हैदराबाद: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) को प्रकाशित करने की मियाद और नहीं बढ़ाई जाएगी. एनआरसी को दोबारा कराने की अर्जी भी खारिज कर दी है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने 26 जुलाई के फैसले पर मुहर लगाते हुए 12 अगस्त को आदेश दिया कि 31 अगस्त तक दी गई समयसीमा में ही एनआरसी की अंतिम सूची जारी करनी होगी. अब इसमें पखवाड़े भर का समय शेष है.
असम ने 30 जुलाई, 2018 को NRC का अंतिम मसौदा जारी किया था. 32.9 मिलियन आवेदकों में से लगभग 28.9 मिलियन निवासियों ने इस सूची में जगह बनाई थी, जबकि चार मिलियन से अधिक लोगों के नाम हटा दिये गये थे. इन चार मिलियन लोगों में से भी केवल 2.95 मिलियन लोगों ने 31 दिसंबर, 2018 तक नागरिकों के रजिस्टर में शामिल किए जाने के लिए दावे दायर किए, जो कि दावों को दर्ज करने का आखिरी दिन था.
विस्तार से जानें क्या है NRC और कैसे हुई इसकी शुरुआत:
19 जुलाई, 1948: 'वेस्ट पाकिस्तान (कंट्रोल) ऑर्डिनेंस' लागू हुआ. उससे पहले तक पाकिस्तान से भारत या भारत से पाकिस्तान की आवाजाही पर कोई प्रतिबंध नहीं था.
8 अप्रैल, 1950: भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (बाएं) और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने 1950 में शरणार्थियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसमें कहा गया है कि 31 दिसंबर, 1950 तक वापस आने वाले शरणार्थी (पूर्वी बंगाल, पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा के प्रवासियों के संबंध में) अपनी संपत्ति वापस पाने के हकदार होंगे.
1 मार्च, 1950: इमीग्रेंट्स (असम से निष्कासन) अधिनियम केंद्र को 'कुछ अप्रवासियों के निष्कासन का आदेश देने की शक्ति' देने के लिए लागू हुआ. एक प्रसिद्ध शिक्षाविद संजीब बरुआ ने अपनी एक किताब 'इंडिया अगेन्स्ट इटसेल्फ' में लिखा- इस अधिनियम ने "हिंदू शरणार्थियों" और "मुस्लिम अवैध एलियंस" के बीच अंतर पैदा किया.
1951: स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना असम में पहले NRC के आधार पर की गई.
30 दिसंबर, 1955: नागरिकता अधिनियम जन्म, वंश और पंजीकरण द्वारा भारतीय नागरिकता के लिए नियमों को संहिताबद्ध करने के लिए लागू हुआ.
1957: इमीग्रेंट्स (असम से निष्कासन) अधिनियम निरस्त कर दिया गया.
24 अक्टूबर 1960: असम विधानसभा में असमिया भाषा राज्य की एकमात्र आधिकारिक भाषा बनाने के लिए विधेयक पारित किया गया.
19 मई, 1961: असमिया को आधिकारिक भाषा बनाने के विरोध में सिल्चर घाटी में लोगों ने आंदोलन किया जिसमें 11 लोग पुलिस द्वारा मारे गये. दरअसल बराक घाटी में बंगाली भाषी आबादी की बहुलता थी.
हीदों की स्मृति में सिलचर में शहीदों की कब्र पर एक स्मारक बनाया गया था जिसे शहीद मीनार के रूप में जाना जाता है.
20 मई 1962: सिल्चर में 11 लोगों के शहीद हो जाने के बाद बंगाली भाषा आंदोलन किया गया. यह आंदोलन बराक घाटी में शुरू किया गया.
1961-1996: भारत में पाकिस्तानी नागरिकों की घुसपैठ रोकने के लिये हजारों पूर्व पाकिस्तानी प्रवासियों को असम छोड़ने के लिए मजबूर किया गया.
1964: पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में दंगों के बाद सीमा पार बंगाली हिंदुओं का पलायन हुआ.
23 सितंबर, 1964: केंद्र ने विदेशियों के अधिनियम, 1946 को लागू किया ताकि विदेशियों से पूछताछ और उनकी पहचान की जा सके.
अप्रैल-सितंबर 1965: भारत-पाक युद्ध छिड़ गया, जिससे पूर्वी पाकिस्तान से भारत में शरणार्थियों की और बाढ़ आ गई.
8 अगस्त, 1967: ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) का गठन.
1967: असम में बराक घाटी से तीन जिलों की आधिकारिक भाषा के रूप में असम का नाम राजभाषा अधिनियम में संशोधन किया गया.
1971: बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान 1971 में बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आ गये.
1978: मंगलदोई संसदीय क्षेत्र के लिए हुए उपचुनाव में मतदाता सूची में जनसंख्या में भारी वृद्धि देखी गई. इसे लेकर विरोध प्रदर्शन किया गया.
दिसंबर 1979: केंद्रीय नियम एक वर्ष के लिए लगाया गया था और असम अगले तीन सालों के लिए राष्ट्रपति शासन के अधीन रहा.
मई, 1980: विदेशी-विरोधी आंदोलन के जवाब में, ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन का गठन किया गया, जिसमें मूल रूप से हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल थे.
18 फरवरी 1983: नौगांग जिले के नेल्ली सहित 14 गांवों के 3,000 बंगाली मुस्लिम समुदाय के लोगों का छह घंटों में नरसंहार किया गया.
1983: विरोध और बहिष्कार के बीच विधानसभा चुनाव हुए.
12 दिसंबर, 1983: अवैध प्रवासी न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारण) अधिनियम पारित किया गया. इसमें यह निर्दिष्ट किया गया था कि जो लोग 1966 और 1971 के बीच असम चले गए थे, वे 10 वर्षों के लिए अपने मतदान के अधिकार को खो देंगे और जो लोग यह साबित नहीं कर सके कि वे 24 मार्च, 1971 की आधी रात से पहले राज्य में दाखिल हुए थे, विदेशी घोषित कर निर्वासित किए जाएंगे.
15 अगस्त, 1985: असम आंदोलन का समापन असम समझौते में हुआ, जिसे केंद्र, राज्य, एएएसयू और अन्य असमिया राष्ट्रवादी समूहों के बीच हस्ताक्षरित किया गया. समझौते और नागरिकता अधिनियम के बाद के संशोधन के तहत, विदेशियों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जाना था:
- जो लोग 01-01-1966 से पहले असम आए थे
- जो 01-01.1966 और 24-03-1971 के बीच आए
- जो लोग 25-03-1071 या उसके बाद आए
पहले समूह को प्रथम श्रेणी में पूर्ण नागरिक माना गया, दूसरे को 10 साल के लिए मताधिकार से वंचित किया जाएगा और तीसरे समूह को निर्वासित किया जाएगा.
समझौते के अन्य खंडों में कहा गया है:
1- विदेशियों द्वारा अचल संपत्ति के अधिग्रहण पर प्रतिबंध
2- जन्म और मृत्यु का पंजीकरण
3- सरकारी भूमि के अतिक्रमण को रोकना
4- असमिया की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और विरासत को बढ़ावा देना
5- आर्थिक विकास, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर जोर
6- केवल केंद्रीय अधिकारियों द्वारा जारी किए जाने वाले नागरिकता प्रमाण पत्र
7- सीमा सुरक्षा सुनिश्चित की जाए
1997: चुनाव आयोग ने अपने मतदाता सूची के संशोधन के दौरान आदेश दिया कि संदिग्ध मतदाताओं के लिए 'D' वर्ण इस्तेमाल किया जाएगा.
2003: नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पेश किया गया था. 1955 के कानून में किए गए अन्य परिवर्तनों के साथ इसमें कहा गया कि 1950 और 1987 के बीच भारत में पैदा हुआ कोई भी भारतीय नागरिक है.1987 और 2003 के बीच पैदा हुए लोग भारतीय नागरिक हैं, बशर्ते माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक हो. अंत में, यह कहा गया कि 2004 से भारत में पैदा हुआ कोई भी व्यक्ति जिसके माता-पिता में कोई भी एक भारतीय है, वह भारतीय नागरिक है.
जुलाई 2005: सुप्रीम कोर्ट ने अवैध प्रवासियों (न्यायाधिकरणों द्वारा निर्धारण) अधिनियम, 1983 को असंवैधानिक करार दिया.
जुलाई 2009: असम का एक एनजीओ, असम पब्लिक वर्क्स (APW) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें मतदाता सूची से अनिर्दिष्ट प्रवासियों को हटाने के लिये कहा.
जून 2010: एक अपडेटेज पायलट एनआरसी परियोजना को दो राजस्व हलकों में पेश किया गया था, लेकिन ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (AAMSU) द्वारा विरोध प्रदर्शन के बाद इसे रोक दिया गया था.
जुलाई 2011: एनआरसी के संबंध में नए तौर-तरीकों पर काम करने के लिए कैबिनेट सब-कमेटी का गठन किया गया.
जुलाई 2012: एसम कैबिनेट ने सब-कमेटी की रिपोर्ट को मंजूरी दी.
जुलाई 2013: असम के गृह मंत्रालय ने नए तौर तरीकों को प्रस्तुत किया.
अगस्त 2013: सुप्रीम कोर्ट ने एपीडब्ल्यू याचिका को लिया और एनआरसी को अपडेट करने के लिए गिनती की प्रक्रिया को तेज किया.
अक्टूबर 2013: प्रतीक हजेला को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार राज्य समन्वयक के रूप में नियुक्त किया गया.
दिसंबर 2013: एनआरसी को अपडेट करने के लिए केंद्र ने गैजेट नोटिफिकेशन जारी किया.
2014: सुप्रीम कोर्ट ने 64 और विदेशियों के न्यायाधिकरणों की स्थापना का आदेश दिया.
मार्च 2015: लेगेसी डेटा ऑनलाइन प्रकाशित किया गया.
अगस्त 2015: एनआरसी को अपडेट करने के लिये आवेदन मांगे गये. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम समझौते के प्रावधानों के अनुसार गिनती शुरू की गई.
19 जुलाई, 2016: भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक पेश किया, जिसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता की सुविधा का प्रस्ताव था.
31 दिसंबर, 2017: नए एनआरसी का पहला मसौदा प्रकाशित किया गया था. 3.29 करोड़ आवेदकों में से केवल 1.9 करोड़ लोगों को रजिस्टर किया गया.
मई 2018: नागरिकता (संशोधन) विधेयक के खिलाफ असम में व्यापक विरोध भड़क उठा. उस समय विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति राज्य के दौरे पर थी.
30 जुलाई, 2018: एनआरसी का अंतिम मसौदा प्रकाशित किया गया, जिसके मुताबिक 2 करोड़ 89 लाख लोग असम के नागरिक हैं जबकि यहां रह रहे 40 लाख लोगों का नाम इस सूची में नहीं था.
8 जनवरी, 2019: पूर्व गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 को पेश किया. लोकसभा में वह बिल पारित कर दिया गया.
21 जून, 2019: एक एनजीओ असम पब्लिक वर्क्स (APW) ने सुप्रीम कोर्ट में लिस्ट में एक महिला के नाम को शामिल करने के लिए रिश्वत मांगने के आरोप में दो अधिकारियों की गिरफ्तारी के बाद NRC के अंतिम मसौदे में शामिल नामों के पुन: सत्यापन की मांग की.
26 जून, 2019: 1,02,462 लोगों को छोड़कर एनआरसी की अतिरिक्त मसौदा बहिष्करण सूची को प्रकाशित किया गया.
19 जुलाई, 2019: केंद्र सरकार के लिए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और असम सरकार के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की जिसमें मसौदे के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) लिस्ट को फिर से शामिल करने की मांग की गई.
22 जुलाई, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और असम सरकार की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सैंपल रि-वैरिफिकेशन की मांग की गई, लेकिन अंतिम NRC को प्रकाशित करने के लिए राज्य NRC समन्वयक को 31 अगस्त, 2019 तक एक महीने का एक्सटेंशन दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने अब तक किए गए पुन: सत्यापन अभ्यास पर NRC समन्वयक हजेला की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि अब तक 8 मिलियन लोगों को स्वचालित रूप से पुन: सत्यापित किया गया है.
13 अगस्त, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर केंद्र सरकार की मांग को खारिज कर दिया है. केंद्र सरकार ने एनआरसी को दोबारा कराने और फिर से जांच करने की मांग की थी. इस मांग को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनआरसी डाटा में आधार की तरह गोपनीयता बनाए रखी जाएगी और 31 अगस्त को फाइनल एनआरसी प्रकाशित होगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई भी अभिभावकों में से कोई एक संदेहास्पद वोटर है, या विदेशी घोषित किया गया है, या केस लड़ रहा है, उसका बच्चा 3 दिसंबर 2004 को पैदा हुआ है, तो वह एनआरसी के दायरे से बाहर होगा.
अवैध प्रवासियों की सुनवाई जिस ट्रिब्यूनल में चलेगी, उसके खिलाफ अपील गुवाहाटी हाईकोर्ट में की जा सकेगी. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की आखिरी सूची जारी करने की तारीख बढ़ा दी थी.