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विशेष लेख : CDS के पद का सावधानी से स्वागत करने की जरूरत

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Published : Dec 28, 2019, 7:01 PM IST

Updated : Dec 28, 2019, 7:55 PM IST

जिस CDS के पद के बारे में साल 2001 में सोचा गया था, उसके मोदी सरकार ने पूरा कर दिखाया. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि किस तरह यह रक्षातंत्र में उच्च स्थान पर रहेगा और इसका कार्यक्षेत्र कैसा होगा.

कॉन्सेप्ट इमेज
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चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के पद सृजन के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि किस तरह यह रक्षातंत्र में उच्च स्थान पर रहेगा और इसका कार्यक्षेत्र कैसा होगा. मोदी सरकार काफी समय से लंबित पड़े इस मामले पर कदम उठाने के लिए बधाई की पात्र है. लेकिन जिस सीडीएस के पद के बारे में साल 2001 में सोचा गया था, उसकी कामयाबी इस बात पर निर्भर है कि भारत सरकार के प्रशासनिक तंत्र में इस पद को क्या स्थान और हक मिलते हैं.

CDS का पद सृजित करने के पीछे मंशा थी कि यह पद देश की सरकार के लिए रक्षा से जुड़े मामलों पर राय लेने और जानकारी का एकल केंद्र बिंदु रहेगा. CDS के पद को मौजूदा सेना, वायु सेना और नौ सेना प्रमुखों के ऊपर रखा जाना था और कुछ लोगों ने तो इसे एक पांच सितारा पद बानाने की भी वकालत की है. इस मसले पर अन्य गणतंत्रों के तरीको को भी, भारत में लागू करने के लिए अध्ययन किया गया.

हालांकि, आखिरकार जो तस्वीर सामने आई है, वह काफी हद तक भारतीय मॉडल है और मौजूदा मोदी सरकार की रक्षा नीतियों से मेल खाती है. इस मामले पर जारी आधिकारिक प्रेस विज्ञपति से पता चलता है कि CDS सेना के तीनों अंगों की तरफ से रक्षा मंत्री के प्रमुख सलाहाकार के तौर पर काम करेगा.

सेना के तीनों अंगों के प्रमुख अपने विभागों के बारे में सीधे रक्षा मंत्री को सलाह देते रहेंगे. CDS का तीनों सेना प्रमुखों के ऊपर कोई सैन्य अख्तियार नहीं होगा, इससे राजनीतिक नेतृत्व को सही राय देने में मदद मिलेगी.

इससे यह साफ है कि CDS, रक्षा मंत्री के प्रमुख सलाहाकार के तौर पर काम करेगा न कि एकल केंद्र बिंदु की तरह. CDS के दो रोल रहेंगे, पहला, चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (COSF) के पर्मानेंट अध्यक्ष का औेर दूसरा, डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स के मुखिया का.

CDS को तन्ख्वाह और अन्य सुविधाऐं सेना के अन्य अंगों के प्रमुखों के बराबर मिलेगी, लेकिन प्रोटोकोल में सीडीएस का स्थान अन्य प्रमुखों से ऊपर होगा.

CDS के कार्यक्षेत्र में, रक्षा खरीद में एकाग्रता, सेना के सभी अंगों में भर्ती को लेकर समन्वय बैठाना, सेना के ऑपरेशनों में सभी अंगों को एक साथ लाकर संसाधनों का सही और ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना, और देश में बने उपकरणों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना शामिल है.

आजाद भारत में, सैन्य-नागरिक रिश्तों के लिहाज से, डीएमए का अध्यक्ष CDS को नियुक्त करना एक अहम कदम है. अगर जिस तरह CDS को ताकत देने के बारे में कहा गया है, उसे सही तरह से लागू किया जाता है तो यह पहली बार होगा कि सेना को आधिकारिक तौर पर गवर्नेंस में शामिल किया जाएगा.

मौजूदा समय में, भारत सरकार के बिजनेस के नियमों के अनुसार, देश की रक्षा की जिम्मेदारी रक्षा सचिव के ऊपर है, जो रक्षा मंत्रालय में सबसे वरिष्ठ नौकरशाह होता है. इन सब के बीच, सरकारी कार्यप्रणाली में CDS को क्या रक्षा सचिव के बराबर या पूर्व अधिकारी का स्थान मिलता है, यह आने वाले समय में साफ हो सकेगा.

यह बात CDS के लिए, उनके कार्यक्षेत्र में रखे गए तीन प्रमुख मसलों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण होगी. ये तीनों ही अपने आप में बेहद जरूरी है, और अगर इन्हें पूरी तरह से हासिल कर लिया गया तो ये भारतीय सेना की प्रोफाइल और कार्यप्रणाली को और सुदृढ़ करने में अहम भूमिका निभाएंगे.

1999 के कारगिल युद्ध के बाद से ही भारतीय सेना की कार्यप्रणाली में बदलावों की बातें कही जा रही थीं. इसके चलते मोदी सरकार ने भी सेना के सभी अंगों के समन्वय से काम करने को अपनी प्राथमिकताओं में रखा था. हालांकि, इन्हें पूर्ण रूप से लागू करने के लिए सालों का अध्ययन और कड़ी मेहनत लगेगी.

CDS पद की सफलता जिस दूसरे पहलू पर निर्भर करेगी, वह है, संसाधनों का बंटवारा, जिसमें आर्थिक और मानव संसाधन दोनों शामिल हैं. इसमें मानव संसाधन इस बात पर निर्भर करेगा कि डिसीजन मेकिंग अथॉरिटी ( DMA ) में किस तरह से नियुक्तियां होती हैं, और आर्थिक पहलू इस बात पर निर्भर करेगा कि, देश के बजट में सेना के लिए कितना धन रखा जाता है.

पढ़ें- 2019 की सुर्खियां : नागरिकता संशोधन कानून पर मचा संग्राम

मौजूदा रक्षा बजट, सेना के हथियारों के नवीनीकरण के लिए नाकाफी है, इसके चलते नए हथियार आदि की खरीद और मुश्किल हो जाती है. क्या CDS इस मौजूदा हालात और आने वाले 15 सालों की तैयारियों को नया प्रारूप दे सकेगा?

CDS के सामने देश के राजनीतिक नेतृत्व को रक्षा जरूरतों को लेकर सही अनुभव और राय देने का, और देश के रक्षा मामलों के संबंध में लंबे समय से बदलावों की मांग को सच्चाई में बदलने का मुश्किल काम है. हालांकि, अच्छी बात यह है कि आखिरकार मोदी सरकार ने इस मामले में पहला कदम उठा लिया है.
DMA और CDS को लेकर अब राजनीतिक नेतृत्व, अफसरशाही और सेना किस तरह समन्वय और तेजी से काम करते हैं, ये आने वाले दशकों में भारत की सैन्य क्षमताओं की प्रगति और दिशा को तय करेंगे.

देखने वाली बात यह है कि, क्या पीएम मोदी देश के रक्षा क्षेत्र में वही बदलाव ला सकते हैं, जो पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव आर्थिक क्षेत्र में लाए थे?

(सी. उदय भास्कर)

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के पद सृजन के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि किस तरह यह रक्षातंत्र में उच्च स्थान पर रहेगा और इसका कार्यक्षेत्र कैसा होगा. मोदी सरकार काफी समय से लंबित पड़े इस मामले पर कदम उठाने के लिए बधाई की पात्र है. लेकिन जिस सीडीएस के पद के बारे में साल 2001 में सोचा गया था, उसकी कामयाबी इस बात पर निर्भर है कि भारत सरकार के प्रशासनिक तंत्र में इस पद को क्या स्थान और हक मिलते हैं.

CDS का पद सृजित करने के पीछे मंशा थी कि यह पद देश की सरकार के लिए रक्षा से जुड़े मामलों पर राय लेने और जानकारी का एकल केंद्र बिंदु रहेगा. CDS के पद को मौजूदा सेना, वायु सेना और नौ सेना प्रमुखों के ऊपर रखा जाना था और कुछ लोगों ने तो इसे एक पांच सितारा पद बानाने की भी वकालत की है. इस मसले पर अन्य गणतंत्रों के तरीको को भी, भारत में लागू करने के लिए अध्ययन किया गया.

हालांकि, आखिरकार जो तस्वीर सामने आई है, वह काफी हद तक भारतीय मॉडल है और मौजूदा मोदी सरकार की रक्षा नीतियों से मेल खाती है. इस मामले पर जारी आधिकारिक प्रेस विज्ञपति से पता चलता है कि CDS सेना के तीनों अंगों की तरफ से रक्षा मंत्री के प्रमुख सलाहाकार के तौर पर काम करेगा.

सेना के तीनों अंगों के प्रमुख अपने विभागों के बारे में सीधे रक्षा मंत्री को सलाह देते रहेंगे. CDS का तीनों सेना प्रमुखों के ऊपर कोई सैन्य अख्तियार नहीं होगा, इससे राजनीतिक नेतृत्व को सही राय देने में मदद मिलेगी.

इससे यह साफ है कि CDS, रक्षा मंत्री के प्रमुख सलाहाकार के तौर पर काम करेगा न कि एकल केंद्र बिंदु की तरह. CDS के दो रोल रहेंगे, पहला, चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (COSF) के पर्मानेंट अध्यक्ष का औेर दूसरा, डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स के मुखिया का.

CDS को तन्ख्वाह और अन्य सुविधाऐं सेना के अन्य अंगों के प्रमुखों के बराबर मिलेगी, लेकिन प्रोटोकोल में सीडीएस का स्थान अन्य प्रमुखों से ऊपर होगा.

CDS के कार्यक्षेत्र में, रक्षा खरीद में एकाग्रता, सेना के सभी अंगों में भर्ती को लेकर समन्वय बैठाना, सेना के ऑपरेशनों में सभी अंगों को एक साथ लाकर संसाधनों का सही और ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना, और देश में बने उपकरणों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना शामिल है.

आजाद भारत में, सैन्य-नागरिक रिश्तों के लिहाज से, डीएमए का अध्यक्ष CDS को नियुक्त करना एक अहम कदम है. अगर जिस तरह CDS को ताकत देने के बारे में कहा गया है, उसे सही तरह से लागू किया जाता है तो यह पहली बार होगा कि सेना को आधिकारिक तौर पर गवर्नेंस में शामिल किया जाएगा.

मौजूदा समय में, भारत सरकार के बिजनेस के नियमों के अनुसार, देश की रक्षा की जिम्मेदारी रक्षा सचिव के ऊपर है, जो रक्षा मंत्रालय में सबसे वरिष्ठ नौकरशाह होता है. इन सब के बीच, सरकारी कार्यप्रणाली में CDS को क्या रक्षा सचिव के बराबर या पूर्व अधिकारी का स्थान मिलता है, यह आने वाले समय में साफ हो सकेगा.

यह बात CDS के लिए, उनके कार्यक्षेत्र में रखे गए तीन प्रमुख मसलों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण होगी. ये तीनों ही अपने आप में बेहद जरूरी है, और अगर इन्हें पूरी तरह से हासिल कर लिया गया तो ये भारतीय सेना की प्रोफाइल और कार्यप्रणाली को और सुदृढ़ करने में अहम भूमिका निभाएंगे.

1999 के कारगिल युद्ध के बाद से ही भारतीय सेना की कार्यप्रणाली में बदलावों की बातें कही जा रही थीं. इसके चलते मोदी सरकार ने भी सेना के सभी अंगों के समन्वय से काम करने को अपनी प्राथमिकताओं में रखा था. हालांकि, इन्हें पूर्ण रूप से लागू करने के लिए सालों का अध्ययन और कड़ी मेहनत लगेगी.

CDS पद की सफलता जिस दूसरे पहलू पर निर्भर करेगी, वह है, संसाधनों का बंटवारा, जिसमें आर्थिक और मानव संसाधन दोनों शामिल हैं. इसमें मानव संसाधन इस बात पर निर्भर करेगा कि डिसीजन मेकिंग अथॉरिटी ( DMA ) में किस तरह से नियुक्तियां होती हैं, और आर्थिक पहलू इस बात पर निर्भर करेगा कि, देश के बजट में सेना के लिए कितना धन रखा जाता है.

पढ़ें- 2019 की सुर्खियां : नागरिकता संशोधन कानून पर मचा संग्राम

मौजूदा रक्षा बजट, सेना के हथियारों के नवीनीकरण के लिए नाकाफी है, इसके चलते नए हथियार आदि की खरीद और मुश्किल हो जाती है. क्या CDS इस मौजूदा हालात और आने वाले 15 सालों की तैयारियों को नया प्रारूप दे सकेगा?

CDS के सामने देश के राजनीतिक नेतृत्व को रक्षा जरूरतों को लेकर सही अनुभव और राय देने का, और देश के रक्षा मामलों के संबंध में लंबे समय से बदलावों की मांग को सच्चाई में बदलने का मुश्किल काम है. हालांकि, अच्छी बात यह है कि आखिरकार मोदी सरकार ने इस मामले में पहला कदम उठा लिया है.
DMA और CDS को लेकर अब राजनीतिक नेतृत्व, अफसरशाही और सेना किस तरह समन्वय और तेजी से काम करते हैं, ये आने वाले दशकों में भारत की सैन्य क्षमताओं की प्रगति और दिशा को तय करेंगे.

देखने वाली बात यह है कि, क्या पीएम मोदी देश के रक्षा क्षेत्र में वही बदलाव ला सकते हैं, जो पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव आर्थिक क्षेत्र में लाए थे?

(सी. उदय भास्कर)

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Last Updated : Dec 28, 2019, 7:55 PM IST
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