समझाएं. यहां 90 प्रतिशत वर्षा जल समुद्र में बेकार चला जाता है जबकि लाखों लोगों को कुछ महीनों तक सुरक्षित पेयजल या तो कम मिलता है या बिल्कुल नहीं मिलता.

मिशन भगीरथ सुरक्षित पेयजल परियोजना का हो अनुकरण
लेकिन अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ. उदाहरण के लिए तेलंगाना को लीजिए जिसने गांवों और शहरों के घरों के लिए मिशन भगीरथ सुरक्षित पेयजल परियोजना शुरू की है. राज्य सरकार सभी प्रमुख जल निकायों एवं जलाशयों को फिर से भर देती है जिसकी बदौलत पूरे साल पर्याप्त जलापूर्ति होती रहती है. अन्य राज्यों को भी अनिवार्य रूप से इस प्रयास का अनुकरण करना चाहिए.

जल संसाधनों को बहाल करने से फसल की बेहतर पैदावार भी सुनिश्चित होगी. धान और गन्ने जैसी परंपरागत फसलें बहुत अधिक पानी सोखती हैं. कृषि वैज्ञानिक एवं विश्वविद्यालय ऐसी फसलों का सुझाव दे सकते हैं जो कम पानी से तैयार होती हों. नागरिकों को भी हर हाल में अपने स्तर से जल संरक्षण करना होगा. छात्रों के पाठ्यक्रम में सरकारों को जल का पाठ भी शामिल करना चाहिए. निकट के संकट को टालने के लिए केंद्र को हर हाल में जल संरक्षण को एक राष्ट्रीय रणनीति बनानी होगी.

Last Updated : Sep 6, 2020, 1:09 PM IST
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