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हौसले को सलाम : आधा शरीर साथ नहीं देता, बिस्तर पर लेटकर करते हैं काम

विशन दास दिव्यांगों के लिए मिसाल बनते जा रहे हैं. हादसे में दोनों टांगों के साथ छोड़ने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और आज अपनी हिम्मत और मेहनत के बल पर परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. पढ़ें विस्तार से...

विशन दास
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Published : Nov 16, 2019, 5:23 PM IST

शिमला : हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के वार्ड नंबर एक के निवासी विशन दास दिव्यांगों के लिए मिसाल बनते जा रहे हैं. हादसे में दोनों टांगों के साथ छोड़ने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और आज अपनी हिम्मत और मेहनत के बल पर परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं.

दिव्यांगता से लड़कर भी पेट पालने वाले विशन दास को दिक्कतें हर राह पर मिल रही हैं. जिला ऊना के वार्ड नंबर एक में भू मालिकों के अपनी जमीनों पर तारबंदी करने से विशन दास के घर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है. इसलिए लोहे का भारी भरकम सामान भी उनके परिवार को कंधों पर उठाकर ही घर लाना पड़ता है.

देखें, दिव्यांग विशन दास की हैरतंगेज जीवनशैली.

विशन दास जन्म से दिव्यांग नहीं थे और करीब 15 साल पहले तक दिल्ली में उनका वेल्डिंग का काम बहुत बढ़िया चल रहा था, लेकिन वर्ष 2004 में विशन दास के साथ एक दुखद हादसा हुआ. आपसी लेन-देन के कारण उन्हीं के कामगार ने उनके पीठ में गोली मार दी. इससे विशन दास की कमर के नीचे का हिस्सा पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया और वह जीवनभर के लिए दिव्यांग बनकर रह गये.

इसके बाद दिल्ली में सारा काम छोड़ छाड़कर विशन दास अपने घर ऊना वापस आ गये. साथ ही दिल्ली से लोहे के उत्पाद बनाने में इस्तेमाल होने वाला अपना सारा सामान भी ऊना ले आये.

हादसे के बाद विशन दास पूरी तरह से टूट गये. फिलहाल तीन साल तक बिस्तर पर रहने के बाद उन्होंने बिस्तर पर लेटे ही वेल्डिंग का छोटा-छोटा काम करना शुरू कर दिया. इसीका नतीजा रहा कि आज वह वेल्डिंग का बड़े से बड़ा काम करने से भी पीछे नहीं हटते.

पढ़ें : हिमाचल : चूड़धार की चोटी पर सीजन की पहली बर्फबारी, तापमान में भारी गिरावट

विशन दास की हिम्मत को आगे बढ़ाने में उनके पूरे परिवार ने भी सहयोग किया. विशन दास की एक बेटी बीए और दूसरी बेटी बीएससी की शिक्षा ग्रहण कर रही है जबकि बेटा डीजल मैकेनिक की आईटीआई करने के बाद एक निजी कम्पनी में काम कर रहा है. विशन दास के काम में उनकी पत्नी और बेटियां भी हाथ बंटाती हैं. बता दें कि विशन दास अपनी पत्नी सुरजीत कौर को इस हौसले का सबसे अधिक श्रेय देते हैं.

विशन दास ने दिव्यांगता के चलते हिम्मत हारने वालों को संदेश दिया है - 'जीवन में असंभव कुछ भी नहीं है. उठो हिम्मत करो और चुनौती को स्वीकार करो. ऐसा करने पर जिंदगी तुम्हारे कदम चूमेगी.'

बिशन दास की बेटियां अपने पिता की हिम्मत से बहुत प्रभावित हैं और उनपर बहुत गर्व है. बड़ी बेटी प्रिया अपने पिता को असली हीरो मानती हैं.

पढ़ें : हिमाचल प्रदेश : PM मोदी ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट में पहुंचे

ऊना नगर के पूर्व पार्षद एवं समाजसेवी नवदीप कश्यप ने कहा कि विशन दास उनके बचपन के साथी हैं. उन्होंने कहा कि विशन दास को सरकार की ओर से केवल 1500 रुपये दिव्यांगता पेंशन मिल रही है. इससे घर का खर्च उठाने में भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. नवदीप कश्यप ने सरकार से सौ प्रतिशत दिव्यांगों के लिए पेंशन राशि बढ़ाकर पांच या दस हजार करने की मांग उठायी है.

शिमला : हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के वार्ड नंबर एक के निवासी विशन दास दिव्यांगों के लिए मिसाल बनते जा रहे हैं. हादसे में दोनों टांगों के साथ छोड़ने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और आज अपनी हिम्मत और मेहनत के बल पर परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं.

दिव्यांगता से लड़कर भी पेट पालने वाले विशन दास को दिक्कतें हर राह पर मिल रही हैं. जिला ऊना के वार्ड नंबर एक में भू मालिकों के अपनी जमीनों पर तारबंदी करने से विशन दास के घर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है. इसलिए लोहे का भारी भरकम सामान भी उनके परिवार को कंधों पर उठाकर ही घर लाना पड़ता है.

देखें, दिव्यांग विशन दास की हैरतंगेज जीवनशैली.

विशन दास जन्म से दिव्यांग नहीं थे और करीब 15 साल पहले तक दिल्ली में उनका वेल्डिंग का काम बहुत बढ़िया चल रहा था, लेकिन वर्ष 2004 में विशन दास के साथ एक दुखद हादसा हुआ. आपसी लेन-देन के कारण उन्हीं के कामगार ने उनके पीठ में गोली मार दी. इससे विशन दास की कमर के नीचे का हिस्सा पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया और वह जीवनभर के लिए दिव्यांग बनकर रह गये.

इसके बाद दिल्ली में सारा काम छोड़ छाड़कर विशन दास अपने घर ऊना वापस आ गये. साथ ही दिल्ली से लोहे के उत्पाद बनाने में इस्तेमाल होने वाला अपना सारा सामान भी ऊना ले आये.

हादसे के बाद विशन दास पूरी तरह से टूट गये. फिलहाल तीन साल तक बिस्तर पर रहने के बाद उन्होंने बिस्तर पर लेटे ही वेल्डिंग का छोटा-छोटा काम करना शुरू कर दिया. इसीका नतीजा रहा कि आज वह वेल्डिंग का बड़े से बड़ा काम करने से भी पीछे नहीं हटते.

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विशन दास की हिम्मत को आगे बढ़ाने में उनके पूरे परिवार ने भी सहयोग किया. विशन दास की एक बेटी बीए और दूसरी बेटी बीएससी की शिक्षा ग्रहण कर रही है जबकि बेटा डीजल मैकेनिक की आईटीआई करने के बाद एक निजी कम्पनी में काम कर रहा है. विशन दास के काम में उनकी पत्नी और बेटियां भी हाथ बंटाती हैं. बता दें कि विशन दास अपनी पत्नी सुरजीत कौर को इस हौसले का सबसे अधिक श्रेय देते हैं.

विशन दास ने दिव्यांगता के चलते हिम्मत हारने वालों को संदेश दिया है - 'जीवन में असंभव कुछ भी नहीं है. उठो हिम्मत करो और चुनौती को स्वीकार करो. ऐसा करने पर जिंदगी तुम्हारे कदम चूमेगी.'

बिशन दास की बेटियां अपने पिता की हिम्मत से बहुत प्रभावित हैं और उनपर बहुत गर्व है. बड़ी बेटी प्रिया अपने पिता को असली हीरो मानती हैं.

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ऊना नगर के पूर्व पार्षद एवं समाजसेवी नवदीप कश्यप ने कहा कि विशन दास उनके बचपन के साथी हैं. उन्होंने कहा कि विशन दास को सरकार की ओर से केवल 1500 रुपये दिव्यांगता पेंशन मिल रही है. इससे घर का खर्च उठाने में भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. नवदीप कश्यप ने सरकार से सौ प्रतिशत दिव्यांगों के लिए पेंशन राशि बढ़ाकर पांच या दस हजार करने की मांग उठायी है.

Intro:स्लग -- ऊना के विशन दास ने पेश की मिसाल, हादसे में टांगों ने छोड़ा साथ, फिर नहीं हारी हिम्मत, 15 सालों से विस्तर पर लेट करता है बैल्डिंग का काम, बच्चों को पढ़ाने से लेकर परिवार का कर रहा पालन पोषण, दिव्यांगों को विशन दास का संदेश, हिम्मत से हर राह हो जाती है आसान। Body:एंकर -- ऊना के वार्ड नंबर एक का विशन दास दिव्यांगों के लिए मिसाल बनता जा रहा है। बेशक एक हादसे में विशन दास की दोनों टांगों ने उसका साथ छोड़ दिया हो बाबजूद इसके विशन दास ने हार नहीं मानी और आज अपनी हिम्मत और मेहनत के बल पर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है। विशन दास पिछले 15 सालों से बिस्तर पर लेटकर ही बैल्डिंग का काम कर रहा है। पैरों ने तो विशन दास का साथ छोड़ दिया है लेकिन विशन दास के हाथों में ऐसा जादू है कि उसके द्वारा बनाये गए लोहे के उत्पादों को देखकर कोई कह भी नहीं सकता की यह किसी दिव्यांग द्वारा बिस्तर पर लेटे लेटे बनाये गए है।

वी ओ 1 -- अगर दिल में कुछ कर गुजरने की चाह हो, तो किसी भी काम को करने में सफलता हासिल की जा सकती है। ऐसा सच कर दिखाया है ऊना के वार्ड न. एक के विशन दास ने। एक हादसे के बाद विशन दास की दोनों टांगों ने उसका साथ छोड़ दिया लेकिन विशन दास ने अपनी दिव्यांगता को अपने हौंसले के आगे नहीं बढ़ने दिया, और बिस्तर पर लेटकर ही लोहे के उत्पाद बनाकर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है। दिव्यांगता से लड़कर भी पेट पालने वाले विशन दास को दिक्कतें हर राह पर मिल रही है। ऊना के वार्ड न. एक में जहाँ उसका घर है वहां जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है क्योंकि भू मालिकों ने अपनी जमीनों पर तारबंदी कर दी है इसलिए लोहे का भारी भरकम सामान भी उसके परिवार को कंधो पर उठाकर ही घर पहुंचाना पड़ता है। विशन दास जन्म से दिव्यांग नहीं था बल्कि करीब 15 साल पहले तक विशन दास का दिल्ली में वैल्डिंग का बहुत ही बढ़िया काम चल रहा था लेकिन वर्ष 2004 में विशन दास के साथ एक दुखद हादसा घटा। आपसी लेन देन के कारण उसी के कामगार ने उसकी पीठ में गोली मार दी। जिससे विशन दास जीवन भर के लिए दिव्यांग बनकर रह गया। विशन दास की कमर के नीचे के हिस्से ने पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया और दिल्ली में सारा काम छोड़ छाड़ विशन दास अपने घर ऊना वापिस आ गया। दिल्ली से विशन दास अकेला नहीं आया बल्कि लोहे के उत्पाद बनाने में प्रयोग होने वाला अपना सारा सामान भी ऊना ले आया।

बाइट -- विशन दास (दिव्यांग)
HANDICAP WELDER 5


बाइट -- विशन दास (दिव्यांग)
HANDICAP WELDER 6

हादसे के बाद विशन दास पूरी तरह से टूट गया और तीन साल तक बिस्तर पर ही रहा। लेकिन तीन साल तक बिस्तर पर रहने के बाद जब विशन दास को लगा की उसके ऊपर पत्नी के साथ साथ एक बेटे और दो बेटियों की जिम्मेवारी है तो विशन दास ने हिम्मत रखते हुए बिस्तर पर लेटे लेटे ही बैल्डिंग का छोटा छोटा काम करना शुरू कर दिया और उसका नतीजा है कि आज विशन दास वैल्डिंग का बड़े से बड़ा काम करने से भी पीछे नहीं हटता।

बाइट -- विशन दास (दिव्यांग)
HANDICAP WELDER 7

बिशन दास की हिम्मत को आगे बढ़ाने में उसके पूरे परिवार ने पूरा सहयोग किया। विशन दास की एक बेटी बीए और दूसरी बेटी बीएससी की शिक्षा ग्रहण कर रही है जबकि बेटा डीजल मकैनिक की आई.टी.आई. करने के बाद एक निजी कम्पनी में काम कर रहा है। विशन दास के काम में उसकी पत्नी और बेटियां भी हाथ बंटाती है। विशन दास अपनी पत्नी सुरजीत कौर को इस हौसले का सबसे अधिक श्रेय देते हैं।

बाइट -- विशन दास (दिव्यांग)
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बिशन दास दिव्यांगता के चलते हिम्मत हारने वालो को संदेश दिया है कि जीवन में असंभव कुछ भी नहीं है। उठो हिम्मत करो और चुनौती को स्वीकार करो।

बाइट -- प्रिया (विशन दास की बेटी)
HANDICAP WELDER 9

बिशन दास की बेटियां अपने पिता की हिम्मत से बहुत प्रभावित है और उन्हें अपने पिता पर बहुत गर्व हैं। विशन दास की बड़ी बेटी प्रिया की माने तो उसके असली हीरो तो उसके पिता ही है।

बाइट -- नवदीप कश्यप (पूर्व पार्षद)
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ऊना नगर के पूर्व पार्षद एवं समाजसेवी नवदीप कश्यप की माने तो विशन दास उसका बचपन का साथी है। नवदीप कश्यप की माने तो विशन दास को सरकार की ओर से केवल 1500 रुपये दिव्यांगता पेंशन मिल रही है। कश्यप ने सरकार से सौ प्रतिशत दिव्यांगों के लिए पेंशन राशि बढ़ाकर पांच हजार करने की मांग उठाई है।
Conclusion:
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