नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने आज ऋण स्थगन अवधि के दौरान सभी प्रकार के ऋणों पर ब्याज की छूट का विरोध करते हुए कहा कि इससे सरकार को 6 लाख करोड़ का नुकसान होगा. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि केंद्र ने वह सभी कदम उठाए हैं, जो वह उठा सकती थी मगर वह सभी को ब्याज माफी नहीं दे सकती. न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पीठ ऋण स्थगन अवधि के दौरान चक्रवृद्धि ब्याज माफी से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. केंद्र ने पहले अदालत में एक हलफनामा पेश किया था, जिसमें कहा गया था कि वह 2 करोड़ रुपये तक के ऋण का भार वहन करेगी और आरबीआई सहित अन्य सभी क्षेत्रों के लिए उठाए गए कदमों के बारे में सूचित किया था.
यह छूट नहीं था
आज सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को बताया कि मध्यम वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग और बड़े कॉर्पोरेट्स जो ब्याज की माफी चाहते हैं, उनके सामने समस्याएं पहले से थीं. महामारी ने इसे और बढ़ा दिया लेकिन ब्याज माफी इसका हल कभी नहीं था. उन्होंने कहा कि अधिस्थगन को कई लोगों ने गलत समझा. यह छूट नहीं था. यह लगभग आधे उधारकर्ताओं को पता था और इसीलिए उन्होंने अधिस्थगन का लाभ नहीं उठाया था. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कोई भी यह नहीं कह रहा है कि सरकार ने महामारी संकट के समय कुछ भी नहीं किया, लेकिन और कुछ किए जाने की आवश्यकता है. आरबीआई ने जो लाभ दिया, वह कइयों को नहीं मिला है.
चक्रवृद्धि ब्याज का भुगतान करना होगा
चक्रवृद्धि ब्याज वसूलने के सवाल पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह बैंक और जमाकर्ताओं के बीच की बात है. सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को समझाया कि उधारकर्ताओं को चक्रवृद्धि ब्याज का भुगतान करना होगा, क्योंकि यह श्रृंखला है. यदि ब्याज माफ किया जाता है, तो बैंक या सरकार को इसका बोझ उठाना होगा. सरकार को अपने स्वयं के धन से ब्याज का भुगतान करना पड़ा, क्योंकि कुछ लोगों ने अधिस्थगन लिया था. अदालत इस मामले पर कल फिर से सुनवाई करेगी.