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कश्मीरी भाषा में रिलीज हुआ गांधीजी का पसंदीदा भजन 'वैष्णव जन तो'

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का पसंदीदा भजन 'वैष्णव जन तो' को पहली बार कश्मीरी भाषा में जारी किया गया है. इस गीत को जारी करने का मुख्य उद्देश्य सिर्फ राज्य में शांति और सौहार्द का संदेश देना है. कश्मीरी भाषा में 'वैष्णव जन तो' को जारी करने से पहले इस गीत को कई भाषाओं में गाया जा चुका है.

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Published : Oct 2, 2020, 4:50 PM IST

Updated : Oct 2, 2020, 5:29 PM IST

vaishnav jan bhajan in kashmiri language
अब कश्मारी भाषा में सुनिए वैष्णव जन तो

नई दिल्ली : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 151वीं जयंती के मौके पर शक्रुवार को उनके पसंदीदा भजन 'वैष्णव जन तो' को कश्मीरी भाषा में जारी किया गया. इस भजन को जारी करने का उद्देश्य कश्मीर में शांति के संदेश का प्रसार करना है.

600 साल पहले हुई थी इस गीत की रचना
इस भजन की रचना 15वीं शताब्दी के गुजराती कवि संत नरसिंह मेहता ने करीब 600 साल पहले की थी. यह भजन मानवता, सहानुभूति और सत्यता जैसे मूल्यों का संदेश देता है, जिनका गांधीजी ने जीवनभर निष्ठापूर्वक पालन किया. यही वजह है कि कश्मीरी गायक गुलजार अहमद गनेई और लेखक शहबाज हकबारी के साथ मिलकर कुसुम कौल व्यास ने गांधीजी की 151वीं जयंती के अवसर इसे जारी करने का मन बनाया.

राज्य में आसानी से पहुंचेगा शांति का संदेश
उन्होंने कहा कि 'वैष्णव जन तो' मूल रूप से गुजराती गीत है और इसलिए कई लोग इसका वास्तविक अर्थ समझ नहीं पाते. मैंने सोचा कि अगर इसका कश्मीरी भाषा में अनुवाद किया जाए तो शायद राज्य के लोगों तक शांति और सौहार्द का यह संदेश आसानी से पहुंच पाएगा.

पहली बार कश्मीरी भाषा में जारी किया गया गीत
ऐसा कहा जाता है कि गांधीजी को यह भजन बहुत पसंद था और शांति व सौहार्द के संदेश के प्रसार के लिए उनकी प्रार्थना और सभाओं में अक्सर यह गाया जाता था. उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों में गंगूबाई हंगल, पंडित जसराज और लता मंगेशकर जैसे कई लोकप्रिय कलाकारों ने इसे अलग-अलग तरीके से पेश भी किया, लेकिन इस गीत को पहली बार कश्मीरी भाषा में जारी किया जा रहा है.

शंकराचार्य मंदिर में हुई शूटिंग
बता दें कि कुसुम कौल व्यास ने कोरोना वायरस के दौरान लागू लॉकडाउन के दौरान इसका कश्मीरी भाषा में अनुवाद करने का मन बनाया था. वहीं, कश्मीरी गायक गुलजार अहमद गनई ने इसे आवाज दी है और शहबाज हकबारी ने इसका अनुवाद किया है.

यह भी पढ़ें- विशेष : बापू की जयंती पर मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस

कश्मीरी भाषा में 'वैष्णव जन तो' गीत की पूरी शूटिंग श्रीनगर के शंकराचार्य मंदिर सहित कश्मीर घाटी में भी की गई है.

नई दिल्ली : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 151वीं जयंती के मौके पर शक्रुवार को उनके पसंदीदा भजन 'वैष्णव जन तो' को कश्मीरी भाषा में जारी किया गया. इस भजन को जारी करने का उद्देश्य कश्मीर में शांति के संदेश का प्रसार करना है.

600 साल पहले हुई थी इस गीत की रचना
इस भजन की रचना 15वीं शताब्दी के गुजराती कवि संत नरसिंह मेहता ने करीब 600 साल पहले की थी. यह भजन मानवता, सहानुभूति और सत्यता जैसे मूल्यों का संदेश देता है, जिनका गांधीजी ने जीवनभर निष्ठापूर्वक पालन किया. यही वजह है कि कश्मीरी गायक गुलजार अहमद गनेई और लेखक शहबाज हकबारी के साथ मिलकर कुसुम कौल व्यास ने गांधीजी की 151वीं जयंती के अवसर इसे जारी करने का मन बनाया.

राज्य में आसानी से पहुंचेगा शांति का संदेश
उन्होंने कहा कि 'वैष्णव जन तो' मूल रूप से गुजराती गीत है और इसलिए कई लोग इसका वास्तविक अर्थ समझ नहीं पाते. मैंने सोचा कि अगर इसका कश्मीरी भाषा में अनुवाद किया जाए तो शायद राज्य के लोगों तक शांति और सौहार्द का यह संदेश आसानी से पहुंच पाएगा.

पहली बार कश्मीरी भाषा में जारी किया गया गीत
ऐसा कहा जाता है कि गांधीजी को यह भजन बहुत पसंद था और शांति व सौहार्द के संदेश के प्रसार के लिए उनकी प्रार्थना और सभाओं में अक्सर यह गाया जाता था. उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों में गंगूबाई हंगल, पंडित जसराज और लता मंगेशकर जैसे कई लोकप्रिय कलाकारों ने इसे अलग-अलग तरीके से पेश भी किया, लेकिन इस गीत को पहली बार कश्मीरी भाषा में जारी किया जा रहा है.

शंकराचार्य मंदिर में हुई शूटिंग
बता दें कि कुसुम कौल व्यास ने कोरोना वायरस के दौरान लागू लॉकडाउन के दौरान इसका कश्मीरी भाषा में अनुवाद करने का मन बनाया था. वहीं, कश्मीरी गायक गुलजार अहमद गनई ने इसे आवाज दी है और शहबाज हकबारी ने इसका अनुवाद किया है.

यह भी पढ़ें- विशेष : बापू की जयंती पर मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस

कश्मीरी भाषा में 'वैष्णव जन तो' गीत की पूरी शूटिंग श्रीनगर के शंकराचार्य मंदिर सहित कश्मीर घाटी में भी की गई है.

Last Updated : Oct 2, 2020, 5:29 PM IST
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