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पुरुषों में शराब की लत ने ऐसे दिया इस इलाके को 'विधवा गांव' का नाम

रांची से सटे एक गांव की 50 फीसद महिलाएं आज भी विधवा हैं. जिसकी मुख्य वजह शराब बताई जाती है. हालांकि यहां के लोग अब जागरूक होकर इस धब्बे को मिटाने की कोशिश में जुटे हैं.

विधवा गांव की कहनी.
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Published : Jul 17, 2019, 12:38 PM IST

रांची: झारखंड की राजधानी रांची से कुछ किलोमीटर दूर ब्राम्बे एक ऐसा गांव है, जिसके ऊपर 'विधवा गांव' होने का धब्बा लगा हुआ है. इस गांव में बड़ी संख्या में महिलाएं विधवा हो चुकी हैं. इसकी मुख्य वजह शराब को कारण हुई बिमारी से लोगों की मौत बताई जाती है. रांची-डालटेनगंज मुख्य सड़क के किनारे इस गांव में 600 से अधिक घर है, जहां 200 से अधिक विधवा महिलाएं अलग-अलग परिवारों में हैं.

राजधानी के मांडर ब्लॉक में पड़ने वाले इस गांव में लगभग 70% आबादी अनुसूचित जनजाति की है और बाकी के 30% आबादी में मिश्रित समुदाय के लोग शामिल हैं. गांव के मुखिया जयवंत तिग्गा बताते हैं कि एक समय ऐसा था, जब लोग शराब के नशे में धुत नजर आने लगे. उन्होंने कहा कि पूरे ब्राम्बे पंचायत के अधिकतर घरों में शराब बनाई जाती थी और लोग उसका सेवन करते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों में स्थिति बदली है. शराब के प्रति लोगों में जागरूकता फैली है और शराब का सेवन कम कर दिया है.

विधवा गांव की कहनी.

जयवंत बताते हैं कि गांव के साथ विधवा शब्द जोड़ा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है और वह खुद प्रयास कर रहे हैं कि यह धब्बा किसी तरह से हट जाए. वहीं, गांव के उप मुखिया मोइन आलम कहते हैं कि सब कुछ ठीक-ठाक था, लेकिन ब्राम्बे में बने सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों ने एक सर्वे किया. उस सर्वे में उन्होंने यह दिखया कि गांव में विधवा महिलाओं की संख्या अधिक है और इससे जुड़ा वीडियो उन्होंने इंटरनेट पर डाला. वीडियो में दिखाया गया कि शराब का सेवन करने से गांव के पुरुषों की मौत हुई है, जिससे अधिकतर महिलाए विधवा हैं.

इस वीडियो के सामने आने के बाद यह इतनी तेजी से वायरल हो गया कि ब्राम्बे पंचायत के अंतर्गत पड़ने वाला यह गांव विधवा गांव के नाम से जाना जाने लगा.

हाईवे पर रहने वाले मोइन कहते हैं कि अब हालत यह है कि लोग आकर इस नाम से गांव को संबोधित करते हैं. ब्राम्बे गांव के बारे में वे लोग जानना चाहते हैं, जो अपने आप में हास्यास्पद है. उन्होंने कहा कि जो भी डाटा सर्वे में दिया गया उसकी प्रमाणिकता पर भी सवाल खड़ा होता है. गांव के लोग भी इस बात को मानते हैं कि शराब का प्रचलन यहां काफी तेजी से बढ़ा. इस वजह से बीमारी की चपेट में लोग आए और उनकी मौतें हुईं.

गांव में रहने वाले अंसारी कहते हैं कि दरअसल मुख्य सड़क के किनारे रहने की वजह से यहां हफ्ते में 3 दिन बाजार लगता है. ऐसे में लोग अपने-अपने उत्पाद लाकर यहां बेचते हैं. उससे होने वाली कमाई उनके शराब पीने में खर्च होती गई. बाद में शराब की ये बुरी आदत लोगों के जान पर बन आई. पुरुषों की मौत से महिलाएं विधवा होने लगीं.

अंसारी साफ तौर पर कहते हैं कि ऐसी बात अब नहीं है. लोग अब जागरूक हो गए हैं और इस तरह की घटनाएं नहीं होती हैं. अब महिलाएं आत्मनिर्भर होने के लिए रानी मिस्त्री की ट्रेनिंग कर रही हैं. साथ ही स्वयं सहायता समूहों से भी जुड़ रही हैं. दरअसल ब्राम्बे पंचायत में 4 गांव हैं, जिसमें ब्राम्बे, मल टोटी, चुंद और टीकाटोली सरकारी भाषा मे सभी चारों रेवेन्यू विलेज हैं और पंचायत की आबादी 3000 के आसपास है.

रांची: झारखंड की राजधानी रांची से कुछ किलोमीटर दूर ब्राम्बे एक ऐसा गांव है, जिसके ऊपर 'विधवा गांव' होने का धब्बा लगा हुआ है. इस गांव में बड़ी संख्या में महिलाएं विधवा हो चुकी हैं. इसकी मुख्य वजह शराब को कारण हुई बिमारी से लोगों की मौत बताई जाती है. रांची-डालटेनगंज मुख्य सड़क के किनारे इस गांव में 600 से अधिक घर है, जहां 200 से अधिक विधवा महिलाएं अलग-अलग परिवारों में हैं.

राजधानी के मांडर ब्लॉक में पड़ने वाले इस गांव में लगभग 70% आबादी अनुसूचित जनजाति की है और बाकी के 30% आबादी में मिश्रित समुदाय के लोग शामिल हैं. गांव के मुखिया जयवंत तिग्गा बताते हैं कि एक समय ऐसा था, जब लोग शराब के नशे में धुत नजर आने लगे. उन्होंने कहा कि पूरे ब्राम्बे पंचायत के अधिकतर घरों में शराब बनाई जाती थी और लोग उसका सेवन करते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों में स्थिति बदली है. शराब के प्रति लोगों में जागरूकता फैली है और शराब का सेवन कम कर दिया है.

विधवा गांव की कहनी.

जयवंत बताते हैं कि गांव के साथ विधवा शब्द जोड़ा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है और वह खुद प्रयास कर रहे हैं कि यह धब्बा किसी तरह से हट जाए. वहीं, गांव के उप मुखिया मोइन आलम कहते हैं कि सब कुछ ठीक-ठाक था, लेकिन ब्राम्बे में बने सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों ने एक सर्वे किया. उस सर्वे में उन्होंने यह दिखया कि गांव में विधवा महिलाओं की संख्या अधिक है और इससे जुड़ा वीडियो उन्होंने इंटरनेट पर डाला. वीडियो में दिखाया गया कि शराब का सेवन करने से गांव के पुरुषों की मौत हुई है, जिससे अधिकतर महिलाए विधवा हैं.

इस वीडियो के सामने आने के बाद यह इतनी तेजी से वायरल हो गया कि ब्राम्बे पंचायत के अंतर्गत पड़ने वाला यह गांव विधवा गांव के नाम से जाना जाने लगा.

हाईवे पर रहने वाले मोइन कहते हैं कि अब हालत यह है कि लोग आकर इस नाम से गांव को संबोधित करते हैं. ब्राम्बे गांव के बारे में वे लोग जानना चाहते हैं, जो अपने आप में हास्यास्पद है. उन्होंने कहा कि जो भी डाटा सर्वे में दिया गया उसकी प्रमाणिकता पर भी सवाल खड़ा होता है. गांव के लोग भी इस बात को मानते हैं कि शराब का प्रचलन यहां काफी तेजी से बढ़ा. इस वजह से बीमारी की चपेट में लोग आए और उनकी मौतें हुईं.

गांव में रहने वाले अंसारी कहते हैं कि दरअसल मुख्य सड़क के किनारे रहने की वजह से यहां हफ्ते में 3 दिन बाजार लगता है. ऐसे में लोग अपने-अपने उत्पाद लाकर यहां बेचते हैं. उससे होने वाली कमाई उनके शराब पीने में खर्च होती गई. बाद में शराब की ये बुरी आदत लोगों के जान पर बन आई. पुरुषों की मौत से महिलाएं विधवा होने लगीं.

अंसारी साफ तौर पर कहते हैं कि ऐसी बात अब नहीं है. लोग अब जागरूक हो गए हैं और इस तरह की घटनाएं नहीं होती हैं. अब महिलाएं आत्मनिर्भर होने के लिए रानी मिस्त्री की ट्रेनिंग कर रही हैं. साथ ही स्वयं सहायता समूहों से भी जुड़ रही हैं. दरअसल ब्राम्बे पंचायत में 4 गांव हैं, जिसमें ब्राम्बे, मल टोटी, चुंद और टीकाटोली सरकारी भाषा मे सभी चारों रेवेन्यू विलेज हैं और पंचायत की आबादी 3000 के आसपास है.

Intro:बाइट 1 जयवंत तिग्गा मुखिया ब्राम्बे
बाइट 2 मोइन आलम उप मुखिया ब्राम्बे
बाइट 3 मृतक बिगू उरांव की बहू
बाइट 4 स्थानीय निवासी ब्राम्बे


रांची। सूबे की राजधानी से कुछ किलोमीटर दूर ब्राम्बे एक ऐसा गांव है जिसके ऊपर 'विधवा गांव' होने का धब्बा लगा हुआ है। दरअसल इस गांव में बड़ी संख्या में महिलाएं विधवा हो चुकी हैं जिसकी मुख्य वजह शराब बताई जाती है। रांची-डालटेनगंज मुख्य सड़क के किनारे राजधानी रांची से लगभग 20 किलोमीटर दूर इस गांव में 600 से अधिक घर है जहां 200 से अधिक विधवा महिलाएं अलग-अलग परिवारों में है।

राजधानी के मांडर ब्लॉक में पड़ने वाले इस गांव में लगभग 70% आबादी अनुसूचित जनजाति की है और बाकी के 30% आबादी में मिश्रित समुदाय के लोग शामिल है। गांव के मुखिया जयवंत तिग्गा बताते हैं कि दरअसल एक समय ऐसा था जब यहां शराब पीने का प्रचलन काफी तेजी से उभरा। उन्होंने कहा कि पूरे ब्राम्बे में पंचायत में अधिकतर घरों में शराब बनाई जाती थी और लोग उसका सेवन करते थे। लेकिन पिछले कुछ सालों में स्थितियां बदली हैं शराब के प्रति लोगों में जागरूकता फैली है और शराब उसका सेवन कम कर दिया है। जयवंत बताते हैं कि गांव के साथ विधवा शब्द जोड़ा जाना दुर्भाग्यजनक है और वह खुद प्रयास कर रहे हैं कि यह धब्बा किसी तरह से हट जाए।


Body:वहीं गांव के उप मुखिया मोइन आलम कहते हैं कि दरअसल सारा कुछ ठीक-ठाक था लेकिन ब्राम्बे में बने सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों ने एक सर्वे किया। उस सर्वे में उन्होंने यह दिखलाया कि गांव में विधवा महिलाओं की संख्या अधिक है और इससे जुड़ा वीडियो उन्होंने इंटरनेट पर डाला। उसके बाद यह इतनी तेजी से वायरल हो गया कि ब्राम्बे पंचायत के अंतर्गत पड़ने वाला यह विधवा गांव के नाम से ज्यादा मशहूर हो गया। हाई वे पर रहने मोइन कहते हैं कि अब हालत यह है कि लोग आकर इस नाम से संबोधित कर ब्राम्बे गांव के बारे में जानना चाहते हैं जो अपने आप में हास्यास्पद है। उन्होंने कहा कि जो भी डाटा सर्वे में दिया गया उसके प्रमाणिकता पर भी सवाल खड़ा होता है।


Conclusion:गांव के लोग भी इस बात को मानते हैं कि शराब का प्रचलन यहां काफी तेजी से बढ़ा। इस वजह से बीमारी की चपेट में लोग आए और उनकी मौतें हुई। गांव में रहने वाले अंसारी कहते हैं कि दरअसल मुख्य सड़क के किनारे रहने की वजह से यहां हफ्ते में 3 दिन बाजार लगता है। ऐसे में लोग अपने अपने उत्पाद लाकर यहां बेचते हैं। उससे मिलने वाली आमदनी उनके शराब पीने में खर्च होती गई। यही वजह है कि यहां जाकर मौतें इस वजह से हुई।

उन्होंने साफ कहा कि ऐसी बात अब नहीं है लोग अब जागरूक हो गए हैं और इस तरह की घटनाएं नहीं होती। अब महिलाएं आत्मनिर्भर होने के लिए रानी मिस्त्री की ट्रेनिंग कर रही हैं। साथ ही स्वयं सहायता समूहों से भी जुड़ रही है।
दरअसल ब्राम्बे पंचायत में 4 गांव हैं जिसमें ब्राम्बे, मल टोटी, चुंद और टीका टोली के नाम शामिल हैं। सरकारी भाषा मे सभी चारों रेवेन्यू विलेज हैं और पंचायत की आबादी 3000 के आसपास है।
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