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अफगानिस्तान को ध्यान में रखते हुए ट्रंप मोटेरा में पाकिस्तान पर पड़े नरम - तालिबान-अमरीका के शांति समझौते

रॉ के पूर्व अधिकारी और बंगलूरू के तक्षिला संस्थान में इंटेलिजेंस विशेषज्ञ आनंद अर्नी का कहना है कि ट्रंप को अफगानिस्तान में एक समझौता चाहिए. यह उनके दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के लिये जरूरी है. नवंबर 2020 में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों से पहले उनके लिये अफगानिस्तान से अमरीकी सेना को वापस बुलाना जरूरी है, यह उनके पहले चुनावी वादों में से एक अहम वादा था.' ट्रंप ने जनवरी 2018 में एक ट्वीट कर पाकिस्तान को धमकी दी थी, लेकिन इस अफगान समझौते के कारण ही उन्होंने पिछले साल व्हाइट हाउस में पीएम मोदी की मौजूदगी में और इस साल के शुरू में दावोस में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को अपना करीबी दोस्त बताया था.

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ट्रंप-मोदी
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Published : Feb 25, 2020, 3:26 PM IST

Updated : Mar 2, 2020, 12:53 PM IST

भारत द्वारा अफगानिस्तान में की जा रही मदद के बारे में जनवरी 2019 में बोलते हुए ट्रंप ने कहा था कि, 'क्या आप जानते हैं वो क्या है? यह हमारे द्वारा पांच घंटे में की गई मदद के बराबर है और हमसे आशा की जाती है कि हम कहें, पुस्तकालय के लिये धन्यवाद. मुझे नहीं पता अफगानिस्तान में इसका इस्तेमाल कौन कर रहा है?'

ट्रंप का इशारा, भारतीय मदद से बनी अफगानी संसद की इमारत की तरफ था, जिसका उदघाटन पीएम मोदी द्वारा 2015 में किया गया था. ट्रंप ने यह बात अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाने को लेकर पत्रकारों से बात करते हुए कही थी. इस बयान पर नई दिल्ली ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी और, भारत द्वारा अफगानिस्तान में अलग-अलग विकास कार्यों के लिये दिये जा रहे तीन बिलियन अमरीकी डॉलर के साथ साथ अफगानिस्तान में अमरीका या पाकिस्तान के मुकाबले भारत की अधिक लोकप्रियता को याद दिलाया था.

सोमवार को अहमदाबाद के मोटेरा में, दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम में खचाखच भरी भीड़ को संबोधित करते हुए, ट्रंप ने आतंकवाद से लड़ने की बात तो कही लेकिन पाकिस्तान पर बोलते समय कुछ नरम पड़ते दिखाई दिए. उन्होंने कहा, 'आतंकवादियों और उनकी विचारधारा से लड़ने के लिए भारत और अमरीका प्रतिबद्ध हैं.'

नमस्ते ट्रंप के भव्य आयोजन के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच साझा करते हुए ट्रंप ने कहा कि, 'इस कारण से, कार्यभार संभालने के बाद से ही, मैं और मेरा प्रशासन पाकिस्तान के साथ, उसकी सीमा के अंदर काम कर रहे आतंकी संगठनों पर लगाम लगाने के लिये सकारात्मक काम कर रहे हैं.' 2010 और 2015 में बराक ओबामा की ही तरह, ट्रंप ने भी अपनी पहली भारत यात्रा में पाकिस्तान यात्रा को नहीं जोड़ा है.'

लेकिन, तालिबान-अमरीका के शांति समझौते में पाकिस्तान की भूमिका को ध्यान में रखते हुए इस यात्रा का समय ट्रंप के लिये अहम है. उन्होंने कहा कि, 'हमारे पाकिस्तान से बहुत अच्छे रिश्ते हैं. इन्हीं के कारण हम उसके साथ बड़े विकास की तरफ बड़ रहे हैं और हमें दक्षिण एशिया के सभी देशों के बीच, तनाव के कम होने,और बेहतर ठहराव आने की उम्मीद कर रहे है.'

रॉ के पूर्व अधिकारी और बंगलूरू के तक्षिला संस्थान में इंटेलिजेंस विशेषज्ञ आनंद अर्नी का कहना है कि ट्रंप को अफगानिस्तान में एक समझौता चाहिए. यह उनके दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के लिये जरूरी है. नवंबर 2020 में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों से पहले उनके लिये अफगानिस्तान से अमरीकी सेना को वापस बुलाना जरूरी है, यह उनके पहले चुनावी वादों में से एक अहम वादा था.'

इसे भी पढ़ें- मोदी-ट्रंप का एलान, डिफेंस डील पर लगी मुहर, ट्रेड डील पर बातचीत आगे बढ़ाने पर सहमति

ट्रंप ने जनवरी 2018 में एक ट्वीट कर पाकिस्तान को धमकी दी थी, लेकिन इस अफगान समझौते के कारण ही उन्होंने पिछले साल व्हाइट हाउस में पीएम मोदी की मौजूदगी में और इस साल के शुरू में दावोस में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को अपना करीबी दोस्त बताया था.

पाकिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत, शरत सबरवाल का कहना है कि अमरीका और पाकिस्तान का रिश्ता काफ़ी आदान प्रदान का है. पिछले एक साल से अमरीका इस समझौते को लेकर पाकिस्तान से मदद ले रहा है और पाकिस्तान ने भी इस समझौते के लिये काम किया है. पिछले शनिवार से ही वहां इस समझौते के लागू होने से पहले हिंसा को कम करने के दौर की शुरुआत हुई है. इसलिए गुजरात में ट्रंप के बयान से आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

शरत ने यह भी कहा कि हालांकि अमरीका आतंकवाद पर नकेल कसने के लिये पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है लेकिन जब तक वो अफगानिस्तान से अपनी सेना को पूरी तरह वापस करने के लिये पाकिस्तान पर निर्भर है, यह दबाव बढ़ेगा, ऐसा नहीं लगता.

वहीं भारत को चिंता है कि अफगानिस्तान से अमरीकी सेना के चले जाने के बाद पाकिस्तान की वहां क्या भूमिका रहेगी और भारत के खिलाफ़ काम करने वाले आतंकी संगठनों जैसे कि लश्कर-ए-तैय्यबा ने अगर अपना ठिकाना अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में स्थापित कर लिया तो क्या हालात रहेंगे.

भारत अपनी इन चिंताओं के बारे में दिल्ली में ट्रंप से आधिकारिक वार्ता के दौरान बात कर सकता है. यह एक समय में होगा जब अफगानी राष्ट्रपति चुनावों में अशरफ गनी की जीत को अब्दुल्ला अब्दुल्ला चुनौती दे रहे हैं. इस कारण यह चितांए भी पैदा हो गई है कि क्या आंतरिक अफगानी राजनीति की उठापटक का असर तालिबान से सत्ता की भागीदारी की बातचीत पर भी पड़ सकता है?

नई दिल्ली को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ट्रंप पाकिस्तान को खुश करने के लिए दोबारा कश्मीर मसले पर मध्यस्थता की पेशकश न करें. मध्यस्थता एक ऐसा मुद्दा है जिसे भारत समय समय पर ठुकरा चुका है और भारत ने हमेशा कहा है कि कश्मीर मामला द्विपक्षीय है.

लेखिका

(स्मिता शर्मा)

भारत द्वारा अफगानिस्तान में की जा रही मदद के बारे में जनवरी 2019 में बोलते हुए ट्रंप ने कहा था कि, 'क्या आप जानते हैं वो क्या है? यह हमारे द्वारा पांच घंटे में की गई मदद के बराबर है और हमसे आशा की जाती है कि हम कहें, पुस्तकालय के लिये धन्यवाद. मुझे नहीं पता अफगानिस्तान में इसका इस्तेमाल कौन कर रहा है?'

ट्रंप का इशारा, भारतीय मदद से बनी अफगानी संसद की इमारत की तरफ था, जिसका उदघाटन पीएम मोदी द्वारा 2015 में किया गया था. ट्रंप ने यह बात अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाने को लेकर पत्रकारों से बात करते हुए कही थी. इस बयान पर नई दिल्ली ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी और, भारत द्वारा अफगानिस्तान में अलग-अलग विकास कार्यों के लिये दिये जा रहे तीन बिलियन अमरीकी डॉलर के साथ साथ अफगानिस्तान में अमरीका या पाकिस्तान के मुकाबले भारत की अधिक लोकप्रियता को याद दिलाया था.

सोमवार को अहमदाबाद के मोटेरा में, दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम में खचाखच भरी भीड़ को संबोधित करते हुए, ट्रंप ने आतंकवाद से लड़ने की बात तो कही लेकिन पाकिस्तान पर बोलते समय कुछ नरम पड़ते दिखाई दिए. उन्होंने कहा, 'आतंकवादियों और उनकी विचारधारा से लड़ने के लिए भारत और अमरीका प्रतिबद्ध हैं.'

नमस्ते ट्रंप के भव्य आयोजन के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच साझा करते हुए ट्रंप ने कहा कि, 'इस कारण से, कार्यभार संभालने के बाद से ही, मैं और मेरा प्रशासन पाकिस्तान के साथ, उसकी सीमा के अंदर काम कर रहे आतंकी संगठनों पर लगाम लगाने के लिये सकारात्मक काम कर रहे हैं.' 2010 और 2015 में बराक ओबामा की ही तरह, ट्रंप ने भी अपनी पहली भारत यात्रा में पाकिस्तान यात्रा को नहीं जोड़ा है.'

लेकिन, तालिबान-अमरीका के शांति समझौते में पाकिस्तान की भूमिका को ध्यान में रखते हुए इस यात्रा का समय ट्रंप के लिये अहम है. उन्होंने कहा कि, 'हमारे पाकिस्तान से बहुत अच्छे रिश्ते हैं. इन्हीं के कारण हम उसके साथ बड़े विकास की तरफ बड़ रहे हैं और हमें दक्षिण एशिया के सभी देशों के बीच, तनाव के कम होने,और बेहतर ठहराव आने की उम्मीद कर रहे है.'

रॉ के पूर्व अधिकारी और बंगलूरू के तक्षिला संस्थान में इंटेलिजेंस विशेषज्ञ आनंद अर्नी का कहना है कि ट्रंप को अफगानिस्तान में एक समझौता चाहिए. यह उनके दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के लिये जरूरी है. नवंबर 2020 में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों से पहले उनके लिये अफगानिस्तान से अमरीकी सेना को वापस बुलाना जरूरी है, यह उनके पहले चुनावी वादों में से एक अहम वादा था.'

इसे भी पढ़ें- मोदी-ट्रंप का एलान, डिफेंस डील पर लगी मुहर, ट्रेड डील पर बातचीत आगे बढ़ाने पर सहमति

ट्रंप ने जनवरी 2018 में एक ट्वीट कर पाकिस्तान को धमकी दी थी, लेकिन इस अफगान समझौते के कारण ही उन्होंने पिछले साल व्हाइट हाउस में पीएम मोदी की मौजूदगी में और इस साल के शुरू में दावोस में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को अपना करीबी दोस्त बताया था.

पाकिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत, शरत सबरवाल का कहना है कि अमरीका और पाकिस्तान का रिश्ता काफ़ी आदान प्रदान का है. पिछले एक साल से अमरीका इस समझौते को लेकर पाकिस्तान से मदद ले रहा है और पाकिस्तान ने भी इस समझौते के लिये काम किया है. पिछले शनिवार से ही वहां इस समझौते के लागू होने से पहले हिंसा को कम करने के दौर की शुरुआत हुई है. इसलिए गुजरात में ट्रंप के बयान से आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

शरत ने यह भी कहा कि हालांकि अमरीका आतंकवाद पर नकेल कसने के लिये पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है लेकिन जब तक वो अफगानिस्तान से अपनी सेना को पूरी तरह वापस करने के लिये पाकिस्तान पर निर्भर है, यह दबाव बढ़ेगा, ऐसा नहीं लगता.

वहीं भारत को चिंता है कि अफगानिस्तान से अमरीकी सेना के चले जाने के बाद पाकिस्तान की वहां क्या भूमिका रहेगी और भारत के खिलाफ़ काम करने वाले आतंकी संगठनों जैसे कि लश्कर-ए-तैय्यबा ने अगर अपना ठिकाना अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में स्थापित कर लिया तो क्या हालात रहेंगे.

भारत अपनी इन चिंताओं के बारे में दिल्ली में ट्रंप से आधिकारिक वार्ता के दौरान बात कर सकता है. यह एक समय में होगा जब अफगानी राष्ट्रपति चुनावों में अशरफ गनी की जीत को अब्दुल्ला अब्दुल्ला चुनौती दे रहे हैं. इस कारण यह चितांए भी पैदा हो गई है कि क्या आंतरिक अफगानी राजनीति की उठापटक का असर तालिबान से सत्ता की भागीदारी की बातचीत पर भी पड़ सकता है?

नई दिल्ली को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ट्रंप पाकिस्तान को खुश करने के लिए दोबारा कश्मीर मसले पर मध्यस्थता की पेशकश न करें. मध्यस्थता एक ऐसा मुद्दा है जिसे भारत समय समय पर ठुकरा चुका है और भारत ने हमेशा कहा है कि कश्मीर मामला द्विपक्षीय है.

लेखिका

(स्मिता शर्मा)

Last Updated : Mar 2, 2020, 12:53 PM IST
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