कांगड़ा : ईटीवी भारत अपनी खास सीरीज रहस्य में आपको अब तक कई रहस्यमई स्थानों से परिचत करा चुका है. इसी कड़ी में हम आपको एक ऐसी जगह ले चलेंगे, जहां भोले नाथ ने साधाना की थी. यहां मौजूद गुफा अपने भीतर कई अनसुलझे रहस्यों को छिपाए हुए है.
धर्मशाला से 50 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा स्थान त्रिलोकपुर नाम से विख्यात है. यहां सड़क किनारे भगवान शिव का गुफा नुमा एक प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर के अंदर छत से विचित्र जटाएं लटकती हैं, जिन्हें देख ऐसा लगता है कि मानो छत से सांप लटक रहे हों.
लोगों की ऐसी मान्यता है कि यहां मौजूद शिवलिंग किसी इंसान या देवता ने नहीं बल्कि खुद महादेव ने स्थापित किया है. गुफा के भीतर बने इस मंदिर में प्रवेश करते ही सिर अपने आप शिव प्रतिमा के समक्ष श्रद्धा से झुक जाता है. मंदिर के बाहर एक छोटा सा नाला बहता है. जिसमें कई विशाल शिलाएं हैं. इन पत्थरों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानों बहुत सी भेड़े इस नाले में लेटी हों.
मंदिर को लेकर मान्यता है कि सतयुग में एक बार भगवान शिव इस गुफा के भीतर तपस्या में लीन थे. जिस स्थान पर भोले नाथ बैठे थे, वहां दो सोने के स्तंभ थे और उनके आस-पास सोना बिखरा पड़ा था.
भगवान शिव के सिर पर सैकड़ों मुख वाला सर्प छत्र की भांति उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रहा था. तभी एक गडरिया अपनी भेड़ों को चराता हुआ उधर से निकला. उसने गुफा में देखा कि एक साधु तपस्या में लीन हैं और यह भी देखा की साधु के चारो ओर सोना बिखरा पड़ा है.
बेशुमार सोने को देखकर गडरिये के मन में लालच आ गया और उसने स्वर्ण स्तंभों से सोना निकालने का प्रयास किया. इसी दौरान तपस्या में लीन भगवान शिव का ध्यान भंग हो गया और उन्होंने क्रोध में आकर गड़रिये को पत्थर होने का श्राप दे दिया. जो आज भी उसी मुद्रा में गुफा में मौजूद है. भगवान के श्राप ने आस-पास की हर वस्तु को पत्थर का बना दिया. गुफा में मौजूद सारा सोना भी पत्थर का हो गया.
भगवान भोलेनाथ की इस तपोस्थली आकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह गुफा अपने भीतर कई रहस्य संजोए हुए है, पत्थर का सर्प आज भी निरंतर महादेव का जलाभिषेक करता रहता है. लोगों की इस मंदिर पर अटूट आस्था और श्रद्धा है. शायद यही कारण है जो यहां आने वाले लोगों को हर क्षण भगवान शिव के होने की अनुभूति होती है.