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... और ये वीरान होता ताकुला का गांधी मंदिर

इस साल महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती मनाई जा रही है. इस अवसर पर ईटीवी भारत दो अक्टूबर तक हर दिन उनके जीवन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा कर रहा है. हम हर दिन एक विशेषज्ञ से उनकी राय शामिल कर रहे हैं. साथ ही प्रतिदिन उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों की प्रस्तुति दे रहे हैं. प्रस्तुत है आज तीसरी कड़ी.

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Published : Aug 18, 2019, 6:59 AM IST

Updated : Sep 27, 2019, 8:50 AM IST

नैनीताल: महात्मा गांधी ऐसे व्यक्तित्व का नाम है, जिन्होंने देश को गुलामी की जंजीरों से आजादी दिलाई थी. उनकी एक आवाज पर लाखों लोगों का कारवां उनके पीछे चलता था. गांधी जी के जुनून ने देश को आजादी तो दिलाई और मरने के बाद भी वह लोगों के दिलों में अमर हैं.

वहीं गांधी जी का देवभूमि से भी काफी लगाव रहा था. उनकी नैनीताल से बागेश्वर तक की यात्रा ने लोगों के दिलों में आजादी की चिंगारी को और भड़का दिया था. लेकिन अफसोस की बात है कि उनकी कई विरासतें आज खंडहर में तब्दील हो रही है.

ये भी पढ़ें: यहां का नैसर्गिक सौन्दर्य देख गांधी भी हो गए थे मोहित

जानकार बताते हैं कि गांधी जी के इस यात्रा में कई रूप में नजर आते थे. कभी वे समाजसेवी तो कभी कुशल राजनीतिज्ञ और कभी आध्यात्मिक संत के रूप में लोगों से मुखातिब होते थे.

महात्मा गांधी ने नैनीताल से बागेश्वर तक की यात्रा के दौरान लोगों को आजादी की लड़ाई के लिये प्रेरित किया था. लेकिन आज गांधी के कुमाऊं दौरे की कई विरासतें देख-रेख के अभाव में खंडहर में तब्दील होती जा रही हैं. उन्हीं में से एक ताकुला स्थित गांधी मंदिर भी है.

वीरान होता ताकुला का गांधी मंदिर

आपको बता दें, 14 जून 1929 को गांधी जी ताकुला पहुंचे थे. इसके अगले दिन उन्होंने महिलाओं को संबोधित किया था. गांधी जी के संबोधन से महिलाओं में ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए अपने आभूषण दान दे दिए.

महिलाओं के इस कदम से गांधी जी काफी प्रभावित हुए. इसके परिणाम स्वरुप कुमाऊं के लोगों ने नमक सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी. ताकुला के लोगों ने इस आश्रम को गांधी मंदिर नाम दिया.

अहम बात ये है कि इस मंदिर की बुनियाद खुद महात्मा गांधी ने रखीं थी. यहां उन्होंने प्रवास भी किया था. लेकिन विडंबना देखिए कि गांधी जी की इस ऐतिहासिक धरोहर को सरकारें भूल गई और आज वो अपने हाल पर रो रहा है.

ये भी पढ़ें: 'अभिव्यक्ति, समानता और स्वतंत्रता को लेकर बहुत याद आ रहे गांधी'

वहीं गांधी दर्शन से जुड़े लोग इसको राष्ट्रीय स्मारक घोषित किये जाने की मांग कर रहे हैं. आज जरूरत है तो गांधी की इस ऐतिहासिक विरासत को सहेज कर रखने की, जिससे आने वाली पीढ़ी भी इससे रूबरू हो सकें.

बता दें कि पहली बार महात्मा गांधी 14 जून 1929 को कुमाऊं दौरे पर आए थे और 15 जून को नैनीताल वासियों को उनके इस्तकबाल का सौभाग्य मिला था. गांधी जी 14 जून को हल्द्वानी पहुंचने के बाद उसी दिन गांधी काठगोदाम-नैनीताल मार्ग स्थित तालुका गांव पहुंचे थे.

इसी दौरान महात्मा गांधी ने वहां गांधी आश्रम की नींव रखी थी. गांधी जी, जिसके बाद भवाली, रानीखेत, अल्मोड़ा और बागेश्वर तक गए. दूसरी बार गांधी जी 1931 में पुनः कुमाऊं के दौरे पर आएं और ताकुला स्थित गांधी आश्रम में कुछ दिन तक रहे.

नैनीताल: महात्मा गांधी ऐसे व्यक्तित्व का नाम है, जिन्होंने देश को गुलामी की जंजीरों से आजादी दिलाई थी. उनकी एक आवाज पर लाखों लोगों का कारवां उनके पीछे चलता था. गांधी जी के जुनून ने देश को आजादी तो दिलाई और मरने के बाद भी वह लोगों के दिलों में अमर हैं.

वहीं गांधी जी का देवभूमि से भी काफी लगाव रहा था. उनकी नैनीताल से बागेश्वर तक की यात्रा ने लोगों के दिलों में आजादी की चिंगारी को और भड़का दिया था. लेकिन अफसोस की बात है कि उनकी कई विरासतें आज खंडहर में तब्दील हो रही है.

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जानकार बताते हैं कि गांधी जी के इस यात्रा में कई रूप में नजर आते थे. कभी वे समाजसेवी तो कभी कुशल राजनीतिज्ञ और कभी आध्यात्मिक संत के रूप में लोगों से मुखातिब होते थे.

महात्मा गांधी ने नैनीताल से बागेश्वर तक की यात्रा के दौरान लोगों को आजादी की लड़ाई के लिये प्रेरित किया था. लेकिन आज गांधी के कुमाऊं दौरे की कई विरासतें देख-रेख के अभाव में खंडहर में तब्दील होती जा रही हैं. उन्हीं में से एक ताकुला स्थित गांधी मंदिर भी है.

वीरान होता ताकुला का गांधी मंदिर

आपको बता दें, 14 जून 1929 को गांधी जी ताकुला पहुंचे थे. इसके अगले दिन उन्होंने महिलाओं को संबोधित किया था. गांधी जी के संबोधन से महिलाओं में ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए अपने आभूषण दान दे दिए.

महिलाओं के इस कदम से गांधी जी काफी प्रभावित हुए. इसके परिणाम स्वरुप कुमाऊं के लोगों ने नमक सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी. ताकुला के लोगों ने इस आश्रम को गांधी मंदिर नाम दिया.

अहम बात ये है कि इस मंदिर की बुनियाद खुद महात्मा गांधी ने रखीं थी. यहां उन्होंने प्रवास भी किया था. लेकिन विडंबना देखिए कि गांधी जी की इस ऐतिहासिक धरोहर को सरकारें भूल गई और आज वो अपने हाल पर रो रहा है.

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वहीं गांधी दर्शन से जुड़े लोग इसको राष्ट्रीय स्मारक घोषित किये जाने की मांग कर रहे हैं. आज जरूरत है तो गांधी की इस ऐतिहासिक विरासत को सहेज कर रखने की, जिससे आने वाली पीढ़ी भी इससे रूबरू हो सकें.

बता दें कि पहली बार महात्मा गांधी 14 जून 1929 को कुमाऊं दौरे पर आए थे और 15 जून को नैनीताल वासियों को उनके इस्तकबाल का सौभाग्य मिला था. गांधी जी 14 जून को हल्द्वानी पहुंचने के बाद उसी दिन गांधी काठगोदाम-नैनीताल मार्ग स्थित तालुका गांव पहुंचे थे.

इसी दौरान महात्मा गांधी ने वहां गांधी आश्रम की नींव रखी थी. गांधी जी, जिसके बाद भवाली, रानीखेत, अल्मोड़ा और बागेश्वर तक गए. दूसरी बार गांधी जी 1931 में पुनः कुमाऊं के दौरे पर आएं और ताकुला स्थित गांधी आश्रम में कुछ दिन तक रहे.

Intro:नैनीताल: महात्मा गांधी ऐसे व्यक्तित्व का नाम है जिन्होंने देश को गुलामी की जंजीरों से आजादी दिलाई थी. जिनकी एक आवाज पर लाखों लोगों का कारवां उनके पीछे चलता था. गांधी जी के जुनून ने देश को आजादी तो दिलाई ही लेकिन मरने के बाद भी आज भी वे लोगों के दिलों में अमर हैं. वहीं गांधी जी का देवभूमि से भी काफी लगाव रहा था. उनकी नैनीताल से बागेश्वर तक की यात्रा ने लोगों के दिलों में आजादी की चिंगारी को और भड़का दिया था. लेकिन अफसोस की बात है कि उनकी कई विरासतें आज खंडहर में तब्दील हो रही है. Body:जानकार बताते हैं कि गांधी जी इस यात्रा में वे कई रूप में नजर आते थे. कभी वे समाजसेवी तो कभी कुशल राजनीतिज्ञ और कभी आध्यात्मिक संत के रूप में लोगों से मुखातिब होते थे. महात्मा गांधी जी ने नैनीताल से बागेश्वर तक यात्रा की यात्रा के दौरान लोगों को आजादी की लड़ाई के लिये प्रेरित किया था. लेकिन आज गांधी गांधी के कुमाऊं दौरे की कई विरासतें देखरेख के अभाव में खंडहर में तब्दील होते जा रहे हैं. उन्हीं में से एक ताकुला स्थित गांधी मंदिर भी है.
14 जून 1929 को गांधी जी ताकुला पहुंचे थे, जिसके अगले दिन उन्होंने महिलाओं को संबोधित किया था. गांधी जी के संबोधन से महिलाओं में ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए अपने आभूषण दान दे दिए. महिलाओं के इस कदम से गांधी जी काफी प्रभावित हुए थे. जिसके परिणाम स्वरुप कुमाऊं के लोगों ने नमक सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी. ताकुला के लोगों ने इस आश्रम को गांधी मंदिर नाम दिया.
जिसकी बुनियाद खुद महात्मा गांधी जी ने रखीं थी.जहां उन्होंने प्रवास भी किया था. लेकिन विडंबना देखिए गांधी जी की इस ऐतिहासिक धरोहर को सरकारें भूल गई. जो आज भी अपने हाल पर रो रहा है. वहीं गांधी दर्शन से जुड़े लोग इसको राष्ट्रीय स्मारक घोषित किये जाने की मांग कर रहे हैं. आज जरूरत है तो गांधी की इस ऐतिहासिक विरासत को सहेज कर रखने की, जिससे आने वाली पीढ़ी भी इससे रूबरू हो सकें.
Conclusion:बता दें कि पहली बार महात्मा गांधी 14 जून 14 जून 1929 को कुमाऊं दौरे पर आए थे और15 जून को नैनीताल वासियों को उनके इस्तकबाल का सौभाग्य मिला था. गांधी जी 14 जून को हल्द्वानी पहुंचने के बाद उसी दिन गांधी काठगोदाम-नैनीताल मार्ग पर स्थित ताकुला गांव पहुंचे थे. उसी समय महात्मा गांधी ने वहां गांधी आश्रम की नींव रखी थी. गांधी जी जिसके बाद भवाली, रानीखेत, अल्मोड़ा और बागेश्वर तक गए. दूसरी बार गांधी जी 1931 में पुनः कुमाऊं के दौरे पर आएं और ताकुला स्थित गांधी आश्रम में कुछ दिन तक रहे.
Last Updated : Sep 27, 2019, 8:50 AM IST
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