हैदराबाद : संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी यूएनईपी की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक नया रिकॉर्ड बन गया है. रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में जलवायु परिवर्तन तेजी से और चरम बदलाव की ओर बढ़ रहा है.
यह परिवर्तन मौसम में बदलाव, आर्कटिक में बर्फ का तेजी से कम होना और पश्चिम अमेरिका व साइबेरिया के जंगलों में आग और हीट वेव (गर्म हवा की लपटें) उठने की ओर इशारा करता है.
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UNEP की वार्षिक उत्सर्जन गैप (annual Emissions Gap) रिपोर्ट 2020 में पाया गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण 2020 कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में गिरावट के बावजूद, दुनिया अभी भी इस सदी में तीन डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रही है.
महामारी से जुड़े सात प्रतिशत तक उत्सर्जन में गिरावट का जलवायु परिवर्तन पर नगण्य प्रभाव पड़ेगा. पेरिस समझौते के तहत देशों की प्रतिबद्धताओं में यह झलकना चाहिए.
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हालांकि, यदि सरकारें पैंडैमिक रिकवरी के हिस्से के रूप में क्लाइमेट इन्वेस्ट में निवेश करती हैं और अगली जलवायु बैठक में मजबूत प्रतिज्ञाओं के साथ उभरती हुई प्रतिबद्धताओं को मजबूत करती हैं, तो ऐसे में उत्सर्जन को व्यापक रूप से दो डिग्री सेल्सियस के अनुरूप स्तर के लक्ष्य पर ला सकते हैं.
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संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के कार्यकारी निदेशक इनगरग एंडरसन ने बताया है कि मौजूदा साल 2020 निश्चित रूप से रिकॉर्ड पर सबसे गर्म पाया गया है. ऐसे में जंगलों में लगी आग, तूफान और सूखे का कहर भी जारी है. हालांकि, यूएनईपी की एमिशन रिपोर्ट बताती है कि ग्रीन पैंडैमिक रिकवरी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में सहायक हो सकती है और धीमे जलवायु परिवर्तन में मददगार साबित हो सकती है.
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हर साल, एमिशन गैप रिपोर्ट अनुमानित उत्सर्जन और लेवल यानी स्तरों के बीच के अंतर का आकलन करती है, जो कि पेरिस समझौते के ही अनुरूप है और इस सदी की ग्लोबल वॉर्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक करने का लक्ष्य रखता है.
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रिपोर्ट में पाया गया है कि 2019 में लैंड यूज चेंज समेत कुल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन, CO2 समतुल्य (GtCO2e) के 59.1 गीगाटन के नए उच्च स्तर पर पहुंच गया. 2010 के बाद से वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में प्रति वर्ष 1.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. जंगलों में लगने वाली आग की घटनाओं में बढ़ोतरी के कारण 2019 में 2.6 प्रतिशत अधिक तेजी से वृद्धि हुई है.
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इस वर्ष 2020 में महामारी के चलते यात्रा में कमी, औद्योगिक गतिविधियों में कमी, यहां तक कि बिजली उत्पादन में भी कमी के परिणामस्वरूप, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन सात प्रतिशत की दर से घटने की बात कही गई.
हालांकि, यह गिरावट वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वॉर्मिंग में 0.01 डिग्री सेल्सियस की कमी मात्र है. इस तरह से ग्रीन रिकवरी के दायरे में जो उत्सर्जन होता है, वह तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने का एक तरह से मौका देता है. लेकिन अभी के हालातों को देखते हुए 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य भी अपर्याप्त है.
ग्रीन रिकवरी क्रिटिकल (Green recovery critical)
हालांकि, ग्रीन पैंडैमिक रिकवरी उत्सर्जन में 25 प्रतिशत तक कमी ला सकती है, जिसे हम 2030 में कोरोना वायरस से पहले की नीतियों के आधार पर देखने की उम्मीद करेंगे.
ग्रीन रिकवरी 2030 में 59 GtCO2e के बजाय 44 GtCO2e में उत्सर्जन का अनुमान लगाएगी.