हैदराबाद : डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई एक महान संस्थान निर्माता थे. उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी संख्या में संस्थान स्थापित में करने में मदद की. उन्होंने अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके पिता अंबालाल साराभाई एक संपन्न उद्योगपति थे और गुजरात में कई मिलों के मालिक थे. विक्रम साराभाई, पिता अंबालाल और माता सरला देवी के आठ बच्चों में से एक थे. इसरों ने डॉ. साराभाई को उनके 101वीं वर्षगांठ पर याद करते हुए ट्वीट किया:-
साराभाई अपने जीवन में महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर, जे कृष्णमूर्ति, मोतीलाल नेहरू, वी. श्रीनिवास शास्त्री, जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, मौलाना आजाद, सी.एफ. एंड्रयूज और सीवी रमन जैसे महान पुरुषों से बहुत प्रभावित थे. उनके घर अक्सर इन व्यक्तित्वों का आना-जाना बना रहता था. उनके साथ बातचीत कर साराभाई को विभिन्न विषयों में रुचि आने लगी.
- विक्रम साराभाई ने इंटरमीडिएट साइंस की परीक्षा पास करने के बाद अहमदाबाद में गुजरात कॉलेज से मैट्रिक किया. अपनी कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद वह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए, जहां उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान की ट्राइपोड डिग्री प्राप्त की.
- 1947 में, उन्हें कैम्ब्रिज में कैवेंडिश प्रयोगशाला में फोटोफिशियेशन (ट्रॉपिकल लैटिट्यूड्स में कॉस्मिक रे जांच) पर अपने काम के लिए पीएचडी मिली.
- उन्हें कॉस्मिक रेज के बारे में जानने में विशेष रुचि थी. उन्होंने इसी विषय पर शोध भी किया. उन्होंने पूना सेंट्रल मेट्रोलॉजिकल स्टेशन में कुछ समय के लिए कॉस्मिक रेज पर शोध किया और बाद में अपने शोध को जारी रखने के लिए वे कश्मीर चले गए.
- उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु में भौतिक विज्ञानी सर सीवी रमन के मार्गदर्शन में भी कॉस्मिक रेज पर शोध किया.
- कैंब्रिज से लौटने के कुछ समय बाद, उन्होंने अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना की. यहां कॉस्मिक रेज और बाहरी अंतरिक्ष का अध्ययन होता था.
- 1955 में साराभाई ने कश्मीर के गुलमर्ग में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की एक शाखा स्थापित की. भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग ने एक ही स्थान पर एक पूर्ण उच्च क्षमता अनुसंधान केंद्र की स्थापना की.
- वह भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग में परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष भी रहे. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (आईएसआरओ) का विस्तार करके उन्होंने भारत को अंतरिक्ष-युग में ले जाने के लिए अहम योगदान दिया.
- उन्हें वर्ष 1957-1958 को अंतररार्ष्ट्रीय भू-भौतिक वर्ष (आईजीवाई) के रूप में नामित किया गया. आईजीवाई के लिए भारतीय कार्यक्रम साराभाई के सबसे महत्वपूर्ण उपक्रमों में से एक था. इसने उन्हें 1957 में स्पुतनिक- I के प्रक्षेपण के साथ अंतरिक्ष विज्ञान के नए विस्तार के लिए संपर्क किया.
- साराभाई भारत में दवा उद्योग के एक अग्रणी थे. वह दवा उद्योग में उन लोगों में से एक थे, जिन्होंने यह माना कि गुणवत्ता के उच्चतम मानकों को किसी भी कीमत पर बनाए रखना और स्थापित रखा जाना चाहिए. यह साराभाई ही थे जिन्होंने सबसे पहले फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री में इलेक्ट्रॉनिक डाटा प्रोसेसिंग और ऑपरेशंस रिसर्च टेक्निक्स को लागू किया था.
'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी. उन्होंने रूसी स्पूतनिक प्रक्षेपण के बाद भारत जैसे विकासशील देश के लिए एक अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व पर सरकार को सफलतापूर्वक आश्वस्त किया.
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Paying tributes to the Father of the Indian Space Program, Dr. Vikram Ambalal Sarabhai on his birth anniversary.
— ISRO (@isro) August 12, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
Recently, Chandrayaan-2 captured the Sarabhai Crater on Moon. Read more here https://t.co/VQwS4HYh0g#VikramSarabhai pic.twitter.com/3MjLM3yTX5
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डॉ. साराभाई ने अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व पर जोर दिया
कुछ लोग प्रगतिशील देशों में अंतरिक्ष क्रियाकलाप की प्रासंगिकता के बारे में प्रश्न चिन्ह लगाते हैं. हमें अपने लक्ष्य पर कोई संशय नहीं है. हम चन्द्र और उपग्रहों के अन्वेषण के क्षेत्र में विकसित देशों से होड़ का सपना नहीं देखते किंतु राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अर्थपूर्ण भूमिका निभाने के लिए मानव समाज की कठिनाइयों के हल में अति-उन्नत तकनीक के प्रयोग में किसी से पीछे नहीं रहना चाहते.
भारत के परमाणु विज्ञान कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने भारत के पहले राकेट प्रमोचन केंद्र की स्थापित करने में डॉ. साराभाई का समर्थन किया. यह केंद्र मुख्य रूप से भूमध्य रेखा के लिए अपनी निकटता के कारण अरब सागर के तट पर तिरुवनंतपुरम के निकट थुम्बा में स्थापित किया गया था. अवसंरचना, कार्मिक, संचार लिंक और लॉन्च पैड की स्थापना में उल्लेखनीय प्रयास के बाद, सोडियम वाष्प पेलोड के साथ 21 नवंबर, 1963 को प्रारंभिक उड़ान को लाॉन्च किया गया था.
1966 में नासा के साथ डॉ. साराभाई की बातचीत के परिणाम स्वरूप, 1975 जुलाई से जुलाई 1976 के दौरान (जब डॉ. साराभाई नहीं रहे) - उपग्रह निर्देशात्मक दूरदर्शन प्रयोग (साइट) शुरू किया गया था.
डॉ. साराभाई ने एक भारतीय उपग्रह के निर्माण और प्रक्षेपण के लिए एक परियोजना शुरू की. परिणामस्वरूप, पहला भारतीय उपग्रह, आर्यभट्ट, 1975 में एक रूसी कॉस्मोड्रोम से कक्षा में रखा गया था.
- साराभाई ने केरल के थुम्बा में अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र और अहमदाबाद में प्रायोगिक उपग्रह संचार पृथ्वी स्टेशन की स्थापना की.
- आर्यभट्ट की योजना उनकी आदेश के तहत की गई थी. जिसे 1975 में लॉन्च किया गया.
- उन्होंने सामाजिक और शैक्षणिक समस्याओं के अध्ययन के लिए 1963 में नेहरू फाउंडेशन फॉर डेवलपमेंट की स्थापना की. उसी वर्ष, उन्होंने सामुदायिक विज्ञान केंद्र की भी स्थापना की जिसका उद्देश्य ज्ञान फैलाना, रुचि पैदा करना और छात्रों, बच्चों और विज्ञान से संबंधित जनता के बीच प्रयोग को बढ़ावा देना था.
- उन्होंने 1947 में अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज़ रिसर्च एसोसिएशन की भी स्थापना की.
- डर्पण एकेडमी फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स, अहमदाबाद (अपनी पत्नी के साथ)
- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम
- अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद (साराभाई द्वारा स्थापित छह संस्थानों / केंद्रों के विलय के बाद यह संस्था अस्तित्व में आई)
- फास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफबीटीआर), कल्पक्कम
- वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रोन प्रोजेक्ट, कोलकाता
- इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल), हैदराबाद
- यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल), बिहार
साराभाई गहरे सांस्कृतिक हितों के व्यक्ति थे. उनकी रुचि संगीत, फोटोग्राफी, पुरातत्व, ललित कला, इत्यादि में थी. अपनी पत्नी मृणालिनी के साथ उन्होंने प्रदर्शन कलाओं को समर्पित एक संस्था दारापना की स्थापना की.
उनका मानना था कि एक वैज्ञानिक को समाज की समस्याओं को समझना चाहिए. साराभाई का देश में विज्ञान शिक्षा की स्थिति से गहरा संबंध था जिसको सुधारने के लिए उन्होंने सामुदायिक विज्ञान केंद्र की स्थापना की थी. वह व्यक्ति को देखकर उसकी क्षमता को पहचान जाते थे और वे उनके साथ काम करने वाले सभी लोगों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत थे.