भुवनेश्वर : श्री जगन्नाथ और उनके भक्त एक दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं. यही कारण है कि श्री जगन्नाथ की रथ यात्रा को भव्य बनाने में उनके भक्त कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. श्री जगन्नाथ जब मंदिर के गर्भगृह रत्न बेदी से रथ यात्रा के लिए निकलते हैं तो भक्त भगवान के सिर पर सजे सुंदर और विशाल मुकुट को देखकर दूर से ही खुशी से अभिभूत हो जाते हैं. इस विशाल मुकुट को टाहिया कहा जाता है.
श्री जगन्नाथ के सिर पर सजा यह टाहिया चारों दिशाओं में घूमता है और यह श्री जगन्नाथ की मुस्कुराती सांवली सूरत को और खूबसूरत बनाता है. श्री जगन्नाथ जब पहांडी (एक परंपरा, जिसमें सेवकों द्वारा जगन्नाथ को कंधे पर ले जाते हैं) पर होते हैं तो यह टाहिया रथ यात्रा और भजनों की धुन पर थिरकता नजर आता है.
मोरपंख और फूल-पत्तियों का होता है इस्तेमाल
श्री जगन्नाथ के सेवादार ने बताया कि मोर के रंग-बिरंगे पंखों से बने इस टाहिया को श्री जगन्नाथ और उनके बड़े भाई बालभद्र के सिर पर स्नान पर्व से लौटते समय पहांडी यात्रा के दौरान छह बार सजाया जाता है. वहीं निलाद्री बिजे के दौरान (रथ यात्रा उत्सव के अंत में जब त्रिमूर्ति की गर्भगृह में वापसी होती है) उनके सिर पर गोल टाहिया नहीं होता है. इस दौरान केवल कुछ दूबा और फूलों को एक ब्रश से बांधकर उनके सिर पर रखा जाता है. उन्होंने बताया कि इस पूरे उत्सव के दौरान श्री जगन्नाथ के सिर को 24 टाहियों से सजाया जाता है.
बनाने की शैली
एक अन्य सेवक ने बताया कि यह टाहिया मंदिर के पास स्थित राघव दास मठ से बनकर आते हैं. इन्हें बनाने की शैली अद्वितीय है. टाहिया को बांस की रंगीन फांकों, केले के पेड़ के सूखे गोले, सिंदूर, फीता, रंगीन कपड़े, पवित्र धागे से बनाया जाता है. रथ यात्रा के समय श्री जगन्नाथ के सिर पर सजने वाले इस टाहिया में सुगंधित फूलों जैसे जास्मीन, कमल, तुलसी के पत्तों और पवित्र दूबा का उपयोग भी किया जाता है. 14 कारीगर मिलकर इस टाहिया को बनाते हैं.
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