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सपनों की उड़ान को नहीं मिल रहे पंख, सिस्टम के आगे बेबस संघवी - बुनियादी सुविधा

गरीब परिवार की संघवी ने भविष्य को लेकर कई सपने संजोए हुए हैं. अपने समुदाय के खस्ता हाल को देखकर उसने डॉक्टर बनने का सपना देखा है, ताकि वह बेमौत मरते लोगों को नया जीवनदान दे सके और अपने समुदाय के लाचार लोगों की आवाज बन सके. गरीबी और कई तरह की समस्याओं के चलते भी संघवी ने जैसे-तैसे अपनी पढ़ाई तो पूरी कर ली लेकिन अब उसे प्रमाण पत्र नहीं मिल पा रहा है.

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जैसे-तैसे पूरी की पढ़ाई, अब नहीं मिल रहा प्रमाण-पत्र
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Published : May 14, 2020, 8:12 PM IST

कोयंबटूर : आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली संघवी ने भविष्य को लेकर काफी सपने संजोए हुए हैं. कई बाधाओं को पार करते हुए अपनी शिक्षा तो पूरी कर ली है, लेकिन प्रमाण पत्र का न मिलना उसके डॉक्टर बनने के सपने के आड़े आ रहा है.

मालासार आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली 19 वर्षीय संघवी सभी बातों को दरकिनार कर एक डॉक्टर बनने का सपना देख रही है. संघवी का यह सपना उसके अपने परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के लिए है.

गौरतलब है कि तमिलनाडु के कोयंबटूर के बाहरी इलाके में मालासर जनजातियों की दुर्दशा है. यह लोग रोजी-रोटी के लिए मैदानी इलाकों की ओर पलायन करते रहे हैं.

देखें, ईटीवी भारत की रिपोर्ट...

दशकों से मैदानी इलाकों में स्थानांतरित हो चुके उनके समुदाय में से किसी ने भी पढ़ लिखकर कुछ हासिल करने का सपना नहीं देखा है लेकिन इनके लिए सबसे बड़ी बाधा प्रमाण पत्र है, जिसके चलते न तो संघवी को किसी कॉलेज में दाखिला मिल सकता है, न ही वह किसी नौकरी के लिए आवेदन कर सकती है.

आपको बता दें इस जनजाति ने कभी भी किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं उठाया. इनके पास न तो राशन कार्ड है, न ही किसी तरह का कोई प्रमाण पत्र, जिससे इन्हें किसी तरह का लाभ मिल सके.

ऐसे में संघवी और और उसके समुदाय के लोगों के मन में बस एक ही सवाल उठ रहा है, कि क्या सरकार उनके लिए मदद का हाथ बढ़ाएगी? ताकि संघवी अपने सपने को पूरा कर सके.

क्या कहना है संघवी का ?
संघवी का कहना है कि हमारे गांव में बिजली, साफ-सफाई और पेयजल जैसी कोई भी बुनियादी सुविधा नहीं है. यहां के लोग ज्यादातर या तो कृषि या फिर कुली का काम करते हैं. कई बार तो लोगों के पास कोई काम नहीं होता. ऐसे में दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो जाता है.

संघवी कहती है कि गांव में कोई भी पढ़ा-लिखा नहीं है. लोगों ने कभी स्कूल देखा तक नहीं. ऐसे में उन्हें दस्तावेजों की अहमियत के बारे में कुछ भी नहीं पता.

लुप्त न हो जाएं सपने
सरकार गरीबों के लिए तमाम तरह का योजनाएं तो बना रही हैं, लेकिन इन योजनाओं का लाभ सिर्फ उन्हें मिल पा रहा है, जिनके पास कागजात के नाम पर कोई प्रमाण हो. लेकिन ऐसे में इन समुदायों का क्या ? जो समाज का हिस्सा तो हैं लेकिन इस प्रकार की योजनाओं से कटे जहां-तहां अपनी गुजर बसर की जद्दोजहद में जुटे हैं.

ऐसे में प्रशासन को चाहिए कि इन लोगों पर भी ध्यान दे ताकि संघवी जैसे बड़े सपने देखने वाले युवाओं का भविष्य अंधकारमय न हो जाए. और सरकार और तंत्र पर से किसी का भरोसा न उठे.

कोयंबटूर : आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली संघवी ने भविष्य को लेकर काफी सपने संजोए हुए हैं. कई बाधाओं को पार करते हुए अपनी शिक्षा तो पूरी कर ली है, लेकिन प्रमाण पत्र का न मिलना उसके डॉक्टर बनने के सपने के आड़े आ रहा है.

मालासार आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली 19 वर्षीय संघवी सभी बातों को दरकिनार कर एक डॉक्टर बनने का सपना देख रही है. संघवी का यह सपना उसके अपने परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के लिए है.

गौरतलब है कि तमिलनाडु के कोयंबटूर के बाहरी इलाके में मालासर जनजातियों की दुर्दशा है. यह लोग रोजी-रोटी के लिए मैदानी इलाकों की ओर पलायन करते रहे हैं.

देखें, ईटीवी भारत की रिपोर्ट...

दशकों से मैदानी इलाकों में स्थानांतरित हो चुके उनके समुदाय में से किसी ने भी पढ़ लिखकर कुछ हासिल करने का सपना नहीं देखा है लेकिन इनके लिए सबसे बड़ी बाधा प्रमाण पत्र है, जिसके चलते न तो संघवी को किसी कॉलेज में दाखिला मिल सकता है, न ही वह किसी नौकरी के लिए आवेदन कर सकती है.

आपको बता दें इस जनजाति ने कभी भी किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं उठाया. इनके पास न तो राशन कार्ड है, न ही किसी तरह का कोई प्रमाण पत्र, जिससे इन्हें किसी तरह का लाभ मिल सके.

ऐसे में संघवी और और उसके समुदाय के लोगों के मन में बस एक ही सवाल उठ रहा है, कि क्या सरकार उनके लिए मदद का हाथ बढ़ाएगी? ताकि संघवी अपने सपने को पूरा कर सके.

क्या कहना है संघवी का ?
संघवी का कहना है कि हमारे गांव में बिजली, साफ-सफाई और पेयजल जैसी कोई भी बुनियादी सुविधा नहीं है. यहां के लोग ज्यादातर या तो कृषि या फिर कुली का काम करते हैं. कई बार तो लोगों के पास कोई काम नहीं होता. ऐसे में दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो जाता है.

संघवी कहती है कि गांव में कोई भी पढ़ा-लिखा नहीं है. लोगों ने कभी स्कूल देखा तक नहीं. ऐसे में उन्हें दस्तावेजों की अहमियत के बारे में कुछ भी नहीं पता.

लुप्त न हो जाएं सपने
सरकार गरीबों के लिए तमाम तरह का योजनाएं तो बना रही हैं, लेकिन इन योजनाओं का लाभ सिर्फ उन्हें मिल पा रहा है, जिनके पास कागजात के नाम पर कोई प्रमाण हो. लेकिन ऐसे में इन समुदायों का क्या ? जो समाज का हिस्सा तो हैं लेकिन इस प्रकार की योजनाओं से कटे जहां-तहां अपनी गुजर बसर की जद्दोजहद में जुटे हैं.

ऐसे में प्रशासन को चाहिए कि इन लोगों पर भी ध्यान दे ताकि संघवी जैसे बड़े सपने देखने वाले युवाओं का भविष्य अंधकारमय न हो जाए. और सरकार और तंत्र पर से किसी का भरोसा न उठे.

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