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परिवार की तरह बसाया जंगल, यह अद्भुत निर्माण कर देगा हैरान

दुनिया में सब कुछ प्रकृति की देन नहीं है, बल्कि इंसान ने भी प्रकृति प्रेम के चलते कई अद्भुत निर्माण किए हैं. आज हम आपको एक ऐसी ही जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जो सुनने में नामुमकिन लगेगा, लेकिन कुछ लोगों के लिए ये आकर्षण का केंद्र बन चुका है. आज हम एक ऐसे जंगल के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसको प्रकृति ने नहीं बल्कि एक इंसान द्वारा बनाया गया है.

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प्रकृति प्रेमी
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Published : Sep 15, 2020, 9:00 PM IST

चेन्नई (तमिलनाडु) : प्रकृति की अद्भुत देन है जंगल. इन जंगलों की वजह से हमें फल-फूल, लकड़ी, हरियाली, आदि मिलती है. घने वृक्ष, वृक्षों से लिपटी लताएं, पक्षियों की चहचहाहट और जंगली जानवरों से बसे जंगल में हर कोई सैर करना चाहता है. शहर की भागदौड़ से दूर यहीं तो प्रकृति का आनंद है, लेकिन इन प्राकृतिक जगहों को बसाने में कुछ लोगों के ही कदम आगे बढ़ते हैं.

इन जंगलों को जहां कुछ माफिया अपने फायदे के लिए उजाड़ रहे हैं, वहीं कुछ ऐसे भी महापुरुष हैं जो इनको बचाने में लगे हुए हैं. जंगलों की अंधाधुंध कटाई के इस दौर में सर्वानन जैसे लोग भी हैं, जिन्होंने अपने संकल्प से अकेले दम पर वीराने में बहार ला दी.

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जंगल का खूबसूरत नजारा

सर्वानन ने खूबसूरती से कराया रूबरू
जंगल जो पक्षियों, जानवरों और पौधों जैसे जीवित प्राणियों के लिए प्रकृति का एक घर है. कई बार देखने को मिलता है कि लोग अपने फायदे के लिए जंगलों की ओर दौड़ लगाते हैं. अपने आराम के लिए प्रकृति से प्रेम दिखाते हैं. इस परिस्थिति में सर्वानन नाम के एक व्यक्ति ने अकेले ही आश्चर्यचकित कर देने वाले जंगल को एक नया रूप दे दिया. यह जानने के लिए भी हम उतने ही उत्सुक थे कि कैसे ये उपलब्धि संभव हो सकी. यही जानने के लिए हम पहुंचे पुडुचेरी पुथुराई क्षेत्र के अरण्य में, जहां हम उस खूबसूरती से रूबरू हुए.

सर्वानन का प्रकृति प्रेम

कन्याकुमारी से गोवा तक पैदल मार्च
सर्वानन का जन्म तमिलनाडु के तिरुवन्नमलई जिले के जावडू नालों के तल पर स्थित वालयामपट्टु गांव में एक कृषक परिवार में हुआ था. उन्होंने समाजशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है. प्रकृति के प्रति उनका प्रेम देखते ही बनता है. वे प्रकृति को और खूबसूरत बनाए रखने के लिए कई प्रकार के पेड़-पौधे लगाते रहते हैं. उनमें जंगल के प्रति काफी स्नेह और रुचि है. उन्होंने एक युवा के तौर जंगल को बचाने के लिए कन्याकुमारी से गोवा तक पैदल मार्च में भाग भी किया. इसके साथ ही लोगों से आग्रह किया कि वे पश्चिमी घाट को विनाश से बचाएं.

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प्रकृति प्रेम के चलते अद्भुत निर्माण

30 साल पहले आए थे ऑरोविले
सर्वानन का मानना है कि प्रकृति ने उन्हें काफी कम उम्र में ही गले लगा लिया. उनको ये मौका मिला कि वे प्रकृति की देखभाल कर सकें. सर्वानन खुद 30 साल पहले ऑरोविले आए थे. जब ऑरोविले प्रशासन ने रखरखाव के लिए उन्हें ये जमीन सौंपी थी, तब लोगों द्वारा इस जमीन को चराई के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था.

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आकर्षण का केंद्र बना जंगल

युवाओं की मदद से खेती के लिए की जमीन तैयार
सर्वानन ने सबसे पहले सूखे उष्णकटिबंधीय जंगलों को एक ऐसी जगह बनाने की कोशिश की, जहां बारिश के पानी को बचाने का कोई प्रावधान नहीं था. ये पूरी जमीन लाल मिट्टी और कंकड़ से भरी हुई थी, जो बढ़ते पौधों के लिए उपयुक्त नहीं थी. इसके बावजूद सर्वानन अपने प्रयासों से पीछे नहीं हटे. उन्होंने गांव के युवाओं की मदद से खेती के लिए जमीन तैयार की.

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फल-फूल, हरियाली से घिरा खूबसूरत जंगल

पेड़ों की कई किस्मों से भरा है जंगल
सर्वानन ने कन्याकुमारी, जवाडु हिल और चेंजी से 150 पेड़ पौधे खरीदे और लगाए. इसके साथ ही उनका रखरखाव भी किया. वह पेड़ों की देखभाल करने के लिए वापस पुथुराई में ही रुक गए. इस तथ्य के बारे में पूरी तरह से जानते हुए भी कि एक जंगल को मनुष्य द्वारा स्वयं नहीं बनाया जा सकता, सर्वानन ने इसे एक सुंदर रूप देने की ठान ली. सर्वानन कहते हैं कि मैंने महसूस किया कि जंगल तभी जीवित होगा, जब पक्षियों और जानवरों जैसे अन्य प्राणियों का निवास यहां होगा. वह कहते हैं कि मनुष्य जंगल का वास्तविक लाभार्थी है, जो पक्षियों और जानवरों द्वारा समृद्ध है.

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जंगल देखने आ रहे सैलानियों के लिए प्रवेश निशुल्क

पढ़ें: जानिए दूरदर्शन का इतिहास, क्या आपको याद हैं यह सीरियल ?

पक्षियों और जानवरों के लिए बनाया आसरा
अपने सपने को सच करने के लिए सर्वानन ने सबसे पहले पौधे रोपे और इस स्थान को तैयार किया ताकि पक्षियों और जानवरों को निवास के लिए अनुकूल बनाया जा सके. उन्होंने इस जमीन की मिट्टी की उर्वरता को समृद्ध करने के लिए सीमाएं निर्धारित कीं. इस प्रकार उस क्षेत्र में भूजल स्तर भी काफी बढ़ गया.

जगंल में लगाए एक लाख से अधिक पेड़
कुछ वर्षों में सर्वानन द्वारा उगाए गए पेड़ों के बीजों से प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले पेड़ों की संख्या एक लाख से अधिक हो गई. सर्वानन, जिन्होंने अपनी आंखों के सामने अरण्य वन की वृद्धि देखी, अपने परिवार के साथ यहां रहे. सर्वानन की पत्नी वत्सला ने कहा कि वह प्रकृति के साथ रहने के आदी हो गए हैं, जैसे कि पक्षियों का चहकना और सुबह उठने के बाद पक्षियों की चहलकदमी और तेज हवाएं उनके जीवन का एक हिस्सा बन गई है.

पेड़, पक्षियों की 250 से अधिक प्रजातियां
इस जंगल में चंदन, सागौन, वेनगाई, और कुंगंगली जैसे न जाने कितने पेड़ों की एक हजार से अधिक विभिन्न किस्में हैं. यहां पेड़ पक्षियों की 250 से अधिक प्रजातियों के लिए आवास हैं. जानवरों की 40 से अधिक प्रजातियां जैसे चींटी खाने वाले, जंगली सूअर और बिल्लियां वर्तमान में यहां रह रही हैं. इसके अलावा, यहां हर्बल पेड़ और पौधे भी प्रचुर मात्रा में हैं.

सर्वानन का अतुल्य प्रेम है ये जंगल
उनकी पत्नी ने कहा कि यह जंगल सर्वानन का अतुल्य प्रेम है. एक बार इस जंगल में कुछ लोग जलाऊ लकड़ी लेने आए थे. उन लोगों ने अनजाने में एक आबनूस के पेड़ की एक शाखा काट दी. वत्सला का कहना है कि सर्वानन ने पेड़ पर लगी चोट के कारण दो दिनों तक भोजन नहीं किया.

शोध के लिए आते हैं कई विज्ञानी
सर्वानन का जीवन बहुत ही सरल है, लेकिन अपने इस जीवन में उन्होंने जंगल को बनाने और उसे एक रूप देने वाला एक सबसे बड़ा चमत्कार कर दिखाया है. इस चमत्कार को देखने आने वाले दर्शकों के लिए प्रवेश बिल्कुल मुफ्त है. वनस्पति विज्ञानी, प्रोफेसर और प्रकृति कार्यकर्ता सहित कई लोग अपने शोध के लिए यहां आते हैं. सभी सुविधाएं उन्हें निशुल्क प्रदान की जाती हैं.

पढ़ें: जानें भारत रत्न एम विश्वेश्वरैया की जयंती पर क्यों मनाया जाता है इंजीनियर्स डे

'एक पेड़ लगाने की बनाएं आदत'
सर्वानन वन प्रबंधन पर प्रशिक्षण दे रहे हैं और पर्यावरण शिक्षा पर जागरूकता बढ़ा रहे हैं. स्थानीय लोगों ने कहा कि इस जंगल ने क्षेत्र में वायु प्रदूषण को काफी कम कर दिया है. भले ही कोई सर्वानन जैसा जंगल न बना सके, लेकिन हर किसी को कम से कम एक पेड़ लगाने की आदत डालनी चाहिए. यह पहल अगली पीढ़ी को जलवायु परिवर्तन की विविधताओं से बचाएगा.

100 दिवसीय पैदल मार्च का आयोजन
सर्वानन बताते हैं कि पश्चिमी घाटों के संरक्षण के समर्थन में 1987 में 100 दिवसीय पैदल मार्च का आयोजन किया गया था. एक नौजवान के रूप में मुझे इस कार्यक्रम में भाग लेने का मौका मिला. तमिलनाडु के पांच लोग वहां थे और मैं प्रमुख व्यक्ति था. इसके बाद हमने केंद्रीय सरकार को एक याचिका प्रस्तुत की, जिसमें भविष्य के लिए जंगलों को संरक्षित करने के लिए कहा गया. उन प्रयासों पर अब ध्यान दिया जा रहा है.

पेड़ की किस्में 250 से बढ़कर हुईं 700
जब हमने एक सर्वेक्षण किया तब हमें 48 विभिन्न प्रकार के पक्षी मिले. अब लगभग 240 किस्में हैं. ये पक्षी एक उद्देश्य और उपयोग के साथ आते हैं. अन्य जंगलों से उनके बीज छोड़ने से पेड़ की एक नई किस्म विकसित होती है. पेड़ की किस्में अब 250 से बढ़कर 700 हो गई हैं. यहां कई प्रकार के जानवर हैं जिनमें साही, पाम सिवेट, लोमड़ी, वन हार्स, छिपकली और 20 से अधिक किस्म के सांप शामिल हैं.

'पेड़ों के प्रति अटूट स्नेह'
सर्वानन की पत्नी वत्सला बताती हैं कि हमारे जंगल में पेड़ों की बहुत दुर्लभ किस्में हैं. एक बार एक पेड़ की शाखा को गलती से लकड़बग्घे ने काट लिया था. जिसके बाद सर्वानन ने दो दिनों तक कुछ भी खाने से इनकार कर दिया था. मुझे आश्चर्य था कि क्या यह सब एक कारण हो सकता है. जिसके बाद मैंने इन परिवर्तनों पर गौर करना शुरू कर दिया.

चेन्नई (तमिलनाडु) : प्रकृति की अद्भुत देन है जंगल. इन जंगलों की वजह से हमें फल-फूल, लकड़ी, हरियाली, आदि मिलती है. घने वृक्ष, वृक्षों से लिपटी लताएं, पक्षियों की चहचहाहट और जंगली जानवरों से बसे जंगल में हर कोई सैर करना चाहता है. शहर की भागदौड़ से दूर यहीं तो प्रकृति का आनंद है, लेकिन इन प्राकृतिक जगहों को बसाने में कुछ लोगों के ही कदम आगे बढ़ते हैं.

इन जंगलों को जहां कुछ माफिया अपने फायदे के लिए उजाड़ रहे हैं, वहीं कुछ ऐसे भी महापुरुष हैं जो इनको बचाने में लगे हुए हैं. जंगलों की अंधाधुंध कटाई के इस दौर में सर्वानन जैसे लोग भी हैं, जिन्होंने अपने संकल्प से अकेले दम पर वीराने में बहार ला दी.

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जंगल का खूबसूरत नजारा

सर्वानन ने खूबसूरती से कराया रूबरू
जंगल जो पक्षियों, जानवरों और पौधों जैसे जीवित प्राणियों के लिए प्रकृति का एक घर है. कई बार देखने को मिलता है कि लोग अपने फायदे के लिए जंगलों की ओर दौड़ लगाते हैं. अपने आराम के लिए प्रकृति से प्रेम दिखाते हैं. इस परिस्थिति में सर्वानन नाम के एक व्यक्ति ने अकेले ही आश्चर्यचकित कर देने वाले जंगल को एक नया रूप दे दिया. यह जानने के लिए भी हम उतने ही उत्सुक थे कि कैसे ये उपलब्धि संभव हो सकी. यही जानने के लिए हम पहुंचे पुडुचेरी पुथुराई क्षेत्र के अरण्य में, जहां हम उस खूबसूरती से रूबरू हुए.

सर्वानन का प्रकृति प्रेम

कन्याकुमारी से गोवा तक पैदल मार्च
सर्वानन का जन्म तमिलनाडु के तिरुवन्नमलई जिले के जावडू नालों के तल पर स्थित वालयामपट्टु गांव में एक कृषक परिवार में हुआ था. उन्होंने समाजशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है. प्रकृति के प्रति उनका प्रेम देखते ही बनता है. वे प्रकृति को और खूबसूरत बनाए रखने के लिए कई प्रकार के पेड़-पौधे लगाते रहते हैं. उनमें जंगल के प्रति काफी स्नेह और रुचि है. उन्होंने एक युवा के तौर जंगल को बचाने के लिए कन्याकुमारी से गोवा तक पैदल मार्च में भाग भी किया. इसके साथ ही लोगों से आग्रह किया कि वे पश्चिमी घाट को विनाश से बचाएं.

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प्रकृति प्रेम के चलते अद्भुत निर्माण

30 साल पहले आए थे ऑरोविले
सर्वानन का मानना है कि प्रकृति ने उन्हें काफी कम उम्र में ही गले लगा लिया. उनको ये मौका मिला कि वे प्रकृति की देखभाल कर सकें. सर्वानन खुद 30 साल पहले ऑरोविले आए थे. जब ऑरोविले प्रशासन ने रखरखाव के लिए उन्हें ये जमीन सौंपी थी, तब लोगों द्वारा इस जमीन को चराई के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था.

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आकर्षण का केंद्र बना जंगल

युवाओं की मदद से खेती के लिए की जमीन तैयार
सर्वानन ने सबसे पहले सूखे उष्णकटिबंधीय जंगलों को एक ऐसी जगह बनाने की कोशिश की, जहां बारिश के पानी को बचाने का कोई प्रावधान नहीं था. ये पूरी जमीन लाल मिट्टी और कंकड़ से भरी हुई थी, जो बढ़ते पौधों के लिए उपयुक्त नहीं थी. इसके बावजूद सर्वानन अपने प्रयासों से पीछे नहीं हटे. उन्होंने गांव के युवाओं की मदद से खेती के लिए जमीन तैयार की.

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फल-फूल, हरियाली से घिरा खूबसूरत जंगल

पेड़ों की कई किस्मों से भरा है जंगल
सर्वानन ने कन्याकुमारी, जवाडु हिल और चेंजी से 150 पेड़ पौधे खरीदे और लगाए. इसके साथ ही उनका रखरखाव भी किया. वह पेड़ों की देखभाल करने के लिए वापस पुथुराई में ही रुक गए. इस तथ्य के बारे में पूरी तरह से जानते हुए भी कि एक जंगल को मनुष्य द्वारा स्वयं नहीं बनाया जा सकता, सर्वानन ने इसे एक सुंदर रूप देने की ठान ली. सर्वानन कहते हैं कि मैंने महसूस किया कि जंगल तभी जीवित होगा, जब पक्षियों और जानवरों जैसे अन्य प्राणियों का निवास यहां होगा. वह कहते हैं कि मनुष्य जंगल का वास्तविक लाभार्थी है, जो पक्षियों और जानवरों द्वारा समृद्ध है.

forest
जंगल देखने आ रहे सैलानियों के लिए प्रवेश निशुल्क

पढ़ें: जानिए दूरदर्शन का इतिहास, क्या आपको याद हैं यह सीरियल ?

पक्षियों और जानवरों के लिए बनाया आसरा
अपने सपने को सच करने के लिए सर्वानन ने सबसे पहले पौधे रोपे और इस स्थान को तैयार किया ताकि पक्षियों और जानवरों को निवास के लिए अनुकूल बनाया जा सके. उन्होंने इस जमीन की मिट्टी की उर्वरता को समृद्ध करने के लिए सीमाएं निर्धारित कीं. इस प्रकार उस क्षेत्र में भूजल स्तर भी काफी बढ़ गया.

जगंल में लगाए एक लाख से अधिक पेड़
कुछ वर्षों में सर्वानन द्वारा उगाए गए पेड़ों के बीजों से प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले पेड़ों की संख्या एक लाख से अधिक हो गई. सर्वानन, जिन्होंने अपनी आंखों के सामने अरण्य वन की वृद्धि देखी, अपने परिवार के साथ यहां रहे. सर्वानन की पत्नी वत्सला ने कहा कि वह प्रकृति के साथ रहने के आदी हो गए हैं, जैसे कि पक्षियों का चहकना और सुबह उठने के बाद पक्षियों की चहलकदमी और तेज हवाएं उनके जीवन का एक हिस्सा बन गई है.

पेड़, पक्षियों की 250 से अधिक प्रजातियां
इस जंगल में चंदन, सागौन, वेनगाई, और कुंगंगली जैसे न जाने कितने पेड़ों की एक हजार से अधिक विभिन्न किस्में हैं. यहां पेड़ पक्षियों की 250 से अधिक प्रजातियों के लिए आवास हैं. जानवरों की 40 से अधिक प्रजातियां जैसे चींटी खाने वाले, जंगली सूअर और बिल्लियां वर्तमान में यहां रह रही हैं. इसके अलावा, यहां हर्बल पेड़ और पौधे भी प्रचुर मात्रा में हैं.

सर्वानन का अतुल्य प्रेम है ये जंगल
उनकी पत्नी ने कहा कि यह जंगल सर्वानन का अतुल्य प्रेम है. एक बार इस जंगल में कुछ लोग जलाऊ लकड़ी लेने आए थे. उन लोगों ने अनजाने में एक आबनूस के पेड़ की एक शाखा काट दी. वत्सला का कहना है कि सर्वानन ने पेड़ पर लगी चोट के कारण दो दिनों तक भोजन नहीं किया.

शोध के लिए आते हैं कई विज्ञानी
सर्वानन का जीवन बहुत ही सरल है, लेकिन अपने इस जीवन में उन्होंने जंगल को बनाने और उसे एक रूप देने वाला एक सबसे बड़ा चमत्कार कर दिखाया है. इस चमत्कार को देखने आने वाले दर्शकों के लिए प्रवेश बिल्कुल मुफ्त है. वनस्पति विज्ञानी, प्रोफेसर और प्रकृति कार्यकर्ता सहित कई लोग अपने शोध के लिए यहां आते हैं. सभी सुविधाएं उन्हें निशुल्क प्रदान की जाती हैं.

पढ़ें: जानें भारत रत्न एम विश्वेश्वरैया की जयंती पर क्यों मनाया जाता है इंजीनियर्स डे

'एक पेड़ लगाने की बनाएं आदत'
सर्वानन वन प्रबंधन पर प्रशिक्षण दे रहे हैं और पर्यावरण शिक्षा पर जागरूकता बढ़ा रहे हैं. स्थानीय लोगों ने कहा कि इस जंगल ने क्षेत्र में वायु प्रदूषण को काफी कम कर दिया है. भले ही कोई सर्वानन जैसा जंगल न बना सके, लेकिन हर किसी को कम से कम एक पेड़ लगाने की आदत डालनी चाहिए. यह पहल अगली पीढ़ी को जलवायु परिवर्तन की विविधताओं से बचाएगा.

100 दिवसीय पैदल मार्च का आयोजन
सर्वानन बताते हैं कि पश्चिमी घाटों के संरक्षण के समर्थन में 1987 में 100 दिवसीय पैदल मार्च का आयोजन किया गया था. एक नौजवान के रूप में मुझे इस कार्यक्रम में भाग लेने का मौका मिला. तमिलनाडु के पांच लोग वहां थे और मैं प्रमुख व्यक्ति था. इसके बाद हमने केंद्रीय सरकार को एक याचिका प्रस्तुत की, जिसमें भविष्य के लिए जंगलों को संरक्षित करने के लिए कहा गया. उन प्रयासों पर अब ध्यान दिया जा रहा है.

पेड़ की किस्में 250 से बढ़कर हुईं 700
जब हमने एक सर्वेक्षण किया तब हमें 48 विभिन्न प्रकार के पक्षी मिले. अब लगभग 240 किस्में हैं. ये पक्षी एक उद्देश्य और उपयोग के साथ आते हैं. अन्य जंगलों से उनके बीज छोड़ने से पेड़ की एक नई किस्म विकसित होती है. पेड़ की किस्में अब 250 से बढ़कर 700 हो गई हैं. यहां कई प्रकार के जानवर हैं जिनमें साही, पाम सिवेट, लोमड़ी, वन हार्स, छिपकली और 20 से अधिक किस्म के सांप शामिल हैं.

'पेड़ों के प्रति अटूट स्नेह'
सर्वानन की पत्नी वत्सला बताती हैं कि हमारे जंगल में पेड़ों की बहुत दुर्लभ किस्में हैं. एक बार एक पेड़ की शाखा को गलती से लकड़बग्घे ने काट लिया था. जिसके बाद सर्वानन ने दो दिनों तक कुछ भी खाने से इनकार कर दिया था. मुझे आश्चर्य था कि क्या यह सब एक कारण हो सकता है. जिसके बाद मैंने इन परिवर्तनों पर गौर करना शुरू कर दिया.

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