नई दिल्ली : मेडिकल के 2020-21 के शैक्षणिक सत्र में स्नातक, पोस्ट ग्रेज्यूएट और दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में अखिल भारतीय कोटे में तमिलनाडु सरकार द्वारा छोड़ी गयी सीटों में 50 फीसदी आरक्षण का लाभ राज्य के छात्रों को नहीं देने के केन्द्र के निर्णय के खिलाफ मद्रास उच्च न्यायालय में लंबित याचिका पर शीघ्र फैसले के लिये तमिलनाडु सरकार ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है.
इस याचिका में तमिलनाडु सरकार ने उच्च न्यायालय के 22 जून के आदेश को चुनौती दी है. उच्च न्यायालय ने इस आदेश में अन्य पिछड़े वर्गो के लिये आरक्षण विवाद पर अंतरिम आदेश देने से इंकार कर दिया था. अदालत ने इस मामले की सुनवाई नौ जुलाई के लिये स्थगित करते हुये कहा था कि इसी तर की याचिका आठ जुलाई को शीर्ष अदालत में सुनवाई के लिये सूचीबद्ध है.
राज्य सरकार, द्रमुक, अन्नाद्रमुक, मार्क्सवादी पार्टी, तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी और कम्युनिस्ट पार्टी ने 11 जून को शीर्ष अदालत से कोई राहत नहीं मिलने पर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. शीर्ष अदालत ने इन याचिकाओं पर विचार करने से इंकार करते हुये उनसे कहा था कि राहत के लिये वे मद्रास उच्च न्यायालय जायें.
तमिलनाडु सरकार अब एक बार फिर शीर्ष अदालत पहुंची है और उसने अनुरोध किया है कि उच्च न्यायालय को याचिकाओं का जल्द निबटारा करने का निर्देश दिया जाये.
उच्च न्यायालय ने केन्द्र की इस दलील का संज्ञान लेते हुये कोई भी अंतरिम आदेश देने से इंकार कर दिया था कि 1986 से ही शीर्ष अदालत के निर्देशानुसार मेडिकल में प्रवेश के मामले में अखिल भारतीय स्तर पर सीटों के कोटे में कोई आरक्षण प्रदान नहीं किया गया है.
केन्द्र के वकील ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि दस साल बाद इसमें सुधार किया गया था और अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिये आरक्षण का प्रावधान किया गया था. ओबीसी के आरक्षण के लिये 2015 में भी याचिकायें दायर की गयीं थीं जो शीर्ष अदालत में अभी भी लंबित हैं.
राज्य सरकार और विभिन्न राजनीतिक दल चाहते हैं कि तमिलनाडु कानून के अनुसार ओबीसी के लिये 50 फीसदी आरक्षण प्रदान किया जाये.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि केन्द्र ने 2006 के कानून के तहत भी अन्य पिछड़े वर्गो के लिये 27 फीसदी स्थान आरक्षित करने की अपनी नीति का अनुपालन भी नहीं किया है.