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उत्तर प्रदेश : आर्थिक तंगी का दंश झेल रहे काशी के विद्वान - financial difficulties

यूपी के वाराणसी जिले के ब्राह्मण इन दिनों आर्थिक तंगी का दंश झेल रहे हैं. कोरोना वायरस के कारण कोई पूजा-पाठ के कार्यक्रम नहीं करा रहा है. जिसके कारण हमें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है.

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Published : Nov 1, 2020, 1:59 PM IST

वाराणसी : बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी को सर्व विद्या की राजधानी कहा जाता है. यहां के विद्वानों ने पूरे विश्व को एक अलग तेज प्रदान किया है. काशी की परंपरा को आगे बढ़ा रहे यह विश्व विख्यात ब्राह्मणों की आर्थिक स्थिति कोरोना लॉकडाउन के दौरान मुश्किल में चली गई है. इन दिनों काशी के ब्राह्मण बेहद ही दयनीय स्थिति में है. लॉकडाउन के कारण उनको एक वक्त का खाना मिल रहा है तो दूसरे वक्त के लिए उन्हें सोचना पड़ रहा है. ब्राह्मणों का कहना है कि हमारा दर्द सुनने वाला कोई नहीं है.

दरअसल, कोरोना महामारी के कारण सभी धार्मिक आयोजन बंद हैं. सरकार ने कोरोना गाइडलाइन का पालने के साथ मठ मंदिरों को खोलने के आदेश तो दे दिए हैं, लेकिन कोरोना महामारी के खौफ से उबरने में लोगों को समय लगेगा. यही वजह है कि मंदिर खुले होने के बाद भी भक्तों की भीड़ कम देखने को मिल रही है.

ब्राह्मणों की आमदनी पर कोरोना की मार

ऐसी स्थिति में लोग घरों में पूजा पाठ कराने से भी बच रहे हैं. सबसे बुरी हालत काशी के उन गरीब ब्राह्मणों की है, जिनका गुजारा ही जजमान के घरों में पूजा पाठ कराकर चलता था. कोरोना के कारण सभी ब्राह्मण आर्थिक परेशानी का सामना कर रहे हैं.

भूखे रहने को मजबूर ब्राह्मण
ब्राह्मणों का कहना है कि जैसे-तैसे हम गुजारा कर रहे हैं. एक वक्त भोजन कर रहे हैं तो एक वक्त भूखे रहने को मजबूर है, क्योंकि हमारे सारे सीजन खत्म हो गए. अब हमारे पास आमदनी का कोई भी जरिया नहीं बचा है. यानी लॉकडाउन के वजह से मंदिर में पूजा-पाठ के कार्यक्रम नहीं कराए गए और अभी भी यह कार्यक्रम नहीं चल रहा है. इक्का-दुक्का जप पूजा अनुष्ठान मिल रही है, जिससे जैसे-तैसे गुजारा कर रहे हैं.

सुनाया अपना दर्द
पंडित विमलेश ने कहा कि हमारे दर्द को कोई सुनने वाला नहीं है. चुनाव में भी सबकी बात की जाती है, लेकिन हमारे लिए कोई सोचने वाला नहीं है. जो ब्राह्मण अपनी पूरी जिंदगी कर्मकांड में लगा देता हैं. वह बुढ़ापा कैसे बिताएंगे यह उन्हें खुद को भी नहीं पता होता. किसी ने हमारे लिए ना सोचा न हीं कोई योजना बनाई है.

ब्राह्मणों की आमदनी के सारे सीजन हो गए खत्म

पंडित रामजी पाठक ने बताया कि हमारे आमदनी के कुछ ही सीजन होते हैं. जिनमे दोनों नवरात्रि, पितृपक्ष, सावन, लगन ही महत्वपूर्ण होते हैं. यह सारे सीजन खत्म हो गए हैं. अब समझ नहीं आ रहा है कि इस साल गुजारा कैसे होगा. बच्चों की फीस कैसे जमा होगी, बाकी खर्च कैसे हम पूरा करेंगे ये समझ नही आ रहा है. हमारे कष्ट को महादेव ही बस समझेंगे.

आर्थिक तंगी झेल रहे काशी के ब्राह्मण
आर्थिक तंगी झेल रहे काशी के ब्राह्मण

पढ़ें :- 'महामारी से बाल श्रम और दासता में होगा इजाफा, भारत भी अपवाद नहीं'

ब्राह्मण को दक्षिणा नहीं देना चाहते लोग

पंडित कमलेश ने अपनी व्यथा बताते हुए कहते हैं कि लोग सारे खर्च वहन करने के लिए तैयार होते हैं, लेकिन कोई ब्राह्मण को दक्षिणा देना नहीं चाहता. सबको लगता है कि ब्राह्मण का काम व्यर्थ का काम होता है, लेकिन जब लोग विवश हो जाते हैं तो ब्राह्मण के ही पास आते हैं और अपनी समस्याओं का समाधान कराते हैं.

पांच लाख के लगभग है काशी के ब्राह्मणों की जनसंख्या

पंडित कमलेश ने बताया कि बनारस में कुल पांच लाख के करीब ब्राह्मण है. जिसमें से ढाई लाख ब्राह्मण कोविड-19 की वजह से यहां से पलायन कर गए, लेकिन अब भी लगभग ढाई लाख ब्राह्मण निवास कर रहे हैं. कुछ 85 वर्ष के बुजुर्ग भी हैं. इन दिनों वो भी जैसे तैसे अपना जीवन बिता रहे हैं.

वाराणसी : बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी को सर्व विद्या की राजधानी कहा जाता है. यहां के विद्वानों ने पूरे विश्व को एक अलग तेज प्रदान किया है. काशी की परंपरा को आगे बढ़ा रहे यह विश्व विख्यात ब्राह्मणों की आर्थिक स्थिति कोरोना लॉकडाउन के दौरान मुश्किल में चली गई है. इन दिनों काशी के ब्राह्मण बेहद ही दयनीय स्थिति में है. लॉकडाउन के कारण उनको एक वक्त का खाना मिल रहा है तो दूसरे वक्त के लिए उन्हें सोचना पड़ रहा है. ब्राह्मणों का कहना है कि हमारा दर्द सुनने वाला कोई नहीं है.

दरअसल, कोरोना महामारी के कारण सभी धार्मिक आयोजन बंद हैं. सरकार ने कोरोना गाइडलाइन का पालने के साथ मठ मंदिरों को खोलने के आदेश तो दे दिए हैं, लेकिन कोरोना महामारी के खौफ से उबरने में लोगों को समय लगेगा. यही वजह है कि मंदिर खुले होने के बाद भी भक्तों की भीड़ कम देखने को मिल रही है.

ब्राह्मणों की आमदनी पर कोरोना की मार

ऐसी स्थिति में लोग घरों में पूजा पाठ कराने से भी बच रहे हैं. सबसे बुरी हालत काशी के उन गरीब ब्राह्मणों की है, जिनका गुजारा ही जजमान के घरों में पूजा पाठ कराकर चलता था. कोरोना के कारण सभी ब्राह्मण आर्थिक परेशानी का सामना कर रहे हैं.

भूखे रहने को मजबूर ब्राह्मण
ब्राह्मणों का कहना है कि जैसे-तैसे हम गुजारा कर रहे हैं. एक वक्त भोजन कर रहे हैं तो एक वक्त भूखे रहने को मजबूर है, क्योंकि हमारे सारे सीजन खत्म हो गए. अब हमारे पास आमदनी का कोई भी जरिया नहीं बचा है. यानी लॉकडाउन के वजह से मंदिर में पूजा-पाठ के कार्यक्रम नहीं कराए गए और अभी भी यह कार्यक्रम नहीं चल रहा है. इक्का-दुक्का जप पूजा अनुष्ठान मिल रही है, जिससे जैसे-तैसे गुजारा कर रहे हैं.

सुनाया अपना दर्द
पंडित विमलेश ने कहा कि हमारे दर्द को कोई सुनने वाला नहीं है. चुनाव में भी सबकी बात की जाती है, लेकिन हमारे लिए कोई सोचने वाला नहीं है. जो ब्राह्मण अपनी पूरी जिंदगी कर्मकांड में लगा देता हैं. वह बुढ़ापा कैसे बिताएंगे यह उन्हें खुद को भी नहीं पता होता. किसी ने हमारे लिए ना सोचा न हीं कोई योजना बनाई है.

ब्राह्मणों की आमदनी के सारे सीजन हो गए खत्म

पंडित रामजी पाठक ने बताया कि हमारे आमदनी के कुछ ही सीजन होते हैं. जिनमे दोनों नवरात्रि, पितृपक्ष, सावन, लगन ही महत्वपूर्ण होते हैं. यह सारे सीजन खत्म हो गए हैं. अब समझ नहीं आ रहा है कि इस साल गुजारा कैसे होगा. बच्चों की फीस कैसे जमा होगी, बाकी खर्च कैसे हम पूरा करेंगे ये समझ नही आ रहा है. हमारे कष्ट को महादेव ही बस समझेंगे.

आर्थिक तंगी झेल रहे काशी के ब्राह्मण
आर्थिक तंगी झेल रहे काशी के ब्राह्मण

पढ़ें :- 'महामारी से बाल श्रम और दासता में होगा इजाफा, भारत भी अपवाद नहीं'

ब्राह्मण को दक्षिणा नहीं देना चाहते लोग

पंडित कमलेश ने अपनी व्यथा बताते हुए कहते हैं कि लोग सारे खर्च वहन करने के लिए तैयार होते हैं, लेकिन कोई ब्राह्मण को दक्षिणा देना नहीं चाहता. सबको लगता है कि ब्राह्मण का काम व्यर्थ का काम होता है, लेकिन जब लोग विवश हो जाते हैं तो ब्राह्मण के ही पास आते हैं और अपनी समस्याओं का समाधान कराते हैं.

पांच लाख के लगभग है काशी के ब्राह्मणों की जनसंख्या

पंडित कमलेश ने बताया कि बनारस में कुल पांच लाख के करीब ब्राह्मण है. जिसमें से ढाई लाख ब्राह्मण कोविड-19 की वजह से यहां से पलायन कर गए, लेकिन अब भी लगभग ढाई लाख ब्राह्मण निवास कर रहे हैं. कुछ 85 वर्ष के बुजुर्ग भी हैं. इन दिनों वो भी जैसे तैसे अपना जीवन बिता रहे हैं.

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