तमिलनाडु : कोरोना महामारी के कारण मूर्तिकारों की छेनी और हथौड़ा की खटपट बंद हो गई है. जो हाथ ग्रेनाइट के पत्थरों पर देवी और देवताओं के साथ नेताओं की मूर्तियां बनाते थे, वही हाथ इस कोरोना महामारी के कारण अब काम के लिए तरस रहे हैं.
हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु के नामक्कल जिले के कांदापुरी के मूर्तिकारों की. यहां की मूर्तियां देश और विदेश में अत्यधिक लोकप्रिय हैं. कोरोना संकट और लॉकडाउन के कारण मूर्तिकारों के पास कोई काम नहीं बचा है. मूर्तियां बनाने का काम ठप है. जो प्रतिमाएं बनकर तैयार हैं, लॉकडाउन के कारण उन्हें गंतव्यों तक नहीं भेजा जा सका है.
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मूर्तिकारों का कहना है कि उनकी मूर्तियों की मांग देश के साथ विदेश में भी है. जिस कारण उनका वार्षिक कारोबार 100 करोड़ रुपये से अधिक का है. कलात्मक बारीकियों और आकार के आधार पर एक मूर्ति की कीमत 500 रुपये से लेकर लाखों में होती है. कोरोना महामारी ने मूर्तिकारों को उनकी आजीविका से वंचित कर दिया है. इस साल तीन महीने के लॉकडाउन के कारण कारोबार में गिरावट देखी गई है. मूर्तिकारों का कहना है कि उनके द्वारा बनाई जा रही मूर्तियों की कीमत तीन करोड़ रुपये से कम नहीं है, लेकिन यह स्थिति उनके काम को पूरा करने के लिए अनुकूल नहीं है.
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मूर्तिकार कुमारेशन कहते हैं कि इस साल जनवरी में उन्हें कई मंदिर के अधिकारियों ने देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाने का ऑर्डर दिया है. इसके लिए उन्होंने अग्रिम राशि का भुगतान किया है. हमने उन ऑर्डर को पूरा कर लिया है, लेकिन वे बेकार पड़े हुए हैं क्योंकि उन्हें लॉकडाउन के कारण लगे प्रतिबंध के मद्देनजर नहीं ले जाया जा सकता.
उन्होंने आगे कहा कि सरकार को हमें 10 हजार रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए.
मूर्तिकार जगदीशन कहते हैं कि पूरा जीवन इस कला को सिखने में बिता दिया. हमारे पास वैकल्पिक काम करने का कोई विकल्प नहीं है. अब तक, हम इस मुश्किल समय में एक दूसरे की मदद करने में किसी तरह कामयाब रहे हैं, लेकिन काम के बिना हम लंबे समय तक जीविकोपार्जन नहीं कर सकते.