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अध्याय नौ : घर बनवा रहे हैं, तो आंगन जरूर बनवाएं, धन और सत्ता दोनों आएंगे

वास्तु के हिसाब से मकान में देहरी और आंगन दोनों का अपना महत्व है. वास्तु शास्त्र कहता है कि घर में दोनों होने चाहिए. आंगन न सिर्फ इसलिए जरूरी है कि हवा और धूप आ सके, बल्कि यह धन और सौभाग्य दोनों को बढ़ाता है.

आंगन जरूर बनवाएं
आंगन जरूर बनवाएं
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Published : Feb 9, 2021, 6:00 AM IST

Updated : Feb 9, 2021, 8:06 AM IST

हैदराबाद : वास्तु के हिसाब से मकान में देहरी और आंगन दोनों होने चाहिए. कहावत है कि घर की इज्जत देहरी से बाहर नहीं जानी चाहिए. पहले देहरी घर में आवश्यक निर्माण था, जो घर और बाहर के बीच विभाजक के रूप में कार्य करता था. देहरी पर पैर रखे बिना घर में प्रवेश करना सम्भव नहीं था. आजकल मकानों में देहरी और आंगन दोनों ही नहीं होते.

फ्लैट संस्कृति ने शास्त्रोक्त भवन योजनाओं को असम्भव बना दिया है. यदि बहुमंजिला भवन निर्माण के समय स्ट्रक्चर प्लान या कॉलम प्लान (स्तंभ योजना) पर ध्यान नहीं दिया जाए तो व्यक्तिगत फ्लैट्स में वास्तु योजना लागू करना सम्भव नहीं है. जब स्तम्भ योजना में वास्तु शास्त्रियों द्वारा संशोधन प्रस्तावित किए जाते हैं तो आर्किटेक्ट की योजना में बदलाव आता है और वे विरोध करते हैं.

वास्तु के हिसाब से आंगन
वास्तु के हिसाब से आंगन

आंगन के स्थान पर फ्लैट्स में लॉबी या लाउंज की प्रस्तावना की जाती है, उसे आंगन नहीं कहा जा सकता. आंगन खुला भी होना चाहिए ताकि धूप और हवा मकान में प्रवेश करें, इसके लिए आंगन सर्वश्रेष्ठ माध्यम हो सकता है परंतु फ्लैट योजनाओं में यह सम्भव नहीं है. मकान में आंगन की व्यवस्था की शास्त्रों में बड़ी प्रशंसा की गई है.

भूखण्ड, आंगन और घर तीनों में मण्डल और मण्डलेश का विचार किया जाता है. इस पद्धति में भूखण्ड की लम्बाई और चौड़ाई को गुणा करके 9 का भाग देकर शेष अंक से शुभ-अशुभ का विचार किया जाता है. यदि गृहस्वामी के हाथ या फुट या मीटर में भूखण्ड की लम्बाई और चौड़ाई को गुणा करके 9 का भाग दिया जाए तो शेष जो बचे, उसका फल शास्त्रों में बताया गया है. यदि अवशेष एक हो तो दाता, दो धूपति, तीन हो तो क्लीव (नपुंसक), चार हो तो चोर, पांच हो तो पंडित, छह हो तो भोगी, सात हो तो धनाड्य, आठ हो तो दरिद्र और नौ हो तो धनी. ये नौ मण्डल होते हैं. आंगन के बारे में भी ऐसी ही गणना है.

आंगन की लम्बाई और चौड़ाई को गुणा करके नौ का भाग दिया जाए तो अवशेष राशि के आधार पर विभिन्न फल मिलते हैं. एक बचे तो दाता, दो बचे तो पंडित, तीन भीरु, चार हो तो कलह, पांच हो तो नृप, छह हो तो दानव, सात हो तो नपुंसक, आठ हो तो चोर और नौ हो तो धनी होते हैं. ये आंगनों के नाम होते हैं. जैसे इनके नाम बताए गए हैं वैसे ही फल भी मिलते हैं.

बीच में नीचा और चारों ओर से ऊंचा आंगन ठीक नहीं रहता परंतु बीच में ऊंचा हो और चारों ओर से नीचा हो तो ऐसा आंगन शुभ फल करता है. जहां आंगन पक्का कराया जाता है, वहां भी विवाह मण्डप के लिए थोड़ा सा स्थान कच्चा छोड़ दिया जाता है.

ये भी पढ़ें-

अध्याय एक : जानिए वास्तु पुरुष की स्थापना से जुड़ी कथा

अध्याय दो : आपके घर के शास्त्रीय पक्ष के रक्षक हैं 'विश्वकर्मा'

अध्याय तीन : हर प्लॉट के अंदर होते हैं 45 देवता, जानिए वास्तु चक्र के इन देवताओं के बारे में

अध्याय चार : अपने सपनों के घर का द्वार वराहमिहिर की बताई योजना के अनुसार बनवाएं

अध्याय पांच : घर में गलत स्थान पर भूमिगत जल संग्रह बन सकता है संतान हानि और पड़ोसियों से ईर्ष्या का कारण

अध्याय छह : वास्तु के हिसाब से कैसा हो आपका ड्राइंग रूम, जानें

अध्याय सात : घर का ड्राइंग रूम हमेशा ईशान कोण में ही बनवाएं

अध्याय आठ : बच्चों को पढ़ाई में अव्वल देखना चाहते हैं, तो घर के इस कोने में बनवाइए स्टडी रूम

आंगन की गणना के लिए ब्रह्म स्थान के क्षेत्राधिकार का ज्ञान होना अति आवश्यक है. प्रायः लोगों को एक बिन्दु विशेष को इंगित करते हुए देखा है, जिसे वे ब्रह्म स्थान बताते हैं, जबकि वास्तु शास्त्र के अनुसार एकाशीतिपद (81) योजना में ब्रह्मा के नौ पद होते हैं अर्थात् ब्रह्मा भूखण्ड के लगभग नवें भाग के बराबर के क्षेत्राधिकारी होते हैं. यदि 90 वर्गमीटर का भूखण्ड है तो 10 वर्गमीटर ब्रह्मा के क्षेत्राधिकार में आता है.

आंगन का क्षेत्र ब्रह्म स्थान के क्षेत्र से कुछ बड़ा होना चाहिए. शेखावाटी जनपद में कई चौक की हवेलियों में परीक्षण किया गया तो पाया गया कि चौक योजना, ब्रह्म स्थान को आधार मानकर ही बनाई जाती रही है. 81 में से 15 पर कुल भूमि का 18.5 प्रतिशत क्षेत्रफल होता है लेकिन इतनी भूमि में निर्माण के लालच को त्यागने से उन घरानों में धन और सत्ता दोनों आई है. अतः आंगन का महत्व बहुत अधिक है. आंगन योजना दोष निवारण की सर्वश्रेष्ठ पद्धति है.

भूमि के अभाव में यदि आंगन का स्थान पक्का कराना पड़े तो करा सकते हैं परंतु फाउंडेशन बहुत गहरा नहीं होना चाहिए. प्रथम तल की छत में आंगन के ठीक ऊपर पक्का निर्माण न कराकर लोहे का जाल या पारदर्शी शीट्स (फाइबर) लगाना भी एक अच्छा उपाय है. आजकल आर्किटेक्ट आंगन के ऊपर डबल हाइट देना पसंद करते हैं. यदि वे भवन के एकदम मध्य को सबसे ऊंचा न रखकर डबल हाइट के दक्षिण-पश्चिम में एक मंजिल और चढ़ा लें तो भवन की गुणवत्ता भी बढ़ जाएगी और आंगन के नियमों की पालना भी हो जाएगी.

लेखक - पंडित सतीश शर्मा, सुप्रसिद्ध वास्तुशास्त्री

ईमेल - satishsharma54@gmail.com

हैदराबाद : वास्तु के हिसाब से मकान में देहरी और आंगन दोनों होने चाहिए. कहावत है कि घर की इज्जत देहरी से बाहर नहीं जानी चाहिए. पहले देहरी घर में आवश्यक निर्माण था, जो घर और बाहर के बीच विभाजक के रूप में कार्य करता था. देहरी पर पैर रखे बिना घर में प्रवेश करना सम्भव नहीं था. आजकल मकानों में देहरी और आंगन दोनों ही नहीं होते.

फ्लैट संस्कृति ने शास्त्रोक्त भवन योजनाओं को असम्भव बना दिया है. यदि बहुमंजिला भवन निर्माण के समय स्ट्रक्चर प्लान या कॉलम प्लान (स्तंभ योजना) पर ध्यान नहीं दिया जाए तो व्यक्तिगत फ्लैट्स में वास्तु योजना लागू करना सम्भव नहीं है. जब स्तम्भ योजना में वास्तु शास्त्रियों द्वारा संशोधन प्रस्तावित किए जाते हैं तो आर्किटेक्ट की योजना में बदलाव आता है और वे विरोध करते हैं.

वास्तु के हिसाब से आंगन
वास्तु के हिसाब से आंगन

आंगन के स्थान पर फ्लैट्स में लॉबी या लाउंज की प्रस्तावना की जाती है, उसे आंगन नहीं कहा जा सकता. आंगन खुला भी होना चाहिए ताकि धूप और हवा मकान में प्रवेश करें, इसके लिए आंगन सर्वश्रेष्ठ माध्यम हो सकता है परंतु फ्लैट योजनाओं में यह सम्भव नहीं है. मकान में आंगन की व्यवस्था की शास्त्रों में बड़ी प्रशंसा की गई है.

भूखण्ड, आंगन और घर तीनों में मण्डल और मण्डलेश का विचार किया जाता है. इस पद्धति में भूखण्ड की लम्बाई और चौड़ाई को गुणा करके 9 का भाग देकर शेष अंक से शुभ-अशुभ का विचार किया जाता है. यदि गृहस्वामी के हाथ या फुट या मीटर में भूखण्ड की लम्बाई और चौड़ाई को गुणा करके 9 का भाग दिया जाए तो शेष जो बचे, उसका फल शास्त्रों में बताया गया है. यदि अवशेष एक हो तो दाता, दो धूपति, तीन हो तो क्लीव (नपुंसक), चार हो तो चोर, पांच हो तो पंडित, छह हो तो भोगी, सात हो तो धनाड्य, आठ हो तो दरिद्र और नौ हो तो धनी. ये नौ मण्डल होते हैं. आंगन के बारे में भी ऐसी ही गणना है.

आंगन की लम्बाई और चौड़ाई को गुणा करके नौ का भाग दिया जाए तो अवशेष राशि के आधार पर विभिन्न फल मिलते हैं. एक बचे तो दाता, दो बचे तो पंडित, तीन भीरु, चार हो तो कलह, पांच हो तो नृप, छह हो तो दानव, सात हो तो नपुंसक, आठ हो तो चोर और नौ हो तो धनी होते हैं. ये आंगनों के नाम होते हैं. जैसे इनके नाम बताए गए हैं वैसे ही फल भी मिलते हैं.

बीच में नीचा और चारों ओर से ऊंचा आंगन ठीक नहीं रहता परंतु बीच में ऊंचा हो और चारों ओर से नीचा हो तो ऐसा आंगन शुभ फल करता है. जहां आंगन पक्का कराया जाता है, वहां भी विवाह मण्डप के लिए थोड़ा सा स्थान कच्चा छोड़ दिया जाता है.

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अध्याय चार : अपने सपनों के घर का द्वार वराहमिहिर की बताई योजना के अनुसार बनवाएं

अध्याय पांच : घर में गलत स्थान पर भूमिगत जल संग्रह बन सकता है संतान हानि और पड़ोसियों से ईर्ष्या का कारण

अध्याय छह : वास्तु के हिसाब से कैसा हो आपका ड्राइंग रूम, जानें

अध्याय सात : घर का ड्राइंग रूम हमेशा ईशान कोण में ही बनवाएं

अध्याय आठ : बच्चों को पढ़ाई में अव्वल देखना चाहते हैं, तो घर के इस कोने में बनवाइए स्टडी रूम

आंगन की गणना के लिए ब्रह्म स्थान के क्षेत्राधिकार का ज्ञान होना अति आवश्यक है. प्रायः लोगों को एक बिन्दु विशेष को इंगित करते हुए देखा है, जिसे वे ब्रह्म स्थान बताते हैं, जबकि वास्तु शास्त्र के अनुसार एकाशीतिपद (81) योजना में ब्रह्मा के नौ पद होते हैं अर्थात् ब्रह्मा भूखण्ड के लगभग नवें भाग के बराबर के क्षेत्राधिकारी होते हैं. यदि 90 वर्गमीटर का भूखण्ड है तो 10 वर्गमीटर ब्रह्मा के क्षेत्राधिकार में आता है.

आंगन का क्षेत्र ब्रह्म स्थान के क्षेत्र से कुछ बड़ा होना चाहिए. शेखावाटी जनपद में कई चौक की हवेलियों में परीक्षण किया गया तो पाया गया कि चौक योजना, ब्रह्म स्थान को आधार मानकर ही बनाई जाती रही है. 81 में से 15 पर कुल भूमि का 18.5 प्रतिशत क्षेत्रफल होता है लेकिन इतनी भूमि में निर्माण के लालच को त्यागने से उन घरानों में धन और सत्ता दोनों आई है. अतः आंगन का महत्व बहुत अधिक है. आंगन योजना दोष निवारण की सर्वश्रेष्ठ पद्धति है.

भूमि के अभाव में यदि आंगन का स्थान पक्का कराना पड़े तो करा सकते हैं परंतु फाउंडेशन बहुत गहरा नहीं होना चाहिए. प्रथम तल की छत में आंगन के ठीक ऊपर पक्का निर्माण न कराकर लोहे का जाल या पारदर्शी शीट्स (फाइबर) लगाना भी एक अच्छा उपाय है. आजकल आर्किटेक्ट आंगन के ऊपर डबल हाइट देना पसंद करते हैं. यदि वे भवन के एकदम मध्य को सबसे ऊंचा न रखकर डबल हाइट के दक्षिण-पश्चिम में एक मंजिल और चढ़ा लें तो भवन की गुणवत्ता भी बढ़ जाएगी और आंगन के नियमों की पालना भी हो जाएगी.

लेखक - पंडित सतीश शर्मा, सुप्रसिद्ध वास्तुशास्त्री

ईमेल - satishsharma54@gmail.com

Last Updated : Feb 9, 2021, 8:06 AM IST
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