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विशेष : अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति के केंद्र में भारत

वाशिंगटन की नई हिंद-प्रशांत रणनीति आधुनिक दुनिया की वास्तविकताओं को दर्शाती है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ भारत एक चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता का हिस्सा है, जिसे क्वाड के रूप में जाना जाता है. यह एक अनौपचारिक रणनीतिक मंच है. सदस्य देश अर्ध-नियमित शिखर सम्मेलन के माध्यम से सूचनाओं के आदान-प्रदान और सैनिक अभ्यास के जरिए बनाए रखते हैं. अमेरिका का कहना है कि इसके केंद्र में भारत है और वही रणनीति का केंद्र बना रहेगा. चीन के आक्रामक रूख के परिप्रेक्ष्य में कितना है इसका महत्व, पढ़िए इस पर एक आलेख.

aroonim bhuyan on indo pacific strategy of us
अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति का केंन्द्र है भारत : वरिष्ठ राजनयिक
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Published : Sep 2, 2020, 8:54 AM IST

Updated : Sep 2, 2020, 9:35 AM IST

नई दिल्ली : अमेरिका के एक वरिष्ठ राजनयिक ने कहा है कि भारत वॉशिंगटन की हिंद-प्रशांत रणनीति का केंद्र बना रहेगा. राजनयिक की ओर से यह बयान तब दिया गया है, जब भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा पर संघर्ष जारी है और बीजिंग दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में अपनी विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ा रहा है.

यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम (यूएसआईएसपीएफ) की ओर से आयोजित 'अमेरिका-भारत : नई चुनौतियों का सामना' विषय पर जारी परिचर्चा के दौरान अमेरिका के उपविदेश मंत्री स्टीफन बाइगन ने कहा कि वॉशिंगटन की नई हिंद-प्रशांत (इंडो-पेसिफिक) रणनीति आधुनिक दुनिया की वास्तविकताओं को दर्शाती है और इंडो-पेसिफिक रणनीति लोकतंत्रों के इर्द-गिर्द केंद्रित है. उन्होंने सोमवार को कहा कि यह मुक्त बाजारों के आसपास केंद्रित है.

बाइगन ने आगे कहा कि यह उन मूल्यों पर केंद्रित है, जो भारत सरकार, भारतीय अमेरिकी सरकार और अमेरिका के लोगों के साथ साझा करते हैं. उसे सफल बनाने के लिए हमें इस क्षेत्र को पूरे पैमाने पर टैप करना होगा.

उन्होंने कहा कि इसमें अर्थशास्त्र और सुरक्षा सहयोग के पैमाने की अहम भूमिका होगी और इस रणनीति में भारत को केंद्र में रखे बगैर यह मुमकिन नहीं है. इसलिए जैसा मुझे लगता है कि अमेरिका के लिए यह रणनीति महत्वपूर्ण है, लेकिन भारत के बिना यह हमारे लिए सफल नहीं हो सकती है.

गौर हो कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का विचार पहली बार जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के अपने पहले कार्यकाल के दौरान वर्ष 2006-07 में दिया था. यह जापान के पूर्वी तट से अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैला हुआ है.

बाइगन की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब इस वर्ष जून में लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष हुआ, जिससे 45 वर्षों में पहली बार वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों पक्षों के जवानों को मौत का मजा चखना पड़ा.

वहीं इस बीच पिछले माह अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में बीजिंग का शासक जैसा रुख अपनाने को लेकर चीन के लोगों और उपक्रमों पर वीजा प्रतिबंध भी लगा दिए थे.

चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की नौसेना ने दक्षिण चीन सागर में जल और थल दोनों तरह के हमले की गतिविधियों के अभ्यास शुरू कर दिए हैं.

वहीं पारासेल द्वीप समूह के पास चीन की नवीनतम गतिविधियों का जवाब देने के लिए अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में परमाणु शक्ति से संचालित तीन विमान वाहक पोत तैनात कर दिए हैं.

चीन दक्षिण चीन सागर के पारासेल और स्प्रेटली द्वीप समूह को लेकर क्षेत्र के अन्य देशों के साथ विवादों में फंसा हुआ है. जबकि स्प्रेटली द्वीप समूह पर दावा करने वाले अन्य देश ब्रूनेई, मलेशिया, फिलीपींस, ताइवान और वियतनाम हैं. पारासेल द्वीपों के भी वियतनाम और ताइवान दावेदार हैं.

वर्ष 2016 में हेग स्थित स्थाई पंचाट न्यायालय ने फैसला दिया था कि दक्षिण चीन सागर में चीन ने फिलीपींस के अधिकारों का उल्लंघन किया है. दक्षिण चीन सागर दुनिया के सबसे व्यास्त व्यापारिक समुद्री रास्तों में से एक है.

इस अदालत ने चीन पर फिलीपींस के मछली पकड़ने और पेट्रोलियम के अन्वेषण में हस्तक्षेप करने, समुद्र में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण करने और चीन के मछुआरों को उस क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोकने में नाकाम रहने का आरोप लगाया.

उसके बाद पिछले माह वियतनाम और फिलीपींस ने फिर दक्षिण चीन सागर में चीन के बार-बार समुद्री कानून का उल्लंघन करने को लेकर चिंता जताई.

इसके अलावा टोक्यो के साथ पूर्वी चीन सागर में भी बीजिंग का सेनकाकू द्वीपों को लेकर भी विवाद चल रहा है. चीन उन्हें दियायू द्वीप कहता है.

बाइगन ने कहा कि भारत ने हिंद-प्रशांत रणनीति के लिए स्वयं जबरदस्त नेतृत्व किया है और अपने योगदान में रुचि दिखाई है और हम लोग भी आगे बढ़ रहे हैं.

उन्होंने कहा है कि भारत और अमेरिका ने हमारे सुरक्षा सहयोग को और गहराई दी है. हम व्यापार के उदारीकरण के कुछ आयामों के माध्यम से व्यापक आर्थिक संबंधों को और भी व्यापक करने की प्रक्रिया में हैं.

बाइगन आगे कहते हैं कि हम लोग सुरक्षा क्षेत्र में भी बहुत करीब रहकर काम कर रहे हैं. हाल ही में भारत ने मालाबार नौसेना अभ्यास में भाग लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित करने के स्पष्ट इरादे का संकेत दिया है, जो इंडो-पेसिफिक में समुद्री मार्ग की स्वतंत्रता और सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक जबरदस्त कदम होगा.

अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ भारत एक चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता का हिस्सा है, जिसे क्वाड के रूप में जाना जाता है. यह एक अनौपचारिक रणनीतिक मंच है, जिसे सदस्य देश अर्ध-नियमित शिखर सम्मेलन के माध्यम से सूचनाओं के आदान-प्रदान और सैनिक अभ्यास के जरिए बनाए रखते हैं.

इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते दखल को देखते हुए मंच इंडो-पेसिफिक में शांति, समृद्धि और समुद्री रास्तों को खुला रखना सुनिश्चित करना चाहता है. 'अभ्यास मालाबार' नाम से बहुत बड़े पैमाने का एक समानांतर संयुक्त सैन्य अभ्यास करके इसका जवाब दिया गया है.

इस कूटनीतिक और सैन्य व्यवस्था को व्यापक रूप में चीन की आर्थिक और सैन्य शक्ति की प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया था. इसके बाद बीजिंग ने इस क्वाड के सदस्यों को औपचारिक रूप राजनयिक स्तर पर विरोध करके जवाब दिया.

बाइगन का यह कहना कि 'भारत अमेरिका की इंडो-पेसिफिक रणनीति का केंद्र बिंदु है' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिंगापुर में 2018 के 10 देशों के एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के शांगरी-ला डायलॉग के दौरान दिए गए बयान को देखते हुए है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत-प्रशांत के भविष्य के लिए क्षेत्रीय ब्लॉक केंद्रित होगा.

म्यांमार में भारत के राजदूत रहे गेटवे हाउस नाम के विचार मंच के प्रतिष्ठित फेलो राजीव ने ईटीवी भारत को बताया कि केवल भारत ही नहीं बल्कि कई अन्य देश भी आसियान के केंद्र में इंडो-पेसिफिक को रखते हैं, जिसका अर्थ यह है कि इस क्षेत्र की समस्याओं को आसियान के नेतृत्व वाली संस्थाओं के माध्यम से निपटाया जाना चाहिए.

वहीं इंडो-पेसिफिक मामलों पर नियमित रूप से टिप्पणी करने वाले भाटिया ने बताया कि दूसरी ओर जब एक अमेरिकी अधिकारी यह कहता है कि भारत अमेरिका की इंडो-पेसिफिक रणनीति का केंद्र बिंदु है, तो इसका मतलब है कि चीन से निपटने के मामले में वॉशिंगटन की रणनीति के लिए भारत बेहद महत्वपूर्ण है.

- अरुणिम भुयान

नई दिल्ली : अमेरिका के एक वरिष्ठ राजनयिक ने कहा है कि भारत वॉशिंगटन की हिंद-प्रशांत रणनीति का केंद्र बना रहेगा. राजनयिक की ओर से यह बयान तब दिया गया है, जब भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा पर संघर्ष जारी है और बीजिंग दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में अपनी विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ा रहा है.

यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम (यूएसआईएसपीएफ) की ओर से आयोजित 'अमेरिका-भारत : नई चुनौतियों का सामना' विषय पर जारी परिचर्चा के दौरान अमेरिका के उपविदेश मंत्री स्टीफन बाइगन ने कहा कि वॉशिंगटन की नई हिंद-प्रशांत (इंडो-पेसिफिक) रणनीति आधुनिक दुनिया की वास्तविकताओं को दर्शाती है और इंडो-पेसिफिक रणनीति लोकतंत्रों के इर्द-गिर्द केंद्रित है. उन्होंने सोमवार को कहा कि यह मुक्त बाजारों के आसपास केंद्रित है.

बाइगन ने आगे कहा कि यह उन मूल्यों पर केंद्रित है, जो भारत सरकार, भारतीय अमेरिकी सरकार और अमेरिका के लोगों के साथ साझा करते हैं. उसे सफल बनाने के लिए हमें इस क्षेत्र को पूरे पैमाने पर टैप करना होगा.

उन्होंने कहा कि इसमें अर्थशास्त्र और सुरक्षा सहयोग के पैमाने की अहम भूमिका होगी और इस रणनीति में भारत को केंद्र में रखे बगैर यह मुमकिन नहीं है. इसलिए जैसा मुझे लगता है कि अमेरिका के लिए यह रणनीति महत्वपूर्ण है, लेकिन भारत के बिना यह हमारे लिए सफल नहीं हो सकती है.

गौर हो कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का विचार पहली बार जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के अपने पहले कार्यकाल के दौरान वर्ष 2006-07 में दिया था. यह जापान के पूर्वी तट से अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैला हुआ है.

बाइगन की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब इस वर्ष जून में लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष हुआ, जिससे 45 वर्षों में पहली बार वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों पक्षों के जवानों को मौत का मजा चखना पड़ा.

वहीं इस बीच पिछले माह अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में बीजिंग का शासक जैसा रुख अपनाने को लेकर चीन के लोगों और उपक्रमों पर वीजा प्रतिबंध भी लगा दिए थे.

चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की नौसेना ने दक्षिण चीन सागर में जल और थल दोनों तरह के हमले की गतिविधियों के अभ्यास शुरू कर दिए हैं.

वहीं पारासेल द्वीप समूह के पास चीन की नवीनतम गतिविधियों का जवाब देने के लिए अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में परमाणु शक्ति से संचालित तीन विमान वाहक पोत तैनात कर दिए हैं.

चीन दक्षिण चीन सागर के पारासेल और स्प्रेटली द्वीप समूह को लेकर क्षेत्र के अन्य देशों के साथ विवादों में फंसा हुआ है. जबकि स्प्रेटली द्वीप समूह पर दावा करने वाले अन्य देश ब्रूनेई, मलेशिया, फिलीपींस, ताइवान और वियतनाम हैं. पारासेल द्वीपों के भी वियतनाम और ताइवान दावेदार हैं.

वर्ष 2016 में हेग स्थित स्थाई पंचाट न्यायालय ने फैसला दिया था कि दक्षिण चीन सागर में चीन ने फिलीपींस के अधिकारों का उल्लंघन किया है. दक्षिण चीन सागर दुनिया के सबसे व्यास्त व्यापारिक समुद्री रास्तों में से एक है.

इस अदालत ने चीन पर फिलीपींस के मछली पकड़ने और पेट्रोलियम के अन्वेषण में हस्तक्षेप करने, समुद्र में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण करने और चीन के मछुआरों को उस क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोकने में नाकाम रहने का आरोप लगाया.

उसके बाद पिछले माह वियतनाम और फिलीपींस ने फिर दक्षिण चीन सागर में चीन के बार-बार समुद्री कानून का उल्लंघन करने को लेकर चिंता जताई.

इसके अलावा टोक्यो के साथ पूर्वी चीन सागर में भी बीजिंग का सेनकाकू द्वीपों को लेकर भी विवाद चल रहा है. चीन उन्हें दियायू द्वीप कहता है.

बाइगन ने कहा कि भारत ने हिंद-प्रशांत रणनीति के लिए स्वयं जबरदस्त नेतृत्व किया है और अपने योगदान में रुचि दिखाई है और हम लोग भी आगे बढ़ रहे हैं.

उन्होंने कहा है कि भारत और अमेरिका ने हमारे सुरक्षा सहयोग को और गहराई दी है. हम व्यापार के उदारीकरण के कुछ आयामों के माध्यम से व्यापक आर्थिक संबंधों को और भी व्यापक करने की प्रक्रिया में हैं.

बाइगन आगे कहते हैं कि हम लोग सुरक्षा क्षेत्र में भी बहुत करीब रहकर काम कर रहे हैं. हाल ही में भारत ने मालाबार नौसेना अभ्यास में भाग लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित करने के स्पष्ट इरादे का संकेत दिया है, जो इंडो-पेसिफिक में समुद्री मार्ग की स्वतंत्रता और सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक जबरदस्त कदम होगा.

अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ भारत एक चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता का हिस्सा है, जिसे क्वाड के रूप में जाना जाता है. यह एक अनौपचारिक रणनीतिक मंच है, जिसे सदस्य देश अर्ध-नियमित शिखर सम्मेलन के माध्यम से सूचनाओं के आदान-प्रदान और सैनिक अभ्यास के जरिए बनाए रखते हैं.

इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते दखल को देखते हुए मंच इंडो-पेसिफिक में शांति, समृद्धि और समुद्री रास्तों को खुला रखना सुनिश्चित करना चाहता है. 'अभ्यास मालाबार' नाम से बहुत बड़े पैमाने का एक समानांतर संयुक्त सैन्य अभ्यास करके इसका जवाब दिया गया है.

इस कूटनीतिक और सैन्य व्यवस्था को व्यापक रूप में चीन की आर्थिक और सैन्य शक्ति की प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया था. इसके बाद बीजिंग ने इस क्वाड के सदस्यों को औपचारिक रूप राजनयिक स्तर पर विरोध करके जवाब दिया.

बाइगन का यह कहना कि 'भारत अमेरिका की इंडो-पेसिफिक रणनीति का केंद्र बिंदु है' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिंगापुर में 2018 के 10 देशों के एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के शांगरी-ला डायलॉग के दौरान दिए गए बयान को देखते हुए है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत-प्रशांत के भविष्य के लिए क्षेत्रीय ब्लॉक केंद्रित होगा.

म्यांमार में भारत के राजदूत रहे गेटवे हाउस नाम के विचार मंच के प्रतिष्ठित फेलो राजीव ने ईटीवी भारत को बताया कि केवल भारत ही नहीं बल्कि कई अन्य देश भी आसियान के केंद्र में इंडो-पेसिफिक को रखते हैं, जिसका अर्थ यह है कि इस क्षेत्र की समस्याओं को आसियान के नेतृत्व वाली संस्थाओं के माध्यम से निपटाया जाना चाहिए.

वहीं इंडो-पेसिफिक मामलों पर नियमित रूप से टिप्पणी करने वाले भाटिया ने बताया कि दूसरी ओर जब एक अमेरिकी अधिकारी यह कहता है कि भारत अमेरिका की इंडो-पेसिफिक रणनीति का केंद्र बिंदु है, तो इसका मतलब है कि चीन से निपटने के मामले में वॉशिंगटन की रणनीति के लिए भारत बेहद महत्वपूर्ण है.

- अरुणिम भुयान

Last Updated : Sep 2, 2020, 9:35 AM IST
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